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Taurad: All Part Hindi Kahani तोरण: भाग 1

Taurad: All Part Hindi Kahani  तोरण: भाग 1
Taurad: All Part Hindi Kahani  तोरण 



तोरण: गोयनकाजी की लड़की की शादी है. बरात को होटल राजहंस में ठहराया गया है. बींद यानी दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर व सभी बरातियों को रोशनियों के घेरे में नगर का परिभ्रमण कराते हुए ‘तोरण’ के लिए गोयनकाजी की कोठी पर ले जाया जाएगा.
महावीर राजी की कहानी 



पाखी मुरगे की तरह गरदन ऊंची कर के विहंगम दृष्टि से पूरे परिवेश को निहारती है. होटल राजहंस का बाहरी प्रांगण कोलाहल के समंदर में गले तक डूबा हुआ है. बरातीगण आकर्षक व भव्य परिधान में बनठन कर एकएक कर के इकट्ठे हो रहे हैं. गोयनकाजी जरा शौकीन तबीयत के इंसान हैं. इलाके के किंग माने जाते हैं. पास के मिलिटरी कैंट से आई बढि़या नस्ल की घोड़ी को सलमासितारों व झालरलडि़यों के अलंकरण से सजाया जा रहा है. बाईं ओर सलीम बैंड के मुलाजिम खड़े हैं गोटाकिनारी लगी इंद्रधनुषी वरदियों में सज्जित अपनेअपने वाद्यों को फिटफाट करते. मकबूल की सिफारिश पर पाखी को सलीम बैंड में लाइट ढोने का काम मिल जाता है. इस के लाइट तंत्र में 2 फुट बाई 1 फुट के 20 बक्से रहते हैं. हर बक्से पर 5 ट्यूबलाइटों से उगते सूर्य की प्रतीकात्मक आकृति, दोनों ओर 10-10 बक्सों की कतारें. सभी बक्से लंबे तार द्वारा पीछे पहियों पर चल रहे जनरेटर से जुड़े रहते हैं.

मकबूल, इसलाम और शहारत तो पाखी की बस्ती में ही रहते हैं. मकबूल ड्रम को पीठ पर लटकाता है तो अचानक उस की कराह निकल जाती है. ‘‘क्या हुआ, मकबूल भाई?’’ पाखी पूछ बैठती है, ‘‘यह कराह कैसी?’’

‘‘हा…हा…हा…’’ मकबूल हंस पड़ता है, ‘‘बाएं कंधे पर एक फुंसी हो गई है. महीन हरी फुंसी…आसपास की जगह फूल कर पिरा रही है. ड्रम का फीता कम्बख्त उस से रगड़ा गया.’’

‘‘ओह,’’ पाखी बोलती है, ‘‘अब ड्रम कैसे उठाओगे? फीता फुंसी से रगड़ तो खाएगा.’’

‘‘दर्द सहने की आदत हो गई है रे अब तो. कोई उपाय भी तो नहीं है,’’ मकबूल फिर हंस पड़ता है, ‘‘तू बता, तेरी तबीयत कैसी है?’’

‘‘बुखार पूरी तरह नहीं उतरा है, भैया. कमजोरी भी लग रही है. पर हाजरी के सौ टका के लालच में आना पड़ा,’’ पाखी भी मुसकरा पड़ती है.

‘‘तेरा हीरो कहां है रे, दिखाई नहीं पड़ रहा?’’ मकबूल ने पाखी की आंखों में झांकते हुए ठिठोली की.

हीरो की बात पर पाखी के चेहरे पर लज्जा प्रकट हो जाती है और मुंह से निकल पड़ता है, ‘‘धत्…’’ होटल से थोड़ी दूर पर ही झंडा चौक है, नगर का व्यस्ततम चौराहा. बाईं ओर बरगद के पेड़ के पास लखन की चायपान की गुमटी है. गुमटी की बाहरी दीवार पर एक पुराना आईना छिपकली की तरह चिपका हुआ है. आईने में आड़ेतिरछे 2-3 तरेड़ पड़े हैं. इसी तरेड़ वाले आईने के सामने खड़ा है गोबरा. गोबरा यानी पाखी का हीरो. वह खीज से भर उठता है, ‘‘ये लखन भी न… हुंह. नया आईना नहीं ले सकता?’’ फिर पैंट की पिछली पौकेट से कंघी निकाल कर देर तक बाल झाड़ता रहता है. कंघी के 2-3 दांते टूटे हुए हैं. आखिर जब उसे इत्मीनान हो जाता है कि बाल रणबीर कपूर स्टाइल में सैट हो गए तो कंघी को पिछवाड़े की जेब में ठूंसता हुआ तेजतेज कदमों से होटल राजहंस की ओर लपक जाता है.

