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Kya Thi Saloni Ki Sachchai Hindi New Story |
कहानी इन हिंदी क्या थी सलोनी की सच्चाई: भाग 1
सलोनी नाश्ते की प्लेट्स समेटने लगी. सचमुच फिर दुल्हन की तरह सजी संवरी सलोनी मुकेश के साथ स्वामी जी की कुटिया पर पहुंची , शाहपुर छोटी जगह ही है , कस्बे के बाहर की तरफ एक बड़ी सी 'स्वामी कुटीर.
छोटे से कस्बे , शाहपुर की टीचर्स कॉलोनी से थोड़ी थोड़ी दूर बने छोटे छोटे घरों में से एक में सलोनी अपने पति मुकेश के साथ बैठी नाश्ता कर रही थी , दोनों बहुत ही अच्छे मूड में थे , मुकेश ने प्यार भरी नजर सलोनी पर डाल कर कहा , सलोनी , मैं बहुत खुश हूँ कि मेरा विवाह तुमसे हुआ , कहाँ तुम इतनी सुन्दर सलोनी , कहाँ मैं आम सा दिखने वाला ,’ कहकर मुकेश मुस्कुराया तो सलोनी ने बड़ी अदा से कहा ,” अब झूठी तारीफें बंद करो , वैसे लगता ही नहीं कि विवाह के दो साल पूरे हो गए हैं और आज हम इस ख़ुशी में स्वामी गोरखनाथ जी की कुटीर में उनका आशीर्वाद लेने जा रहे हैं.”
”हाँ , लगता तो नहीं कि दो साल हो गए , तुम्हारी सुंदरता तो और बढ़ गयी है.”
”चल , झूठे ,” कहकर सलोनी नाश्ते की प्लेट्स समेटने लगी. सचमुच फिर दुल्हन की तरह सजी संवरी सलोनी मुकेश के साथ स्वामी जी की कुटिया पर पहुंची , शाहपुर छोटी जगह ही है , कस्बे के बाहर की तरफ एक बड़ी सी ‘स्वामी कुटीर ‘ में कई लोग फर्श पर बैठे स्वामीजी से अपनी अपनी समस्याओं का समाधान पूछ रहे थे , स्वामी जी एक एक को अपने पास बुलाते , बिठाते और आँख बंद करके कुछ सोचते , फिर कोई उपाय बता देते , लोग एक तरफ रखे दान पात्र में कुछ डालते और चले जाते , सलोनी पर स्वामी जी की नजर पड़ी , उनकी नजरों में चमक उभर आयी , थोड़ा जल्दी जल्दी सबको निपटाया , फिर उन दोनों को अपने पास बुला लिया , मुकेश ने उनके पैर छूते हुए कहा ,” स्वामी जी , आशीर्वाद दें , आज हमारे विवाह को दो साल हो गए हैं. स्वामीजी ने दोनों के सर पर हाथ रखा , फिर धीरे से अपना हाथ सलोनी की कमर तक ले आये , सलोनी से नजरें मिलीं , सलोनी मुस्कुरा दी , मुकेश ने दो शातिर खिलाडियों की नजरों का यह खेल नहीं देखा , मुकेश ने कहा ,” बाकी तो सब आपकी कृपा है , बस यही आशीर्वाद दें कि अगली सालगिरह पर हम तीन हो जाएँ , हमारे जीवन में अब एक बच्चे की ही कमी है.” स्वामी जी ने मुस्कुरा कर कहा ,” बच्चे तो ईश्वर की देन हैं , जब भी ईश्वर की मर्जी होगी , बच्चा हो जायेगा , इसमें चिंता कैसी , धैर्य रखो ”
