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19, Days 19 Kahaniya 'Mahngi Padi Do Navon Ki Sawari' Hindi Kahani 19 दिन 19 कहानियां : महंगी पड़ी दो नावों की सवारी


19 दिन 19 कहानियां : महंगी पड़ी दो नावों की सवारी हिंदी कहानी 
अर्चना का विवाह 4 साल पहले कौशांबी के राजू के साथ हुआ था लेकिन पति से अनबन के चलते वह उसे हमेशा के लिए छोड़ कर मायके चली आई थी.
नितिन शर्मा ‘सबरंगी’



हिंदी कहानी 
कोई बड़ा अपराध हो जाता है तो आम लोगों में तो दहशत फैल ही जाती है. पुलिस विभाग में भी हड़कंप के हालात बन जाते हैं. 7 जनवरी, 2017 की सुबह उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भी एक ऐसी ही वारदात हो गई थी कि पूरे शहर में सनसनी फैल गई थी. मामला 2 कत्लों का था. हत्यारों ने शहर के थाना करेली के नयापुरवा के रहने वाले समाचारपत्र विक्रेता माधवप्रसाद और उन की बेटी अर्चना की बेरहमी से हत्या कर दी थी.

पुलिस अधिकारी, फोरैंसिक एक्सपर्ट और डौग स्क्वायड टीम मौके पर आ पहुंची थी. घटनास्थल का मंजर दिल दहला देने वाला था. 55 साल के माधवप्रसाद की लाश कमरे में पड़ी थी, जबकि 29 साल की अर्चना की लाश आंगन में थी. दोनों के सिर, चेहरे और माथे पर चोटों के निशान थे. उन की हत्या किसी धारदार हथियार से गला काट कर की गई थी.

पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. घर का सामान अपनीअपनी जगह था. कमरे में रखी अलमारी को छेड़ा तक नहीं गया था. मृतका का मोबाइल भी वहां मौजूद था. घटनास्थल को देख कर 3 बातें साफ हो रही थीं. पहली यह कि मामला लूटपाट का कतई नहीं था. दूसरी हत्यारे मृतकों के परिचित थे और तीसरी हत्याकांड को सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था.


डौग स्क्वायड आंगन में ही घूम कर रह गया था. फोरैंसिक टीम ने जांच के लिए खून आदि के नमूने एकत्र कर लिए. मौके पर लोगों की भारी भीड़ एकत्र हो चुकी थी. पुलिस ने पूछताछ की तो पता चला कि माधवप्रसाद की पत्नी की कई साल पहले मौत हो गई थी. उन की माली हालत बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी. उन की 3 बेटियां थीं अर्चना, सुलोचना और वंदना.

अर्चना का विवाह 4 साल पहले कौशांबी के राजू के साथ हुआ था लेकिन पति से अनबन के चलते वह उसे हमेशा के लिए छोड़ कर मायके चली आई थी. एक साल पहले उस ने बेनीगंज के रहने वाले विश्वजीत सिंह से प्रेम विवाह कर लिया था. हालांकि पिता की देखरेख के लिए वह ज्यादातर पिता के साथ ही रहती थी.


उस से छोटी सुलोचना ने भी एक साल पहले सुलेम सराय निवासी साहिल उर्फ वीरू से प्रेमविवाह कर लिया था. वह पति के साथ मुंडेरा में किराए के मकान में रहती थी. सब से छोटी वंदना अपने पति अजय के साथ ससुराल में सुख से रह रही थी.

माधवप्रसाद की बेटी वंदना और दामाद तथा कुछ रिश्तेदार उन की मौत की खबर पा कर आ गए थे. हैरानी की बात यह थी कि आसपड़ोस में किसी को वारदात का पता नहीं चला था. वारदात का पता 7 जनवरी, 2017 की सुबह तब चला, जब अर्चना का पति विश्वजीत वहां पहुंचा.



