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Doobta Suraj Shayari in Hindi Collection डूबता - सूरज शायरी हिंदी में संग्रह - Hindi Shayari H


डूबता - सूरज शायरी हिंदी में संग्रह
Doobta Suraj Shayari 


  
डूबता - सूरज शायरी हिंदी में संग्रह

दोस्तों डूबता-सूरज  पर शेर ओ शायरी का एक अच्छा संकलन हम इस पेज पर प्रकाशित कर रहे है, उम्मीद है यह आपको पसंद आएगा और आप विभिन्न शायरों के “डूबता-सूरज” के बारे में ज़ज्बात और ख़यालात जान सकेंगे. अगर आपके पास भी “डूबता-सूरज” पर शायरी का कोई अच्छा शेर है तो उसे कमेन्ट बॉक्स में ज़रूर लिखें.
कभी तो सर्द लगा दोपहर का सूरज भी
कभी बदन के लिए इक किरन ज़ियादा हुई
- नसीम सहर


हो गई शाम ढल गया सूरज
दिन को शब में बदल गया सूरज
- अतहर नादिर

शाम हुई तो सूरज सोचे
सारा दिन बेकार जले थे
- प्रेम भण्डारी


पिघलते देख के सूरज की गर्मी
अभी मासूम किरनें रो गई हैं
- जालिब नोमानी



तीरगी में नूर आएगा नज़र
डूबते सूरज को भी सज्दा करो
- अजीत सिंह हसरत


सूरज सर पे आ पहुँचा
गर्मी है या रोज़-ए-जज़ा
- नासिर काज़मी


यूँ जागने लगे तिरी यादों के सिलसिले
सूरज गली गली से निकलता दिखाई दे
- अहमद वसी


चले भी आओ कि ये डूबता हुआ सूरज
चराग़ जलने से पहले मुझे बुझा देगा
- बशीर फ़ारूक़ी


शाम को आओगे तुम अच्छा अभी होती है शाम
गेसुओं को खोल दो सूरज छुपाने के लिए
- क़मर जलालवी


मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है
- शहरयार



 

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दोबता सूरज शायरी हिंदी में



न जाने कितने चिरागों को मिल गई शोहरत

इक आफताब के बे वक्त डूब जाने से।

 

माथे की तपिश जवाँ, बुलंद शोला-ए-आह,

आतिश-ए-आफ़ताब को हमने टकटकी से देखा है।




तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चिराग़

लोग क्या सादा हैं सूरज को दिखाते हैं चिराग़

~Faraz

 

इन अँधेरों से ही सूरज कभी निकलेगा “नज़ीर”

रात के साए ज़रा और निखर जाने दे

~नज़ीर बनारसी

 

मैं भटकती हूँ क्यूँ अंधेरे में

वो अगर आफताब जैसा है

 

Doobta Suraj Shayari In Hindi 




अब आ भी जा कि सुबह से पहले ही बुझ न जाऊं

ऐ मेरे आफताब बहोत तेज है हवा

 

तारीकियों में और चमकती है दिल की धूप,

सूरज तमाम रात यहां डूबता नहीं !! -बशीर बद्र

 

पसीने बाटंता फिरता है हर तरफ सूरज

कहीं जो हाथ लगा तो निचोड़ दूगां उसे।

 

चाँद सूरज मिरी चौखट पे कई सदियों से

रोज़ लिक्खे हुए चेहरे पे सवाल आते हैं







अगर ख़ुदा न करे सच ये ख़्वाब हो जाए

तेरी सहर हो मेरा आफ़ताब हो जाए

~दुष्यंत कुमार

 

मैं ज़ख़्म-ए-आरज़ू हूँ, सरापा हूँ आफ़ताब

मेरी अदा-अदा में शुआयें हज़ार हैं

~shair

 

गिरती हुइ दीवार का हमदर्द हूँ लेकिन

चढ़ते हुए सूरज की परस्तिश नहीं करता

~मुज़फ्फर वारसी

 

अपनी ताबीर के चक्कर में मेरा जागता हुआ ख्वाब

रोज सूरज की तरह धर से निकल पड़ता है।

 

