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Hindi Kahani Timepass Read in Hindi By Padma Agarwal | टाइमपास: भाग 1 पद्मा अग्रवाल

Hindi Kahani Timepass Read in Hindi By Padma Agarwal | टाइमपास: भाग 1 पद्मा अग्रवाल
Hindi Kahani Timepass Read in Hindi By Padma Agarwal | टाइमपास: भाग 1 पद्मा अग्रवाल


टाइमपास: भाग 1 पद्मा अग्रवाल
‘रोमेश, कुछ तो शर्म करो.’ मिमियाती सी धीमी आवाज में रोमेश बोले, ‘तुम जाने क्या सोच बैठी हो? ऐसा कुछ भी नहीं है.’ रीना ने हिकारत से रोमेश की ओर देखा था.




‘‘पार्वती, तुम आज और अभी यह कमरा खाली कर दो और यहां से चली जाओ.’’

‘‘भाभी, मैं कहां जाऊंगी?’’

‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं. तुम कहीं भी जाओ. जिओ, मरो, मेरी बला से. मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहती.’’ रीना का दिल पिघलाने के लिए पार्वती आखिरी अस्त्र का प्रयोग करते हुए उन के पैर पकड़ कर फूटफूट कर रोने लगी. अपना सिर उन के पैरों पर रख कर बोली, ‘‘भाभी, माफ कर दो, मुझ से गलती हो गई.’’

‘‘तुम अपना सामान खुद बाहर निकालोगी कि मैं वाचमैन से कह कर बाहर फिंकवाऊं?’’ रीना खिड़की से चोरनिगाहों से रोमेश के घबराए हुए चेहरे को देख रही थी. वे ड्राइंगरूम में बेचैनी से चहलकदमी करते हुए चक्कर काट रहे थे. साथ ही, बारबार चेहरे से पसीना पोंछ रहे थे. रीना की कड़कती आवाज और उस के क्रोध से पार्वती डर गई और निराश हो कर उस ने अपना सामान समेटना शुरू कर दिया. उस की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. आज रोमेश ने रीना के विश्वास को तोड़ा था. रीना के मन में विचारों की उमड़घुमड़ मची हुई थी. 30 वर्ष से उस का वैवाहिक जीवन खुशीखुशी बीत रहा था. रोमेश जैसा पति पा कर वह सदा से अपने को धन्य मानती थी. वे मस्तमौला और हंसोड़ स्वभाव के थे. बातबात में कहकहे लगाना उन की आदत थी. रोते हुए को हंसाना उन के लिए चुटकियों का काम था. रोमेश बहुत रसिकमिजाज भी थे. महिलाएं उन्हें बहुत पसंद करती थीं.

62 वर्षीया रीना 2 प्यारीप्यारी बेटियों की सारी जिम्मेदारी पूरी कर चुकी थी. त्रिशा और ईशा दोनों बेटियों को पढ़ालिखा कर, उन की शादीब्याह कर के अपनी जिम्मेदारियों से छुट्टी पा चुकी थी. वह और रोमेश दोनों आपस में सुखपूर्वक रह रहे थे. बड़ी बेटी त्रिशा की शादी को 8 वर्ष हो चुके थे परंतु वह मां नहीं बन सकी थी. अब इतने दिनों बाद कृत्रिम गर्भाधान पद्धति से वह गर्भवती हुई थी. डाक्टर ने उसे पूर्ण विश्राम की सलाह दी थी. उस की देखभाल के लिए उस के घर में कोई महिला सदस्य नहीं थी. इसलिए रीना का जाना आवश्यक था. लेकिन वह निश्ंिचत थी क्योंकि उसे पार्वती पर पूर्ण विश्वास था कि वह घर और रोमेश दोनों की देखभाल अच्छी तरह कर सकती थी. रोमेश हमेशा से छोटे बच्चे की तरह थे. अपने लिए एक कप चाय बनाना भी उन के लिए मुश्किल काम था. पार्वती के रहने के कारण रीना बिना किसी चिंता के आराम से चली गई थी. कुछ दिनों बाद त्रिशा के घर में प्यारी सी गुडि़या का आगमन हुआ. वह खुशी से फूली नहीं समा रही थी. रोमेश भी गुडि़या से मिलने आए थे. वे 2-3 दिन वहां रहे थे और चिरपरिचित अंदाज में बेटी त्रिशा से बोले, ‘तुम्हारी मम्मी को मेरे लिए टाइमपास का अच्छा इंतजाम कर के आना चाहिए था. घर में बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’ उन की बात सुन कर सब हंस पड़े थे. रीना शरमा गई थी. वह धीमे से बोली थी, ‘आप भी, बच्चों के सामने तो सोचसमझ कर बोला करिए.’ वह चुपचाप उठ कर रसोई में चली गई थी.