दरअसल, 5 जनवरी की शाम वह अर्चना से मिल कर गया था. अगले दिन शाम को वह पुन: उस से मिलने आया तो दरवाजे पर ताला लगा था. उस ने अर्चना को मोबाइल पर कई बार फोन किया, लेकिन घंटी बजने के बावजूद कोई जवाब नहीं आया. इस तरह अचानक ताला लगा कर माधवप्रसाद या अर्चना पहले कभी नहीं गए थे. फिर उन का कहीं जाने का प्रोग्राम भी नहीं था. विश्वजीत को पूरा विश्वास था कि बिना बताए वे कहीं नहीं जा सकते थे.

सब से बड़ी चिंता की बात यह थी कि अर्चना फोन का कोई जवाब नहीं दे रही थी. विश्वजीत के मन में तरहतरह की आशंकाओं ने जन्म लिया. 7 जनवरी की सुबह चिंताग्रस्त विश्वजीत पड़ोस की दीवार कूद कर घर में दाखिल हुआ तो वहां का मंजर देख कर उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उस ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. जिस के बाद एसपी (सिटी) विपिन टाडा, सीओ रूपेश सिंह और स्थानीय थाना करेली के प्रभारी जितेंद्र कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए.

पुलिस ने मृतकों के शव का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. साथ ही विश्वजीत की ओर से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर लिया था. मामला गंभीर था, इसलिए एसएसपी शलभ माथुर ने अधीनस्थों को घटना का शीघ्र खुलासा करने के निर्देश दिए. एसपी (सिटी) के निर्देशन में एक पुलिस टीम का गठन किया गया, जिस में थानाप्रभारी के अलावा क्राइम ब्रांच के एसआई नागेश सिंह, ओमशंकर शुक्ला, कांस्टेबल पवन सिंह, संजय सिंह, बालगोविंद पांडेय और अवनीश कुमार आदि को शामिल किया गया.





पुलिस हत्या की वजह तलाशने में जुट गई. पुलिस ने मृतकों के रिश्तेदारों और आसपास के लोगों से पूछताछ की. इस पूछताछ में पता चला कि हत्याकांड को 5 जनवरी की रात को अंजाम दिया गया था, क्योंकि उसी दिन शाम ही अर्चना का पति उस से मिल कर गया था. तब तक सब ठीकठाक था. पुलिस को एक खास बात यह पता चली कि माधवप्रसाद का नयापुरवा स्थित खंडहर हो चुके पुश्तैनी मकान को ले कर अपने भाई से विवाद चल रहा था.

दरअसल, माधवप्रसाद 3 भाई थे, जिन में माधवप्रसाद और रामअवतार एक साथ रहते थे, जबकि तीसरा भाई रामस्वरूप अलग रहता था. रामअवतार के कोई संतान नहीं थी. कई सालों पहले रामअवतार और उस की पत्नी की मौत हो चुकी थी, जिस के बाद उस का हिस्सा भी माधवप्रसाद का हो गया था.

यह बात अलग थी कि माधवप्रसाद और उस का भाई रामस्वरूप अलगअलग मकान बना कर रह रहे थे. रामस्वरूप और उस के बेटे तीसरे भाई के हिस्से में हिस्सा चाहते थे. इस बात पर उन का कई बार विवाद भी हुआ था. रिश्तों में इतनी खटास आ गई थी कि उन की बोलचाल तक बंद थी.

रामस्वरूप चाहते थे कि पुश्तैनी मकान को बेच कर आधाआधा पैसा बांट लिया जाए जबकि माधवप्रसाद और उन की बेटियां ऐसा नहीं चाहती थीं. हालांकि उस के हिस्से में कई बार प्लौट बिकाऊ संबंधी बोर्ड लगाया गया था. कई बार उस पर कब्जे की भी कोशिश की गई थी. माधवप्रसाद ने हर बार इस का विरोध किया था. प्रौपर्टी डीलिंग से जुड़े कई लोगों की भी इस पर नजर थी.

आए दिन के झगड़ों से परेशान हो कर माधवप्रसाद ने दिसंबर, 2016 के अंतिम सप्ताह में एक प्रौपर्टी डीलर से अपने और मृतक भाई के हिस्से को 25 लाख रुपए में बेचने की बात की थी, लेकिन बाद में इनकार कर दिया था. पुलिस का शक माधवप्रसाद के भाई पर ठहर गया, इसलिए रामस्वरूप और उस के बेटों से पूछताछ की गई लेकिन हत्या में उन का हाथ होने का कोई सबूत नहीं मिल सका.


इस से हत्या की गुत्थी और उलझ गई. जांच में एक बात यह भी पता चली कि माधवप्रसाद की बेटी सुलोचना भी 3 जनवरी से लापता थी. उसे ले कर न सिर्फ माधवप्रसाद और उन की बेटियां, बल्कि उस का पति साहिल भी परेशान था. पुलिस ने इस दिशा में जांच शुरू की तो इस नतीजे पर पहुंची कि माधवप्रसाद की मौत के बाद उस के भाई के अलावा और किसी को कोई फायदा नहीं हो सकता था. अब पुलिस को उस के तीनों दामादों पर शक हुआ. इन में सब से ज्यादा शक सुलोचना के पति साहिल पर गया.

दरअसल, शक की वजह भी थी. मृतक की बेटी वंदना से पुलिस को पता चला कि सुलोचना से उस का पति साहिल आए दिन झगड़ा करता था. दोनों के बीच अनबन रहती थी. सोचने वाली बात यह भी थी कि सुलोचना के लापता होने के बाद भी उस ने उस की गुमशुदगी नहीं दर्ज कराई थी. पुलिस ने माधवप्रसाद के दामाद विश्वजीत और अजय से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने पुलिस के हर सवाल का सही जवाब दिया. उन के चेहरे पर भी सच झलक रहा था.

हत्याकांड के इर्दगिर्द मकान का विवाद और रिश्तों का जाल था. तीसरे दामाद साहिल की भूमिका संदिग्ध नजर आई तो पुलिस ने उस से पूछताछ की. पुलिस के सवालों के जवाब देने के बजाय वह पुलिस को ही उलटा तेवर दिखाने लगा, ‘‘आप लोग हत्यारों को पकड़ने के बजाए हम से ही पूछताछ कर रहे हैं.’’

‘‘कौन हैं असल हत्यारे, तुम जानते हो ’’

‘‘यह मुझे नहीं पता. यह पता लगाना तो आप लोगों का काम है. मेरी समझ में यह नहीं आता कि मुझे बेवजह क्यों परेशान कर रहे हैं. मेरी बीवी गायब है. मैं पहले से परेशान हूं.’’

‘‘तुम ने उस के गायब होने की सूचना पुलिस को क्यों नहीं दी ’’


‘‘सर, मैं खुद ही उसे दिनरात खोज रहा था.’’

इस पूछताछ में पुलिस इतना समझ गई कि साहिल काफी चालाक किस्म का आदमी है. अगले दिन यानी 8 जनवरी को पुलिस ने साहिल समेत माधवप्रसाद के नजदीकियों की काल डिटेल्स हासिल कर ली. चूंकि साहिल ही मुख्य संदिग्ध था, इसलिए पुलिस ने उस की काल डिटेल्स और लोकेशन को बारीकी से जांचा तो जो जानकारी मिली, उस से पुलिस हैरान थी. घटना वाली रात साहिल की लोकेशन नयापुरवा में ही थी.

उस की कालडिटेल्स में एक नंबर और था, जिस पर उस की लगातार बातें होती थीं. उस नंबर की लोकेशन भी उस रात उस के साथ थी. पुलिस ने बिना देर किए साहिल को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की. पुलिस के सामने उस के हौसले पस्त हो गए. फिर तो उस ने पुलिस को जो बताया, उसे सुन कर पुलिसकर्मी सन्न रह गए. माधवप्रसाद और उन की बेटी का कातिल कोई और नहीं, साहिल ही था.