फनकार है तो हाथ पे सूरज सजा के ला

बुछता हुआ दिया न मुकाबिल हवा के ला।

 


Shayari On Sunset सूर्यास्त पर शायरी



आये कुछ अब्र कुछ शराब आये,

उसके बाद आये तो अज़ाब आये,

बाम-इ-मिन्हा से महताब उतरे,

दस्त-ए-साक़ी में आफ़ताब आये।

काश होता मेरे हाथों में सूरज का निजाम

तेरे रस्ते में कभी धूप न आने देता।

 

मैं सूरज हूँ कोई मंज़र निराला छोड़ जाऊँगा,

उफ़क़ पर जाते जाते भी उजाला छोड़ जाऊंगा

 

घबराएँ हवादिस से क्या हम जीने के सहारे निकलेंगे

डूबेगा अगर ये सूरज भी तो चाँद सितारे निकलेंगे !!

 


 

Aaftab Suraj Shayari आफ़ताब-सूरज पर शायरी




मंद रौशनी है धुंधला सा आफ़ताब है,

ए सुबह। तू भी आज गम-ज़दा है क्या।

 

हर ज़र्रा आफ़ताब है, हर शय है बा-कमाल

निस्बत नही कमाल को शरहे कमाल से !! –

 

तेरे चेहरे के नूर से आफ़ताब भी चमकता है,

ए ज़िन्दगी। तू नहीं तो कुछ भी नहीं।








किसी दिन,तय है सूरज का ठिकाना ढ़ूँढ़ ही लेंगे,

उजालों की हमारे पास एक पुख्ता निशानी है

 

Dubta hua Suraj  दूबता सूरज शायरी





चलता रहा तू साथ मेरे,

कभी आफ़ताब बनके,

कभी महताब बन के।

 

आपकी नज़रों में आफताब की है जितनी अज़्मत

हम चिरागों का भी उतना ही अदब करते हैं

 

चढ़ने दो अभी और ज़रा वक़्त का सूरज,

हो जायेंगे छोटे जो अभी साये बड़े हैं !!

 

तेरे जलवों में घिर गया आखिर,ज़र्रे को आफताब होना था

कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी,कुछ मुझे भी खराब होना था

 

चौदवी का चाँद हो, या आफताब हो,

जो भी हो तुम, खुदा की क़सम, लाजवाब हो!!

 

चमन में शब को जो शोख़ बेनक़ाब आया,

यक़ीन हो गया शबनम को आफ़ताब आया !!

 

Doobta Suraj Shayari दूबता सूरज शायरी




तू है सूरज तुझे मालूम कहां रात का दुख

तू किसी रोज उतर घर में मेरे शाम के बाद!

 



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कल भी सूरज निकलेगा

कल भी पंछी गायेंगे

सब तुझको दिखाई देंगे

पर हम ना नज़र आएंगे

आँचलमें संजो लेना हमको

सपनोंमें बुला लेना हमको

~नरेंद्र_शर्मा


 

उजाले के पुजारी मुज़्महिल क्यूँ हैं अँधेरे से,

के ये तारे निगलते हैं तो सूरज भी उगलते हैं.!!

 

वो डूबते हुए सूरज को देखता है फराज़

काश मैं भी किसी शाम का मंजर होता

 

कभी चाँद चमका ग़लत वक़्त पर

कभी घर में सूरज उगा देर से

-निदा फ़ाजली

 

रात के राही थक मत जाना

सुबह की मंजिल दूर नहीं

ढलता दिन मजबूर सही


ढलता सूरज मजबूर नहीं

-साहीर लुधियानवी

 

Doobta Suraj Shayari दूबता सूरज शायरी

रौशनी की भी हिफाज़त है इबादत की तरह

बुझते सूरज से चरागों की जलाया जाए

 

सूरज कही भी जाये

तुम पर ना धूप आये

तुम को पुकारते हैं

इन गेसूओं के साये

आ जाओ मैं बना दू

पलकों का शामियाना

-कमाल अमरोही

 

थका-थका सूरज जब नदी से होकर निकलेगा..

हरी-हरी काई पे पांव पड़ा तो फिसेलगा..

-गुलज़ार

 


गज़ल का हुस्न हो तुम नज़्म का शबाब हो तुम

सदा ये साज़ हो तुम नगमा ये रबाब हो तुम

जो दिल में सुबह जगाये वो आफ़ताब हो तुम..

-साहीर लुधियानवी

 

Doobta Suraj Shayari दूबता सूरज शायरी




नज़दीकियों में दूरका मंज़र तलाश कर

जो हाथमें नहीं है वो पत्थर तलाश कर

सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फ़ाएदा

दरिया हुआ है गुम तो समुंदर तलाश कर

 

 

 सूरज एक नटखट बालक सा

दिन भर शोर मचाए

इधर उधर चिड़ियों को बिखेरे

किरणों को छितराये

कलम,दरांती,बुरुश,हथोड़ा

जगह जगह फैलाये(1/1)

-निदा फ़ाज़ली

 

किरन-किरन अलसाता सूरज

पलक-पलक खुलती नींदें

धीमे-धीमे बिखर रहा है

ज़र्रा-ज़र्रा जाने कौन ।

-निदा फ़ाजली

 

रात जब गहरी नींद में थी कल

एक ताज़ा सफ़ेद कैनवस पर,

आतिशी सुर्ख रंगों से,

मैंने रौशन किया था इक सूरज

-गुलज़ार

 

काले घर में सूरज रख के,

तुमने शायद सोचा था,मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,

मैंने एक चिराग़ जला कर,

अपना रस्ता खोल लिया..!

-गुलज़ार

 

रात के पेड़ पे कल ही तो उसे देखा था..

चाँद बस गिरने ही वाला था फ़लक से पक कर

सूरज आया था,ज़रा उसकी तलाशी लेना

-गुलज़ार

 

Doobta Suraj Shayari दूबता सूरज शायरी


कुछ ख़्वाबों के ख़त इनमें

कुछ चाँदके आईने सूरज की शुआएँ हैं

नज़मों के लिफाफ़ोंमें कुछ मेरे तजुर्बे हैं

कुछ मेरी दुआएँ हैं

गुलज़ार

 

कोई सूरज से ये पूछे के क्या महसूस होता है

बुलंदी से नशेबों में उतरने से ज़रा पहले

~शाद

 

तरस रहे हैं एक सहर को जाने कितनी सदियों से

वैसे तो हर रोज़ यहाँ सूरज का निकलना जारी है

~राजेश रेड्डी

 

मैं वो शजर भी कहाँ जो उलझ के सूरज से

मुसाफिरों के लिए साएबाँ बनाता है

~शाद

 

सारा दिन बैठा,मै हाथ में लेकर खाली कासा

रात जो गुजरी,चाँद की कौड़ी डाल गई उसमें

सूदखोर सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।

-गुलज़ार

 

आप को शब के अँधेरे से मोहब्बत है, रहे

चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने.!!

 

ज़रा सी देर के लिये,जो आ गया मैं अब्र में

इधर ये शोर मच गया,के आफ़ताब ढल गया.!!

न जाने कितने चरागों को मिल गई शोहरत

एक आफ़ताब के बे-वक़्त डूब जाने से..!!

~इक़बाल अशहर

 

Aaftab Suraj Shayari आफ़ताब-सूरज पर शायरी




हम वो राही हैं लिये फिरते हैं सर पर सूरज।।

हम कभी पेड़ों से साया नहीं माँगा करते..!!

 

चढ़ने दो अभी और ज़रा वक़्त का सूरज।।

हो जाएँगे छोटे जो अभी साये बड़े हैं..!!

 

अपना सूरज तो तुझे ख़ुद हि उगाना होगा।।

धूप और छाँव के इलहाक़ में क्या ढूँढता है

~मेराज

 

हम वो राही हैं लिये फिरते हैं सर पर सूरज।।

हम कभी पेड़ों से साया नहीं माँगा करते..!!

 

आप को शब के अँधेरे से मोहब्बत है, रहे।।

चुन लिया सुबह के सूरज का उजाला मैंने..!!

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