सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Best Hindi Kahani Nose Question नाक का प्रश्न : संगीता ने संदीप को कौन सा बहाना दिया?

 Best Short Story Nose Question नाक का प्रश्न : संगीता ने संदीप को कौन सा बहाना दिया?

नाक का प्रश्न : संगीता ने संदीप को कौन सा बहाना दिया?

Best Hindi Kahani, डाकिए से पत्र प्राप्त होते ही संगीता उसे पढ़ने लगी. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस की भृकुटियां तन गईं. best hindi story, Family Kahani, hindi kahani, hindi kahani online, hindi short story, Hindi Story, kahani, Online Hindi Kahani, online short story, Romantic kahani,




डाकिए से पत्र प्राप्त होते ही संगीता उसे पढ़ने लगी. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे का रंग उड़ गया. उस की भृकुटियां तन गईं.

पास ही बैठे संगीता के पति संदीप ने पूछा, ‘‘किस का पत्र है?’’

संगीता ने बुरा मुंह बनाते हुए उत्तर दिया, ‘‘तुम्हारे भाई, कपिल का.’’

‘‘क्या खबर है?’’

‘‘उस ने तुम्हारी नाक काट दी.’’

‘‘मेरी नाक काट दी?’’

‘‘हां.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि तुम्हारे भाई ने नए मौडल की नई कार खरीद ली है और उस ने तुम्हें पचमढ़ी चलने का निमंत्रण दिया है.’’

 

‘‘तो इस में मेरी नाक कैसे कट गई?’’

‘‘तो क्या बढ़ गई?’’ संगीता ने झुंझलाहट भरे स्वर में कहा.

संदीप ने शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘इस में क्या शक है? घर में अब 2 कारें हो गईं.’’

‘‘तुम्हारी खटारा, पुरानी और कपिल की चमचमाती नई कार,’’ संगीता ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा.

संदीप ने पहले की तरह ही शांत स्वर में उत्तर दिया, ‘‘बिलकुल. दोनों जब साथसाथ दौड़ेंगी, तब लोग देखते रह जाएंगे.’’

‘‘तब भी तुम्हारी नाक नहीं कटेगी?’’ संगीता ने खीजभरे स्वर में पूछा.

‘‘क्यों कटेगी?’’ संदीप ने मासूमियत से कहा, ‘‘दोनों हैं तो एक ही घर की?’’

संगीता ने पत्र मेज पर फेंकते हुए रोष भरे स्वर में कहा, ‘‘तुम्हारी बुद्धि को हो क्या गया है?’’
 

संगीता के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय संदीप अपने भाई का पत्र पढ़ने लगा. पढ़तेपढ़ते उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. उधर संगीता की पेशानी पर बल पड़ गए.

पत्र पूरा पढ़ने के बाद संदीप चहका, ‘‘कपिल ने बहुत अच्छा प्रोग्राम बनाया है. बूआजी के यहां का विवाह निबटते ही दूल्हादुलहन के साथ सभी पचमढ़ी चलेंगे. मजा आ जाएगा. इन दिनों पचमढ़ी का शबाब निराला ही रहता है. 2 कारों में नहीं बने तो एक जीप और…’’

संगीता ने बात काटते हुए खिन्न स्वर में कहा, ‘‘मैं पचमढ़ी नहीं जाऊंगी. तुम भले ही जाना.’’

‘‘तुम क्यों नहीं जाओगी?’’ संदीप ने कुतूहल से पूछा.

‘‘सबकुछ जानते हुए भी…फुजूल में पूछ कर मेरा खून मत जलाओ,’’ संगीता ने रूखे स्वर में उत्तर दिया.

संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘तुम अपना खून मत जलाओ, उसे बढ़ाओ. चमचमाती कार में बैठ कर पचमढ़ी में घूमोगी तो खून बढ़ जाएगा.’’

 

‘‘मेरा खून ऐसे नहीं बढ़ेगा.’’

‘‘तो फिर कैसे बढ़ेगा?’’

‘‘अपनी खुद की नए मौडल की कार में बैठने पर ही मेरा खून…’’

‘‘वह कार क्या हमारी नहीं है?’’ संदीप ने बात काटते हुए पूछा.

संगीता ने खिन्न स्वर में उत्तर दिया, ‘‘तो तुम बढ़ाओ अपना खून.’’

‘‘हां, मैं तो बढ़ाऊंगा.’’

इसी तरह की नोकझोंक संगीता एवं संदीप में आएदिन होने लगी. संगीता नाक के प्रश्न का हवाला देती हुई आग्रह करने लगी, ‘‘अपनी खटारा कार बेच दो और कपिल की तरह चमचमाती नई कार ले लो.’’

