शायरी में हमेशा गंगा-जमुनी तहजीब की झलक मिलती है। गुलज़ार देहलवी यानि पंडित आनंद मोहन जुत्शी की शायरी, इन्हें राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत शायर के रूप में भी जाना जाता है। उनकी ज़बान उर्दू है और उसी भाषा में गुलज़ार साहब की लेखनी ने लोगों के दिलों को छुआ। पेश है गुलज़ार देहलवी के 10 चुनिंदा शेर-
नज़र झुका के उठाई थी जैसे पहली बार
फिर एक बार तो देखो उसी नज़र से मुझे
यूँ ही दैर ओ हरम की ठोकरें खाते फिरे बरसों
फिर एक बार तो देखो उसी नज़र से मुझे
यूँ ही दैर ओ हरम की ठोकरें खाते फिरे बरसों
तेरी ठोकर से लिक्खा था मुक़द्दर का सँवर जाना
वो कहते हैं ये मेरा तीर है ज़ां ले के निकलेगा
मैं कहता हूं ये मेरी जान है मुश्किल से निकलेगी
इस तरह जुर्म-ए-मोहब्बत की सज़ा देते हैं
वो जिसे अपना समझते हैं मिटा देते हैं
हुस्न का कोई जुदा तो नहीं होता अंदाज़
इश्क़ वाले उन्हें अंदाज़ सिखा देते हैं
शहर में रोज़ उड़ा कर मेरे मरने की ख़बर
जश्न वो रोज़ रक़ीबों का मना देते हैं
हम से पूछो तो ज़ुल्म बेहतर है, इन हसीनों की मेहरबानी से
और भी क्या क़यामत आएगी, पूछना है तिरी जवानी से
ज़ख़्म-ए-दिल को कोई मरहम भी न रास आएगा
हर गुल-ए-ज़ख़्म में लज़्ज़त है नमक-दानों की
जाने कब निकले मुरादों की दुल्हन की डोली
दिल में बारात है ठहरी हुई अरमानों की
उम्र-भर की मुश्किलें पल भर में आसाँ हो गईं
उन के आते ही मरीज़-ए-इश्क़ अच्छा हो गया