किसी की बात कोई बद-गुमाँ न समझेगा
ज़मीं का दर्द कभी आसमाँ न समझेगा
- इमाम आज़म
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए
-अल्लामा इक़बाल
ज़मीन की कोख ही ज़ख़्मी नहीं अंधेरों से
है आसमाँ के भी सीने पे आफ़्ताब का ज़ख़्म
- इब्न-ए-सफ़ी
ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़
डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम
- अज्ञात
फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
अब न कहना ज़मीन बंजर है
- साबिर
रफ़ाक़तों का मिरी उस को ध्यान कितना था
ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया
- परवीन शाकिर
ज़मीं की गोद में इतना सुकून था 'अंजुम'
कि जो गया वो सफ़र की थकान भूल गया
- अंजुम ख़लीक़
अगर है इंसान का मुक़द्दर ख़ुद अपनी मिट्टी का रिज़्क़ होना
तो फिर ज़मीं पर ये आसमाँ का वजूद किस क़हर के लिए है
- ग़ुलाम हुसैन साजिद
'ज़फ़र' ज़मीं-ज़ाद थे ज़मीं से ही काम रक्खा
जो आसमानी थे आसमानों में रह गए हैं
- ज़फ़र इक़बाल
ये आप हम तो बोझ हैं ज़मीन का
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए
- नासिर काज़मी
ज़मीन हाँपने लगती है इक जगह रुक कर
मैं उस का हाथ बटाता हूँ रक़्स करता हूँ
- अंजुम सलीमी
नई ज़मीन नया आसमाँ बनाते हैं
हम अपने वास्ते अपना जहाँ बनाते हैं
-ख़्वाजा जावेद अख़्तर
ज़मीन बेच के तारे बसाना चाहते हैं
ये कौन लोग ख़लाओं में जाना चाहते हैं
-बुशरा बख़्तियार ख़ान
ज़मीन ले के वो आए तो घर बनाया जाए
खड़े हैं देर से हम लोग ईंट गारे लिए
-शकील आज़मी
ज़िंदगी की मजबूरियों पर शायरों के अल्फ़ाज़
ज़िंदगी है अपने क़ब्ज़े में न अपने बस में मौत
आदमी मजबूर है और किस क़दर मजबूर है
- अहमद आमेठवी
आप की याद में रोऊं भी न मैं रातों को
हूं तो मजबूर मगर इतना भी मजबूर नहीं
- मंज़र लखनवी
तेरी मजबूरियां दुरुस्त मगर
तू ने वादा किया था याद तो कर
- नासिर काज़मी
इतना तो समझते थे हम भी उस की मजबूरी
इंतिज़ार था लेकिन दर खुला नहीं रक्खा
- भारत भूषण पन्त
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता
- बशीर बद्र
चलो हम भी वफ़ा से बाज़ आए
मोहब्बत कोई मजबूरी नहीं है
- मज़हर इमाम
कभी मजबूर कर देना कभी मजबूर हो जाना
यही तेरा वतीरा है यही तेरी सियासत है
- ग़ुलाम हुसैन साजिद
एक ही शख़्स को चाहो सदा
ये कैसी मजबूरी है
- बिल्क़ीस ख़ान
हम अपना ग़म भूल गए
आज किसे देखा मजबूर
- नासिर काज़मी
इलाज ये है कि मजबूर कर दिया जाऊं
वगरना यूं तो किसी की नहीं सुनी मैं ने
- जौन एलिया
धरती और अम्बर पर दोनों क्या रानाई बाँट रहे थे
फूल खिला था तन्हा तन्हा चाँद उगा था तन्हा तन्हा
- ग्यान चन्द
जग में आ कर इधर उधर देखा
तू ही आया नज़र जिधर देखा
- ख़्वाजा मीर दर्द
कैसे मानें कि उन्हें भूल गया तू ऐ 'कैफ़'
उन के ख़त आज हमें तेरे सिरहाने से मिले
- कैफ़ भोपाली
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
- अंजुम सलीमी