नूह नारवी की शायरी |
Nooh narvi shayari हज़रत-ए-दाग़ जहाँ बैठ गए nooh narvi shayari नूह नारवी पोएट्री nooh narvi poetry नूह नारवी की शायरी nooh narvi शायरी hazrat dagh jahan baithe नूह नारवी,
कम्बख़्त कभी जी से गुज़रने नहीं देती
जीने की तमन्ना मुझे मरने नहीं देती
अच्छे बुरे को वो अभी पहचानते नहीं
कमसिन हैं भोले-भाले हैं कुछ जानते नहीं
बरसों रहे हैं आप हमारी निगाह में
ये क्या कहा कि हम तुम्हें पहचानते नहीं
अदा आई जफ़ा आई ग़ुरूर आया हिजाब आया
हज़ारों आफ़तें ले कर हसीनों पर शबाब आया
दिल के दो हिस्से जो कर डाले थे हुस्न-ओ-इश्क़ ने
एक सहरा बन गया और एक गुलशन हो गया
मिलना जो न हो तुम को तो कह दो न मिलेंगे
ये क्या कभी परसों है कभी कल है कभी आज
कहीं न उन की नज़र से नज़र किसी की लड़े
वो इस लिहाज़ से आँखें झुकाए बैठे हैं
जब ज़िक्र किया मैं ने कभी वस्ल का उन से
वो कहने लगे पाक मोहब्बत है बड़ी चीज़
बे-वज्ह मोहब्बत से नहीं बोल रहे हैं
वो बातों ही बातों में मुझे खोल रहे हैं
आज आएँगे कल आएँगे कल आएँगे आज आएँगे
मुद्दत से यही वो कहते हैं मुद्दत से यही हम सुनते हैं
ये मेरे पास जो चुप-चाप आए बैठे हैं
हज़ार फ़ित्ना-ए-महशर उठाए बैठे हैं
हमें इसरार मिलने पर तुम्हें इंकार मिलने से
न तुम मानो न हम मानें न ये कम हो न वो कम हो
सत्या-नास हो गया दिल का
इश्क़ ने ख़ूब की उखाड़-पछाड़
काबा हो कि बुत-ख़ाना हो ऐ हज़रत-ए-वाइज़
जाएँगे जिधर आप न जाएँगे उधर हम
रोज़ मलते हैं मुँह पर अपने भभूत
इश्क़ में हम ने ले लिया बैराग