'चकबस्त' की ग़ज़लों से चुनिंदा शायरी
![]() |
'चकबस्त' की ग़ज़लों से चुनिंदा शायरी |
Chakbast brij narayan, brij narayan chakbast poetry, brij narayan chakbast shayari, brij narayan chakbast sher, चकबस्त ब्रिज नारायण, ब्रिज नारायण चकबस्त पोएट्री, ब्रिज नारायण चकबस्त शायरी
हम सोचते हैं रात में तारों को देख कर
शमएँ ज़मीन की हैं जो दाग़ आसमाँ के हैं
ये कैसी बज़्म है और कैसे उस के साक़ी हैं
शराब हाथ में है और पिला नहीं सकते
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
brij narayan chakbast shayari
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
ज़बाँ को बंद करें या मुझे असीर करें
मिरे ख़याल को बेड़ी पिन्हा नहीं सकते
वो ज़मीं पे जिन का था दबदबा कि बुलंद अर्श पे नाम था
उन्हें यूँ फ़लक ने मिटा दिया कि मज़ार तक का निशाँ नहीं
रगों में ख़ूँ है वही दिल वही जिगर है वही
वही ज़बाँ है मगर वो असर सुख़न में नहीं
वही हवा वही कोयल वही पपीहा है
वही चमन है प वो बाग़बाँ चमन में नहीं
brij narayan chakbast poetry
शजर सकते में हैं ख़ामोश हैं बुलबुल नशेमन में
सिधारा क़ाफ़िला फूलों का सन्नाटा है गुलशन में
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में
वो सौदा ज़िंदगी का है कि ग़म इंसान सहता है
नहीं तो है बहुत आसान इस जीने से मर जाना
ब्रिज नारायण चकबस्त शायरी
नया बिस्मिल हूँ मैं वाक़िफ़ नहीं रस्म-ए-शहादत से
बता दे तू ही ऐ ज़ालिम तड़पने की अदा क्या है