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Hindi Short Story: इंसाफ के लिए इंतकाम - hindishayarih

 

Hindi Short Story: इंसाफ के लिए इंतकाम
Hindi Short Story: इंसाफ के लिए इंतकाम 

 

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एडवोकेट फुरकान काला तो था ही, उस का जिस्म भी भद्दा था. उस की छोटीछोटी आंखों में मक्कारी और बेरहमी साफ झलकती थी. वह गले में सोने की मोटी सी चेन और हाथ में कीमती घड़ी पहने रहता था.
सरवर इकराम



एडवोकेट फुरकान काला तो था ही, उस का जिस्म भी भद्दा था. उस की छोटीछोटी आंखों में मक्कारी और बेरहमी साफ झलकती थी. वह गले में  सोने की मोटी सी चेन और हाथ में कीमती घड़ी पहने रहता था. शहर के पौश इलाके में उस का शानदार बंगला था. एक आदमी की जिंदगी में जो कुछ चाहिए, वह सब उस के पास था.

ये सब उस ने मक्कारी और साजिशों से कमाया था. उस के साथी वकील उसे जोड़तोड़ और चालाकी का बादशाह कहते थे. कैसा भी पेचीदा केस हो, कितना ही घिनौना मुजरिम हो, उस के पास आ कर मजफूज हो जाता था. वह अपनी चालों और तिकड़म की भारीभरकम फीस वसूलता था.

फुरकान के पास बेपनाह दौलत थी. साजिश और तिकड़म से आई दौलत के साथ कई तरह की बुराइयां भी आ जाती हैं. शराब और शबाब के शौक ने उस के अंदर के इंसान को बिलकुल खत्म कर दिया था. उस की जिंदगी में सिर्फ एक अच्छाई यह थी कि वह अपनी बेटी नाहीद से बेपनाह मोहब्बत करता था.

एक दिन फुरकान अपने औफिस में बैठा था, तभी उस के इंटरकौम की घंटी बजी. दूसरी ओर उस का मुंशी था. उस ने क्लाइंट की खबर दी तो उस ने पहला सवाल यही पूछा, ‘‘आसामी पैसे वाली है न?’’



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‘‘जी साहब, तगड़ी पार्टी है.’’ मुंशी ने जल्दी से कहा.

फुरकान ने क्लाइंट को केबिन में भेजने को कहा. उस की केबिन में जो आदमी दाखिल हुआ, वह महंगा सूट पहने था. उस की अंगुलियों में हीरे की अंगूठियां चमक रही थीं. कुरसी पर बैठते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम राहत खान है. मैं राहत इंडस्ट्रीज का मालिक हूं.’’

राहत इंडस्ट्रीज एक बड़ी कंपनी थी, जिस से कई कारोबार जुड़े थे. साफ था, वह काफी दौलतमंद पार्टी थी.

‘‘फरमाइए सर, मैं आप की क्या खिदमत कर सकता हूं?’’ फुरकान ने कहा.

‘‘भई, मेरे बेटे नुसरत का मामला है. उस बेवकूफ ने एक नादानी कर डाली है.’’ राहत खान ने कहा.

‘‘सर, जरा खुल कर बताइए, मामला क्या है?’’

‘‘भई, मेरा बेटा है नुसरत. उस ने रशना नाम की एक लड़की का रेप कर दिया है और अब जेल में बंद है. हालांकि उस लड़की को उठाने में उस के कुछ दोस्त भी शामिल थे, लेकिन पकड़ा वही अकेला गया है.’’ राहत खान ने कहा.



‘‘ओह! मामला तो संगीन है.’’ फुरकान ने कहा, ‘‘राहत साहब, आप चाहते हैं कि मैं आप के बेटे की पैरवी कर के उसे जेल से छुड़वा दूं.’’

‘‘जाहिर है, मैं आप के पास इसीलिए आया हूं, क्योंकि मैं ने आप का बहुत नाम सुना है.’’ राहत ने कहा.



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फुरकान की आंखों की चमक बढ़ गई. उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘राहत साहब, केस बहुत बिगड़ चुका है. उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है और डीएनए रिपोर्ट से सारी सच्चाई पता चल जाएगी.’’

‘‘हां, मैं सब समझता हूं. आप एक बार उसे छुड़वा दीजिए. उस के बाद मैं उस का कुछ इंतजाम कर दूंगा. आप पैसे की कतई फिक्र न करें.’’ राहत खान ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं जीजान लगा दूंगा. पर मेरी फीस 50 लाख होगी. उस में से आधे पहले, आधे केस जीतने के बाद. अगर आप को मंजूर हो तो मैं काम शुरू करूं?’’