गोयनकाजी की लड़की की शादी है. बरात को होटल राजहंस में ठहराया गया है. बींद यानी दूल्हे को घोड़ी पर बैठा कर व सभी बरातियों को रोशनियों के घेरे में नगर का परिभ्रमण कराते हुए ‘तोरण’ के लिए गोयनकाजी की कोठी पर ले जाया जाएगा. पूरा होटल किसी नवेली दुलहन की तरह मुसकरा रहा है. गोबरा पाखी के करीब आ जाता है. गोबरा बाईं आंख दबा कर पाखी को कनखी मारता हुआ मुसकरा देता है. गोबरा को देखते ही पाखी के चेहरे पर भी खिली धूप सी उजास फैल जाती है. गोबरा के और उस के बप्पा दोस्त हैं. गोबरा पास की बस्ती में रहता है. घरेलू संबंध रहने से एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता है. मन ही मन दोनों का टांका भिड़ गया है. नगर के उत्तरी छोर पर जंगल के पास मिट्टी का एक टीला है. दोनों अकसर घनी झाडि़यों के बीच शाम के झुटपुटे में मिला करते हैं. गोबरा उसे बांहों में भर कर फुसफुसाता है, ‘तेरे सामने तो बंबई वाली सोनाक्षी भी पानी भरती है रे…’

‘‘अरे भाई मास्टर…जब तक बींद राजा बाहर नहीं आ जाते, एकाध गाने का धमाका ही क्यों न हो जाए,’’ बींद के पिता दूर से फटे बांस के सुर में चीख पड़ते हैं, ‘‘इस जानलेवा उमस का एहसास कुछ तो कम हो.’’ सलीम मास्टर एक नजर साथियों की ओर देखते हैं. सभी अपनेअपने वाद्यों के साथ चाकचौबंद हैं. आंखों में संतुष्टि के भाव लिए वे दायां हाथ ऊपर उठा कर चुटकी बजाते हुए पूरे लश्कर के पीछे खड़े जनरेटर वाले को संकेत देते हैं तो दूसरे ही पल जनरेटर चालक पूंछ फटकारता हरकत में आ जाता है. देखते ही देखते प्रकाश तंत्र का हर स्तंभ रोशनी से जगमगाने लगता है. पाखी भी आंचल कमर में खोंसती गमछे को सिर पर रखती है और ट्यूब वाले बक्से को ऊपर उठा लेती है. अन्य औरतें भी ऐसा ही करती हैं. सतह से ऊपर उठते ही ट्यूबों की दूधिया रोशनी में होटल राजहंस का प्रांगण जगमगा उठता है.







तोरण: भाग 2
पाखी की हसरतभरी नजरें भी बींद की ओर उठ जाती हैं. आह, प्रकृति ने कैसा लाललाल भराभरा चेहरा दिया सेठ लोगों को. दिमाग में एक चुहल कौंधती है. अगर इस दूल्हे के संयोग से उसे बच्चा हो जाए तो कैसा होगा उस का रूपरंग और नाकनक्श? उन के आदिवासियों में तो अधिकांश लोग स







