जिंदगी में हंसी हो तो बहुत सी मुश्किलें आसान हो जाती हैं । मुस्कुराता हुआ चेहरा इंसान की जिंदादिली को दिखाता है । आप भी हंसी से परहेज न करें ।हिंदी कहानी लेखक का लॉकडाउन Hindi Shayarih
प्रेम जनमेजय
वे वरिष्ठ लेखक हैं । साहित्य में वरिष्ठ लेखक विशेषाधिकार प्राप्त जीव होता है , जिसे अध्यक्षता का अधिकार मिलता है , पुरस्कार पाने की योग्यता में वृद्धि होती है , भक्तों को बांटने के लिए रेवड़ियां मिलती हैं , आदि । हिंदी में वरिष्ठ लेखक होने के अनेक मापदंड हैं ।
कुछ सफेद बालों के कारण होते हैं । कुछ बाल रंगने के बावजूद उम्र के कारण होते है । कुछ चेलों चेलियों की संख्या के आधार पर होते हैं । प्राप्त सम्मान / पुरस्कार बताते हैं कि वरिष्ठ होने के लिए लेखक ने कितने जुगाड़ - युद्ध किए । साहित्य में पुरस्कारिया मोती चुनने वाला हंस , घर में मुर्गी होता है साहित्य में चाहे वह हाई कमांड हो , पर घर में पार्टी का तुच्छ कार्यकर्ता होता है ।
दूध , साग - सब्जी लाने , बच्चों को स्कूल छोड़ने जाने जैसे अनेक महत्वपूर्ण दायित्व वयोवृद्धों के ही होते हैं । बाजार में सब्जी लेते समय वरिष्ठ लेखक को प्रणाम कर कनिष्ठ साश्चर्य पूछता है ' प्रणाम गुरुवर ! आप यहां ... लाइए , मैं थैला पकड़ लेता हूं । ' ऐसे में वरिष्ठ केवल हैं ... हैं ... कर हिनहिनाता है । आजकल वरिष्ठ लेखक उदास है । कोरोना युग ने उसका लॉकडाउन कर दिया है । वैसे तो साहित्य के हर युग में लॉकडाउन का खेल चलता रहा है ! एक - दूसरे को डाउन करने के लिए अनेक वायरस अपनी लैब से छोड़े जाते हैं ।
साहित्य में लॉक लगाने वालों की कमी कहां है ! किसी के पास पुरस्कार न मिलने देने का ताला है , किसी के पास किताब को तुच्छ सिद्ध करने का , तो किसी के पास किताब न छपने देने का । वरिष्ठ लेखक को अमुक अखबार से , अमुक पत्रकार महोदय का फोन आया । लेखक महोदय पेट की कब्जियत मिटाने के लिए दो गिलास पानी पी चुके थे और तीसरा पीने की तैयारी में थे । तीसरे गिलास का एक बूंट अंदर गया ही था कि पानी गुल खिलने की सूचना देने लगा । तीसरा गिलास पानी का हो या फिर रसरंजनी का , गुल खिलाता ही है ।
-आप अमुक जी बोल रहे हैं ? -जी हां .... -अमुक अखबार से अमुक बोल रहा हूं ... एक परिचर्चा कर रहे हैं कि लॉकडाउन के समय में मशहूर लेखक क्या कर रहे हैं । आप मशहूर लेखक हैं , बताएं कि आप इस समय क्या कर रहे हैं ? -इस समय तो मैं नित्यकर्म की तैयारी कर रहा हूं । -नित्यकर्म ! -टॉयलेट ... टॉयलेट जाने की तैयारी कर रहा हूं ।
पत्रकार का दुर्गंध पीड़ित स्वर बोला- अच्छा ... आप निबटें ... पांच मिनट बाद करता हूं । ' उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना पत्रकार ने फोन बंद कर दिया । पत्रकार को दूसरा मशहूर लेखक निबटाना था ।
वरिष्ठ लेखक ने गाली बड़बड़ाई- ' कितनी जल्दबाजी है युवा पीढ़ी में ... शालीनता तो बची नहीं है , वरिष्ठ लेखक का कोई सम्मान नहीं ... यदि मना किया तो कुछ अनुनय - विनय करो ... यह. क्या कि फोन बंद कर दिया ... पत्रकारिता जल्दी रसाताल में जाने वाली है । उनकी कब्जियत रसातल में चली गई थी । पानी के तीन गिलास किसी पुरस्कार विहीन वरिष्ठ लेखक से निष्प्रभावी हो गए थे । गालिब ने कहा था- पहले आती थी हाले दिल पर हंसी और अब किसी बात पे नहीं आती । आज वरिष्ठ लेखक का हाल यह है- पानी देव की कृपा से जो आती थी ... अब कोई उम्मीद भर नहीं आती , कोई सूरत नजर नहीं आती ।
' लॉकडाउन के कारण साहित्य बंदी झेल रहा था । गोष्ठी बंद , पुरस्कार समारोह बंद , मुफ्त की विदेश यात्राएं बंद , कवयित्रियों के स्पर्श बंद तथा और कई आदि भी बंद थे । सम्मानजनक शॉल से संपन्न अलमारी किसी विरहिणी - सी बाट जोह रही थी । जमीनी लेखक के लिए जनता से जुड़ने का का सुअवसर था । बड़ी चुनौती ने जन्म ले लिया- पांच मिनट बाद पत्रकार के सामने अपने महिमागान के लिए शब्द पिरोने की चुनौती । लॉकडाउन के रचनाकर्म को तुच्छ और अपने रचनाकर्म को महान सिद्ध करने की चुनौती ।
बड़ी चुनौती के सामने छोटी चुनौती अक्सर मात खाती है । कोरोना काल बड़ी चुनौती का समय है , उसके समक्ष मजदूरों के पांव के छाले जैसी छोटी चुनौतियां मात खा गई हैं । लेखक में शब्दों का वायरस जन्म ले रहा था । कोरोना वायरस ने मनुष्य की जिंदगी को उतना दूभर नहीं किया है , जितना फोन वायरस ने । मोबइल देवता की कृपा से लॉकडाउन में लेखक प्रसन्न है । फेसबुक , व्हाट्सएप , यू - ट्यूब पर गोष्ठियों का वायरस फैला है । लेखन की कब्जियत दूर हो गई है । रचनाओं के दस्त हो रहे हैं । हे कोरोना ! तुम जाना पर हिंदी साहित्य को समृद्ध करने , फिर आना ।