मुंबई से वह 3 महीने तक नहीं लौट सकी. त्रिशा की बिटिया बहुत कमजोर थी और उसे पीलिया भी हो गया था. वह 10-12 दिन तक इन्क्यूबेटर में रही थी. त्रिशा के टांके भी नहीं सूख पा रहे थे. इसलिए वह चाह कर भी जल्दी नहीं लौट सकी. उस का लौटने का प्रोग्राम कई बार बना और कई बार कैंसिल हुआ. इसलिए आखिर में जब उस का टिकट आ गया तो उस ने मन ही मन रोमेश को सरप्राइज देने के लिए सोच कर कोई सूचना नहीं दी और बेटी त्रिशा को भी अपने पापा को बताने के लिए मना कर दिया. दोपहर का 1 बजा था. वह एअरपोर्ट से टैक्सी ले कर सीधी अपने घर पहुंची. गाड़ी पोर्च में खड़ी देख उस का मन घबराया कि आज रोमेश इस समय घर पर क्यों हैं? वह दबेपांव घर में घुस गई. उस को बैडरूम से पार्वती और रोमेश के खिलखिलाने की आवाज सुनाई दी. वह अपने को रोक नहीं पाई. उस ने खिड़की से अंदर झांकने का प्रयास किया. पार्वती बैड पर लेटी हुई थी. यह देख रीना की आंखें शर्म से झुक गईं. पार्वती तो पैसे के लिए सबकुछ कर सकती है, परंतु रोमेश इतना गिर जाएंगे, वह भी इस उम्र में, वह स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी.

आज रोमेश को देख कर लग रहा था उन में और जानवर में भला क्या अंतर है? जैसे पशु अपनी भूख मिटाने के लिए यहांवहां कहीं भी मुंह मार लेता है वैसे ही पुरुष भी. इतने दिन बाद घर आने की उस की सारी खुशी काफूर हो चुकी थी. उसे लग रहा था कि वह जलते हुए रेगिस्तान में अकेले झुलस कर खड़ी हुई है. दूरदूर तक उसे सहारा देने वाला कोई नहीं है. फिर भी अपने को संयत कर के उस ने जोर से दरवाजा खटखटा दिया था. जानीपहचानी आवाज रोमेश की थी, ‘पार्वती, देखो इस दोपहर में कौन आ मरा?’ पार्वती अपनी साड़ी और बाल ठीक करती हुई दरवाजे तक आई, उस ने थोड़ा सा दरवाजा खोल कर झांका. रीना को देखते ही उस के होश उड़ गए. रीना ने जोर से पैर मार कर दरवाजा पूरा खोल दिया. रोमेश और बिस्तर दोनों अस्तव्यस्त थे. वे पत्नी को अचानक सामने देख आश्चर्य से भर उठे थे. अपने को संभालते हुए बोले, ‘तुम ने अपने आने के बारे में कुछ बताया ही नहीं? मैं गाड़ी ले कर एअरपोर्ट आ जाता.’

‘मैं तुम्हारी रंगरेलियां कैसे देख पाती?’

‘तुम कैसी बात कर रही हो? मुझे बुखार था, इसलिए पार्वती से मैं ने सिर दबाने को कहा था.’

‘रोमेश, कुछ तो शर्म करो.’ मिमियाती सी धीमी आवाज में रोमेश बोले, ‘तुम जाने क्या सोच बैठी हो? ऐसा कुछ भी नहीं है.’ रीना ने हिकारत से रोमेश की ओर देखा था. क्रोध में वह थरथर कांप रही थी. उस ने जोर से पार्वती को आवाज दी, ‘वाह पार्वती वाह, तुम ने तो जिस थाली में खाया उसी में छेद कर दिया. मैं ने तुम पर आंख मूंद कर विश्वास किया. सब लोग तुम्हारे बारे में कितना कुछ कहते रहे, लेकिन मैं ने किसी की नहीं सुनी थी. अभी यहां से निकल जाओ, मैं तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहती.’

