एक व्हाट्सएप ग्रुप की कहानी Ek WhatsApp Group Ki Kahani - Hindi Shayari H
मोहन लाल मौर्य
मैं एक ऐसे साहित्यिक व्हाट्सएप समूह का सदस्य हूं , जिसके सदस्यों की सदाशयता देखने लायक है । वे संसद के सदस्यों की तरह साहित्य पर चर्चा करते हैं । चर्चा के दौरान जो सदस्य विषय से हटकर चर्चा करता है , उसे ग्रुप के संविधान के के तहत एडमिन द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है ।
उसके बाहर जाने के बाद अंदर वाला कोई भी माननीय सदस्य उसे फिर से वापस लाने के लिए ' प्रत्यावर्तन ' विधेयक ग्रुप में पेश कर देता है , तो संसद की तरह उस पर विचार - विमर्श होता है । पक्ष विपक्ष में उसके साहित्यिक योगदान पर बहस होती है । बहुमत प्राप्त होने के पश्चात विधेयक को राष्ट्रपति की तरह ग्रुपपति के पास भेजा जाता है । ग्रुपपति के अनुमति हस्ताक्षर होने के बाद उस माननीय सदस्य को ससम्मान ' ऐड पार्टिसपेंट ' अनुच्छेद के तहत वापस सम्मिलित कर लिया जाता है । हमारे ग्रुपपति महोदय ग्रुप की सभी गतिविधियों पर नजर रखते हैं , लेकिन अपने विचार विषम परिस्थितियों में ही रखते हैं , क्योंकि सामान्य परिस्थिति में वे विचार रखने की स्थिति में नहीं रहते हैं , साहित्य साधना में तल्लीन रहते हैं ।
हर वर्ष उनकी एक कृति विश्व पुस्तक मेले में विमोचन के लिए आ ही जाती है । ग्रुप के दो माननीय सदस्यों को ग्रुप के सभी सदस्यों की प्रकाशित रचनाओं को अलसुबह ही ग्रुप में डालने का गौरव प्राप्त है । ये दोनों सुबह उठते ही सबसे पहले अखबारों के ई पेपर देखते हैं । ग्रुप सदस्य की रचना दिखते ही क्रॉप करके सीधे ग्रुप में डाल देते हैं । साथ में बगैर पढ़े ही बधाई भी चेप देते हैं ।
इनकी बधाई के बाद बधाइयों का सिलसिला देर रात तक जारी रहता है । कई बार बधाइयों पर प्रतिबंध ' विधेयक पेश किया गया है और पूर्ण बहुमत से पास भी हुआ है , लेकिन दो - चार दिन बाद फिर से बधाइयों का सिलसिला पूर्व की भांति सुचारू रूप से प्रारंभ हो जाता है । इस संदर्भ में ग्रुप का संविधान लचीला है , जिसे कठोर बनाने के लिए एक कोर कमेटी गठित की गई है , लेकिन कमेटी की ओर से अभी तक कोई कमेंट नहीं आया है । ग्रुप में एकमात्र वरिष्ठ माननीय सदस्य हैं , जो प्रकाशित रचना पर अपनी आलोचनात्मक टिप्पणी के साथ ही अपने विचार रखते हैं , अन्यथा फिर वह रखते ही नहीं है । वह बधाई में विश्वास नहीं रखते हैं । ऐसा भी नहीं है कि वह बधाई विरोधी है , लेकिन वह रचना का आलोचनात्मक पोस्टमार्टम करना अपना धर्म समझते हैं । वह अपने धर्म के बहुत ही पक्के हैं । धर्म के प्रति सदैव सजग रहते हैं ।
थोड़ी - सी भी आंच नहीं आने देते हैं । आ जाए तो डिबेट के लिए तैयार रहते हैं । हमारे ग्रुप में सम्मिलित होने बाद ऐरा - गैरा भी माननीय सदस्य की उपाधि से ही अलंकृत किया जाता है । इसलिए मुझे भी माननीय सदस्य कहकर ही संबोधित करना पड़ रहा है ।
अन्यथा ' संबोधित ' अनुच्छेद के तहत मुझ पर कार्यवाही हो जाएगी । ग्रुप में तीन - चार माननीय वरिष्ठ सदस्य ऐसे भी हैं , जो सदैव कनिष्ठ सदस्यों की रचनाओं में खामियां निकालकर वाहवाही लूटने में रहते हैं । गिद्ध की तरह अशुद्ध शब्द पर नजर गड़ाए रखते हैं । दिखते ही पकड़कर रख देते हैं । चाहे शब्द टाइपिंग मिस्टेक की वजह से अशुद्ध हुआ हो , लेकिन ये लोग मानते हैं कि लेखक को शुद्ध शब्द लिखना नहीं आता है । दो माननीय सदस्य ऐसे हैं , जो कि घटिया से घटिया प्रकाशित लेख को भी प्रशंसा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किए बगैर नहीं रहते हैं । इनकी दृष्टि में प्रकाशित होना भी अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है , चाहे उस अखबार का एक भी पाठक न हो । एक लेखक के लिए प्रकाशित होने का परम सुख ही काफी है ।
इनके पास ग्रुप के सभी सदस्यों के प्रशंसा प्रमाण पत्र रखे हुए हैं । बस निकालकर देना ही रहता है । दोनों देने में सदैव अग्रणी रहते हैं । दोनों देते भी अलग - अलग हैं । कुछेक सदस्य ऐसे हैं , जो ग्रुप की हर गतिविधि देखते रहते हैं , लेकिन चुप रहते हैं , कभी भी कुछ भी साझा नहीं करते हैं । ऑनलाइन उपस्थित होने के बावजूद भी अपनी हाजिरी तक नहीं बोलते हैं । जब कभी एडमिन या किसी वरिष्ठ सदस्य द्वारा कार्रवाई की धमकी दी जाती है , तब इमोजी डालकर अपनी उपस्थिति प्रस्तुत कर देते हैं ।
इस साहित्यिक ग्रुप में सात - आठ नवांकुर लेखक हैं , जिन्हें कुछेक वरिष्ठ तो सदैव सींचने में रहते हैं और कुछेक टांग पकड़कर खींचने में लगे रहते हैं । ज्यादातर हम नवांकुरों को देश के किसी भी प्रमुख अखबार में लहलहाते देखकर हतप्रभ रह जाते हैं । ग्रुप में दो एडमिन हैं । एक कनिष्ठ और दूसरे वरिष्ठ हैं । दोनों में से कोई भी बगैर बीन बजाए नहीं आता है । ये लोग आने के बाद सबको अपने ज्ञान का लिफाफा देकर ही जाते हैं । इनके लिफाफे को देखकर कई सदस्य तो कई दिनों तक संशय में पड़े रहते हैं ।