मास्टर के संकेत पर सुलेमान बेंजो पर ‘तू चीज बड़ी है मस्त…’ की धुन छेड़ देते हैं. मास्टर की उंगलियां क्लेरिनेट पर थिरकने लगती हैं. धुन की लय पर बरातियों के पावों में अदृश्य थिरकन शुरू हो जाती है. कुछ उत्साही युवक लोगों को ठेलठाल कर गोलवृत्त बना लेते हैं और वृत्त के भीतर गाने की धुन पर डांस शुरू कर देते हैं. उन के बदन का हर अंग कमर, बांह, कूल्हे, टांगें वगैरा बेतरतीब झटकों से हवा में मटकने लगते हैं. गोबरा हंस पड़ता है, बुदबुदाने लगता है, ‘ले हलुवा, ई भी कोई डांस है. इस से अच्छा डांस तो हम कर सकता है. डांस सीखने के लिए ही तो परभूदेवा का फिलिम वह 15 बार देखा था. पर मुसीबत है कि डांस करें कहां? घेरे के भीतर घुसना मुमकिन नहीं. शक्लसूरत और कपड़ालत्ता है ही ऐसा कि दूर से ही चीह्न लिया जाएगा.’ पर उस का उत्साही मन नहीं मानता. होटल की दाईं ओर पतली गली है, अंधेरी और सुनसान. अधिक आवाजाही नहीं है उधर. ‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त’ की धुन हलकी हो कर मंडरा रही है उस जगह. गोबरा वहां आ जाता है और पूरी तन्मयता के संग धुन पर बदन थिरकाने लगता है. आत्ममुग्ध, ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…’ जैसा ही उन्माद. नीम अंधेरे में नाचता हुआ वह ऐसा लग रहा था जैसे कोई पागल हवा में हाथपांव मार रहा हो. तभी गाना खत्म हो गया. बैंड की चीख एक झटके के साथ थम जाती है. चेहरे पर संतुष्टि की आभा लिए इठलाता हुआ गोबरा फिर पाखी के पास आ जाता है. पाखी उस के नाच के प्रति उन्माद को खूब समझ रही है. मुसकरा कर उस को प्रशंसात्मक बधाई देती है. थोड़ी देर में ही मुख्यद्वार पर दोस्तों से घिरा बींद यानी दूल्हा प्रकट होता है. बरातियों समेत सभी लोगों की नजरें उत्सुकता से बींद की ओर उठ जाती हैं. जरी की कामदार शेरवानी और रेशमी चूड़ीदार, माथे पर कलगी लगा साफा, कमर में लाल रेशम की कमरबंद, गले में मोतियों की कंठमाला, पीछे जरी की नक्काशी वाला बड़ा सा छत्र उठाए हुए है सांवर नाई. एक पल के लिए गोबरा की आंखें चुंधिया गईं, ई कौन है बाप, दूल्हा है…या रणबीर कपूर…या फिर श्रीमान गोबरा मुंडा. एकदूसरे को अतिक्रमित करते 3 साए गोबरा के जेहन में गड्डमड्ड होने लगते हैं.

इधर, पाखी की हसरतभरी नजरें भी बींद की ओर उठ जाती हैं. आह, प्रकृति ने कैसा लाललाल भराभरा चेहरा दिया सेठ लोगों को. दिमाग में एक चुहल कौंधती है. अगर इस दूल्हे के संयोग से उसे बच्चा हो जाए तो कैसा होगा उस का रूपरंग और नाकनक्श? उन के आदिवासियों में तो अधिकांश लोग सांवले होते हैं. उपलों जैसे होंठ और पकौड़े जैसी नाक वाले. गोबरा भी वैसा ही है. मन ही मन हंस पड़ती है वह. ट्रम्पेट थामे सुलेमान चचा बींद को देखते हैं तो एक झपाके से खुली आंखों में कुछ कोलाज कौंधने लगते हैं. रजिया 30वें वर्ष को छूने वाली है. काफी भागदौड़ के बावजूद कोई ढंग का लड़का नहीं मिल सका अब तक. एकाध जगह बात आगे बढ़ी तो मामला दहेज की ऊटपटांग मांग पर आ कर खारिज हो गया. चचा की तबीयत भी ठीक नहीं रहती इन दिनों. ट्रम्पेट में थोड़ी देर हवा फूंकते ही सांस उखड़ने लगती है. सलीम साहब कई बार उन्हें रिटायर कर देने की चेतावनी दे चुके हैं. चचा ने उन से वादा कर रखा है कि किसी तरह रजिया के हाथ पीले कर दें, फिर वे स्वयं बैंड से छुट्टी ले लेंगे. दहेज के लिए पैसे जुट जाएं, बस. बींद धीरेधीरे हाथी की चाल से चलता हुआ घोड़ी के पास आता है. घोड़ी उसे ‘टाइगर हिल्स’ की तरह लगती है, जिस पर चढ़ पाना टेढ़ी खीर है उस के लिए. बींद के पिता घोड़ी वाले साईस के कान में कुछ फुसफुसाते हैं. साईस घुटनों के बल नीचे झुक जाता है और फिर उस के कंधे पर पांव रखते हुए 3-4 प्रयासों के बाद आखिरकार बींद घोड़ी पर सवार हो जाने में सफल हो जाता है. उस के घोड़ी पर बैठते ही पिता, जिन के हाथ में सिक्कों से भरी थैली झूल रही थी, ने थैली से मुट्ठी भर सिक्के निकाले और बींद पर उछाल दिए.

