Padhe Hindi Romantic Kahani | Story Punarvivah पुनर्विवाह |
Romantic Kahani पुनर्विवाह: भाग 1
शालिनी को सुगंधा की उपस्थिति का आभास होते ही उस की हालत तो रंगे हाथों पकड़े गए चोर सी हो गई. वह सुगंधा से दोचार औपचारिक बातें कर झटपट विदा हो ली. अस्पताल से लौटते समय शालिनी अत्यधिक सकुचाहट में धंसी जा रही थी.
मनोज के गुजर जाने के बाद शालिनी नितांत तन्हा हो गई थी. नया शहर व उस शहर के लोग उसे अजनबी मालूम होते थे. पर वह मनोज की यादों के सहारे खुद को बदलने की असफल कोशिश करती रहती. शहर की उसी कालोनी के कोने वाले मकान में मानस रहते थे. उन्होंने ही जख्मी मनोज को अस्पताल पहुंचाने के लिए ऐंबुलैंस बुलवाई थी. मनोज की देखभाल में उन्होंने पूरा सहयोग दिया था. सो, मानस से शालिनी का परिचय पहचान में बदल गया था. मानस ने अपना कर्तव्य समझते हुए शालिनी को सामान्य जीवन गुजारने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, ‘‘शालिनीजी, आप कल से फिर मौर्निंगवाक शुरू कर दीजिए, पहले मैं ने आप को अकसर पार्क में वाक करते हुए देखा है.’’
‘‘हां, पहले मैं नित्य मौर्निंगवाक पर जाती थी. मनोज जिम जाते थे और मुझे वाक पर भेजते थे. उन के बाद अब दिल ही नहीं करता,’’ उदास शालिनी ने कहा.
‘‘मैं आप की मनोदशा समझ सकता हूं. 4 साल पहले मैं भी अपनी पत्नी खो चुका हूं. जीवनसाथी के चले जाने से जो शून्य जीवन में आ जाता है उस से मैं अनभिज्ञ नहीं हूं. किंतु सामान्य जीवन के लिए खुद को तैयार करने के सिवा अन्य विकल्प नहीं होता है.’’ दो पल बाद वे फिर बोले, ‘‘मनोजजी को गुजरे हुए 3 महीने से ज्यादा हो चुके हैं. अब वे नहीं हैं, इसलिए आप को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. आप खुद को सामान्य दिनचर्या के लिए तैयार कीजिए.’’
मानस ने अपना तर्क रखते हुए आगे कहा, ‘‘शालिनीजी, मैं आप को उपदेश नहीं दे रहा बल्कि अपना अनुभव बताना चाहता हूं. सच कहता हूं, पत्नी के गुजर जाने के बाद ऐसा महसूस होता था जैसे जीवन समाप्त हो गया, अब दुनिया में कुछ भी नहीं है मेरे लिए, किंतु ऐसा होता नहीं है. और ऐसा सोचना भी उचित नहीं है. किंतु मृत्यु तो साथ संभव नहीं है. जिस के हिस्से में जितनी सांसें हैं, वह उतना जी कर चला जाता है. जो रह जाता है उसे खुद को संभालना होता है. मैं ने उस विकट स्थिति में खुद को व्यस्त रखने के लिए मौर्निंगवाक शुरू की, फिर एक कोचिंग इंस्टिट्यूट जौइन कर लिया. रिटायर्ड प्रोफैसर हूं, सो पढ़ाने में दिल लगता ही है. इस के बाद भी काफी समय रहता है, उस में व्यस्त रहने के लिए घर पर ही कमजोर वर्ग के बच्चों को फ्री में ट्यूशन देता हूं तथा हफ्ते में 2 दिन सेवार्थ के लिए एक अनाथाश्रम में समय देता हूं. इस तरह के कार्यों से अत्यधिक आत्मसंतुष्टि तो मिलती ही है, साथ ही समय को फ्रूटफुल व्यतीत करने का संतोष भी प्राप्त होता है. आप से आग्रह करना चाहता हूं कि आप इन कार्यों में मुझे सहयोग दें.
‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं. कल सुबह कौलबैल दूंगा, निकल आइएगा, मौर्निंगवाक पर साथ चलेंगे, शुरुआत ऐसे ही कीजिए.’’
अन्य विकल्प न होने के कारण शालिनी ने सहमति में सिर हिला दिया. सच में मौर्निंगवाक की शुरुआत से वह एक ताजगी सी महसूस करने लगी. उस ने मानस के साथ कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाना व अनाथालय में समय देना भी प्रारंभ कर दिया. इन सब से उसे अद्भुत आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता. दो दिनों से मानस मौर्निंगवाक के लिए नहीं आए. शालिनी असमंजस में पड़ गई, शायद मानस ने सोचा हो कि शुरुआत करवा दी, अब उसे खुद ही करना चाहिए. शालिनी पार्क तक चली गई. किंतु उसे मानस वहां भी दिखाई नहीं दिए. जब तीसरे दिन भी वे नहीं आए तब उसे भय सा लगने लगा कि कहीं एक विधवा और एक विधुर के साथ का किसी ने उपहास बना, मानस को आहत तो नहीं कर दिया, कहीं उन के साथ कुछ अप्रिय तो घटित नहीं हो गया, ऐक्सिडैंट…? नहींनहीं, वे ठीक हैं, उन के साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ है. इन्हीं उलझनों में उस के कदम मानस के घर की ओर बढ़ चले. दरवाजे पर ताला पड़ा था. दो पल संकोचवश ठिठक गई, फिर वह उन के पड़ोसी अमरनाथ के घर पहुंच गई. अमरनाथ और उन की पत्नी ने उस का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आइए, शालिनीजी, कैसी हैं? हम लोग आप के पास आने की सोच रहे थे किंतु व्यस्तता के कारण समय न निकाल पाए.’’
शालिनी ने उन्हें धन्यवाद देते हुए पूछा, ‘‘आप के पड़ोसी मानसजी क्या बाहर गए हुए हैं? उन के घर पर…’’
‘‘नहींनहीं, उन्हें डिहाइड्रेशन हो गया था. वे अस्पताल में हैं. हम उन से कल शाम मिल कर आए हैं. अब वे ठीक हैं,’’ अमरनाथजी ने बताया. शालिनी सीधे अस्पताल चल दी. विजिटिंग आवर होने के कारण वह मानस के समक्ष घबराई सी पहुंच गई, ‘‘कैसे हैं आप, क्या हो गया, कैसे हो गया, आप ने मुझे इतना पराया समझा जो अपनी तबीयत खराब होने की सूचना तक नहीं दी. मैं पागलों सी परेशान हूं. न दिन में चैन है न रात में नींद.’’
‘‘ओह शालू, इतना मत परेशान हो, मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हें खबर करनी चाहिए थी किंतु तुम्हें मेरा हाल कैसे मालूम हुआ?’’ मानस ने आश्चर्य से कहा.
‘‘आज मैं हैरानपरेशान अमरनाथजी के घर पहुंच गई. वहीं से सब जान कर सीधी चली आ रही हूं. आप बताइए, अब आप कैसे हैं, तथा यह हाल कैसे हुआ?’’ शालिनी की आंखें सजल हो उठीं. मानस भी भावुक हो उठे, उन्होंने शालिनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘प्लीज, परेशान मत हो, मैं एकदम ठीक हूं. उस दिन रामरतन रात में खाना बनाने न आ सका, साढ़े 8 बजे के बाद फोन करता है, ‘सर, आज नहीं आ सकूंगा, पत्नी को बहुत चक्कर आ रहे हैं.’ मैं ने कह दिया कि ठीक है, तुम पत्नी को डाक्टर को दिखाओ, अभी मैं ही कुछ बना लेता हूं. सुबह सब ठीक रहे तो जरूर आ जाना.