इसके बाद दोनों शाहपुर से एक किलोमीटर दूर बाइक से एक पीर साहब, शौकत मियां से मिलने गए , वहां पीर साहब कई लोगों पर फूंक मार कर ही उनकी बीमारियां ठीक कर रहे थे , कुछ लोग अपने साथ पानी की बोतल लाये हुए थे , पीर साहब होठों में कुछ बुदबुदाते , फिर पानी पर फूंक मारते , लोग उनके आगे रखी चादर में कुछ रुपए रखते और कई बार उनके आगे सर झुकाते , उन्हें शुक्रिया कहते चले जाते.ये पीर साहब बड़े पहुंचे हुए थे , लोग बहुत दूर दूर से इनके पास पानी लेकर आते थे , इन्हे पानी वाले बाबा भी कहा जाता था लोगों का कहना था कि इनका पढ़ा हुआ पानी पीकर बड़ी बड़ी बीमारियां ठीक हो जाती हैं , पीर साहब का अपना भरा पूरा परिवार था , दूर खेतों में एक बढ़िया सा मकान इन्ही लोगों के विश्वास के पैसों से बन चुका था.धनी, अनपढ़ , मूर्ख लोगों की एक पूरी जमात थी जो अपने घर में किसी के बीमार होने पर इन्हे झाड़ फूंक करवाने घर भी ले जाती और अच्छी रकम भी देती. पीर बाबा शौकत मियां ने जब सलोनी को देखा तो उनका दिल धड़क उठा.दोनों उनके सामने बैठ गए , सलोनी ने कहा , बाबा , आज हमारी शादी को दो साल हो गए हैं , दुआ करें कि अगले साल मैं जब आज के दिन आपके पास आऊं तो मेरी गोद में एक बच्चा हो”
शौकत मियां करीब पचास की उम्र के तेज दिमाग के , कसरती बदन वाले इंसान थे , गंभीर सी आवाज में कहा ,’ बच्चा तो अल्लाह की देन है , जब अल्लाह की मर्जी होगी ,, तभी तुम्हारी गोद में बच्चा होगा , उसी की मर्जी से सब होता है , हाँ , इतना जरूर है कि मेरे पास आती रहो , तुम्हारे लिए कुछ अलग से पढ़कर दुआएं करूँगा”
दोनों ने हाँ में सर हिलाया , शौकत ने तरसती सी निगाहों से सलोनी को देखा , सलोनी इन निगाहों को खूब पहचानती , वह उठते उठते मुस्कुरा दी , शौकत उसके हुस्न को देखते रह गए.दोनों घर आ गए.मुकेश मुंबई में कई टैक्सी चलाता, चलवाता था , कुछ लोगों के साथ एक फ्लैट लेकर शेयर करता था , सलोनी यहीं शाहपुर में रहती , मुकेश ही आता जाता रहता , कभी दो महीने में , कभी पांच छह महीने भी हो जाते, दोनों का घर दूर गांव में था , जहाँ सलोनी को रहना बिलकुल सहन नहीं था , उसे आज़ादी पसंद थी , इसलिए वह कभी मुकेश के साथ जाने की ज़िद भी नहीं करती थी , उसके अकेलेपन की मुकेश चिंता करता तो वह कहती कि वह बस उसके आने के इंतज़ार में दिन काट लेती है , कुछ बच्चों को पढ़ाकर अपना टाइम पास कर लेती है , मुकेश ज्यादा कुछ न कहे , इसलिए कभी मायके , कभी ससुराल भी रह आती..
मुकेश और सलोनी दोनों को पीरों और बाबाओं के आश्रमों में जाने की बहुत आदत थी , दोनों ने ही अपने अपने घरों में हमेशा यही माहौल देखा था कि कोई परेशानी आयी नहीं और झट से पहुँच गए किसी बाबा या पीर के दर पर. दोनों इन्ही लोगों के पास चक्कर काटते रहते.मुकेश बहुत ही धर्मभीरु इंसान था , सलोनी तेज तर्रार , चालाक , सुंदर लड़की थी , मुकेश को अपने इशारों पर नचाना उसे खूब आता , दोनों को अपने गांव में जाने में कोई रूचि नहीं रहती थी , अब दोनों की अलग दुनिया थी. कुछ दिन हमेशा की तरह मुकेश और सलोनी ने खूब मस्ती करते हुए बिताए. फिर मुकेश के मुंबई जाने का टाइम आ गया.सलोनी ने कुछ उदास रहकर दिखाया , मुकेश ने अगले महीने फिर आने का वायदा किया , कहा , बहुत ड्राइवर्स के साथ रहता हूँ , काम अच्छा तो चल रहा है , जल्दी ही अलग घर ले कर तुम्हे साथ ही ले जाऊंगा.”