जा…जिस पल का इतनी देर से इंतजार था, वह अचानक इस तरह आ जाएगा, यह बात गोबरा ने सोची भी न थी. वह उछाल भर कर सिक्कों पर चील की तरह झपट्टा मारता है. इसी बीच, पैसा लूटने वालों की छोटी सी भीड़ जमा हो जाती है वहां. टेपला, गोबिन, नरेन, सुक्खू इन सब को तो वह पहचानता है. और भी दूसरी बस्ती के कई नए चेहरे. एक हड़कंप सा मच जाता है घोड़ी के इर्दगिर्द. एकदूसरे को धकियातेठेलते सिक्कों को लूटने के लिए आतुर लड़के. फिर सबकुछ शांत हो जाता है. गोबरा पाखी के करीब आ कर मुट्ठी खोलता है. आंखों में चमक भर जाती है. 22 रुपए. छोटे सिक्के एक भी नहीं, सब 2 और 5 के सिक्के. बींद का पूरा लावलश्कर मंथर गति से आगे सरकने लगता है. पैसे लूटने वालों की भीड़ भी बरातियों के बीच में छिप जाती है.










तोरण: भाग 3
पाखी की गोद से चिंटू को झपट कर उस का पिता पागलों की तरह चूमने लगता है. पाखी चिंटू के पिता को देखती है तो हड़क जाती है, ‘अरे, यह तो वही मरदूद है जो अश्लील फिकरे कसने में सब से आगे था.’ पाखी से नजरें मिलते ही युवक का चेहरा भी सफेद पड़ जाता है.







झंडा चौक के पास आ कर बरात ठहर जाती है. बैंड पर इस समय ‘मेरा यार बना है दूल्हा…’ की धुन बज रही है. नीचे घेरे के बीच नाचते युवकों की लोलुप नजरें अनायास ही घरों के कोटरों से निकल कर बरात देखने निकली युवतियों पर आ गिरती हैं. एक युवक सलीम मास्टर के कान के पास जा कर कुछ अबूझा सा संकेत देता है. आननफानन ‘मेरा यार बना है दूल्हा…’ की धुन बीच में तोड़ दी जाती है और ‘सरकाय लो खटिया…’ पूरे धमाके के साथ बैंड पर थिरकने लगती है. गाने की सनसनाती लय पर घेरे के बीच खड़े युवकों का तथाकथित ब्रेक डांस शुरू हो जाता है. बेतरतीब लटकेझटके, हिचकोले खाते अंगप्रत्यंग. लगता है अभी सेठ को पैसा उछालने में देर है. गोबरा मुरगे की तरह गरदन ऊंची कर के सामने के पूरे नजारे का सिंहावलोकन करता है. लाइट ढोती औरतों के ब्लाउज पसीने से पारदर्शी हो उठे हैं. लगातार 2 घंटों से हाथ उठा कर लाइट के बक्सों को थामे रखने की पीड़ा उन के चेहरों पर छलकने लगी है. गोल घेरे के बीच जहां युवक उछलकूद मचाए हुए हैं, फनाफन कपड़े पहने एक बराती प्रकट होता है. शायद बींद का करीबी रिश्तेदार है. 10-10 रुपए के 5 नोट जेब से निकालता है और नाचते युवकों के सिर पर से उतारते हुए सलीम मास्टर को थमा देता है. क्षणांश में अन्य रिश्तेदारों में होड़ मच जाती है और वे भी एकएक कर के घेरे में आआ कर 10 व 20 रुपए के दसियों नोट हवा में लहरालहरा कर सलीम मास्टर को थमाने लगते हैं. इस तरह सलीम मास्टर पर नोट बरसते देख कर सुलेमान चचा का कलेजा मुंह को आने लगता है. अपने बेसुरे ट्रम्पेट को देखते उन की आंखें क्रोध से सुलगने लगती हैं. काश, कुछ रकम बतौर इनाम उन्हें भी मिल जाती.