‘‘मैं ने कह तो दिया, किंतु कुछ बना न सका. सो, नुक्कड़ की दुकान से पकौड़े ले आया, वही हजम नहीं हुए बस, रात से दस्त और उल्टियां शुरू हो गईं.’’ ‘‘मनजी, आप मुझे कितना पराया समझते हैं. मेरे घर पर, खाना खा सकते थे, किंतु नहीं, आप नुक्कड़ की दुकान पर पकौड़े लेने चल दिए, जबकि आप के घर से दुकान की अपेक्षा मेरा घर करीब है. सिर्फ आप बात बनाते हैं कि तुम्हें अपनत्व के कारण समझाता हूं कि स्वयं को संभालो और सामान्य दिनचर्या का पालन करो. मैं ने आज आप का अपनापन देख लिया.’’ ‘‘सौरी शालू, मुझे माफ कर दो,’’ मानस ने अपने कान पकड़ते हुए कहा, ‘‘वैसे अच्छा ही हुआ, तुम्हें खबर कर देता तो तुम्हारा यह रूप कैसे देख पाता, तुम्हें मेरी इतनी फिक्र है, यह तो जान सका.’’
शालिनी ने हौले से मानस की बांह में धौल जमाते हुए अपनी आंखें पोंछ लीं तथा मुसकरा दी. भावनाओं की आंधी सारी औपचारिकताएं उड़ा ले गई. मानस शालिनी को ‘शालू’ कह बैठे, वही हाल शालिनी का था, वह ‘मानसजी’ की जगह ‘मनजी’ बोल गई. भावनाओं के ज्वार में मानस भूल ही गए कि उन के कमरे में उन की बेटी सुगंधा भी मौजूद है. शालिनी तो उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ थी, अतिभावुकता में उसे मानस के सिवा कुछ दिखाई ही नहीं दिया. एकाएक मानस की नजरें सुगंधा से टकराईं. संकोचवश शालिनी का हाथ छोड़ते हुए उन्होंने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘शालिनी, इस से मिलो, यह मेरी प्यारी बेटी सुगंधा है. यह आई तो औफिस के काम से थी किंतु मेरी तीमारदारी में लग गई.’’
शालिनी को सुगंधा की उपस्थिति का आभास होते ही उस की हालत तो रंगे हाथों पकड़े गए चोर सी हो गई. वह सुगंधा से दोचार औपचारिक बातें कर झटपट विदा हो ली. अस्पताल से लौटते समय शालिनी अत्यधिक सकुचाहट में धंसी जा रही थी. वह भावावेश में क्याक्या बोल गई, न जाने मानस क्या सोचते होंगे. सुगंधा का खयाल आते ही उस की सकुचाहट बढ़ जाती, न जाने वह बच्ची क्या सोचती होगी, कैसे उस का ध्यान सुगंधा पर नहीं गया, वह स्वयं को समझाती. मानस के लिए व्यथित हो कर ही तो वह अस्पताल पहुंच गई थी, भावनाओं पर उस का नियंत्रण नहीं था. इसलिए जो मन में था, जबान पर आ गया. मानस घर आ गए थे. अब वे पूरी तरह स्वस्थ थे. सुगंधा को कल लौट जाना था. सुगंधा ने मानस एवं शालिनी के परस्पर व्यवहार को अस्पताल में देखा था. इतना तो वह समझ चुकी थी कि दोनों के मध्य अपनत्व पप चुका है, बात जाननेसमझने की इच्छा से उस ने बात छेड़ते हुए कहा, ‘‘पापा, शालिनी आंटी इस कालोनी में नई आई हैं, मैं ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा?’’
पुनर्विवाह: भाग 2
मैं अपनी पत्नी शुभि को बहुत चाहता था, किंतु बीमारी ने उसे मुझ से छीन लिया. मेरी शुभि भी मुझे बहुत चाहती थी. अपनी बीमारी के संघर्ष के दौरान भी उसे अपनी जिंदगी से ज्यादा मेरे जीवन की फिक्र थी. एक दिन मुझ से बोली, ‘मनजी, मेरा आप का साथ इतना ही था.
