Budhhimaan Buddhijeevi Ka Jamana |
वक्त ने बुद्धिजीवियों को नष्ट करने की काफी कोशिश की , लेकिन यह कौम खत्म ही नहीं होती । हां , सामाजिक बदलावों के साथ लोगों की बुद्धि ने भी रूप बदले हैं । बुद्धि का रंग दिखता कुछ और है और निकलता कुछ और ही है ।
किसी भी विचार को सही या गलत स्थापित करने की सुविधा और दुविधा तो हर जमाने में रही है । किस्म - किस्म के पंगे अब व्यवस्था के खिलाफ न होकर , सम्मानित बुद्धिजीवियों के बीच आपस में होने लगे हैं , इस कारण बुद्धि की दरें आसमान छू रही हैं । बुद्धि , अब असमंजस का विषय बनती जा रही है । समझ नहीं आ रहा कि विश्वगुरुओं के देश में बुद्धिमान बुद्धिजीवी कौन है ।
बुद्धिमान होने के नए - नए प्रतिमान रोजाना सामने जो आ रहे हैं । नेताओं का प्रभाव बुद्धिमानों पर भी पड़ा है । इधर ' के समझदार लोग रंग , डिजायन और खुशबू की बातें करते हैं तो ' उधर ' के समझदार लोग हवा , आग और पानी की बातें करते हैं । नई व्यवस्था यह समझाती है कि जब एक ही किस्म के ज्यादा लोग , बुद्धि हासिल कर लें तो वे बुद्धिमान माने जाएंगे । जैसे- शक्तिशाली व्यक्ति कविता रचेगा तो वो उच्च कोटि की ही होगी , आम कविताएं लिखने के लिए तो सामान्य लोग तो बहुतेरे पड़े हैं ।
बुद्धि समय के साथ सही तरीके से प्रयोग न की जाए तो बहुत नुकसान करती है । राजनीतिक पूर्वाग्रह दिमाग में घुस जाएं तो एक बुद्धिजीवी दूसरे बुद्धिजीवी को देश की छवि खराब करने वाला , राष्ट्रीयता और मानवता के खिलाफ दिखता है । इतिहास गवाह है किसी समय में बुद्धिजीवी अपने क्रियाकलापों के माध्यम से समाज व राष्ट्र को नई व सही दिशा देने का साहसिक प्रयास करते थे ।
सामयिक बुद्धिमता इस बात की मांग करती है कि जब देश में सभी नदियां एक तरफ बह रही हों , तो बुद्धिमान बुद्धिजीवियों को तुच्छ विषयों पर अपना कीमती समय नष्ट नहीं करना चाहिए । बुद्धिमान बुद्धिजीवियों को बढ़िया किताबें पढ़नी चाहिए , प्रकृति प्रेम पर कविताएं लिखनी चाहिए और घर के काम में पत्नी का हाथ बटाना चाहिए ।