
Manzar Shayari,आंखों के सामने से जो कुछ भी गुज़रता है वही मंज़र में तब्दील हो जाता है। कुछ मंज़र हम भूल जाते हैं और कुछ यादों के साथ रह जाते हैं। अलग-अलग मंज़रों पर शायरों ने अपने अल्फ़ाज़ लिखे हैं। Read more about manzar sher, manzar shayari, manzar par sher on hindi shayari h
हर मंज़र के अंदर भी इक मंज़र है
देखने वाला भी तो हो तैयार मुझे
- अतीक़ुल्लाह
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ख़्वाहिश है कि ख़ुद को भी कभी दूर से देखूँ
मंज़र का नज़ारा करूँ मंज़र से निकल कर
- सऊद उस्मानी
कोई दिलकश नज़ारा हो कोई दिलचस्प मंज़र हो
तबीअत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती
- शकील बदायुनी
वो अलविदा का मंज़र वो भीगती पलकें
पस-ए-ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है
- शकेब जलाली
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उस आइने में था सरसब्ज़ बाग़ का मंज़र
छुआ जो मैं ने तो दो तितलियाँ निकल आईं
- लियाक़त जाफ़री
प्यास बुझ जाए ज़मीं सब्ज़ हो मंज़र धुल जाए
काम क्या क्या न इन आँखों की तेरी आए हमें
- अब्दुल अहद साज़
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दुनिया-भर में जितने मंज़र अच्छे हैं
उन का हुस्न और शोर हवा का तेरे नाम
- ताजदार आदिल
कभी दिखा दे वो मंज़र जो मैं ने देखे नहीं
कभी तो नींद में ऐ ख़्वाब के फ़रिश्ते आ
- कुमार पाशी
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सारे मंज़र में समाया हुआ लगता है मुझे
कोई इस शहर में आया हुआ लगता है मुझे
- अज़हर अदीब
खुला न उस पे कभी मेरी आँख का मंज़र
जमी है आँख में काई कोई दिखाए उसे
- सिद्दीक़ शाहिद
सारे मंज़र हसीन लगते हैं
दूरियाँ कम न हों तो बेहतर है
- साबिर
मंज़र था राख और तबीअत उदास थी
हर-चंद तेरी याद मिरे आस पास थी
- वज़ीर आग़ा