अपने बहनोई योगेश के साथ मिल कर उसी ने खून से हाथ रंगे थे. यही नहीं, उस ने अपनी पत्नी सुलोचना की भी हत्या कर दी थी. पुलिस ने उस से विस्तार से पूछताछ की तो 2 बीवियों के फेर में उलझे एक रसिकमिजाज और सनकी इंसान की चौंकाने वाली करतूत सामने आई. इस के बाद पुलिस ने योगेश को भी गिरफ्तार कर लिया.

साहिल ठेके पर हलवाई का काम करता था. वह रसिकमिजाज इंसान था. सुलोचना से शादी के कुछ महीने बाद ही उस ने सुमन से प्रेम की पींगे बढ़ाईं और उस से भी शादी कर ली. सुमन को उस ने अपने पैतृक घर में रख रखा था. वह 2 नावों की सवारी कर रहा था. दिन में वह सुमन से मिलता था और रात में सुलोचना से. 2 पत्नियों को धोखे में रख कर वह खुद को चालाक समझ रहा था, लेकिन उस की चालाकी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी.

सुलोचना के सामने यह भेद खुला तो उस ने हंगामा खड़ा कर दिया. इस के बाद दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा. साहिल ने सोचा था कि समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुलोचना कुछ दिन लड़झगड़ कर चुप बैठ जाएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. एक दिन सुलोचना फैसले पर उतर आई, ‘‘तुम ने प्यार के नाम पर धोखा दिया है साहिल, लेकिन अब तुम्हें फैसला करना होगा.’’

‘‘कैसा फैसला ’’

‘‘तुम्हें सुमन को छोड़ना होगा या मुझे.’’

साहिल ने उसे समझाने वाले अंदाज में कहा, ‘‘सुलोचना, बात समझने की कोशिश करो. यह ठीक है कि मुझ से गलती हो गई है लेकिन मैं तुम्हें कोई परेशानी नहीं होने दूंगा.’’

‘‘लेकिन मैं सौतन को बरदाश्त नहीं कर सकती.’’ सुलोचना ने साफ कह दिया.

इस के बाद उस ने साहिल की दूसरी शादी की बात अपनी अन्य बहनों को बता दी. उन लोगों ने भी कहा कि वह साहिल पर दबाव बनाए ताकि वह सुमन का साथ छोड़ दे. सुलोचना आए दिन उस पर सुमन को छोड़ने का दबाव बनाने लगी. साहिल उसे बारबार समझाने की कोशिश करता रहा और बहाने बना कर बात को टालता रहा.






सुलोचना बीए तक पढ़ी थी, इसलिए वह उस के झांसे में नहीं आई. एक दिन उस ने साहिल को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘साहिल, मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूं. तुम गुलछर्रे उड़ाओ और मैं देखती रहूं, ऐसा नहीं हो सकता. अगर तुम ने सुमन से रिश्ता नहीं तोड़ा तो मैं तुम्हारे खिलाफ पुलिस में शिकायत कर के तुम्हें जेल भिजवा दूंगी.’’

उस की इस धमकी से साहिल डर गया. वह फितरती सोच का आदमी था. आए दिन होने वाले झगड़े से वह परेशान था. उसे लगा कि अगर सुलोचना इसी तरह करती रही तो एक दिन वह उसे जेल भी भिजवा देगी. 1 जनवरी को भी दोनों के बीच जम कर झगड़ा हुआ. बस इसी के बाद साहिल ने मन ही मन सुलोचना को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली.

