धन्यवाद की शरण में Hindi Kahani |
कुदरत का अनुपम उपहार है । यह कई रोगों की अचूक दवा भी है । आप भी जिंदगी के उतार - चढ़ाव में अपने चेहरे की मुस्कुराहट को मत गंवाइए , परेशानियां अपने आप खत्म हो जाएंगी ।
सिंघई सुभाष जैन भी - अभी समाचार मिला कि मनोरोग अ से पीड़ित विस्तारवाद ने दम तोड़ दिया है । विस्तारवाद के उपचार के लिए खूब बंदोबस्त किए गए थे । यह वाद विवाद की सबसे बड़ी संतान थी । विस्तारवाद के कटु शत्रु विकासवाद की चर्चा में प्रगति हो रही है । इसकी शुरुआत ग्यारह हजार छह सौ फीट से अधिक की ऊंचाई से हुई है । वहां बेतरतीब पहाड़ियां हैं , चट्टानें हैं और गहरी नदी है , इसीलिए विकासवाद की बात भी गहराई से की जा रही है । यह चर्चा उतनी ऊंचाई से इसलिए की गई है कि हमें विकास को अधिक शीर्ष स्थान पर ले जाना है , ताकि विकासवाद अधिक ऊंचे स्थान पर जाकर थोड़ा सुस्ता ले । रुकना जरूरी इसलिए है कि जो पीछे छूट गए हैं . वे चलते - चलते हमारे निकट आ जाएं । इतनी ऊंचाई पर सांस लेने में दिक्कत आती है । एशिया के एक पड़ोसी देश ने विस्तारवाद के प्रचलन में दूसरे पड़ोसी देशों की धरती पर कब्जा करने का दृढ़ निश्चय कर लिया है । दस कदम आगे बढ़ाकर चार कदम पीछे करने का खेल वह 1950 से करता आ रहा है । हमारे देश में ' सबका साथ - सबका विकास ' सिद्धांत पर काम किए जाने का संकल्प लिया गया है । विपक्षी दलों के नेता ' विकास ' शब्द के प्रति विवाद करते आ रहे हैं । पिछले कुछ वर्षों से ' वाद ' शब्द का अधिक उपयोग देखने में आ रहा है । वाद विवाद की शुरुआत कहां से हुई है , यह शोध का विषय है । यदि शोध की रिपोर्ट विदेशों से आए , तो हमें कुछ जानकारी हाथ लगेगी । दरअसल , वाद विवाद का उद्गम महाभारत काल में प्रगति को प्राप्त हुआ । हिंदी साहित्य की काव्य विधा में छायावाद का जन्म होते ही विवाद शुरू हो गए थे । अज्ञेय तक आते - आते विवाद समाप्त हो गया था । यह तो अच्छा रहा कि चीन के जन्म के पहले छायावाद को मान्यता मिल गई , वरना चीन उस विधा को अपनी छाया से दबाने का प्रयास अवश्य करता । कालांतर में वाद व विवाद से निजात पाने के लिए संयम की आवश्यकता हुई । फिर संवाद स्थापित किए जाने लगे । आपसी विवाद सुलझाने के लिए तीसरे पक्ष का दखल दो व्यक्तियों या देशों को मंजूर नहीं होता है । वे यही कहते पाए जाते हैं कि हम आपसी संवाद से हल निकाल लेंगे । आजकल वाद विवाद होने पर संवाद की आवश्यकता को हर कोई प्रधानता दे रहा है । कुछ राष्ट्र , संस्थान या व्यक्ति संवाद स्थापित करने की बात कहकर तंबू स्थापित करने में जुट जाते हैं । वाद के प्रसार - प्रचार के साथ ही वाद व विवाद ने अनेक तरह की प्रसव पीड़ा झेलते हुए कई तरह के नए वाद पैदा किए । सबसे पहले तो विस्तारवाद पैदा हुआ । फिर समाजवाद आया । समाजसेवी लोग नेता बने , जनता से