नारी तुम मौन न बैठो तुम शक्ति और काली हो।
ममता की मूरत हो तुम तुम्ही पालन हारी हो।
तुम ही सती सन्यासी हो तुम्ही धरा धारी हो।
तुम शक्ति संसार की हो सब तुमसे ही प्रारंभ है।
बरस रहा अन्याय तुम पर ये धरा की लाचारी है।
फिर भी तुम शांत हो बैठी ये पहचान तुम्हारी है।
माता बनकर दूध से इस संसार को तुमने सींचा है।
फिर बनी बहन किया तिलक संसार को तुमने जीता है।
आइ बारी त्याग की जब पत्नी बनकर दिखलाया है।
हर मार्ग और पथ पथ पर तुमने साथ निभाया है।
मानवता शर्मसार हो रही ऐसे कुकृत दृश्यों से।
धितकार है ऐसे सपूतो पे जो निर्लज से बैठे है।
भूल गए सम्मान तुम्हारा भूल गए मानवता है।
उठो अब तुम आत्मरक्षा को भूल नियम कानून को।
एक बार फिर दिखलाओ अपने चंडी रूप को।
नारी तुम मौन न बैठो तुम शक्ति और काली हो।
तुम्ही मनु तुम्ही दुर्गावती और तुम्ही क्षत्राणी हो।