अंजुम रहबर के चुनिंदा शेर |
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अंजुम रहबर की शायरी
बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे
घर जल रहा था और समुंदर क़रीब
दफ़ना दिया गया मुझे चांदी की क़ब्र में
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए
कल मेरी एक प्यारी सहेली किताब में
इक ख़त छुपा रही थी कि तुम याद आ गए
जिन के आंगन में अमीरी का शजर लगता है
उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है
चांद तारे मिरे क़दमों में बिछे जाते हैं
ये बुज़ुर्गों की दुआओं का असर लगता है
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
यूं देखती है जैसे मुझे जानती नहीं
मैं ने तुझे मुआ'फ़ किया जा कहीं भी जा
मैं बुज़दिलों पे अपनी कमां तानती नहीं
प्यार का इक़रार दिल में हो मगर
कोई पूछे तो मुकरना चाहिए
ज़िंदगी तो किसी रहज़न की तरह थी 'अंजुम'
मौत रहबर की तरह राह दिखाने आई
Takrar Narazgi Shayari 2 Lines Collection