तभी गोबरा की नजर उठती है, बींद का पिता थैली में हाथ डाल रहा है. वह चौकन्ना हो जाता है. भीतर गया हाथ मुट्ठी बन कर बाहर निकलता है और बींद के ऊपर झटके से खुल जाता है. गोबरा बिजली की फुरती से जमीन पर लोट कर हाथपांव चलाने लगता है. थैली में हाथ के घुसने और बाहर आ कर खुल जाने की यह क्रिया कई बार होती है. अचानक 5 रुपए का एक सिक्का घोड़ी की पिछली टांग के एकदम करीब आ कर गिरता है. गोबरा की आंखों में एकमुश्त जुगनुओं की चमक भर जाती है. सिक्के पर नजर गड़ाए वह कलाबाजी खाते हुए उछाल भरता है. सिक्का बेशक कब्जे में आ जाता है, पर उस के घुटने व कोहनी बुरी तरह छिल जाते हैं. लहरा कर तेजी से गिरने से असंतुलित बदन रोकतेरोकते भी घोड़ी की पिछली टांग से टकरा ही जाता है. कैंट की कद्दावर घोड़ी को भला यह अपमान कैसे बरदाश्त हो? एक ‘गधा’ तो पहले से ही उस पर लदा हुआ है, दूसरे ने टांग पर धक्का मार दिया. भड़क कर हिनहिनाती हुई पिछली टांग से वह जो दुलत्ती झाड़ती है तो सीधी गोबरा की आंख के पास लगती है. एक बारगी बदन सुन्न हो जाता है पीड़ा से. धमाचौकड़ी और होहल्ले के बीच किसी का ध्यान ही नहीं जाता उस की ओर. पूरी बरात ऊपर से गुजर जाती है और वह प्रसादजी के ‘विराम चिह्न’ की मानिंद पड़ा रहता. लेकिन थोड़ी देर में ही फिजिक्स की तरह स्वयं को संयत करता खड़ा हो जाता है वह. दर्द की लहर से बाईं आंख खुल नहीं रही. टटोल कर देखता है, आंख के पास गूमड़ उभर आया है, जिस की वजह से आंख सूज कर सिकुड़ जाती है. मुंह से भद्दी गाली बकता तेजी से वह बरात के पीछे लपक पड़ता है.

इसी बीच, बरात मंदिर चौक के पास पहुंच जाती है. गोबरा भीड़ में जगह बनाता पाखी के करीब आ जाता है. पाखी उस के गूमड़ को देख कर चिहुंक ही तो पड़ती है, ‘‘उफ, तू पईसा लूटने का काम काहे करता है रे? बस स्टैंड पर अच्छाखासा कमा तो रहा है.’ गोबरा हंस पड़ता है, ‘‘अरे, देश के नेता और अफसर लोग सरकारी खजाने से करोड़ोंकरोड़ लूट रहे हैं कि नहीं, अयं? हम फेंका हुआ 10-20 टका लूट लिए तो क्या हो गया?’’ पाखी सकपका जाती है, ‘‘ऊ बात तय है. हमरा मतलब, पईसा लूटने में केतना जोखिम है, सो देखते, एक सूत भी ऊपर लग जाता तो?’’ गोबरा छोटी आंख को और छोटी कर के कनखी मारता मुसकरा देता है, ‘‘जोखिम तो हर काम में है. तेरे लिए हम हर जोखिम उठा सकते हैं न.’’ बैंजो और क्लेरिनेट पर इस समय ‘चोली के पीछे…’ की धुन थिरक रही है और इस के मारक स्वर के सम्मोहन में बंधा हर छोटाबड़ा बराती अपनेअपने जेहन के खंडहरी एकांत में चोलियों की चीड़फाड़ में लग पड़ता है. लगातार श्रम की वजह से पाखी के चेहरे पर स्वेद कण उभर आए हैं. दोनों हाथ ऊपर उठे हैं, लाइट का बक्सा थामे हुए. दायां हाथ उतार कर पसीना पोंछना ही चाहती है कि बक्सा असंतुलित हो कर डगमगाने लगता है. पाखी झटके से हाथ ऊपर उठा लेती है. इस कवायद में बगल के पास ब्लाउज उधड़ जाता है. पाखी अकबका जाती है. चेहरा लज्जा से लाल हो उठता है. सांसें तेजतेज चलने लगती हैं.