‘‘हां, मंजूर है.’’ राहत खान ने कहा.

‘‘आप मुझे उन दोस्तों के नाम व पते लिखा दीजिए, जो उस दिन उस के साथ थे. हां, एक बात यह भी बता दीजिए कि अगर उसे बचाने के लिए उस के किसी दोस्त की कुरबानी देनी पड़े तो आप को कोई ऐतराज तो नहीं होगा?’’

‘‘नहीं, मुझे कोई ऐतराज नहीं होगा. बस किसी तरह मेरा बेटा बच जाए.’’



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रशना अपने मांबाप की एकलौती बेटी थी. मांबाप की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, इस के बावजूद भी वह उसे पढ़ा रहे थे. वह शहर के मशहूर कालेज में पढ़ रही थी और बसस्टैंड से घर तक पैदल ही जाती थी. वह बेहद शरीफ और समझदार लड़की थी. बेपनाह खूबसूरत होने के बावजूद वह बड़ी सादगी से रहती थी.

पिता ने उस की शादी शरजील से तय कर दी थी, पर निकाह की तारीख मुकर्रर नहीं हुई थी. मंगेतर से उस की फोन पर बातचीत होती रहती थी. उस दिन भी रशना बस से उतर कर अपने घर जा रही थी, तभी एक कार उस के करीब आ रुकी. उस में से 2 लोग उतरे. जब तक वह कुछ समझ पाती, उन दोनों ने उसे दबोच कर कार में डाल लिया था.

उस गाड़ी में एक युवक और भी था. वह मशहूर उद्योगपति राहत खान का बेटा नुसरत था. रशना पूरी ताकत लगा कर चीखी, ‘‘मुझे कहां ले जा रहे हो? खुदा के वास्ते मुझे छोड़ दो.’’

एक आदमी ने तुरंत उस का मुंह दबा दिया था. सामने बैठे नौजवान नुसरत ने घुड़क कर कहा था, ‘‘चुपचाप बैठी रह. बड़ी मुश्किल से हाथ आई है, ऐसे कैसे छोड़ दूं?’’

इस के बाद उस ने अपने दोस्तों से कहा, ‘‘तुम लोगों ने आज मेरे मन का काम किया है, इसलिए तुम्हें इस का अच्छा इनाम मिलेगा.’’

2 लोगों के बीच रशना डरीसहमी बैठी थी. उसे न रास्ते समझ में आ रहे थे, न बचने की कोई तरकीब. वह चिल्ला भी नहीं सकती थी. कुछ देर में गाड़ी एक नई बन रही कालोनी में रुकी. उस कालोनी में अभी लोगों ने रहना शुरू नहीं किया था. जिन लोगों ने रशना को गाड़ी में डाला था, वही दोनों उसे एक नए मकान में ले गए. कार में बैठा नुसरत भी पीछेपीछे आ गया था.

उसे एक कमरे में छोड़ कर वे दोनों चले गए तो नुसरत ने कमरे का दरवाजा बंद कर के उस की अस्मत लूट ली. वह रोरो कर बख्श देने के लिए गिड़गिड़ाती रही, पर उसे उस पर तनिक भी दया नहीं आई.

इस के बाद वह रोती रही. जब वे तीनों उसे गाड़ी में डाल कर वापस ला रहे थे तो रास्ते में रोड पर एक जगह पुलिस का नाका लगा दिखा. कार चला रहा युवक बोला, ‘‘उस्ताद, पुलिस गाड़ी रोकने को कह रही है.’’

‘‘हां, रोक दे गाड़ी.’’ नुसरत ने कहा.

‘‘उस्ताद, यह चिडि़या?’’ एक साथी ने पूछा.

‘‘इस चिडि़या के पर कटे हुए हैं और मैं ने इसे संभाला हुआ है. तू फिक्र मत कर.’’ नुसरत ने कहा.

उस समय रशना के मन में बेपनाह गुस्सा और नफरत की आग जल रही थी. जैसे ही गाड़ी रुकी, वह पूरी ताकत से चिल्लाई, ‘‘बचाओ…बचाओ…’’

लड़की की आवाज सुन कर पुलिस वालों ने गाड़ी को घेर लिया. सभी को गाड़ी से उतारा गया. रशना ने रोरो कर अपने साथ घटी घटना पुलिस को बता दी. पुलिस ने उन युवकों को हिरासत में ले लिया और खबर रशना के पिता को दे दी.