रीना आज खुद को कोस रही थी, क्यों पार्वती पर इतना विश्वास किया. वह ड्राइंगरूम में आ कर चुपचाप बैठ गई थी. थोड़ी देर में रोमेश उस के लिए खुद चाय बना कर लाए. उस के पैरों के पास बैठ कर धीरे से बोले, ‘‘रीना, प्लीज मुझे माफ कर दो. वह तो मैं बोर हो रहा था, इसलिए टाइमपास करने के लिए उस से बातें कर रहा था.’’ ‘‘रोमेश, तुम इस समय मुझे अकेला छोड़ दो. आज मैं ने जो कुछ अपनी आंखों से देखा है, सहसा उस पर विश्वास नहीं कर पा रही हूं. प्लीज, तुम मेरी नजरों से दूर हो जाओ. मुझे एक बात बता दो, यह सब कब से चल रहा था?’’

‘‘रीना, तुम्हारी कसम खाता हूं, ऐसा कुछ नहीं हुआ है जो तुम सोच रही हो.’’







टाइमपास: भाग 2
बेटा दीप पानमसाला खाता, पैसा चुरा कर जुआ खेलता. बेटी पूजा चाल के लड़कों से नजरें लड़ाती. दोनों बच्चों की वजह से उस के और महेश के बीच अकसर लड़ाई हो जाती.





‘‘तो ठीक है. जो बाकी है, वह भी कर के अपनी इच्छा पूरी कर लो. मेरे यहां रहने से परेशानी है तो मैं फिर से चली जाती हूं. त्रिशा को इस समय मेरी बहुत जरूरत है. मैं तो तुम्हारे लिए भागी आई हूं. परंतु तुम तो दूसरी दुनिया बसा चुके हो. मैं बेकार में अपना माथा खाली कर रही हूं. व्यर्थ का तमाशा मत बनाओ. मेरे सामने से हट जाओ.’’ घर में सन्नाटा छाया हुआ था. पार्वती की सिसकियों की आवाज और सामान समेटने की आवाज बीचबीच में आ जाती थी. घर उजड़ रहा था, रीना दुखी थी. उसे पार्वती से ज्यादा रोमेश दोषी लग रहे थे. वह मन ही मन सोच रही थी कि जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो दूसरे को क्यों दोष दे. कुछ भी हो, पार्वती को यहां से हटाना आवश्यक था. वह उस घड़ी को कोस रही थी जब उस ने पार्वती को अपने घर पर काम करने के लिए रखा था. लगभग 20 वर्ष पहले सुमित्राजी ने पार्वती को उस के पास काम के लिए भेजा था. उस की कामवाली भागवती हमेशा के लिए गांव चली गई थी. 2 बेटियां, पति और बूढ़ी अम्माजी के सारे काम करतेकरते उस की हालत खराब थी. उसे नई कामवाली की सख्त जरूरत थी. सुमित्राजी ने कह दिया था, ‘पार्वती नई है, इसलिए निगाह रखना.’ वह अतीत में खो गई थी. पार्वती का जीवन तो उस के लिए खुली किताब है.

21-22 वर्ष की पार्वती का रंग दूध की तरह सफेद था, गोल चेहरा, उस की बड़ीबड़ी आंखों में निरीहता थी. अपने में सिकुड़ीसिमटी हुई एक बच्चे की उंगली पकड़े हुए तो दूसरे को गोद में उठाए हुए कातर निगाहों से काम की याचना कर रही थी. उसे काम की सख्त जरूरत थी. उस के माथे के जख्म को देख रीना पूछ बैठी थी, ‘ये चोट कैसे लगी तुम्हारे?’ पार्वती धीरे से बोली थी, ‘मेरे आदमी ने हंसिया फेंक कर मारा था, वह माथे को छूता हुआ निकल गया था. उसी से घाव हो गया है.’

‘ऐसे आदमी के साथ क्यों रहती हो?’

‘अब मैं उसे छोड़ कर शहर आ गई हूं. यहां नई हूं, इसलिए ज्यादा किसी को जानती नहीं.’ रीना को पार्वती पर दया आ गई थी, ‘तुम्हारे बच्चे कहां रहेंगे?’ वह पूछ बैठी.