मानस शांत, गहन चिंता में बैठ गए. सुगंधा ने ही उन्हें टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या बात है पापा, नाराज हो गए?’’ ‘‘नहीं, बेटा, तू तो मुझे, मेरे हित में ही समझा रही है किंतु मुझे भय है. शालिनी मुझे स्वार्थी समझ मुझ से दोस्ती न तोड़ बैठे. उस का अलगाव मैं सहन न कर सकूंगा,’’ मानस ने धीरेधीरे कहा. ‘‘पापा, वे आप से प्यार करती हैं किंतु नारीसुलभ सकुचाहट तो स्वाभाविक है न, पहल तो आप को ही करनी होगी.’’ ‘‘मेरी बेटी, इतनी बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं चला,’’ मानस के इस वाक्य पर दोनों ही मुसकरा दिए. सुगंधा लौट गई, किंतु मानस को समझा कर ही नहीं धमका कर गई कि वे जल्दी से जल्दी शालिनी से शादी की बात करेंगे वरना वह स्वयं यह जिम्मेदारी पूरी करेगी. मौर्निंगवाक पर मानस एवं शालिनी सुगंधा के संबंध में ही बातें करते रहे. मानस बोले, ‘‘5 वर्ष हो गए सुगंधा की शादी हुए. जब भी जाती है मन भारी हो जाता है. उस के आने से सारा घर गुलजार हो जाता है, जाती है तो अजीब सूनापन छोड़ जाती है.’’ शालिनी ने कहा, ‘‘बड़ी प्यारी है सुगंधा. खूबसूरत होने के साथसाथ समझदार भी, उस की आंखें तो विशेष सुंदर हैं, अपने में एक दुनिया समेटे हुए सी मालूम होती है वह.’’ मानस खुश होते हुए बोले, ‘‘वह अपनी मां की कार्बनकौपी है. मैं शुभि को अद्भुत महिला कहता था, रूप एवं गुण का अद्भुत मेल था उस के व्यक्तित्व में.’’
‘‘मैं अपनी पत्नी शुभि को बहुत चाहता था, किंतु बीमारी ने उसे मुझ से छीन लिया. मेरी शुभि भी मुझे बहुत चाहती थी. अपनी बीमारी के संघर्ष के दौरान भी उसे अपनी जिंदगी से ज्यादा मेरे जीवन की फिक्र थी. एक दिन मुझ से बोली, ‘मनजी, मेरा आप का साथ इतना ही था. आप को अभी लंबा सफर तय करना है. अकेले कठिन लगेगा. मेरे बाद अवश्य योग्य जीवनसाथी ढूंढ़ लीजिएगा,’ अपनी शादी वाली अंगूठी मेरी हथेली पर रख कर बोली, ‘इसे मेरी तरफ से स्नेहस्वरूप आप प्यार से उसे पहना देना. मैं यह सोच कर खुश हो लूंगी कि मेरे मनजी के साथ उन की फिक्र करने वाली कोई है.’’’ मानस, अपनी पत्नी को याद कर बेहद गंभीर हो गए थे, दो पल रुक कर स्वयं को संयत कर बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें एवं मनोज को भी साथसाथ देखा था, गृहप्रवेश के अवसर पर तथा अस्पताल के दुखद मौके पर. तुम दोनों का प्यार स्पष्टत: परिलक्षित था. मनोज को भी अपनी जिंदगी से ज्यादा तुम्हारे जीवन की चिंता थी. वे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही चिंता व्यक्त करते थे. मैं आईसीयू में उन से मिलने जब भी जाता, सिर्फ तुम्हारे संबंध में चिंता व्यक्त करते थे. उस दिन उन्हें आभास हो चला था कि वे नहीं बचेंगे. अत्यधिक कष्ट में बोले थे, ‘दोस्त, मैं तुम्हें अकसर पुनर्विवाह की सलाह देता था, और तुम हंस कर टाल जाते थे. किंतु अब तुम से वचन चाहता हूं, मेरी शालू को अपना लेना. तुम्हारे साथ वह सुरक्षित है, यह सोच मुझे शांति मिलेगी. हम ने परिवारों के विरोध के बावजूद अंतर्जातीय विवाह किया था. सभी संबंध खत्म हो गए थे. मेरे बाद एकदम अकेली हो जाएगी मेरी शालू. दोस्त, मेरा आग्रह स्वीकार कर लो, मेरे पास समय नहीं है.’