 

कुछ ही देर में मीडिया वालों को भी पता चल गया. फिर तो हंगामा खड़ा हो गया. रशना के मंगेतर शरजील को पता चला तो वह भी थाने पहुंच गया. रशना उस के कंधे पर सिर रख कर खूब रोई.

एडवोकेट फुरकान किसी भी तरह नुसरत को बचाने में लग गया. इस के लिए उस ने पैसा और पहुंच का इस्तेमाल किया. यह केस अदालत पहुंचा तो एकदम उलटा हो गया. अदालत में जो मैडिकल रिपोर्ट पेश की गई, उस के मुताबिक राहत इंडस्ट्रीज के मालिक का बेटा नुसरत बेगुनाह पाया गया.

 

एडवोकेट फुरकान ने कोर्ट में जो कहानी पेश की, उस में बताया गया कि अब से करीब 2 महीने पहले किसी जगह पर रशना और नुसरत की मुलाकात हुई थी. दोनों एकदूसरे के करीब आए. मोहब्बत का खेल शुरू हो गया. इन की मुलाकातें महंगे रेस्टोरेंट में होने लगी. उन की मुलाकातों के कई गवाह पेश हुए.

2 वेटर जो उन्हें सर्व करते थे, उन के साथसाथ रेस्टोरेंट के मैनेजर नदीम ने भी गवाही दी. जिन स्टोर और दुकानों से नुसरत ने रशना को तोहफे दिलाए थे, उन लोगों ने भी कोर्ट में बयान दिए.

एक दिन रशना ने नुसरत पर शादी का दबाव डाला तो उस ने शादी से इनकार कर दिया. इस की वजह यह थी कि वह शादी करने लायक नहीं था. इस बात को रशना नहीं जानती थी. नुसरत के शादी से मना करने पर रशना ने उसे धमकी दी कि वह उस के खिलाफ कुछ भी कर सकती है. आखिर वही हुआ और उस ने नुसरत पर रेप का इलजाम लगा दिया.

उस दिन वह खुद अपनी मरजी से नुसरत व उस के दोस्तों के साथ आउटिंग पर गई थी. वापसी पर जब पुलिस ने गाड़ी रोकी तो उस ने चीखनाचिल्लाना शुरू कर दिया. उस के बाद पुलिस ने नुसरत और उस के साथियों को गिरफ्तार कर लिया.

मैडिकल रिपोर्ट में रशना के साथ रेप की पुष्टि तो हुई थी, पर यह रेप नुसरत ने नहीं, बल्कि किसी और ने किया था. बदला लेने की खातिर इलजाम लगा दिया था नुसरत पर. जबकि हकीकत यह थी कि नुसरत नामर्द था.

 

इस सिलसिले में कई डाक्टरों की मैडिकल रिपोर्ट सबूत के तौर पर अदालत में पेश की गई. वह एक मायूस इंसान है, जो दिल बहलाने के लिए लड़कियों से दोस्ती करता है. डाक्टरों और एक्सपर्ट्स की मैडिकल रिपोर्ट, डीएनए रिपोर्ट, रेस्टोरेंट वालों, स्टोर वालों आदि की गवाही ने केस का रुख ही बदल दिया.

रशना भरी अदालत में रोरो कर चीखचीख कर फरियाद करती रही, लेकिन वकील फुरकान का बिछाया जाल और सबूत इतने पक्के थे कि कुछ नहीं हो सका. नुसरत को बाइज्जत बरी कर दिया गया और रशना पर जुरमाना लगा कर उसे माफ कर दिया गया.

अदालत के बाहर राहत खान ने एडवोकेट फुरकान को गले लगा कर शुक्रिया अदा करते हुए उस की बहुत तारीफ की. शरजील के सामने रशना की हिचकियां बंध गईं. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘शरजील, अदालत में जो कुछ कहा गया, वह सब झूठ है. मैं ने नुसरत को इस से पहले कभी नहीं देखा था.’’

‘‘मैं जानता हूं रशना, तुम बेकसूर हो. यह सब उस मक्कार वकील की साजिश है. दौलत के लिए लोग अपना ईमान और जमीर तक बेच देते हैं. तुम परेशान न हो, ऊपर वाला जरूर इंसाफ करेगा. एक बात और रशना, पहले मैं ने सोचा था कि अपना घर बना कर तुम से निकाह करूंगा, लेकिन अब मैं तुम से अगले महीने ही शादी कर रहा हूं, वरना तुम घुटती रहोगी. मैं ने इस बारे में तुम्हारे अब्बू से बात कर ली है.’’ शरजीत ने कहा.