‘‘लो यार,’’ उस के पीछे चल रहे युवा बरातियों की नजरें इस हादसे को कैच की तरह लपक लेती हैं, ‘‘चोली के पीछे के राज को दिखाने का इंतजाम भी कर रखा है गोयनका साहब ने. वाह…’’ इस टिप्पणी पर गोबरा के भीतर बैठा रणबीर कपूर पिनक कर खड़ा हो जाता है, ‘अभी इन ससुरों को हवा में उछाल कर ‘किरिस’ (कृष) वाला ऐक्शन दिखाते हैं, हूंह.’ पर पाखी आंखों के संकेत से उसे संयत रहने का अनुरोध करती है. वह सोचती है, ‘दू साल पहले जब मालती मैडम के यहां झाड़ूपोंछा का काम करती थी, यह ब्लाउज मिला था बख्शिश में. घिसा हुआ तो तभी था. कई बार सोचा कि नया ब्लाउज ले लेगी हाट से. पर ऐनवक्त पर कोई न कोई अड़चन आ खड़ी होती.’ युवकों की उत्तेजना आंच पर चढ़े दूध की तरह उफनती चली जाती है. एक के बाद दूसरा, अश्लील फिकरे गुगली से उछलते रहते हैं. बरात जगहजगह रुकती, नाचती, जश्न मनाती हुई नगर परिभ्रमण करने के बाद आखिरकार गोयनकाजी की कोठी पर आ पहुंचती है. सारी औरतें पंडाल के सुदूर बाएं कोने के नेपथ्य में अपनेअपने लाइटबौक्स जमा करा देती हैं. बैंड का मैनेजर सभी को हाजिरी थमा देता है. पाखी पैसे ले कर गेट की ओर बढ़ने को उद्यत होती ही है कि अचानक वे ही युवक जो सारी राह पाखी पर फिकरे कसते आए थे, वहां जिन्न की तरह प्रकट हो जाते हैं, ‘वाह फ्रैंड्स, लुक, दैट चोली गर्ल कमिंग.’ नशे के वरक में लिपटी उन की लरजती आवाज.

 

‘‘गर्ल?’’ सम्मिलित लिजलिजा ठहाका, ‘‘अरे विमेन बोलो यार, अ फुल फ्लैशी विमेन…’’ फिर एक ‘हवाई किस’ पाखी की ओर गुगली की तरह उछल आता है. पाखी के भीतर जैसे एक भट्ठी सी सुलग उठती है. आंखें हिंसक क्रोध से रक्ताभ हो जाती हैं. सधे कदमों से चल कर वह युवकों तक आती है, ‘‘तुम दिकू लोगों में यही तो खासीयत है. आते हो एगो धोती और एगो लोटा ले कर. पर देखतेदेखते खदान वाला और कोठी वाला बन जाते हो. अच्छा तनी बोलो तो. आज का जो एतना बड़ा जलसा कामयाब हुआ, इस कामयाबी का असली हीरो कौन है? तुमरा वह भड़ुवा दूल्हा? नहीं…नहीं? इस कामयाबी का असली हीरो हैं सांसों की मशक्कत करते बैंड पार्टी के मुलाजिम, 10-10 किलो वाला लाइट बक्सा ढोने वाली हम औरतें, सारी राह दूल्हा का चौकसी रखने वाला घोड़ी का बूढ़ा साईस, पैसा लूटने वाले ई लौंडे, बरातियों की खातिरदारी में लगे गरीब बैरे, जोकर शक्तिमान का मेकअप सजाए हमारी बिरादरी के मासूम कलाकार, हुंह. अगर ये हीरो न होते तो…तो साहेब, कैसा जश्न और कैसा जलसा? सबकुछ कफन की तरह सादा और बेनूर हो जाता. आप सेठ लोग सिरिफ दौलत खा सकते हैं सिरिफ दौलत ही बाहर कर सकते हैं. ये शोरशराबा और ये खुशियाली तो, विश्वास करें, इन्हीं हीरो लोगों की वजह से संभव हो सकी है.’’