2 जनवरी की रात वह सुलोचना के पास ही रुका. आधी रात का वक्त था, जब सुलोचना गहरी नींद सो रही थी, उसी समय उस ने दुपट्टे का फंदा उस के गले में डाल कर कस दिया. गले पर दबाव पड़ते ही सुलोचना की आंख खुल गई. साहिल के रूप में उसे मौत नजर आई. उस ने बचाव के लिए काफी हाथपैर चलाए, लेकिन साहिल ने उसे काबू कर लिया. परिणामस्वरूप कुछ ही देर में छटपटा कर उस ने दम तोड़ दिया. हत्या करने के बाद वह लाश के पास ही सो गया.








साहिल ने हत्या तो कर दी, अब उसे लाश को ठिकाने लगाने की चिंता सताने लगी. शाम को उस ने रोशनबाग में रहने वाले अपने बहनोई योगेश को फोन कर के बुलाया और दोनों लाशों को ठिकाने लगाने की योजना बनाने लगे. योजना बना कर रात के अंधेरे में दोनों सुलोचना की लाश को मोटरसाइकिल पर रख कर करीब 8 किलोमीटर दूर कानपुर हाईवे पर कस्बा मुंडेरा ले गए.

पहचान मिटाने के लिए साहिल ने सुलोचना के चेहरे को पत्थर से कुचल दिया. लाश पानी से ऊपर न आ जाए, इस के लिए उन्होंने लाश के साथ एक बड़ा सा पत्थर बांध कर वहीं तालाब में फेंक दी और आश्वस्त हो कर अपनेअपने घर चले गए.

अगले दिन साहिल ने माधवप्रसाद और उस के दोनों दामादों को सुलोचना के गायब होने की सूचना दे दी. उन लोगों को उस ने बताया कि सुलोचना उस से नाराज हो कर बिना बताए कहीं चली गई है. इस के बाद वह ससुराल पहुंचा. साली अर्चना को भी उस ने सुलोचना के गायब होने की बात बताई. वह परेशान हो उठी. उस ने साहिल को धमकी दी कि अगर सुलोचना नहीं मिली तो वह उसे कहीं का नहीं छोड़ेगी. इस से वह घबरा गया.

साहिल की रातों की नींद उड़ गई थी. अर्चना पिता के साथ मिल कर उसे नुकसान पहुंचा सकती थी. हैवानियत भरी सोच जागी तो उस ने उन दोनों को भी रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. साहिल जानता था कि माधवप्रसाद का प्रौपर्टी को ले कर विवाद चल रहा है, इसलिए पूरा शक उस के भाई पर ही जाएगा.

5 जनवरी की रात वह बहनोई योगेश के साथ चाकू ले कर ससुराल पहुंचा. अर्चना कुछ देर में आने की बात कह कर घर से बाहर चली गई थी. उसी बीच घर में रखे एक छोटे मूसल से दोनों ने माधवप्रसाद की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों अर्चना के आने का इंतजार करने लगे. अर्चना जैसे ही अंदर आई तो खूनखराबा देख कर शोर मचाने के लिए बाहर की ओर भागी. लेकिन उन दोनों ने उसे पकड़ कर आंगन में गिरा दिया और साथ लाए चाकू से उस की गला काट कर हत्या कर दी. दोनों की हत्या कर के उन्होंने घर में बाहर से ताला लगाया और भाग गए.

साहिल ताला अपने साथ ले कर आया था. घर में बाहर से ताला लगाने की बात उस ने पहले से तय कर रखी थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने साहिल की निशानदेही पर सुलोचना की लाश को भी बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.





साहिल ने सोचा था कि वह कभी पकड़ा नहीं जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. वह इतना खतरनाक निकलेगा, यह भी किसी ने नहीं सोचा था.

एसएसपी शलभ माथुर ने प्रैसवार्ता कर के इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा किया. दोनों आरोपियों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हो सकी थी. सुलोचना इंसान की परख किए बिना साहिल जैसे रसिकमिजाज की मोहब्बत के जाल में उलझ गई थी. साहिल की भी 2 नावों की सवारी करने की फितरत नहीं रही होती तो शायद ऐसी नौबत कभी नहीं आती.

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