एक दिन नुसरत का दोस्त उस के पास एक आदमी को ले कर आया. उस के सिर पर कैप थी, आंखों पर काला चश्मा, पान जैसे लाल होंठ, गले में नीला स्कार्फ बंधा था. उस ने कपड़े भी काफी कीमती पहन रखे थे. उस व्यक्ति का नाम दिलबर था. दोस्त ने बताया था कि दिलबर के पास ऐसी हुस्न की परियां हैं कि देखो तो आंखें खुली की खुली रह जाएं.

नुसरत उद्योगपति का बेटा था. वह अपनी अय्याशी पर खूब पैसे उड़ाता था, इसलिए उस ने कहा, ‘‘मुझे दिखाओ तो वे कैसी हैं?’’

दिलबर ने अपने मोबाइल फोन में नुसरत को एक फोटो दिखाई. लड़की बेहद हसीन और पुरशबाब थी. देखते ही नुसरत उस का दीवाना हो गया. उस ने कहा, ‘‘क्या तुम इसे ला सकते हो?’’

‘‘हां, तभी तो फोटो दिखा रहा हूं. पर पैसा काफी लगेगा और मेरी कुछ शर्तें भी हैं.’’

‘‘पैसे की तुम फिक्र मत करो, अपनी शर्तें बताओ.’’ नुसरत ने कहा.

‘‘शर्त यह है कि इस लड़की के पास बस वही आदमी जाएगा, जिस ने सौदा किया है यानी बस तुम. और सुबह होने से पहले तुम लड़की को वापस भेज दोगे. एक लाख रुपए कीमत होगी.’’ दिलबर ने कहा.

‘‘मुझे मंजूर है.’’ नुसरत ने बेचैनी से 50 हजार रुपए उस के हाथ पर रख कर कहा, ‘‘बाकी काम के बाद. तुम लड़की अकेले उठाओगे?’’

‘‘उस से आप को कोई मतलब नहीं, आप बस जगह बता दो, लड़की पहुंचा दी जाएगी.’’ दिलबर ने कहा.

दूसरी ओर वकील फुरकान बड़ा खुश था. एक बड़े दौलतमंद व इज्जतदार खानदान से उस की एकलौती बेटी नाहीद के लिए रिश्ता आया था. लड़का भी बाप के बिजनैस से जुड़ा था. पढ़ालिखा शरीफ लड़का था. मंगनी का दिन भी तय हो गया था.

नाहीद रोज की तरह उस दिन भी योगा क्लास से घर लौट रही थी. वह अपनी छोटी गाड़ी खुद चलाती थी. रास्ते में एक तेज रफ्तार वैन ने उस की कार को ओवरटेक कर के रोक लिया. वैन के शीशे काले थे.

वैन रुकते ही उस में से 2-3 लोग जल्दी से उतरे और उन्होंने नाहीद की कार का गेट खोल कर फुरती से उसे बेबस कर के अपनी वैन में बिठा दिया. उस की गाड़ी वहीं खड़ी रह गई.

नाहीद की समझ में नहीं आ रहा था कि वे लोग कौन हैं और उसे किडनैप क्यों कर रहे हैं? वह रुंधी आवाज में बोली, ‘‘तुम लोग कौन हो, मुझे कहां ले जा रहे हो?’’

‘‘हम इस का जवाब नहीं दे सकते, क्योंकि हम से जितना कहा गया है, हम वही कर रहे हैं.’’ उन में से एक ने जवाब दिया.



‘‘इस काम के जितने पैसे तुम्हें मिले हैं, उस का दस गुना मैं तुम्हें अपने अब्बू से दिलवा दूंगी. तुम मुझे छोड़ दो. मैं कसम खाती हूं, तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा.’’

वह आदमी हंस कर बोला, ‘‘तुम्हारे बाप से तो कुछ और वसूल करना है. अब खामोश बैठी रहो. हम तुम पर सख्ती नहीं कर रहे हैं तो इस का मतलब यह नहीं कि तुम बकबक करती रहो. चुप नहीं हुई तो मुंह में कपड़ा ठूंस देंगे.’’

