Hindi Kahani Nithalo ke WhatsApp Group |
प्रमोद ताम्बट
वॉट्सएप ग्रुप आजकल इफरात में बढ़ चले हैं । इससे साबित होता है कि निठल्ले भी बड़ी तादात में बढ़ गए हैं । इन निठल्लों ने अपने - अपने व्हाट्सएप ग्रुप बना रखे हैं और अपनी सल्तनतों की तरह वे रात दिन उन ग्रुपों की छाती पर सवार रहते हैं । एक ग्रुप से जी नहीं भरता तो चार - छह और ग्रुप तो बनाते ही हैं , साथ में आठ - दस अन्य व्हाट्सएप ग्रुपों में भी अपनी आवाजाही बनाए रखते हैं , ताकि निठल्लेपन के इस समय को हर ग्रुप में बराबर - बराबर काटा जा सके और व्हाट्सएप निठल्लेपन की समस्त गतिविधियों पर गिद्ध सी नजर भी बनाई रखी जा सके । ऐसे ही कुछ निठल्लों की व्हाट्सएप सल्तनत पर मैंने एक लघु शोध सा शुरू किया तो पता चला कि एक सल्तनत में तो एक निठल्ला रात तीन बजे से ही सक्रिय हो जाता है ।
जैसे उसे ग्रुप की चौकीदारी करने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा गया हो । तड़के 3 बजे उठकर अपने ग्रुप में आठ दस फूल - पत्तियों , देवी - देवताओं के चित्रों के साथ , गुडमार्निंग , सुप्रभात , सतश्री अकाल , चोरी की शेरो - शायरी , कविताएं आदि का मलबा उड़ेलकर फिर एक - एक कर सारे ग्रुपों में चक्कर लगाना चालू करके यही कचरा सभी जगह छोड़ आने के बाद तब वह चैन की सांस लेता है । किसी सुंदर निठल्ली का जन्मदिन हो , तो फिर तो पूछो ही मत । फूलों के गुच्छे , मिठाई के डिब्बे , चॉकलेट , केक , पेस्ट्री आदि के वर्चुअल गिफ्ट ग्रुप की बजाए व्यक्तिगत मैसेज में भेजकर फिर रिटर्न गिफ्ट का इंतजार करने बैठ जाता था ।
एडमिन यूं तो निठल्ला ही होता है , मगर अपने व्हाट्सएप ग्रुपों के काम से इतना ओवर लोडेड होता है कि बाकी निठल्लों को आश्चर्य होता है कि इतना सारा काम वह पता नहीं क्या खाकर कर लेता है । इधर - उधर से सामग्री उड़ा - उड़ाकर ग्रुप में डालना और फिर बाकी निठल्लों के कमेंट्स का इंतजार करना । कमेंट आया नहीं कि उसका जवाब खींचकर मारना । जवाब न आए तो जूता फेंक के मारना । संवाद के साथ - साथ वाद विवाद , प्रतिवाद , पैदा करना । गरम लोहे पर तुरंत चोट होनी चाहिए ।
अगर किसी ने निठल्ला कहकर पुकारा है तो तुरंत तू निठल्ला , तेरा बाप निठल्ला का प्रत्युत्तर पहुंच ही जाना चाहिए । चाहे शौचालय में हों , परंतु तब भी मोबाइल वहीं ले जाकर हमला - प्रतिहमला जारी रखना जरूरी है । ग्रुप के ऊपर पकड़ ढीली नहीं होनी चाहिए , चाहे कुछ भी हो जाए । कुछ ग्रुपों में कड़े अनुशासन का पालन करना बेहद जरूरी होता है । जो निठल्ला अनुशासन भंग करने का प्रयास करता है , उसको सजा दी जाती है । एडमिन निठल्ले का वश चले तो वह अनुशासनहीनता के लिए अन्य निठल्लों को देश निकाले की सजा दे दे , परंतु वह दया करके मात्र 2-3 दिनों या हफ्ता भर के लिए उसे ग्रुप से बाहर निकलने की सजा देकर काम चला लेता है । ग्रुप के किसी निठल्ले को बुरा मानने का अधिकार नहीं है ।
अगर खुदा न खास्ता कोई बुरा मान ही जाए तो उसे मनाने के लिए एक हाई पावर कमेटी टाइप का विशेष दल गठित किया जाता है , जिसमें ग्रुप के कुछ सीनियर निठल्ले शामिल किए जाते हैं , जो किसी भी सूरत में सदस्य को वापस लाने में माहिर होते हैं । एडमिन गलतियां - खामियां करने के लिए स्वतंत्र होता है । किसी निठल्ले ने एडमिन की गलती निकाल दी तो समझो ग्रुप में 9 रिक्टर स्केल का भूकंप आ जाएगा । फिर तो इस भूकंप के झटके कई दिन तक रुक - रुककर ग्रुप में लगते रहने हैं ।
एडमिन निठल्ला आठ - पंद्रह दिन तक बाकी सारे निठल्लों की गलतियां निकाल - निकालकर उन्हें खरी - रोटी सुनाता रहता है , जब तक कि वह गरीब हरसंभव प्लेटफार्म पर एडमिन से क्षमायाचना नहीं कर लेता । ग्रुप के बाकी निठल्लों की भूमिका को भी कोई कम करके नहीं आंका जा सकता । समय - समय पर हा हा , ही ही , ठी ठी , वाह - वाह , क्या बात - क्या बात , साधु - साधु करते रहकर ग्रुप का निठल्लापन बरकरार रखने का जिम्मा उनका होता है ।
साहित्यिक - सांस्कृतिक ग्रुपों में इसकी बानगी देखी जा सकती है । सारे निठल्ले एक - दूसरे की रचनाओं को बिना पढ़े लहालोट हुए जाते हैं । उनका वश चले तो वे अपने मोबाइल से व्हाट्सएप में घुसकर जिसकी रचना छपी है , उसके व्हाट्सएप से बाहर निकलकर उसे हार - फूल , मालाएं , शाल - श्रीफल आदि चढ़ा आएं । लगे हाथ आरती करके प्रसाद वितरण भी कर दें । लॉकडाउन में निठल्लों के हजारों नए - नए व्हाट्सएप ग्रुप कुकरमुत्तों की तरह उग आए थे । उन्होंने अपना निठल्लापन एक दूसरे से बांटने के लिए रात - दिन एक कर दिए । अब लॉकडाउन कुछ - कुछ खुलने लगा है ।
निठल्ले अपने - अपने काम में लगने लगे हैं । कई व्हाट्सएप ग्रुप अब ठंडे पड़ गए लगते हैं , मगर सदा के निठल्लों के व्हाट्सएप ग्रुपों में अब भी वही धमाचौकड़ी जारी है ।