संदीप अपनी आर्थिक स्थिति का रोना रोते हुए कहने लगा, ‘‘कहां से ले लूं? तुम्हें पता ही है…यह पुरानी कार ही हम ने कितनी कठिनाई से ली थी?’’

‘‘सब पता है, मगर अब कुछ भी कर के नहले पर दहला मार ही दो. कपिल की नाक काटे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा.’’

‘‘उस की ऊपर की आमदनी है. वह रोजरोज नईनई चीजें ले सकता है. फिलहाल हम उस की बराबरी नहीं कर सकते, बाद में देखेंगे.’’

‘‘बाद की बाद में देखेंगे. अभी तो उन की नाक काटो.’’

ये भी पढ़ें- मृत्युदंड से रिहाई : विपिन की मम्मी पुराने कलम से क्या नाता था?

‘‘यह मुझ से नहीं होगा.’’

‘‘तो मैं बूआजी के यहां शादी में भी नहीं जाऊंगी.’’

‘‘पचमढ़ी भले ही मत जाना, बूआजी के यहां शादी में जाने में क्या हर्ज है?’’

‘‘किस नाक से जाऊं?’’

‘‘इसी नाक से जाओ.’’

‘‘कहा तो, कि यह तो कट गई. कपिल ने काट दी.’’

‘‘यह तुम्हारी फुजूल की बात है. मन को इस तरह छोटा मत करो. कपिल कोई गैर नहीं है, तुम्हारा सगा देवर है.’’

‘‘देवर है इसीलिए तो नाक कटी. दूसरा कोई नई कार खरीदता तो न कटती.’

‘‘तुम्हारी नाक भी सच में अजीब ही है. जब देखो, तब कट जाती है,’’ संदीप ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

बूआजी की बिटिया के विवाह की तिथि ज्योंज्यों नजदीक आने लगी त्योंत्यों नई कार के लिए संगीता का ग्रह बढ़ने लगा. वह संदीप को सचेत करने लगी, ‘‘देखो, मैं नई कार के बिना सच में नहीं जाऊंगी बूआजी के यहां. मेरी बात को हंसी मत समझना.’’

ऐसी चेतावनी पर संदीप का पारा चढ़ जाता. वह झल्ला कर कहता, ‘‘नई कार को तुम ने बच्चों का खेल समझ रखा है क्या? पूरी रकम गांठ में होने पर भी कार हाथोंहाथ थोड़े ही मिलती है.’’

‘‘पता है मुझे.’

‘‘बस, फिर फुजूल की जिद मत करो.’’

‘‘अपनी नाक रखने के लिए जिद तो करूंगी.’’

‘‘मगर जरा सोचो तो, यह जिद कैसे पूरी होगी? सोचसमझ कर बोला करो, बच्चों की तरह नहीं.’’

‘‘यह बच्चों जैसी बात है?’’

‘‘और नहीं तो क्या है? कपिल ने नई कार ले ली. तो तुम भी नई कार के सपने देखने लगीं. कल वह हैलिकौप्टर ले लेगा तो तुम…’’

‘‘तब मैं भी हैलिकौप्टर की जिद करूंगी.’’

‘‘ऐसी जिद मुझ से पूरी नहीं होगी.’’

‘‘जो पूरी हो सकती है, उसे तो पूरी करो.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यही कि नई कार नहीं तो उस की बुकिंग तो करा दो ताकि मैं नातेरिश्ते में मुंह दिखाने लायक हो जाऊं.’’

कपिल की तनी हुई भृकुटियां ढीली पड़ गईं. उस के चेहरे पर मुसकराहट खिल उठी. वह बोला, ‘‘तुम सच में अजीब औरत हो.’’

संगीता ने ठंडी सांस भरते हुए कहा, ‘‘हर पत्नी अजीब होती है. उस के पति की नाक ही उस की नाक होती है. इसीलिए पति की नाक पर आई आंच वह सहन नहीं कर पाती. उस की यही आकांक्षा रहती है कि उस के पति की नाक ऊंची रहे, ताकि वह भी सिर ऊंचा कर के चल सके. इस में उस का स्वार्थ नहीं होता. वह अपने पति की प्रतिष्ठा के लिए ही मरी जाती है. तुम पत्नी की इस मानसिकता को समझो.’’

संगीता के इस कथन से संदीप प्रभावित हुआ. इस कथन के व्यापक संदर्भों ने उसे सोचने पर विवश किया. उस के भीतर गुदगुदी सी उठने लगी. नाक के प्रश्न से जुड़ी पत्नी की यह मानसिकता उसे बड़ी मधुर लगी.

