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Raat famous shayari collection Ibadat shayari collection रमज़ान के महीने में 'इबादत' पर शेर





कहे गए शेर 'रात' पर 




ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ 
हम अपने शहर में होते तो घर चले जाते 
- उम्मीद फ़ाज़ली

बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम 
जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई 
- फ़िराक़ गोरखपुरी

रात को जीत तो पाता नहीं लेकिन ये चराग़ 
कम से कम रात का नुक़सान बहुत करता है 
- इरफ़ान सिद्दीक़ी


उम्र भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं 
हाए वो रातें कि जो ख़्वाब-ए-परेशाँ हो गईं 
- अख़्तर शीरानी

इक उम्र कट गई है तिरे इंतिज़ार में 
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिन से एक रात 
- फ़िराक़ गोरखपुरी

रात को रात हो के जाना था
ख़्वाब को ख़्वाब हो के देखते हैं
- अभिषेक शुक्ला



रेत पर रात ज़िंदगी लिक्खी
सुब्ह आ कर मिटा गईं लहरें
- मोहम्मद असदुल्लाह




ऐ रात मुझे माँ की तरह गोद में ले ले 
दिन भर की मशक़्क़त से बदन टूट रहा है 
- तनवीर सिप्रा

ये तन्हा रात ये गहरी फ़ज़ाएँ 
उसे ढूँडें कि उस को भूल जाएँ 
- अहमद मुश्ताक़

मिरी नज़र में वही मोहनी सी मूरत है 
ये रात हिज्र की है फिर भी ख़ूब-सूरत है 
- ख़लील-उर-रहमान आज़मी

हिचकियाँ रात दर्द तन्हाई 
आ भी जाओ तसल्लियाँ दे दो 
- नासिर जौनपुरी






रमज़ान के महीने में 'इबादत' पर शेर


यही है इबादत यही दीन ओ ईमां
कि काम आए दुनिया में इंसां के इंसां
- अल्ताफ़ हुसैन हाली


सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
- अल्लामा इक़बाल



ये इम्तियाज़ ज़रूरी है अब इबादत में
वही दुआ जो नज़र कर रही है लब भी करें
- अभिषेक शुक्ला


उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
- राहत इंदौरी

तेरे बंदों की बंदगी की है
ये इबादत नहीं इबादत क्या
- साग़र ख़य्यामी


बे-ज़रूरत भी कर लिया सज्दा
ये इबादत बड़ी इबादत है
- सुनील कुमार जश्न

मोहब्बत है 'रसा' मेरी इबादत
ये मेरा दिल मिरा दस्त-ए-दुआ है
- रसा चुग़ताई


ये भी मेरे लिए इबादत है
रास्तों में दिए जलाता हूँ
- सरदार पंछी

इश्क-इबादत करते लोग
जागें रोज़ अज़ानों तक
- मुबश्शिर सईद


जमाअत है हुस्न-ए-इबादत मगर
जो दिल से न हो वो इबादत नहीं
- ख़लीलुर्रहमान राज़




अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
मगर चराग़ ने लौ को संभाल रक्खा है
- अहमद फ़राज़

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे
- बशीर बद्र

इधर फ़लक को है ज़िद बिजलियाँ गिराने की
उधर हमें भी है धुन आशियाँ बनाने की
- अज्ञात

किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफ़र में रहा
- अहमद फ़राज़

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