‘‘उन की दर्द भरी याचना पर मैं हां तो न कर सका था किंतु स्वीकृति हेतु सिर अवश्य हिला दिया था. मेरी सहमति जान कर उस कष्ट एवं दर्द में भी उन के चेहरे पर एक स्मिति छा गई थी किंतु शालिनी, तुम्हारी नाराजगी के डर से मैं तुम से कहने का साहस न जुटा सका था. ‘‘सच कहता हूं शालू, सांत्वना और सहयोग ने मनोज के आग्रह के बाद कब प्यार का रूप ले लिया, इस का आभास मुझे भी नहीं हुआ. किंतु मेरे प्यार की सुगंध मेरी बेटी सुगंधा ने महसूस कर ली है,’’ कहते हुए मानस धीरे से मुसकरा दिए. शालिनी नीची नजरें किए हुए शांत बैठी थी. मानस ने ही कहा, ‘‘शालू, मैं ने तुम्हें मनोजजी की, सुगंधा की एवं अपनी भावनाएं बता दी हैं. अंतिम निर्णय तुम ही करोगी. तुम्हारी सहमति के बिना हम कुछ भी नहीं करेंगे.’’ शालिनी ने आहिस्ताअहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनोज ने जैसा आग्रह आप से किया था वैसी ही इच्छा मुझ से भी व्यक्त की थी. मुझ से कहा था, ‘
अकेली मां कैसे रहेगी, न उस ने पूछा, न ही मैं ने बताया. अजनबी की तरह आया, परायों की तरह चला गया,’’ शालिनी की आंखें भीग आई थीं. मानस ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘शालू, जिस बेटे को तुम्हारी फिक्र नहीं है, जिस ने तुम से कोई संबंध, संपर्क नहीं रखा है
शालू, दुनिया में अकेली औरत का जीवन दूभर हो जाता है. मानसजी भले इंसान हैं तथा विधुर भी हैं. उन का हाथ थाम लेना. तुम सुरक्षित रहोगी तो मुझे शांति मिलेगी.’ मेरी चुप्पी पर अधीर हो कर बोले थे, ‘शालू, मान जाओ, हां कह दो, मेरे पास समय नहीं है.’
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‘‘उन की पीड़ा, उन की अधीरता देख मैं ने भी स्वीकृति में सिर हिला दिया था. मेरी स्वीकृति मान उन्होंने हलकी मुसकराहट से कहा था, ‘मेरी शादी वाली अंगूठी मेरी सहमति मान, मानस को पहना देना. उस में लिखा ‘एम’ अब उन के लिए ही है.’ किंतु मैं भी आप की दोस्ती न खो बैठूं, इस संकोच में आप से कुछ कह न सकी,’’ वह हलके से मुसकरा दी. मानस इत्मीनान से बोले, ‘‘चलो, सुगंधा की जिद के कारण सभी बातें साफ हो गईं. मैं तो तुम्हें चाहने लगा हूं, यह स्वीकार करता हूं. तुम्हारा प्यार भी उस दिन अस्पताल में उजागर हो चुका है. मेरी सुगंधा तो हमारी शादी के लिए तैयार बैठी है. तुम भी इस विषय में अपने बेटे से बात कर लो.’’ शालिनी ने उदासीनता से कहा, ‘‘मेरा बेटा तो सालों पहले ही पराया हो गया. अमेरिका क्या गया वहीं का हो कर रह गया. 4 साल से न आता है न हमारे आने पर सहमति व्यक्त करता है. उस की विदेशी पत्नी है तथा उस ने तो हमारा दिया नाम तक बदल दिया है. ‘‘मनोज के क्रियाकर्म हेतु बहुत कठिनाई से उस से संपर्क कर सकी थी. मात्र 3 दिन के लिए आया था. मानो संबंध जोड़ने नहीं बल्कि तोड़ने आया था. कह गया, ‘यों व्यर्थ मुझे आने के लिए परेशान न किया करें, मेरे पास व्यर्थ का समय नहीं है.’
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‘‘अकेली मां कैसे रहेगी, न उस ने पूछा, न ही मैं ने बताया. अजनबी की तरह आया, परायों की तरह चला गया,’’ शालिनी की आंखें भीग आई थीं. मानस ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘शालू, जिस बेटे को तुम्हारी फिक्र नहीं है, जिस ने तुम से कोई संबंध, संपर्क नहीं रखा है, उस के लिए क्यों आंसू बहाना. मैं तुम से एक वादा कर सकता हूं, हम दोनों एकदूसरे का इतना मजबूत सहारा बनेंगे कि हमें अन्य किसी सहारे की आवश्यकता ही नहीं होगी.’’ शालिनी अभी भी सिमटीसकुचाई सी बैठी थी. मानस ने उस की अंतर्दशा भांपते हुए कहा, ‘‘शालू, यह तुम भी जानती होगी तथा मैं भी समझता हूं कि इस उम्र में शादी शारीरिक आवश्यकता हेतु नहीं बल्कि मानसिक संतुष्टि के लिए की जाती है. शादी की आवश्यकता हर उम्र में होती है ताकि साथी से अपने दिल की बात की जा सके. एक साथी होने से जीवन में उमंगउत्साह बना रहता है.’’ फोन के जरिए सुगंधा सब बातें जान कर खुशी से उछलते हुए बोली, ‘‘पापा, इस रविवार यह शुभ कार्य कर लेते हैं, मैं और कुणाल इस शुक्रवार की रात में पहुंच रहे हैं.’’ रविवार के दिन कुछ निकटतम रिश्तेदार एवं पड़ोसियों के बीच मानस एवं शालिनी ने एकदूसरे को अंगूठी पहनाई, फूलमाला पहनाई तथा मानस ने शालिनी की सूनी मांग में सिंदूर सजा दिया.
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सभी उपस्थित अतिथियों ने करतल ध्वनि से उत्साह एवं खुशी का प्रदर्शन किया. सभी ने सुगंधा की सोच एवं समझदारी की प्रसंशा करते हुए कहा कि मानस एवं शालिनी के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रख, सुगंधा ने प्रशंसनीय कार्य किया है. सुगंधा ने घर पर ही छोटी सी पार्टी का आयोजन रखा था. सोमवार की पहली फ्लाइट से सुगंधा एवं कुणाल को लौट जाना था. शालिनी भावविभोर हो बोली, ‘‘अच्छा होता, बेटा कुछ दिन रुक जातीं.’’ सुगंधा ने अपनेपन से कहा, ‘‘मम्मी, अभी तो हम दोनों को जाना ही पड़ेगा, फाइनल रिपोर्ट का समय होने के कारण औफिस से छुट्टी मिलना संभव नहीं है.’’ ‘‘ठीक है, इस बार जाओ किंतु प्रौमिस करो, दीवाली पर आ कर जरूर कुछ दिन रहोगे,’’ शालिनी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सुगंधा को शालिनी का मां जैसा अधिकार जताना भला लगा. वह भावविभोर हो उस के गले लग गई. उसे आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था. होता भी क्यों नहीं, उसे मां जो मिल गई थी. दोनों के अपनत्त्वपूर्ण व्यवहार को देख कर मानस की आंखें भी सजल हो उठीं.