‘जी, जब तक कोठरी नहीं मिलती, वे दोनों बरामदे में बैठे रहेंगे.’ अम्माजी अंदर से बोली थीं, ‘इस को रखना बिलकुल बेकार है. 2-2 बच्चे हैं, सारे घर में घूमते फिरेंगे.’ रीना को रसोई के अंदर पड़े हुए ढेर सारे जूठे बरतन याद आ रहे थे. उस ने पार्वती से बरतन साफ करने को कहा. उस ने फुरती से अच्छी तरह बरतन साफ किए. स्टैंड में लगाए. स्लैब और गैस साफ कर के रसोई में पोंछा भी लगा दिया था. उस के काम से वह निहाल हो उठी थी. धीरेधीरे वह उस की मुरीद होती गई. बच्चे सीधे थे, बरामदे में बैठे रहते थे. मेरे बच्चों के पुराने कपड़े पहन कर खुश होते. टूटेफूटे खिलौनों से खेलते और बचाखुचा खाना खाते. पार्वती मेरे घर के सारे कामों को मन लगा कर करती थी. मेहमानों के आने पर वह घर के कामों के लिए ज्यादा समय देती. वह भी उस का पूरा ध्यान रखती. तीजत्योहार पर वह बच्चों के लिए नए कपड़े बनवा देती थी. पार्वती भी रीना के एहसान तले दबी रहती थी. रीना को अपना आत्मीय समझ वह अपने दिल की बातें कह देती थी.

2 छोटेछोटे बच्चों को पालना आसान नहीं था. पार्वती ने धीरेधीरे आसपास के कई घरों में काम पकड़ लिया था. कहीं झाड़ू तो कहीं बरतन तो कहीं खाना बनाना. वह देखती थी, जैसे चिडि़या अपनी चोंच में दाने भर कर सीधा अपने घोंसले में रुकती है, वैसे ही वह कहीं से कुछ मिलता तो सब इकट्ठा कर के बच्चों के लिए ले आती थी. कपड़े मिलते तो उन्हें काटपीट कर बच्चों की नाप के बना कर पहनाती. उस की कर्मठता से रीना बहुत प्रभावित थी. उस ने अपनी पुरानी सिलाई मशीन उसे दे दी थी जिसे पा कर वह बहुत खुश थी. पार्वती एक दिन महेश को ले कर आई थी, ‘भाभी, मैं इस के साथ शादी करना चाहती हूं.’ रीना उसे हिम्मत बंधाते हुए बोली थी कि आदमी को अच्छी तरह जांचपरख लेना. कहीं पहले वाले की तरह दूसरा भी हाथ न उठाने लगे.

पार्वती ने खुशीखुशी बताया था कि वह मेरे बच्चों को अपनाएगा और वह पहले की तरह ही काम करती रहेगी. वह 8-10 दिन की छुट्टी ले कर चली गई थी. रोमेश को पता चला तो बोले, ‘गई भैंस पानी में. वह तुम्हें गच्चा दे गई. अब दूसरी ढूंढ़ो. इस के भी पर निकल आए हैं.’ पार्वती अपने वादे की पक्की निकली. वह 10 दिन बाद आ गई थी. परंतु यह क्या? उस का तो रूप ही बदल गया था. अब वह नईनवेली के रूप में थी. लाल बड़ी सी बिंदिया उस के माथे पर सजी हुई थी. होंठों पर गहरी लाल लिपस्टिक, गोरेगोरे पैर पायल, बिछिया और महावर से सजे हुए थे. हाथों में भरभर हाथ चूडि़यां और चटक लाल चमकीली साड़ी पहने हुए थी वह. चेहरे पर शरम की लाली थी. रीना ने मजाकिया लहजे में उस से पूछा था, ‘क्यों री, क्या मंडप से सीधे उठ कर चली आई है?’ रोमेश तो एकटक उस को निहारते रह गए थे. धीरे से बोले, ‘ये तो छम्मकछल्लो दिख रही है.’

वह तो बहुत खुश थी कि चलो इस के जीवन में खुशियों ने दस्तक तो दी. जबकि आसपड़ोस की महिलाओं को गौसिप का एक नया विषय मिल गया था. काश, उस दिन मिसेज गुलाटी की बात रीना मान लेती, उन्होंने उसे सावधान करते हुए कहा था, ‘इस से सावधान रहिएगा. यह बदचलन औरत है. इस के संबंध कई आदमियों से हैं.’ शोभाजी ने नहले पर दहला मारा था, ‘यह बहुत बदमाश औरत है. हम लोगों से साड़ीसूट मांग कर ले जाती है और अपनी झुग्गी पर जाते ही बेच देती है.’ रीना तल्खी से बोली थी, ‘इन बातों से उसे क्या मतलब है. उस का काम वह ठीक से करती है. बस, इतना काफी है.’ पार्वती ने अपने बच्चों के लिए ख्वाब पाल रखे थे. दोनों बच्चों का स्कूल में नाम लिखा दिया था. महेश से शादी के बाद बच्चों से उस का ध्यान बंटने लगा था. वह बच्चों को स्कूल और ट्यूशन भेज कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ बैठी थी. दोनों स्कूल जाने का बहाना कर के इधरउधर घूमा करते थे.