क्या थी सलोनी की सच्चाई: भाग 2
सलोनी मुकेश से पूछती रहती , ''कब तक काम ख़तम होने वाला है ? अब तो बहुत दिन हो गए '' वह कहता , बस जल्दी ही आता हूँ ' काम ऐसा ही था , मुकेश को पता ही नहीं होता था.
मुकेश चला गया , सलोनी को कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ा , उसकी एक अलग सोच थी , वह इस टाइम को खुलकर एन्जॉय करती , जहाँ मन होता , जाती , जो अच्छा लगता , वो करती
मुकेश को यही कहती , मुकेश , मैं अपने घर में ही ठीक हूँ , जगह छोटी है , आसपास का पड़ोस तो अच्छा है ही , तुम मेरी चिंता न करो , अपना ध्यान रखना.’
दोनों रोज फ़ोन पर बात करते , सलोनी अकेली जरूर थी , पर परेशान नहीं हो रही थी.अचानक सामने वाले घर में रहने वाले परिवार के सुनील ने एक दिन उसका दरवाजा खटखटाया , कहा , सलोनी , मेरी पत्नी नीता को तेज बुखार है , गुड्डू छोटा है , मैं संभाल नहीं पा रहा हूँ , तुम थोड़ी देर के लिए उसे संभाल सकती हो ? बड़ी मेहरबानी होगी.” सलोनी ने ख़ुशी ख़ुशी गुड्डू की जिम्मेदारी ले ली , गुड्डू ही क्या , सुनील भी आते जाते सलोनी को ऐसे दिल दे बैठा कि बात बहुत दूर तक पहुँच गयी. सलोनी कई दिन से अकेली थी ही , सुनील की पत्नी बीमार , दोनों ने एक दूसरे का अकेलापन ऐसा बांटा कि कानोकान किसी को खबर नहीं हुई. दोनों के सम्बन्ध बनने लगे , सारी दूरियां ख़तम हो गयी. सुनील धीरे धीरे सलोनी के लिए बहुत कुछ करने लगा , उसके खर्चों को खूब संभालता , मुकेश कई दिन से उसे पैसे ट्रांसफर नहीं कर पाया था , पर सुनील सलोनी की पैसों से खूब मदद करने लगा.
मुकेश को अपनी पत्नी पर नाज हो आता , कितनी सहनशक्ति है , सलोनी में , जरा नहीं घबराती. सलोनी की सुनील के साथ रासलीला दिनोदिन बढ़ती जा रही थी , उसकी पत्नी ठीक हो गयी थी और सलोनी की अहसानमंद थी कि उसने परेशानी के समय गुड्डू को संभाल कर बहुत हेल्प की. अब भले ही गुड्डू का बहाना नहीं था पर सुनील अब भी सबसे नजरें बचा कर सलोनी के साथ समय बिताता.अचानक सलोनी की एक सहेली उसके पास कुछ दिन रहने आ गयी , वह बीमार चल रही थी और सलोनी के कहने पर पीर बाबा का आशीर्वाद लेने आ गयी थी , सलोनी उसे बाबा के पास ले गयी , बाबा ने झाड़ फूंक शुरू की , कहा , रोज आना होगा.” सहेली मंजू तैयार हो गयी , मंजू का पति अनिल भी उसके साथ आया था , सलोनी का रंग रूप देख अनिल का दिल मचल उठा , मंजू और सलोनी एक ही गांव की थी , मंजू का एक बेटा था जिसे वह इस समय अपने ससुराल छोड़ कर आयी थी , अनिल आया तो था कि बस मंजू को छोड़कर चला जायेगा पर सलोनी के पास से जाने का उसका मन ही नहीं हुआ. मंजू रोज पीर बाबा के पास अकेली ही चली जाती , पीछे से अनिल ने मर्यादा लांघने की कोशिश की तो सलोनी को कहाँ ऐतराज हो सकता था , वह मुकेश की अनुपस्थिति को जी भर कर एन्जॉय कर रही थी. सलोनी ने उसके साथ कई बार सम्बन्ध बनाये , अभी सुनील नहीं आ सकता था , वह फ़ोन पर सलोनी से तड़प तड़प कर बात किया करता , मन ही मन उसे मूर्ख कहती हुई सलोनी इस समय तो अनिल में डूबी थी , उसे न तो मुकेश की याद आती , न सुनील की.