पाखी की सांसें उत्तेजना से फूल जाती हैं. युवक ऐसे अपमान से तिलमिला उठते हैं, ‘‘दो कौड़ी की लेबर, जबान चलाती है. आउट. वी से, गैटआउट.’’ इस के पहले कि बात बिगड़ती, कुछ बुजुर्ग बराती बीचबचाव कर के मामला शांत करवा देते हैं. पाखी संयत कदमों से गेट की ओर बढ़ने लगती है कि अचानक भीतर से अजीब सी अफरातफरी और भयाकुल कोलाहल के छोटेछोटे टुकड़े रुई के फाहों की शक्ल में उड़उड़ कर गेट के आकाश तक चले आते हैं. जश्न का सारा कोलाहल थम गया है. पाखी के पांव भी थम जाते हैं. चौकन्नी निगाहें मुड़ कर स्थिति का जायजा लेना चाहती हैं. तभी पता चलता है, गोयनका साहब का ढाई वर्ष का दोहिता चिंटू काफी देर से लापता है. बेटीदामाद मुंबई से आए हैं. अपरिचित जगह, पूरे पंडाल में और कोठी के भीतर तलाश लिया गया. मामला संगीन हो उठा है. चिंटू की मां का रोरो कर बुरा हाल है. इस आकस्मिक हादसे की वजह से सारा उत्सव और सारा उत्साह तली जा चुकी साबुत मछली की तरह स्पंदनहीन हो गया है. सामने बने भव्य स्टेज पर वरवधू हाथों में माला लिए चुप खड़े हैं. आतिशबाजियों की रौनक और बैंड वालों की धमक भी हवा हो चुकती है.

पाखी मुंह बिचका देती है, उस की बला से. अब उसे न तो सेठ से ही कोई मतलब है, न उन के दोहिते से. ‘‘तेरा चेहरा इतना तमतमाया हुआ काहे है?’’ बाहर उस के इंतजार में खड़ा गोबरा बोलता है.

‘‘भीतर फिर वैसा ही गंदा बोल बोल रहा था ऊ लोग…’’ पाखी फनफनाती है.

‘‘तू न रोकती तो यहां बवाल पहले ही खड़ा कर देते हम, हुंह,’’ गोबरा भुने चने की तरह भड़क उठता है.

‘‘हम भी कम नहीं हैं,’’ पाखी अब संयत हो चुकती है, ‘‘ऐसा झाड़ पिलाए हैं कि वे जिनगी भर नहीं भूलेंगे.’’ पाखी के आंचल के छोर में गोबरा अपनी दोनों जेबों का सामान उलट देता है. 80 रुपए की रेजगारी, पानपराग के 2 पाउच और मुट्ठीभर काजूकिशमिश के दाने. देख कर पाखी हंस पड़ती है, ‘‘और ई सब में मेरे ये सौ टका.’’ धीरेधीरे चलते दोनों पहले मंदिर चौक, फिर झंडा चौक और फिर सुदूर इंद्रपुरी चौक के पास आ जाते हैं. ‘‘कल सब से पहले एक नया ब्लाउज खरीदना, ठीक? इसी के वजह से न एतना ताना और फिकरा सुनना पड़ा है,’’ गोबरा आदेशात्मक लहजे में कहता है. लहजे में मिश्रित प्यार की अदृश्य तासीर से पाखी रोमांच से सराबोर हो उठती है.

इंद्रपुरी चौक पर काफी चहलपहल है. पास ही इंद्रपुरी टाकीज जो है. अंतिम शो छूटने में अभी देर है. बस्ती की ओर जाने वाली गली के मुहाने पर चायपान की गुमटी है, गुमटी के बाहर ग्राहकों के लिए बैंच पड़ी है. दोनों वहां बैठ जाते हैं, ‘‘साहूजी…दु गिलास चा इधर भी.’’ तभी पाखी की नजरें कोने वाली बैंच की छोर पर गुमसुम बैठे एक बच्चे पर जाती हैं. गोरा, गदबदा बच्चा. तीखे नाकनक्श, आधुनिक फैशन के वस्त्र, लगातार रोते रहने से सूजीसूजी ललछौंह आंखें. पाखी का दिमाग ठनक जाता है. इस तरह के चेहरेमोहरे वाला बच्चा इस बस्ती का तो हो ही नहीं सकता.

‘‘बाबू, का नाम है आप का?’’ पाखी झट से बच्चे के पास आ जाती है. बच्चा सहमी आंखों से पाखी को निहारने लगता है. पाखी फिर पुचकारती है तो किसी तरह कंठ से फंसीफंसी किंकियाहट बाहर आती है, ‘‘चिंटू.’’

‘चिंटू?’ पंडाल से निकल रही थी तो यही नाम हवा में उड़ते हुए कान की खोह में उतरा था. पाखी चिंटू को गोद में उठा लेती है, ‘‘बाबू, कहां रहते हो आप?’’ औरत की गोद तो गोद ही होती है. चाहे कोई भी औरत हो. गोद की कैसी जाति और कैसा मजहब. गोद की वात्सल्यमयी ऊष्मा पा कर चिंटू के पस्त चेहरे पर आश्वस्ति की पुखराजी चमक खिल आती है.

