जिस तरह से ग्रीष्म ऋतु में बदल और बारिश आने पर आप अच्छा महसूस करते है उसी प्रकार यह बदल पर शायरी पढ़ कर भी आपको अच्छा महसूस होगा
Baadal sher, hindi baadal shayari, hindi baadal par sher, baadal par shayari, बादल शेर, बादल शायरी, बादल पर शेर, बादल पर शायरी
अपना बादल तलाशने के लिए
उमर भर धूप में नहाए हम
- नवनीत शर्मा
दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में
बादल तमाम शहर से बाहर बरस गया
- इफ़्तिख़ार नसीम
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़
- शबाब ललित
तेरा घर और मेरा जंगल भीगता है साथ साथ
ऐसी बरसातें कि बादल भीगता है साथ साथ
- परवीन शाकिर
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है
- निदा फ़ाज़ली
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
- कुमार विश्वास
पीने से कर चुका था मैं तौबा मगर 'जलील'
बादल का रंग देख के नीयत बदल गई
- जलील मानिकपूरी
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
वही बादल था मिरी प्यास बुझाने वाला
- इक़बाल अशहर
दूर तक छाए थे बादल और कहीं साया न था
इस तरह बरसात का मौसम कभी आया न था
- क़तील शिफ़ाई
बे-बरसे गुज़र जाते हैं उमड़े हुए बादल
जैसे उन्हें मेरा ही पता याद नहीं है
- वहीद अख़्तर
जिस ने बख्शे मेरी आँखों को ये बादल आँसू
उस के दिल पर मेरी आहों की सदा भी गुजरे
इफ़्तिखार इमाम सिद्दीकी
रहेगी प्यासी ये धरती मिरे खुदा कब तक
रुते गुजर गई बादल इधर नही आया
शफ़ीक आजमी
एक शख्स ने मेह बरसाया बादल बादल बातों में
जला भुना तो अफ़वाहों से आग लगाने वाला था
दीपक कमर
जिस दिन उसकी जुल्फ़ें उसके शानों पर खुल जाएंगी
उस दिन शर्म पानी-पानी खुद बादल हो जाएगा
ताहिर फ़राज
गुनगुनाती हुई आती हैं फ़ल्क से बूँदें
कोई बदली तेरी पाजेब से टकराई है
कतील शिफ़ाई
कुछ हाथों की महँदी छुटी कुछ आँखों के काजल बरसे
फ़ूल पात सब जोगी हो गए बिन मौसम जब बादल बरसे
बेकल उत्साही
यह बस्ती है हसीनों की यहां से
किसी आवारा बादल सा गुजरा जा
राजिन्द्र नाथ रहबर
इस बादल को उड़ जाने दो
धूप दरख्तों तक आने दो
रवि कुमार
सुना है शहर में बादल बहुत बरसता है
मेरा वजूद तो इक बूँद को तरसता है
नसीम निकहत
धूप से झलसे चेहरे ज्जबाती हो जाते हैं
साया करता है जब बादल तपते रेगिस्तानों पर
वारिस रफ़ी
कहो बादलों से ठहरें यहाँ वो
शराबी बना देते हैं इन के साए
दीवाना रोहतगी
जलते हुए बादल के साए के तआकुब’ में
ये तिश्नालबी मुझको सहराओं में ले आई
मुजफ़्फ़र रज्मी
धुए के बादलों में छुप गए उजले मकाँ सारे
ये चाहा था कि मन्जर शहर का बदला हुआ देखें
शहरयार
लो फ़िर उड़ा के ले गई बादल को हवाएं
हम ने तो अभी होट भिगोए भी नही थे
वाली आसी
दिल की तिश्ना प कोई अजनबी बादलों की तरह आ के छाता रहा
मैं महब्बत की बरसात का मुन्तजिर यूँ हवाओं के धोखे में आता रहा
जावेद राही
क्या इसलिए बारिश की मांगी थी दुअ वाजद
बादल से ज्यादा अब घर मेरा बरसता है
वाजद सहरी
आस बंध जरा सूखते तालाबों की
झूठा वादा ही जो कर जाता गुजरता बदल
अनु जसरोटिया
ये भी तक्सीम न हो हो जाए जमीनों की तरह
एक बादल किसी सागर से उठा है यारो
अमीर आगा कज्लबाश
गरजेगा जोर शोर से बरसे यकी नहीं
बेहतर है नाज ख्वाहिश-ए-बादल न कीजिए