मंजू की झाड़ फूंक इक्कीस दिन चली , अनिल इस बीच कई बार आता रहा था , बाइक पर आता , इस तरह आता कि मंजू को भी पता नहीं चल पाया कि जब वह पीर बाबा के सामने बैठी होती है , अनिल उसकी सहेली के साथ बैठा होता है. झाड़फूंक और अंधविश्वास में डूबे लोग न जाने कितने तरीके से अपने आप को नुकसान पहुंचा लेते हैं . अनिल फिर आते रहने का वायदा करके मंजू को लेकर चला गया , सलोनी ने कह दिया था , फ़ोन करके ही आना , उसे पता था अब वह कुछ दिन सुनील के साथ गुजारेगी। अनिल और मंजू चले गए सलोनी ने फौरन सुनील को फोन किया , बहुत दिन हो गए , मैं तो मेहमानो में ही घिरी रही , कब आओगे ? बड़ी मुश्किल से कटे ये दिन ”
”जल्दी ही आता हूँ , सलोनी , बड़ा मुश्किल रहा तुम्हारे बिना जीना , आता हूँ ”
सलोनी मुकेश से पूछती रहती , ”कब तक काम ख़तम होने वाला है ? अब तो बहुत दिन हो गए ” वह कहता , बस जल्दी ही आता हूँ ‘ काम ऐसा ही था , मुकेश को पता ही नहीं होता था कि वह कब घर आ पायेगा , पर सलोनी की याद उसे खूब सताती , रोज फ़ोन पर बात हो जाती थी , सलोनी उसे बताती कि वह अपना सारा टाइम पूजा पाठ में , स्वामीजी की कुटीर में , पीर बाबा के पास जाकर लगाती है , मुकेश खूब खुश हो जाता कुछ दिन और बीते , मस्ती करने के चक्कर में सलोनी भूल ही गयी कि उसे काफी दिनों से पीरियड नहीं हुआ है , ध्यान गया तो हिसाब लगाया कि तीन महीने से ऊपर हो चुके हैं , खुद ही किट लेकर प्रेगनेंसी चेक भी कर ली , होश उड़ गए उसके , वह प्रेग्नेंट थी मुकेश को गए तो चार महीने से ऊपर हो चुके थे , अनिल उसके पास आता रहा था , सुनील से भी सम्बन्ध चल ही रहे थे , उसने हिसाब लगाया , बच्चा मुकेश का तो नहीं था , इतना बेवक़ूफ़ तो मुकेश भी नहीं था कि इतना न सोचता वह कुछ दिन सोचती रही , फिर एक लेडी डॉक्टर के पास पहुँच गयी , एबॉर्शन के लिए बात की तो डॉक्टर ने कहा ,” टाइम कुछ ज्यादा ही हो गया है , तुम कुछ कमजोर भी हो , यह तुम्हारे भविष्य के लिए ठीक नहीं रहेगा , अपने पति को ले आना , मैं उन्हें भी समझा दूंगी ” टाइम गुजरता जा रहा था , उसने दो और डॉक्टर्स से बात की , कोई भी एबॉर्शन के लिए तैयार नहीं हुआ उसने सुनील को बता दिया , सुनील ने तो सुनते ही हाथ झाड़ लिए ,” देखो , सलोनी , मैं कुछ नहीं कर सकता , तुम ही सोचो , क्या करना है , मैं इतना ही कर सकता हूँ कि आज के बाद तुमसे न मिलूं ” और वह सचमुच फिर कभी सलोनी से मिला भी नहीं सलोनी को जैसे बड़ा धक्का लगा
क्या थी सलोनी की सच्चाई: भाग 3
मुकेश के चेहरे पर तनाव छाया , शौकत ने कारण पूछा तो मुकेश ने उसे भी अपनी शंका बता दी , शौकत ने कानो पर हाथ लगाकर ऊपर देख कर माफ़ी मांगी.
सलोनी ने अनिल को फोन करके बुलाया , बताया कि वह प्रेग्नेंट है ” अनिल भी हड़बड़ा गया , बोला ,” सलोनी , तुम एबॉर्शन ही करवा लो मैं तो तुम्हारी हेल्प नहीं कर पाउँगा ” इतने में ही मुकेश ने खबर दी , कि वह पंद्रह दिन बाद आ जायेगा , पूरे एक महीने की छुट्टी सलोनी का दिल और बुझ गया कसबे के बाहर एक मशहूर मंदिर था , दोनी इस मंदिर के दर्शन करने खूब आते थे , आज जब सलोनी का दिल दुखी था , वह यूँ ही उस मंदिर में जाकर बैठ गयी , घंटों भूखी प्यासी बैठी रही , वहां के पंडित जयदेव ने देखा तो उसे पीछे बने अपने कमरे में ले गए , पूछा , ”क्या हुआ , सलोनी , क्यों ऐसे सुबह से बैठी हो ?”
सलोनी ने पंडित जी से सोची समझी रणनीति से अपना दुःख बाँट लिया,” पंडित जी , भूल हो गयी मुझसे , मैं अपने प्राण देना चाहती हूँ , मुकेश यहाँ नहीं है और मैं गर्भवती हूँ ”
जयदेव का मन खिल उठा , बाहर से गंभीर स्वर में बोला ,” पहले तुम कुछ दिन यहाँ आराम करो , मैं अकेला ही रहता हूँ मन शांत हो जाए तो बात करेंगें चिंता मत करो , अब तुम भगवान् के घर बैठी हो , सब ठीक ही होगा ” सलोनी ने जैसा सोचा था , वैसा ही हुआ , वह कुछ दिन लगातार उदास सी जयदेव के पास आती रही , आने वाले समय में उसे जयदेव की जरुरत पड़ सकती थी क्योकि वह यह बिलकुल नहीं चाहती थी कि मुकेश उससे नाराज होकर उससे रिश्ता तोड़ ले , जयदेव ढोंगी पंडित था , सलोनी को मीठी मीठी बातें करके तसल्ली देता , वह यह नहीं जानता था कि सलोनी ऐसा होने दे रही है , सलोनी ने उसे सम्बन्ध भी बनाने दिए तो जयदेव ऐसे खुश हो गया कि जैसे उसकी लाटरी निकल आयी हो , सलोनी जैसी सुंदरी उससे रिश्ता जोड़ रही है , वह तो खिल उठा सलोनी घर जाती , थोड़ी देर आराम करती , खाना पीना तो जयदेव के भक्तों से ही इतना आ जाता कि जयदेव उसे घर भी खाना देकर ही भेजता सलोनी समय निकालकर पीर बाबा , शौकत मियां के पास भी पहुँच गयी , वहां भी उसने वैसे ही किया जैसे जयदेव के साथ किया था , शौकत मियां को तो उसने घर ही बुला लिया क्योकि शौकत जहाँ रहता था , वहां लोगों का आना जाना बहुत रहता । अब जयदेव और शौकत उसकी मुट्ठी में थे , अब उसकी चिंता कम हो गयी थी सलोनी ने जयदेव और शौकत को यह भरोसा दे दिया कि मुकेश के आने के बाद और बच्चा होने के बाद भी वह उन दोनों से हमेशा सम्बन्ध रखेगी , बस , मुकेश के सामने वे कुछ ऐसी बात करें कि सब ठीक रहे दोनों को एक भरपूर जवान , सुंदर लड़की का साथ मिल रहा था , दोनों ने सलोनी को पूरी मदद करने का भरोसा दिलाया
मुकेश आ गया , सलोनी हमेशा की तरह उसकी बाहों में लिपट गयी , मुकेश सलोनी के पेट के उभार पर बहुत हैरान हुआ , चौंक कर पूछा, अरे , यह मुझे क्यों नहीं बताया ?”
सलोनी ने शर्माते हुए कहा , ” तुम्हे सरप्राइज देना था’
”कितने दिन हुए ?”
