सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Short Story सावन - भादों की सीख

Short Story सावन - भादों की सीख
Short Story सावन - भादों की सीख



मिलावटी गंभीरता के दिखावे में हमने अपने चेहरे की मुस्कान गवां दी है । हंसी को गले लगाकर तो देखिए । आप जहां कहीं होंगे , लोग आपकी तरफ खिंचे चले आएंगे । 


मोहनलाल मौर्य
 रोज कोयल कूक - कूक कर कह रही है कि सावन आ गया है , घर से बाहर निकलिए और चौतरफा छाई हरीतिमा को निहारिए , पर उसकी कोई नहीं सुन रहा है । सब अपने - अपने कार्यों में इस तरह से उलझे हुए हैं कि अपनों की नहीं सुन रहे हैं , कोयल की क्या सुनेंगे ! वह लोगों के कानों में भी कूकने लग जाए , तब भी नहीं सुनेंगे । आजकल लोगों को कर्णप्रिय के बजाय कानफोडू ज्यादा प्रिय है । अब मोर जंगल में ही नहीं , घरों की छतों पर भी नाच रहे हैं । पीहू - पीहू करके लोगों को बुला भी रहे हैं कि आइए , और हमारा नृत्य देखिए । फिर भी लोग उनका नृत्य नहीं देख रहे हैं । शायद इसीलिए लोगों का मन मयूर की तरह नहीं हो पा रहा है ।




 जब तक मनुष्य का मन मयूर की तरह नहीं होता है , वह सावन - भादों का भी आनंद नहीं उठा पाता है । सावन - भादों में मेंढक टर्र - टर्र करते हुए घरों के अंदर यह बताने के लिए घुसते हैं कि टर्र - टर्र हमें ही शोभा देती है , तुम्हें नहीं , लेकिन मनुष्य है कि टर्र टर्र किए बगैर रह ही नहीं रहा है । जब देखो टर्र - टर्र करता रहता है , जबकि मेंढक बारिश के मौसम में ही टर्र - टर्र करते हैं । सावन - भादों में नाग - नागिन नृत्य करके यह बताने में व्यस्त रहते हैं कि ब्याह - शादी में लोग हमारी नकल करके जमीन पर पलटी मारकर जो नागिन डांस करते हैं , वह नागिन डांस नहीं होता है ।



 जिस तरह से हम कर रहे हैं , वह होता है । लेकिन लोग उनके नृत्य को देखना तो दूर , उन्हें देखकर ही सहम जाते हैं । असल में नाग - नागिन डसने के लिए नहीं , बल्कि नागिन डांस सिखाने के लिए नृत्य करते हैं । सावन - भादों के महीने में मेघ मेहरबानी करके बारिश ही नहीं करते , बल्कि मेहरबान किस तरह से हुआ जाता है , यह दिखाने के लिए भी कई बार झड़ी लगा देते हैं । हम हैं कि मेहरबानी तो दूर , दुआ - सलाम भी स्वार्थ से ही करते हैं । शायद इसीलिए मेघ हम पर जल्दी से मेहरबान नहीं होते हैं ।







 वे गरजने के बावजूद  यही सोचकर नहीं बरसते होंगे कि हम तो इन पर मेहरबान हो जाते हैं और ये लोग हैं कि होते ही नहीं । हवा में उड़ने वालों को सावन - भादों के महीने में चलने वाली मंद - मंद हवा यही समझाने में लगी रहती है कि हवा में उड़ने से अच्छा है कि जमीन पर पैर रखकर ही अपने कार्यों को अंजाम दिया जाए । धड़ाम से नीचे गिरोगे तो जमीन के अंदर ही धंस जाओगे , लेकिन लोग हैं कि समझते ही नहीं । हवा में बातें करने और हवाई किले बनाने से डरते ही नहीं हैं । सावन - भादों के महीनों में घर - दालान में आने वाली सीलन भी हमें यही सीख देती है कि आलीशान मकान बनाने से ही कुछ नहीं होता है । समय - समय पर उसकी मरम्मत भी बहुत जरूरी है । सीलन ही है , जो हमें मरम्मत कराने पर विवश कर देती है । अगर सीलन नहीं आए , तो हम दीवारों की ओर देखें भी नहीं ।






 जो बरसात के दिनों में सीलन को देख कर भी अनदेखी कर देता है , उसके मकान धराशायी होकर  ही रहते हैं । इसी तरह नदी और नाले उफान पर आकर हमें यही बताते हैं कि गुस्से में कुछ नहीं रखा है । गुस्से में केवल अपनी और दूसरों की तबाही है । एक बार तबाह होने पर उसकी भरपाई में वर्षों लग जाते हैं । लेकिन हम हैं कि नदी और नाले के उफान को देखकर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं । इन दोनों महीनों में प्रकृति हरी चुनरी ओढ़कर हमें यही बताने आती है कि हरियाली से ही खुशहाली है ।







 लेकिन हम हैं कि हरियाली का संहार करने में लगे हुए हैं । पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलाने से पहले एक बार भी नहीं सोचते हैं कि इनकी वजह से ही हरियाली है । जिनके आसपास हरियाली नहीं , वहां खुशहाली कैसे आएगी ! जहां खुशहाली नहीं होगी , वहां पर घरवाली भी खुश नहीं होगी । जिस घर में घरवाली खुश नहीं , उस घर में सावन - भादों भी यादों में ही निकल जाते हैं । शायद इन्हीं यादों को संजोने के लिए ही सावन - भादों में वृक्षारोपण किया जाता है ।




इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही