Baat shayari collection Akelapan shayari collection ' Garibi aur bhukhmari shayari collection अकेलेपन' पर कहे शायरों के अल्फ़ाज़,
Garibi aur bhukhmari shayari collection |
'अकेलेपन' पर कहे शायरों के अल्फ़ाज़, 'बातों' पर कहे गए शेर... 'गरीबी' पर 10 चुनिंदा शेर....
वो नहीं है न सही तर्क-ए-तमन्ना न करो
दिल अकेला है इसे और अकेला न करो
- महमूद अयाज़
हर तरफ़ दोस्ती का मेला है
फिर भी हर आदमी अकेला है
- फ़रहत अब्बास
भीड़ तन्हाइयों का मेला है
आदमी आदमी अकेला है
- सबा अकबराबादी
है आज ये गिला कि अकेला है 'शहरयार'
तरसोगे कल हुजूम में तन्हाई के लिए
- शहरयार
जब वो साथ होता है
हम अकेले होते हैं
- नज़ीर क़ैसर
'माजिद' ख़ुदा के वास्ते कुछ देर के लिए
रो लेने दे अकेला मुझे अपने हाल पर
- हुसैन माजिद
तुम से मिले तो ख़ुद से ज़ियादा
तुम को अकेला पाया हम ने
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
- निदा फ़ाज़ली
अकेले घर में भरी दोपहर का सन्नाटा
वही सुकून वही उम्र भर का सन्नाटा
- इशरत आफ़रीं
मैं जब मैदान ख़ाली कर के आया
मिरा दुश्मन अकेला रह गया था
- दिलावर अली आज़र
'बातों' पर कहे गए शेर...
बात से बात की गहराई चली जाती है
झूट आ जाए तो सच्चाई चली जाती है
-शकील आज़मी
ये सब कहने की बातें हैं कि ऐसा हो नहीं सकता
मोहब्बत में जो दिल मिल जाए फिर क्या हो नहीं सकता
-हफ़ीज़ जौनपुरी
मौत ख़ामोशी है चुप रहने से चुप लग जाएगी
ज़िंदगी आवाज़ है बातें करो बातें करो
- अहमद मुश्ताक़
तिरी आवाज़ को इस शहर की लहरें तरसती हैं
ग़लत नंबर मिलाता हूँ तो पहरों बात होती है
- ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
बोलते रहना क्यूँकि तुम्हारी बातों से
लफ़्ज़ों का ये बहता दरिया अच्छा लगता है
- अज्ञात
देर तक चंद मुख़्तसर बातें
उस से कीं मैं ने आँख भर बातें
तू मिरे पास जब नहीं होता
तुझ से करता हूँ किस क़दर बातें
-आसिम वास्ती
बात की बात ही इसे कहिए
क़हक़हे दर्द-ओ-ग़म मिटाते हैं
- मुमताज़ राशिद
सब्र पर दिल को तो आमादा किया है लेकिन
होश उड़ जाते हैं अब भी तिरी आवाज़ के साथ
- आसी उल्दनी
तुम ने छेड़ा तो कुछ खुले हम भी
बात पर बात याद आती है
- अज़ीज़ लखनवी
ये क्या कि बात बात पे बस दिल-लगी की बात
तुम भी तो पेश आओ कभी अपने-पन के साथ
- मुंतज़िर क़ाएमी
थी कभी बात बात में तासीर
अब दुआ में असर नहीं आता
- हफ़ीज़ जौनपुरी
'गरीबी' पर 10 चुनिंदा शेर....
ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक
ख़ुश-हालियों के शहर में क्या कुछ नहीं किया
- इक़बाल साजिद
खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए
सवाल ये है किताबों ने क्या दिया मुझ को
- नज़ीर बाक़री
अब ज़मीनों को बिछाए कि फ़लक को ओढ़े
मुफलिसी तो भरी बरसात में बे-घर हुई है
- सलीम सिद्दीक़ी
आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए
-हफ़ीज़ जालंधरी
दरिया दरिया घूमे मांझी पेट की आग बुझाने
पेट की आग में जलने वाला किस किस को पहचाने
- जमीलुद्दीन आली
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है
- बेकल उत्साही
हटो काँधे से आँसू पोंछ डालो वो देखो रेल-गाड़ी आ रही है
मैं तुम को छोड़ कर हरगिज़ न जाता ग़रीबी मुझ को ले कर जा रही है
- अज्ञात
जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
पाँव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को
- बिस्मिल अज़ीमाबादी
मुफ़लिसों की ज़िंदगी का ज़िक्र क्या
मुफ़्लिसी की मौत भी अच्छी नहीं
- रियाज़ ख़ैराबादी
अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम सुनाएँ किस तरह
रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया
- इबरत मछलीशहरी