हंसी का कोई मौसम नहीं होता । कोई खास पैमाना नहीं होता । आप भी अगर खुश रहना चाहते हैं , तो अपने परिवार और दोस्तों के साथ हंसते - खिलखिलाते रहिए । हिंदी कहानी रसों का सिरमौर बना करुण रस
विजय जोशी शीतांशु
कोरोना की वैश्विक आपदा ने चराचर जगत में सारी व्यवस्था को भंग कर दिया है । अचर जगत की स्थिति भी गड़बड़ा गई हैं । नियम - सिद्धांत , सभी के स्वरूप व मायने बदल रहे हैं । इन दिनों जहां सभी व्यवस्थाएं और कार्यशालाएं बंद हो गई हैं , वहीं साहित्यकारों की कार्यशाला और ऑनलाइन कवि सम्मेलनों की धूम मची हुई है । जैसे फलों का राजा आम है और इन दिनों आम रस की धूम मची हुई है , उसी प्रकार साहित्य रस में श्रृंगार रस को श्रेष्ठ माना गया है ।
बिहारी , पद्माकर , केशवदास से लेकर चिंतामणि तक ने शृंगार रस को रसों में सर्वोपरि रखा है । लेकिन आज बाग - बगीचों में सुबह - शाम बेंचों पर , झाड़ियों के पीछे छुपकर टपकने वाला शृंगार रस हवा हो गया है । उसकी जगह करुण रस ने ले ली है । दो माह से लगातार पसीना बहाते पैदल यात्रियों पर कवियों का करुण रस फूट पड़ा है । आज जयशंकर प्रसाद , मैथिलीशरण गुप्त जी की परंपरा के अनुयायी कवि भी करुणा के सागर में डूब कर ऑनलाइन कवि सम्मेलन कर रहे हैं ।
एक आयोजन में काव्य का लाखों में सौदा करने वाले कवि भी यू - ट्यूब या फेसबुक पर मुफ्त में करुणा भाव बांट रहे हैं । सांत्वना के साथ वाहवाही बटोर रहे हैं । अखबारों की हेडलाइनों में करुण रस का परचम लहरा रहे हैं । संपादकीय लेखों , साहित्यिक स्तंभों और अभिव्यक्ति के कालमों पर करुण रस का कब्जा हो गया । अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों के दिन तो लद गए , जहां वीर रस और हास्य रस मंचों से खूब मुखरित होता था । जनता झूमकर आनंद लेती थी ।
आज वही जनता घरों में और अखिल भारतीय कवि सम्मेलन चाइना निर्मित जूम एप पर आ गए हैं । वीर रस और हास्य रस के पुरोधाओं के अंग - अंग में करुण रस की आत्मा प्रवेश कर गई है । लॉकडाउन एक से चार तक करुण रस के कई ग्रंथों का बीजारोपण हो गया । कई प्रकाशकों और संस्थाओं ने अपने इश्तेहार देने भी शुरू कर दिए हैं । करुण रस का ग्रंथ कोरोना काल में छपे और हम अछूते रह गए , तो बड़ी किरकिरी होगी । लोग हमें भूल जाएंगे । अब यह बीमारी आगे जाने कितनी सदियों बाद आए ? वात्सल्य रस का कोना - कोना झांकने वाले सूरदास जी की वाणी पर भी करुण रस सिरमौर हो चला है । किड्स प्ले स्कूल जो बंद हो गए
आज करुण रस के नवोदित कवि - लेखक , गांव , गली , मोहल्ले तक में झांकते हुए तुकबंदी कर रहे हैं । एक ने लिखा- ' मोहल्ले में एक शिशु को लॉकडाउन में एक आदमी ने वात्सल्य भाव से गाल पर हाथ लगा
दिया तो , शिशु पालक का पारा चौथे आसमान पर चढ़ आया । करुण रस के सहयोगी माने जाने वाले रौद्र , वीभत्स व अद्भुत रस शिशुपालक के चेहरे पर उभर आए । वात्सल्य रस बिखेर रहे आदमी के मन में भयानक रस ने घर कर लिया । वह आदमी रौद्र रस के भय से स्वयं कई दिनों के लिए क्वारंटीन हो गया । ' करुण रस , यहां वात्सल्य रस पर भारी हो गया ।
आज गांव , शहर , मंदिर , नदी , सरोवर , पनघट और शॉपिंगमाल से सुंदरियां अदृश्य हो गई हैं । शृंगार रस मास्क में मुंह छुपाए बैठा है । शांत रस पुलिस के डंडे से डरकर घरों में बंद हो गया है । वीर रस का हस्तांतरण मंचीय कवि के मुख से पुलिस के हाथों में चला गया है । चहुंओर मौत का तांडव मचाती महामारी से हास्य रस की भी हंसी गुम हो गई है । यानी करुण रस ही रसराज बनकर अपने मंत्री द्वय , भयानक रस व वीभत्स रस के साथ संपूर्ण जगत में छाया हुआ है । कवियों के मन में उद्दीपन करने वाले दृश्य , देश में यत्र - तत्र सड़कों पर , पुलिया के नीचे , रेलवे स्टेशनों और वीरान धर्मशालाओं में मिल जाएंगे । साहित्य मनीषियों के अंतःकरण में ये सारे ' विभाव ' भी इन दिनों तैंतीस संचारी भावों में से केवल निर्वेद , ग्लानि , चिंता , दीनता और करुणा ही प्रकट कर रहे हैं ।
यहां तक की सम्मान पत्रों पर भी करुण रस ने पांव जमा लिए हैं । जैसे कि ' मान्यवर अमुख चंद जी , आपकी मार्मिक और करुण रचना ने ऑनलाइन सहभगिता के फलस्वरूप मंच को करुणामय कर दिया । संस्था आपको ' कोरोना योद्धा करुणा सम्मान ' से सम्मानित करती है । फिलहाल जहां तक संभव हो , आप घर में रहें । सुरक्षित रहें ।