दरख़्त यानी वृक्ष पर कहे गए शेर |
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Darakht shayari दरख़्त पर शायरी,
पूछता फिरता हूं मैं अपना पता जंगल से
आख़िरी बार दरख़्तों ने मुझे देखा था
- आबिद मलिक
दरख़्त हाथ हिलाते थे रहनुमाई को
मुसाफिरों ने तो कुछ भी नहीं कहा मुझ से
- इक़बाल अशहर कुरेशी
दरख़्त शायरी दरख़्त शेर,
किसी दरख़्त से सीखो सलीक़ा जीने का
जो धूप छांव से रिश्ता बनाए रहता है
- अतुल अजनबी
साया है कम खजूर के ऊंचे दरख़्त का
उम्मीद बांधिए न बड़े आदमी के साथ
- कैफ़ भोपाली
जो धूप छांव से रिश्ता बनाए रहता है
- अतुल अजनबी
साया है कम खजूर के ऊंचे दरख़्त का
उम्मीद बांधिए न बड़े आदमी के साथ
- कैफ़ भोपाली
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दरख़्त कट गया लेकिन वो राब्ते 'नासिर'
तमाम रात परिंदे ज़मीं पे बैठे रहे
- हसन नासिर
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
ये आख़िरी दरख़्त बहुत याद आएगा
- अज़हर इनायती
तमाम रात परिंदे ज़मीं पे बैठे रहे
- हसन नासिर
इस रास्ते में जब कोई साया न पाएगा
ये आख़िरी दरख़्त बहुत याद आएगा
- अज़हर इनायती
Dastak Par Shayari Collections
इन दरख़्तों से भी नाता जोड़िए
जिन दरख़्तों का कोई साया नहीं
- रौनक़ नईम
हवा दरख़्तों से कहती है दुख के लहजे में
अभी मुझे कई सहराओं से गुज़रना है
- असद बदायूंनी
ज़ालिम को सिखा रहा है इंसाफ़
पत्थर में दरख़्त बो रहा है
- सैफ़ ज़ुल्फ़ी
आज कांटे हैं उन की शाख़ों पर
जिन दरख़्तों पे फूल थे पहले
- सूर्यभानु गुप्त