बेटा दीप पानमसाला खाता, पैसा चुरा कर जुआ खेलता. बेटी पूजा चाल के लड़कों से नजरें लड़ाती. दोनों बच्चों की वजह से उस के और महेश के बीच अकसर लड़ाई हो जाती. महेश भी नकली चेहरा उतार कर खूब शराब पीने लगा था. एक दिन वह पूजा को ले कर आई थी. बोली, ‘यह दिनभर आप के पास रहेगी तो चार अच्छी बातें सीख लेगी.’ पूजा को देखे हुए उसे काफी दिन हो गए थे. वह जींसकुरती पहन कर आई थी. उस के कानों में बड़ेबड़े कुंडल थे. वह स्वयं उस खूबसूरत परी को एकटक देखती रह गई थी. वह हाथ में मोबाइल पकड़े हुई थी. उस का मोबाइल थोड़ेथोड़े अंतराल में बजता रहा. वह कमरे से बाहर जा कर देरदेर तक बातें करती रही. वह समझ गई थी कि पूजा का किसी के साथ चक्कर जरूर है. उस ने पार्वती को आने वाले खतरे के लिए आगाह कर दिया. शायद वह भी उन बातों से वाकिफ थी. उस ने महेश की सहायता से आननफानन उस की सगाई करवा दी थी. पार्वती खुश हो कर लड़के वालों के द्वारा दिया हुआ सोने का हार, उसे दिखाने भी लाई थी. उस ने इशारों में उस से 10 हजार रुपए की फरियाद भी कर दी थी. रोमेश ने उसे रुपए देने के लिए हां कर दी थी.






टाइमपास: भाग 3
लड़की नाबालिग थी, उस के पिता ने पुलिस में शिकायत कर दी. पुलिस ने महेश और पार्वती को थाने में ले जा कर पिटाई की और 2 दिन के लिए बंद कर दिया था. 4-5 दिन के अंदर पुलिस ने दीप को ढूंढ़ निकाला था.





अम्माजी के कान में भनक लग गई थी. वे नाराज हो उठी थीं क्योंकि उन्हें पार्वती फूटी आंख नहीं सुहाती थी जबकि सब से ज्यादा काम वह उन्हीं का करती थी. उन को रोज नहलाधुला कर उन के कपड़े धोती थी. उन के बाल बनाती थी. रोज उन के पैरों में मालिश किया करती थी. उन की नजर में वह बदचलन औरत थी. काश, उस समय वह उन की बातों पर ध्यान दे देती तो आज उसे यह दिन न देखना पड़ता. रोमेश और उस के डर से अम्माजी उसे भगा नहीं पाती थीं वरना वे उसे एक दिन न टिकने देतीं. कुछ ही दिनों में पता चला कि पूजा अपने प्रेमी के साथ, वह सोने का हार ले कर रफूचक्कर हो गई. पार्वती के रोनेधोने के कारण महेश ने शादी के लिए जोड़े हुए रुपए लड़के वालों को दे कर किसी तरह मामले को निबटाया था. परंतु बिरादरी में वह उस की बदनामी तो बहुत कर गई थी. सालभर बाद जब पूजा के बेटी हुई तो भागती हुई सब से पहले वह बेटी के पास पहुंची थी. यहांवहां भाग कर चांदी के कड़े खरीद लाई थी और 5-6 फ्रौक भी खरीद लाई थी. उस की आवाज और चेहरे से खुशी छलकी पड़ रही थी. बोली थी, ‘भाभी, हम नानी बन गए हैं. वह है तो मेरी ही नातिन.’ रीना मुसकरा कर उस को देखती रह गई थी. मन ही मन वह बोली थी, ‘कितनी भोली है बेचारी.’

