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कुछ शायरों के अल्फ़ाज़ 'ख़बरों' पर - हिंदी शायरी एच





कुछ शायरों के अल्फ़ाज़ 'ख़बरों' पर
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ख़बर कर दे कोई उस बे-ख़बर को
मिरी हालत बिगड़ती जा रही है
- सय्यदा अरशिया हक़


एक ख़बर है तेरे लिए
दिल पर पत्थर भारी रख
- अमीर क़ज़लबाश


कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूं रखता
ये भी इक बे-ख़बरी थी कि ख़बर-दार रहा
- अनवर देहलवी


मुमकिन नहीं है शायद दोनों का साथ रहना
तेरी ख़बर जब आई अपनी ख़बर गई है
- मीर अहमद नवेद


जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर
हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना
- उबैदुल्लाह अलीम


अंजान तुम बने रहे ये और बात है
ऐसा तो क्या है तुम को हमारी ख़बर न हो
- अज्ञात

गिरते पेड़ों की ज़द में हैं हम लोग
क्या ख़बर रास्ता खुले कब तक
- अज़हर फ़राग़


तेरी ख़बर मिल जाती थी
शहर में जब अख़बार न थे
- आशुफ़्ता चंगेज़ी

हम वहां हैं जहां से हम को भी
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती
- मिर्ज़ा ग़ालिब


हम ने कुछ गीत लिखे हैं जो सुनाना हैं तुम्हें
तुम कभी बज़्म सजाना तो ख़बर कर देना
- मंसूर उस्मानी

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