इसी के परिणामस्वरूप संदीप ने नई कार की बुकिंग कराने का निर्णय मन ही मन ले लिया. उस ने सोचा कि वह भले ही उक्त कार भविष्य में न खरीद पाए, किंतु अभी तो वह अपनी पत्नी का मन रखेगा

संगीता को संदीप के मन की थाह मिल न पाई थी. इसीलिए वह बूआजी की बिटिया के विवाह के संदर्भ में चिंतित हो उठी. कुल गिनेगिनाए दिन ही अब शेष रह गए थे. उस का मन वहां जाने को हो भी रहा था और नाक का खयाल कर जाने में शर्म सी महसूस हो रही थी.

बूआजी के यहां जाने के एक रोज पूर्व तक संदीप इस मामले में तटस्थ सा बने रहने का अभिनय करता रहा एवं संगीता की चुनौती की अनसुनी सी करता रहा. तब संगीता अपने हृदय के द्वंद्व को व्यक्त किए बिना न रह सकी. उस ने रोंआसे स्वर में संदीप से पूछा, ‘‘तुम्हें मेरी नाक की कोई चिंता नहीं है?’’

‘‘चिंता है, तभी तो तुम्हारी बात मान रहा हूं. तुम अपनी नाक ले कर यहां रहो. मैं बच्चों को अपनी पुरानी खटारा कार में ले कर चला जाऊंगा. वहां सभी से बहाना कर दूंगा कि संगीता अस्वस्थ है,’’ संदीप ने नकली सौजन्य से कहा.

‘‘तुम शादी के बाद पचमढ़ी भी जाओगे?’’ संगीता ने भर्राए स्वर में पूछा.

‘‘अवश्य जाऊंगा. बच्चों को अपने चाचा की नई कार में बैठाऊंगा. तुम नहीं जाना चाहतीं तो यहीं रुको और यहीं अपनी नाक संभालो.’’

संगीता भीतर ही भीतर घुटती रही. कुछ देर की चुप्पी के बाद उस ने विचलित स्वर में पूछा, ‘‘बूआजी बुरा तो नहीं मानेंगी?’

‘‘बुरा तो शायद मानेंगी? तुम उन की लाड़ली जो हो.’’

‘‘इसीलिए तो..?’’

संदीप ने संगीता के इस अंतर्द्वंद्व का मन ही मन आनंद लेते हुए जाहिर में संजीदगी से कहा, ‘‘तो तुम भी चली चलो?’’

‘‘कैसे चलूं? कपिल ने राह रोक दी है.’’

‘‘हमारी तरह नाक की चिंता छोड़ दो.’’

‘‘नाक की चिंता छोड़ने की सलाह देने लगे, मेरी बात रखने की सुध नहीं आई?’’

‘‘सुध तो आई, मगर सामर्थ्य नहीं है.’’

‘‘चलो, रहने दो. बुकिंग की सामर्थ्य तो थी? मगर तुम्हें मेरी नाक की चिंता हो तब न?’’

‘‘तुम्हारी नाक का तो मैं दीवाना हूं. इस सुघड़, सुडौल नाक के आकर्षण ने ही…’’

संगीता ने बात काटते हुए किंचित झल्लाहटभरे स्वर में कहा, ‘‘बस, बातें बनाना आता है तुम को. मेरी नाक की ऐसी ही परवा होती तो मेरी बात मान लेते.’’

‘‘मानने को तो अभी मान लूं. मगर गड्ढे में पैसे डालने का क्या अर्थ है? नई का खरीदना हमारे वश की बात नहीं है.’’

‘‘वे पैसे गड्ढे में न जाते. वे तो बढ़ते और मेरी नाक भी रह जाती.’

‘‘तुम्हारी इस खयाली नाक ने मेरी नाक में दम कर रखा है. यह जरा में कट जाती है, जरा में बढ़ जाती है.’

इस मजाक से कुपित हो कर संगीता ने रोषभरे स्वर में कहा, ‘‘भाड़ में जाने दो मेरी नाक को. तुम मजे से नातेरिश्ते में जाओ, पचमढ़ी में सैरसपाटे करो, मेरी जान जलाओ.’’

इतना कहतेकहते वह फूटफूट कर रो पड़ी. संदीप ने अपनी जेब में से नई कार की बुकिंग की परची निकाल कर संगीता की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘रोओ मत, यह लो.’’

संगीता ने रोतेरोते पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘तुम्हारी नाक,’’ संदीप ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘हांहां, तुम्हारी नाक, देखो.’’

परची पर नजर पड़ते ही संगीता प्रसन्न हो गई. उस ने बड़ी मोहक दृष्टि से संदीप को निहारते हुए कहा, ‘‘तुम सच में बड़े वो हो.’’

‘‘कैसा हूं?’’ संदीप ने शरारती लहजे में पूछा.

‘‘हमें नहीं मालूम,’’ संगीता ने उस परची को अपने पर्स में रखते हुए उत्तर दिया


इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे