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Paatal Lok Review:- अनुष्का और सुदीप की जुगलबंदी ने बसाया धमाकेदार पाताल लोक, जयदीप ने जमा दिया रंग -

Paatal Lok Review:- कहानी इस सीरीज की इतनी सी है कि एक बड़े टीवी पत्रकार की कथित तौर पर हत्या करने निकले चार अपराधी स्पेशल सेल के निशाने पर होते हैं। Read latest hindi news (हिंदी शायरी एच ) on amazon, amazon prime, paatal lok




पाताल लोक (वेब सीरीज) Amazon Videos Series
पाताल लोक (वेब सीरीज) - HINDI SHAYARIH



डिजिटल रिव्यू: पाताल लोक (वेब सीरीज)
कलाकार: जयदीप अहलावत, नीरज कबी, अभिषेक बनर्जी, इश्वाक सिंह, निहारिका लायरा दत्त, आकाश खुराना, विपिन शर्मा, राजेश शर्मा, जगजीत संधू, गुल पनाग और अनूप जलोटा आदि।
निर्देशक: अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय
सृजनकर्ता: सुदीप शर्मा
ओटीटी: प्राइम वीडियो
रेटिंग: ****

Paatal Lok Review:- अभी 11 मई को अमिताभ बच्चन की फिल्म जंजीर के रिलीज होने की सालगिरह खूब धूमधाम से हर तरफ मनी। बड़े बच्चन ने भी इंस्टाग्राम पर फिल्म का एक जोरदार पोस्टर शेयर किया। जयदीप अहलवात का किरदार हाथीराम चौधरी प्राइम वीडियो की नई सीरीज पाताल लोक में ज्यादातर हंगामा निलंबित पुलिस अफसर के तौर पर ही करता है। ठीक वैसे ही जैसे जंजीर का विजय खन्ना। विजय खन्ना भी जाट होता। उसकी भी शादी के बाद एक बेटा हो चुका होता जो उसकी सुनता ही नहीं। तो विजय भी बिल्कुल हाथीराम जैसा होता।




जिस दिन पाताल लोक के स्क्रीनर्स (रिलीज होने से पहले समीक्षकों को भेजी जाने वाली सामग्री) आए, मैंने रात में सोचा कि एक एपीसोड देखकर बाकी सुबह देखता हूं। लेकिन, पहला एपीसोड देखने के बाद रहा नहीं गया और सुबह हो गई आखिरी एपीसोड तक आते आते। कहानी इस सीरीज की तहलका वाले संपादक तरुण तेजपाल की उस किताब से प्रेरित है, जिसमें वह अपने तथाकथित कातिलों की कहानी सुनाते हैं। इधऱ हाल में मुंबई में भी एक टीवी पत्रकार पर हमला हुआ। दिल्ली के एक टीवी पत्रकार को पड़ोसी मुल्क से धमकी मिली। तीनों का तालमेल इतना निराला है कि ये सीरीज देखते समय आपको कई बार ये शक़ होने लगेगा कि कहीं ये सब इस सीरीज के प्रचार के लिए ही तो नहीं रचा गया।







ख़ैर, कहानी इस सीरीज की इतनी सी है कि एक बड़े टीवी पत्रकार की कथित तौर पर हत्या करने निकले चार अपराधी स्पेशल सेल के निशाने पर होते हैं। चारों का जहां एनकाउंटर होना तय होता है वहां किसी टीवी चैनल की एक ओबी वैन खड़ी होती है। मामला उल्टा पड़ जाता है। स्पेशल सेल वाले नजदीकी थाने के निहायत गऊ टाइप इंस्पेक्टर को ये केस देकर मामला ‘क्लोज’ कर देना चाहते हैं। लेकिन गाय का अगर मूड न हो तो बड़े बड़े बाहुबली उसका दूध नहीं निकाल सकते। बस वैसा ही कुछ हाथीराम के साथ हो गया। साथी उसका इमरान अंसारी नाम का दरोगा है जो आईएएस की तैयारी में लगा है और नए हिंदुस्तान में बात बेबात अपने मुसलमान होने के ताने सुनता रहता है।


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पाताल लोक (वेब सीरीज)




तो हाथीराम को धुन सवार हो जाती है मामले की तह तक जाने की। वह चारों हमलावरों की हिस्ट्रीशीट खोजना शुरू करता है। और शुरू होती है हिस्ट्री बदलते भारत की। पंजाब में दलितों पर अगड़ों के अत्याचार की कहानी है। एक दलित के बागी होने के बाद उसकी मां के साथ सामूहिक बलात्कार की कहानी है। दिल्ली में निजामुद्दीन स्टेशन के आसपास पनपते बाल यौन उत्पीड़न की कहानी है। एक मुसलमान के जेब में अपना सर्टिफिकेट लेकर घूमने की कहानी है और कहानी है उस इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की जिसे सिर्फ चटखारे लेने की आदत पड़ चुकी है। जहां, दीन, धर्म, ईमान सब पैसा है।


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कुणाल खेमू की फिल्म सुपरस्टार से 2008 में शुरू हुए राइटर सुदीप शर्मा का ये पाताल लोक उनका बेहतरीन काम है। एनएच 10, उड़ता पंजाब और सोनचिड़िया सरीखा चुस्त, चौकस काम। निर्देशन भी इस बार उनके काबू में हुआ तो असर दिख रहा है। सामाजिक मुद्दों की फटी जेबें टटोलती ये कहानी बीच चौराहे पर सिस्टम के कपड़े उतार देती है। अपनी बहनों के बलात्कार का बदला लेने के लिए विपिन त्यागी का हथौड़ा त्यागी बनना हो और फिर उसका सूबे की राजनीति में इस्तेमाल होना हो या हर सही झूठी बात पर अपने बाप से पिटता दलित तोप सिंह जो एक दिन अपनी बेइज्जती का बदला लेने की ठान बैठता है। यहां एक दरमियां का अपराधियों के साथ घूम उन पर से पुलिस की नजरें बचाए रहने का दांव भी है और है एक बिल्डर के दफ्तर में हर कर्मचारी का तलरेजा प्रणाम। शिलापूजन के समय से शुरू हुई देश की राजनीति की बखिया उधेड़ती कहानी इस क्लाइमेक्स पर आकर रुकती है कि अगर आप कुत्तों से प्रेम करते हैं तो आप इंसान अच्छे हैं।



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टीवी जर्नलिस्ट संजीव मेहरा के कत्ल की साजिश कहानी के रूप में गोली की तरह छूटती पाताल लोक की कहानी आखिरी एपीसोड तक धीमी नहीं पड़ती है। हर एपीसोड में ड्रामा है, एक्शन है, इमोशन है और है बस एक थप्पड़। वो थप्पड़ जो इंस्पेक्टर अपनी बीवी को मारता है और बीवी बजाय इस पर फीचर फिल्म जितना इंतजार करने के उसके घर लौटते ही उसे सड़क पर ही एक करारा थप्पड़ जड़कर हिसाब बराबर कर देती है, हाथ के हाथ। पाताल लोक की हकीकत के करीब बने रहने की यही कोशिश इसकी संजीवनी है।



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अभिनय के लिहाज से यहां कोई किसी से कम नहीं है। पांच साल से बन रही ये सीरीज कई लोगों के करियर का बूस्टर बनने वाली है। जयदीप अहलावत ने सीरीज में वाकई बड़े होकर अमिताभ बच्चन बनने लायक काम किया है। 39 के वो हैं अभी और अगले 20 साल ऐसे ही काम करते रहे तो उनका बड़ा नाम होने वाला है। नीरज कबी न पूरे हीरो हैं यहां और न पूरे विलेन। मेहनत से ऊपर तक पहुंचे किसी पत्रकार के फाइव स्टार होटल में रात बिताने और मर्सिडीज में घूमने में बुराई नहीं है। बुराई है जब वह दर्शकों से मिले भरोसे का सौदा करके उसी चैनल के मालिकान में शामिल हो जाता है जिसने उसे शोहरत, इज्जत और दौलत बख्शी। मौजूदा दौर के टीवी न्यूज के अलमबरदारों को करीब से जानने के बाद समीर मेहरा का ये किरदार बिल्कुल असली सा और जाना पहचाना लगता है।

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पाताल लोक (वेब सीरीज)


जिन चार किरदारों की तफ्तीश पर पूरी सीरीज टिकी है उनमें हथौड़ा त्यागी के किरदार में अभिषेक बनर्जी अव्वल नंबर रहे। दूसरे नंबर पर रहने के लिए कांटे की टक्कर रही एक दलित पंजाबी का किरदार करने वाले जगजीत संधू और दरमियां किरदार में मेयरेम्बाम रोनाल्डो सिंह के बीच। दोनों के किरदार में गजब का ग्राफ है और दोनों ने हर बदलते सीन में अपना रंग जमाया है। सीरीज में विपिन शर्मा, गुल पनाग, राजेश शर्मा, आकाश खुराना, स्वस्तिका मुखर्जी, निहारिका लायरा दत्त, आसिफ खान, अनूप जलोटा सबने अपना अपना काम अपने नाम के हिसाब से कर दिया है। खास उल्लेख करने लायक यहां दो नाम और हैं। एक हैं चंदा बनी अनिंदिता बोस, जिनका दमदार त्रिया चरित्र सीरीज के कांटे खोलने में मदद करता है। और, दूसरे हैं इश्वाक सिंह। आमिर खान की फिल्म सरफरोश में सलीम बने मुकेश ऋषि की खूब याद आती है, इश्वाक का अभिनय देखकर। जोगी मलंग के खजाने का ये वो हीरा है जिस पर सिनेमा के बड़े जौहरियों की नजर पड़ना अभी बाकी है।

Anushka Sharma
Anushka Sharma 



अभिनेत्री से फुल टाइम निर्माता बनीं अनुष्का शर्मा की इस सीरीज में कुछ खामियां भी हैं। मसलन हथौड़ा त्यागी की असुरों वाली कुंडली वाला सीक्वेंस पूरा का पूरा अरशद वारसी की सीरीज असुर में पहले ही दिख चुका है। यहां भी एक हर जगह मौजूद गुरुजी हैं, वहां भी रूप बदलते रहने वाला कलि था। अनाथ चीनी को निजामुद्दीन स्टेशन पहुंचाने वाली ट्रेन का नंबर 14056 है लेकिन रेलगाड़ियों के नंबर बीस पचीस साल पहले पांच अंकों में नहीं हुआ करते थे। ये कांड 20 दिसंबर 2010 को हुआ है रेलवे में। बाकी सब ठीक है, रियलिटी आधारित सीरीज बनानी हो तो कंसल्टेंट का पढ़ा लिखा होना और हिंदुस्तान की रग रग से वाकिफ होना इसीलिए जरूरी है।


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