‘‘सू…कर के प्लेन से आए हैं हम,’’ चिंटू नन्ही बांह हवा में लहरा कर उड़ते प्लेन की आकृति बनाने की चेष्टा करता है. अब शक की तनिक भी गुंजाइश नहीं. बेशक, यह वही बच्चा है जिस की तलाश वहां शादी वाले घर में हो रही है और जिस के न मिल पाने से सारा जलसा और जश्न थम सा गया है. पाखी चिंटू की पूरी रामकहानी गोबरा को बताती है.

‘‘ऊ सेठ लोग तेरे साथ इतना गंदा सुलूक किया…’’ गोबरा खीज उठता है, ‘‘फिर भी उन लोगों से हमदर्दी?’’

‘‘नहीं,’’ पाखी मासूमियत परंतु दृढ़ता से जवाब देती है, ‘‘हमदर्दी उन लोगों से नहीं, हमदर्दी इस मासूम बच्चे से है. गोबरा रे…औरत कोई भी हो, उस के लिए बच्चा तो बस बच्चा ही होता है. बच्चा का कैसा तो जात और कैसा तो मजहब?’’ गोबरा निरुत्तर हो जाता है, ‘‘तुम औरतों के दिल को तो कोई भी नहीं बूझ सकता. हमारा गोड़हाथ बहुते पिरा रहा है. पैदल चलना अब मुश्किल है,’’ गोबरा के बंद होंठों से छन कर हलका परिहास बाहर रिस आता है.

‘‘तो रिकशा कर लेंगे रे, मोरे राजा…’’ पाखी भी ठुनक पड़ती है.

‘‘यानी कि 20 टका का फुजूल का चूना. यानी कि ऊ कहावत है न, ‘फ्री में हाथ जलाना’…’’ गोबरा खीखी कर के खिलखिला पड़ता है. दोनों चिंटू को ले कर रिकशा पकड़ते हैं और रिकशा तेज गति से गोयनका साहब की कोठी की ओर दौड़ने लगता है. करीब 15 मिनट की बेचैन यात्रा. कोठी का माहौल अब पहले से भी ज्यादा गमगीन हो गया है. विवाह की सारी कार्यवाहियां स्थगित हैं. सारे लोगों के चित्त अशांत हैं. स्टेज पर वरवधू का वरमाला वाला कार्यक्रम भी रुका हुआ है. सिर्फ आतुर चहलकदमियों और चिंतातुर कानाफूसियों के टुकड़े कबूतर के नुचे पंखों की मानिंद पंडाल के आकाश में छितराए उड़ रहे हैं.पंडाल के गेट के पास अफरातफरी मची है, जैसे ही रिकशा दृष्टिक्षेत्र में आता है, सब से पहले चिंटू के पिता और गोयनका साहब की नजरें उस पर जाती हैं. दोनों बदहवास से उस ओर दौड़ पड़ते हैं. चिंटू को देखते ही दोनों की बेजान देह में नई जान भर आती है.

‘‘चिंटू, मेरे बेटे…’’ पाखी की गोद से चिंटू को झपट कर उस का पिता पागलों की तरह चूमने लगता है. पाखी चिंटू के पिता को देखती है तो हड़क जाती है, ‘अरे, यह तो वही मरदूद है जो अश्लील फिकरे कसने में सब से आगे था.’ पाखी से नजरें मिलते ही युवक का चेहरा भी सफेद पड़ जाता है. उस के जेहन में कुछ कोलाज चक्रवात की तरह घुमेरी घोलने लगते हैं…हवा में हाथ फटकारते हुए पाखी ललकार रही है- ‘आज के इस जलसे का असली हीरो कौन है? कौन? ये दूल्हा? गोयनका साहब की दौलत? नहीं. असली हीरो हैं ये बैंड वाले, ये लाइट वाले, पैसा लूटने वाले, साईस, बैरे, जोकर, शक्तिमान बने कलाकार…’ पाखी गोबरा की बांह थाम कर लौटने के लिए मुड़ जाती है. युवक हतप्रभ सा फटीफटी आंखों से उन्हें जाते हुए देखता रहता है. पर जेहन में अभिजात्य और संपन्नता का घमंड इतना सघन है कि चाह कर भी वह उन्हें रोक कर आभार के दो शब्द भी नहीं कह पाता.

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एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

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