उस ने पार्वती को 500 रुपए का नोट पकड़ा दिया था. उसे याद आया था कि जब ईशा के बेटा हुआ था तो वह कितनी खुश हुई थी. रोमेश औफिस से आ गए थे. उन्होंने उसे रुपए देते हुए देख लिया था. वे बोले, ‘यह बहुत चालू है. तुम्हें बेवकूफ बना कर अपना मतलब सीधा करती है.’ वह बोल पड़ी थी, ‘रहने भी दीजिए. जरूरत के समय वह हमेशा हाजिर रहती है, यह नहीं देखते आप?’

‘ठीक है, यह तुम्हारी दुनिया है, जो ठीक समझो, करो.’ इधर महेश दूसरी औरत के चक्कर में पड़ गया था. वह रोज शराब पीने लगा था. वह पी कर देर रात में आता और हंगामा करता. अकसर पार्वती पर हाथ भी उठाने लगा था. पार्वती सुस्त और अनमनी रहने लगी थी. एक दिन रोमेश रीना से बोले थे, ‘तुम्हारी छम्मकछल्लो आजकल चुपचुप रहती है. शायद किसी परेशानी में है. पूछ लो उस से, यदि पैसों की जरूरत हो तो दे दो.’ ‘नहीं, पैसे की बात नहीं है. महेश और दीप दोनों शराब पीने लगे हैं. महेश किसी दूसरी औरत के चक्कर में भी पड़ गया है.’

रोमेश आश्चर्य से बोले थे, ‘इतनी सुंदर और सलीकेदार औरत होने के बावजूद वह दूसरी पर मुंह मार रहा है.’ पार्वती इधर काम पर आती थी, उधर महेश की प्रेमिका उस के घर पर आ जाती थी. धीरेधीरे उस की हिम्मत बढ़ गई थी. वह उस के घर में ही अपना हक जताने लगी थी. यदि वह कोई शिकायत करती तो महेश पार्वती की पिटाई कर देता था. पार्वती किसी भी तरह अपने और महेश के रिश्ते को बचाना चाहती थी. जब उस का नशा उतर जाता था तो वह पार्वती के पैरों पर गिर कर माफी मांगने लगता था. वह पिघल जाती थी. यह सिलसिला काफी दिन से चल रहा था. वह अपनी परेशानियों में उलझी हुई थी. इधर, दीप भी आवारा लड़कों के साथ चोरी, जुआ, शराब आदि का शौकीन बन गया था. पार्वती के यहांवहां छिपाए हुए पैसे वह चुपचाप गायब कर लेता था और महेश का नाम लगा कर घर में महाभारत मचवा देता था. एक बार उस के नए मोबाइल को देख कर उस ने पूछा था तो बोला, ‘हमारे मालिक ने हमें इसे ठीक करवाने के लिए दिया है.’ एक दिन दीप के पर्स में रुपयों की गड्डी को देख उस का माथा ठनका था, परंतु दीप ने उसे पट्टी पढ़ा दी थी. वह भी ममता की मारी भुलावे में आ गई थी. परंतु एक दिन वह चाल की एक लड़की को फुसला कर ले भागा था.

लड़की नाबालिग थी, उस के पिता ने पुलिस में शिकायत कर दी. पुलिस ने महेश और पार्वती को थाने में ले जा कर पिटाई की और 2 दिन के लिए बंद कर दिया था. 4-5 दिन के अंदर पुलिस ने दीप को ढूंढ़ निकाला था. नाबालिग लड़की को भगाने के जुर्म में दीप को जेल में बंद कर दिया था. महेश की प्रेमिका माधुरी ने अपनी कोशिशों से महेश को छुड़ा लिया था. पुलिस ने पार्वती को भी छोड़ दिया था. अब महेश का घर उस के लिए पराया हो चुका था. उस की सौत माधुरी का हक महेश और उस के घर दोनों पर हो गया था.  पार्वती लुटीपिटी रीना के पास पहुंची थी. उस का रोनाबिलखना देख उस का दिल पिघल उठा था. रोमेश के लाख मना करने पर भी उस ने पार्वती को घर पर रख लिया था. वह बहुत खुश थी. रीना को पार्वती के घर पर रहने से बहुत आराम हो गया था. वह उस के घर व बाजार के सारे काम करती थी. उस को यहां रहते हुए लगभग 2 साल हो गए थे. अकसर वह अपने बच्चों और महेश को याद कर के आंसू बहाने लगती थी. यह देख रीना का दिल पिघल उठता था. आज इसी पार्वती की वजह से उस के घर का सुखचैन लुट गया था. शाम ढल चुकी थी. कमरे में अंधेरा छाया हुआ था. उसे बिजली जलाने का भी होश नहीं था. आज उस के जीवन में ही अंधकार छा गया था. वह जब से यहां आई, अपने मुंह में पानी की एक बूंद भी नहीं डाली थी. आज वह बहुत व्यथित थी. जीवन से निराश हो कर उस का मन फूटफूट कर रोने को हो रहा था.