सलोनी ने कहा ,” चौथा महीना ”
” पर मैं तो इस बार ज्यादा समय बाद आया हूँ , ” मुकेश हिसाब लगाने लगा , तो सलोनी ने पूरे कॉन्फिडेंस से कहा , क्या हिसाब लगा रहे हो ? बस , खुश होने की बात है , खुश हो जाओ ”
मुकेश के माथे पर बल पड़े , इतने में जयदेव ने दरवाजा नॉक किया , माहौल की गंभीरता समझी , मुकेश उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेने लगा ,” अरे , पंडित जी , आप ? यहाँ ?”
”हाँ , यहाँ से निकल रहा था कि सोचा देख लूँ , सलोनी ठीक तो है , मुकेश , इतनी बड़ी भगवान् की पूजा करने वाली भक्त पत्नी मिली है , तुम बहुत किस्मत वाले हो , मुकेश पर बात क्या है ?”
मुकेश ने अपने मन की दुविधा जयदेव को बता दी क्योकि उसके हिसाब से पंडित जी तो भगवान् का सबसे बड़ा रूप थे , और वे उसकी सब प्रॉब्लम दूर कर सकते थे , जयदेव का कहा तो मुकेश के लिए ईश्वर की आवाज़ थी , जयदेव ने शांत स्वर में कहा ,” बेटा , यह सब ईश्वर की लीला है , अपनी देवी सामान पत्नी पर भूल कर भी शक मत करना , रोज दर्शन के लिए मंदिर आती , सत्संग सुनती है , कौन अपना इतना समय आजकल ईश्वर की भक्ति में लगाता है ? आने वाला बच्चा ईश्वर का प्रसाद है , खुश होकर इसका स्वागत करो , बेटा ।” सलोनी जितना भोला चेहरा इस बीच बना सकती थी , बनाकर अपने झूठे आंसू पोंछती रही . जयदेव सलोनी की तरफ बदमाशी से देख कर मुस्कुराता हुआ चला गया. मुकेश सर पकड़कर बैठा था , सलोनी ने उसके लिए खाना तैयार किया , वह चुप ही रहा , इतने में शौकत मियां आ गए , बाहर से ही आवाज दी , ” मुकेश , कैसे हो ? ठीक तो हो ?”
मुकेश ने उनका स्वागत करते हुए पूछा ,” आपको कैसे पता , बाबा ,कि मैं आ गया हूँ ”
”कल सलोनी आयी थी , तुम्हारे लिए दुआएं करवाने और यह ख़ुशी बताने कि तुम पिता बनने वाले हो ”
मुकेश के चेहरे पर तनाव छाया , शौकत ने कारण पूछा तो मुकेश ने उसे भी अपनी शंका बता दी , शौकत ने कानो पर हाथ लगाकर ऊपर देख कर माफ़ी मांगी ,” अरे , बच्चा तो अल्लाह की देन है , सलोनी जैसी बीबी पर शक कर रहे हो ? कैसा गुनाह कर रहे हो ? तुम अल्लाह के चमत्कार के बारे में जानते नहीं ? वो चाहे तो कुछ भी हो सकता है.”
धर्मभीरु मुकेश के मुँह पर हवाइयां उड़ने लगी , कुछ समझ नहीं पाया कि क्या वही सलोनी पर शक करके गलती कर रहा है , पहले जयदेव और अब पीर बाबा , जिन पर वह आँख मूँद कर भरोसा कर सकता है , वे दोनों गलत तो नहीं हो सकते , वे दोनों तो भगवान् का रूप हैं , उसने सलोनी पर नजर डाली , नहीं , मासूम सा चेहरा ऐसे उसे धोखा तो नहीं दे सकता , पर इतने महीनो का गर्भ ? मुकेश की जुबान जयदेव और पीर बाबा तो बंद कर ही गए थे , वह कुछ बोल ही नहीं पाया , सर पकड़कर सलोनी के भोले चेहरे को देखता रह गया.सलोनी सर नीचे किये बैठ गयी , उसके चेहरे पर छायी एक कुटिल हंसी मुकेश को दिख ही नहीं पायी. मुकेश जयदेव और शौकत की बातों के जवाब में चुप रहने के अलावा कुछ कर ही नहीं सका.