Ahmad faraz And Museebat Shayari Collection चुनिंदा शेर अहमद फ़राज़ के |
अहमद फ़राज़ के चुनिंदा शेर
नासेहा तुझ को ख़बर क्या कि मोहब्बत क्या है
रोज़ आ जाता है समझाता है यूं है यूं है
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
मेरी चाहत को भी दुनिया की नज़र खा गई दोस्त
हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंग
ये किस ने पैरहन अपना उछाल रक्खा है
Shayari Collection
'फ़राज़' तू ने उसे मुश्किलों में डाल दिया
ज़माना साहब-ए-ज़र और सिर्फ़ शाएर तू
न मिरे ज़ख़्म खिले हैं न तिरा रंग-ए-हिना
मौसम आ ही नहीं अब के गुलाबों वाले
उजाड़ घर में ये ख़ुशबू कहां से आई है
कोई तो है दर-ओ-दीवार के अलावा भी
ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है
हम ने जैसे भी बसर की तिरा एहसां जानां
Hindi Shayari Collection
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
हम को जाना है कहीं शाम से पहले पहले
अब तिरा ज़िक्र भी शायद ही ग़ज़ल में आए
और से और हुए दर्द के उनवां जानां
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की
Best Hindi Shayari Collection
‘मुसीबत’ पर कहे शायरों के अल्फ़ाज़
है मुसीबत में गिरफ़्तार मुसीबत मेरी
जो भी मुश्किल है वो मेरे लिए आसानी है
- अकबर मासूम
इश्क़ उस दर्द का नहीं क़ाइल
जो मुसीबत की इंतिहा न हुआ
- जोश मलसियानी
Shayari Collection Ahmad faraz
वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'
जागना रात भर मुसीबत है
- अकबर इलाहाबादी
छा गई एक मुसीबत की घटा चार तरफ़
खुले बालों जो वो दरिया से नहा कर निकले
- हक़ीर
अय्याम मुसीबत के तो काटे नहीं कटते
दिन ऐश के घड़ियों में गुज़र जाते हैं कैसे
- करामत अली शहीदी
जो उन पे गुज़रती है किस ने उसे जाना है
अपनी ही मुसीबत है अपना ही फ़साना है
- जिगर मुरादाबादी
Hindi Shayari Collection Ahmad faraz
यही ज़िंदगी मुसीबत यही ज़िंदगी मसर्रत
यही ज़िंदगी हक़ीक़त यही ज़िंदगी फ़साना
- मुईन अहसन जज़्बी
लज़्ज़त कभी थी अब तो मुसीबत सी हो गई
मुझ को गुनाह करने की आदत सी हो गई
- बेख़ुद मोहानी
मुसीबत थी हमारे ही लिए क्यूँ
ये माना हम जिए लेकिन जिए क्यूँ
- अज़ीज़ लखनवी
ख़्वाब वैसे तो इक इनायत है
आँख खुल जाए तो मुसीबत है
- शारिक़ कैफ़ी
Ahmad faraz And Museebat Shayari Collection
एक तारा एक दीपक एक जुगनू ही सही
रात की दीवार में कोई तो दर बाक़ी रहे
- शफ़ीक़ सलीमी
ये इल्म का सौदा ये रिसाले ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलाने के लिए हैं
- जां निसार अख़्तर
Museebat Shayari Collection
मिरा वजूद मिरी रूह को पुकारता है
तिरी तरफ़ भी चलूं तो ठहर ठहर जाऊं
- अहमद नदीम क़ासमी
एक आंसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में
बूंद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई
- शेख़ इब्राहीम ज़ौक़