नाहीद सहम कर चुप हो गई. उसे अंदाजा नहीं था कि उसे कहां ले जाया जा रहा है. कुछ देर बाद वह वैन एक सुनसान मकान के सामने जा कर रुकी. नाहीद को वैन से जबरन उतार कर एक कमरे में बंद कर दिया गया. वह कमरा साउंडप्रूफ था. उस का चीखनाचिल्लाना बाहर नहीं सुना जा सकता था. उस कमरे में नुसरत पहुंच गया, जिस के हुक्म पर उसे किडनैप किया गया था. उसे यह पता नहीं था कि यह खूबसूरत लड़की उसी नामीगिरामी वकील की बेटी है, जिस ने उसे रेप के आरोप से बरी कराया था.

नाहीद के लिए वह रात कयामत की थी. अगले दिन नाहीद को वहीं छोड़ दिया गया, जहां से उसे उठाया था. फुरकान दोनों हाथों से सिर थामे बैठा था. उस के सामने उस की लुटीपिटी बेटी नाहीद सिसकियां भर रही थी. एक घंटे पहले ही उसे गेट पर छोड़ा गया था. उस ने अपने बाप को वह सब कुछ बता दिया, जो उस पर गुजरी थी.

तमाम रेपिस्टों को बरी कराने वाले एडवोकेट फुरकान ने कभी सोचा भी नहीं था कि उसी की लाडली बेटी के साथ भी कभी ऐसा घिनौना काम हो सकता है. फुरकान एक समर्थ और ऊंची पहुंच वाला आदमी था. दौलत की भी उस के पास कमी नहीं थी. पर आज न दौलत काम आ रही थी न रसूख. उस ने नाहीद से पूछा, ‘‘बेटा, बस एक बार मुझे पता चल जाए कि यह किस ने किया, फिर देख मैं उस का क्या हश्र करता हूं. मुझे बताओ, वे कौन थे, कैसे थे, कहां ले गए थे?’’

‘‘डैडी, जो लोग ले गए वे सब नकाब में थे. जिस ने मुझे बरबाद किया, उस के बारे में बताती हूं. जगह शहर से बाहर थी. बंगले बने थे, बाकी मुझे कुछ याद नहीं.’’  इतना कह कर नाहीद फिर रोने लगी.

फुरकान के बदन में आग लगी थी. वह अपने दिमाग पर जोर देने लगा कि कौन हो सकते हैं वे लोग? यही सोचतेसोचते उस के लैंडलाइन फोन की घंटी बजी. फुरकान ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘हैलो..’’

‘‘फुरकान साहब से बात करनी है.’’

‘‘बोल रहा हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘फुरकान साहब, मैं आप को उस आदमी का पता बता सकता हूं, जिस ने आप की बेटी की इज्जत लूटी है. आप चाहें तो अपनी बेटी से उस की पहचान भी करवा सकते हैं.’’

‘‘हां…हां, बताओ कौन है वह? जल्द बताओ. पर तुम कौन हो?’’

‘‘वह सब रहने दीजिए, यह जान कर क्या करेंगे. पर जिस ने आप की बेटी को बरबाद किया है, उस बदमाश का नाम नुसरत है. राहत इंडस्ट्रीज के मालिक का बेटा.’’

‘‘क्याऽऽ वह…वही नुसरत…’’

‘‘हां, वही नुसरत, जिसे आप ने रेप के केस से बरी बराया था. पर अफसोस की बात यह है कि फुरकान साहब कानूनी तौर पर आप उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि अदालत में आप पक्के सबूतों के साथ यह साबित कर चुके हैं कि वह नामर्द है. अब आप किस मुंह से अदालत के सामने कहेंगे कि उस ने आप की बेटी के साथ रेप किया है. कौन यकीन करेगा आप का?’’

फुरकान के हाथ से रिसीवर छूट गया. नाहीद सिसक रही थी. वह एक बेगुनाह और मासूम लड़की थी. उस दिन फुरकान को महसूस हुआ कि बेटी के साथ इस तरह की वारदात हो जाने के बाद उस के मांबाप पर क्या गुजरती है.

लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती. इस पूरे मामले में नाहीद का क्या कसूर था? उस के बाप के जुर्म की सजा उसे क्यों मिली? क्या रशना का इंतकाम लेने से उस की तकलीफ खत्म हो गई?

आखिर नुसरत जैसे बिगड़े लड़के अपने बाप की दौलत के बूते पर गुनाह कर के कब तक बाइज्जत बरी होते रहेंगे?

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन 

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