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शायरों के कहे अल्फ़ाज़ 'वीरानी' पर - हिंदी शायरी एच

शायरों के कहे  अल्फ़ाज़ 'वीरानी' पर


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बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या
- अहमद ज़िया



बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
- ख़ालिद शरीफ़
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इतनी सारी यादों के होते भी जब दिल में
वीरानी होती है तो हैरानी होती है
- अफ़ज़ल ख़ान


न हम वहशत में अपने घर से निकले
न सहरा अपनी वीरानी से निकला
- काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
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हर सम्त है वीरानी सी वीरानी का आलम
अब घर सा नज़र आने लगा है मिरा घर भी
- बिस्मिल आग़ाई
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कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
- मिर्ज़ा ग़ालिब


हमें इस तरह ही होना था आबाद
हमारे साथ वीराने लगे हैं
- बकुल देव



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शायद यही जहाँ किसी मजनूँ का घर बने
वीराना भी अगर है तो वीराँ न कीजिए
- हफ़ीज़ जालंधरी

दूर तक कोई भी नहीं दिल में
आख़िरी शहर भी मिला वीरान
- स्वप्निल तिवारी
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कितनी वीरानी है मेरे अंदर
किस क़दर तेरी कमी है मुझ में
- नाहीद विर्क
Shayaro ki shayari

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