रोमेश की आवाज से वह वर्तमान में लौट आई थी. वे उसे मोबाइल दे कर बोले, ‘‘लो, त्रिशा का 2 बार फोन आ चुका है, कह रही है, क्या बात है? मां का फोन स्विच्ड औफ आ रहा है. उन की तबीयत तो ठीक है. सुबह यहां से गई थीं तब तो बिलकुल ठीक थीं. उन को फोन दीजिए. वे मुझ से बात करें. गुडि़या बहुत रो रही है.’’ रीना के हैलो बोलते ही त्रिशा खीझ कर बोली थी, ‘‘क्यों मां, पापा मिल गए तो मुझे और मेरी गुडि़या सब को भूल गईं. कम से कम पहुंचने की खबर तो दे देतीं.’’ रीना अपनी बेटी को जानती थी, यथासंभव अपनी आवाज को सामान्य करती हुई बोली थी, ‘‘न बेटा, फ्लाइट में फोन बंद किया था, फिर उसे औन करना ही भूल गई थी. गुडि़या को घुट्टी पिला दो और उस के पेट पर हींग मल दो. पेटदर्द से रो रही होगी,’’ उस ने फोन काट दिया था. सामने खड़े रोमेश का मुंह उतरा हुआ था. वे हाथ जोड़ कर उस से बेटी को कुछ न बताने और कान पकड़ कर माफी का इशारा कर रहे थे.

रीना कशमकश में थी. क्या उस का और रोमेश का इतना पुराना रिश्ता पलभर में टूट जाएगा? वह सिर पर हाथ रख कर चिंतित मुद्रा में ही बैठी थी. रोमेश अपने अनगढ़ हाथों से सैंडविच और दूध बना कर लाए थे, ‘‘रीना, तुम मुझे जो चाहे वह सजा दे दो, लेकिन प्लीज, पहले यह सैंडविच खा लो.’’ रीना को याद आया कि रोमेश तो डायबिटिक हैं और पिछले कई घंटों से उन्होंने कुछ नहीं खाया.

रोमेश बोले थे, ‘‘मुझे 2-3 दिन से बुखार आ रहा था. आज सुबह से मेरे सिर में बहुत दर्द भी हो रहा था, इसलिए नाश्ता भी नहीं किया था.’’ अब रीना ने सिर उठा कर रोमेश पर भरपूर निगाह डाली तो वे काफी कमजोर दिख रहे थे. उन का मासूम चेहरा डरे हुए बच्चे की तरह लग रहा था. सबकुछ भूल कर उस का दिल कसक उठा था. यदि रोमेश को कुछ हो गया तो… उस ने चुपचाप सैंडविच उठा ली थी. रोमेश ने भी सिर झुका कर सैंडविच और दूध पी लिया था. रातदिन मजाक करने वाले हंसोड़ रोमेश को चुप और गुमसुम देख उसे अटपटा लग रहा था. परंतु आज वह मन ही मन एक निश्चय कर चुकी थी. वह आहिस्ताआहिस्ता अलमारी से अपना सामान हटा कर दूसरे बैडरूम में ले जा रही थी. वह रोमेश की परछाईं से भी इस समय दूर जाना चाह रही थी. रोमेश की उदास और पनीली आंखें चारों तरफ उस का पीछा कर रही थीं. आज रीना दुनिया में बिलकुल अकेली हो चुकी है, जहां कोई ऐसा नहीं था जिस से वह अपने दर्द को कह कर अपना मन हलका कर सके. उसे घुटन महसूस हो रही थी. उस को अपनी दुनिया सूनी और वीरान लग रही थी. पीछे से रोमेश की धीमी सी आवाज उस के कानों में पड़ी थी, ‘डियर, तुम्हारे बिना मेरा टाइमपास कैसे होगा?’ आज उस के बढ़ते कदम नहीं रुके थे. वह रोमेश को अनदेखा कर के दूसरे बैडरूम की ओर चल पड़ी थी.






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मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे