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Hindi Kahani Ho Jaane Do Part 1 हो जाने दो | Hindi Shayarih

 

Hindi Kahani Ho Jaane Do Part 1 हो जाने दो
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Hindi Kahani Ho Jaane Do हो जाने दो -भाग 1: जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?
जलज की पार्थिव देह पर राखी लेट-लेटकर रो रही थी.


लेखिका- आशा शर्मा 



“सुनो, तुम वापस आ जाओ, जलज. मुझे तुम्हारी जरूरत है. और हमारे बच्चे को भी. तुम लौट आओ, प्लीज.” विलाप करती कनिका पति जलज के पार्थिव शरीर से लिपट गई. बड़ी ननद राखी ने उसे खींच कर अलग करने की कोशिश की, लेकिन कनिका ने जलज का हाथ नहीं छोड़ा.

राखी ने लाचारी से अपनी मां माधवी की तरफ देखा. माधवी शोक संतप्त महिलाओं की भीड़ में से उठ कर आई और पति को अंतिम पलों में निहारती कनिका को झटके से खींच कर उस से अलग कर दिया. कनिका को लगभग घसीटती हुई माधवी भीतर ले आई.

हमेशा चहकने वाला जलज आज कितना शांत लेटा हुआ है मानो उसे किसी से कोई मतलब ही नहीं. कनिका और उस के गर्भ में पल रहे 2 माह के अपने बच्चे से भी कैसे उस का मोह एक झटके में ही भंग हो गया. अभी 5 साल भी नहीं हुए थे उस की शादी को और ये वज्रपात…

30 वर्ष की उम्र में तो कनिका की कई सहेलियों की शादी तक नहीं हुई थी और उस ने इसी उम्र में इश्क के लाल से ले कर वैधव्य के सफ़ेद रंग तक, सबकुछ देख लिया. कनिका कैसे स्वीकार कर ले नियति के इस कठोर फैसले को. लेकिन स्वीकार करने के अलावा दूसरा चारा भी तो नहीं है.

जलज की पार्थिव देह की अंतिमयात्रा की तैयारी हो चुकी थी. पंडित जी अपना काम कर चुके थे. उन के कहे अनुसार, चचेरे छोटे भाई पंकज ने अपना सिर मुंडवा कर बड़े भाई को आखिरी भेंट दी. माधवी और राखी बारबार बेसुध होती कनिका को पकड़ कर पति के अंतिम दर्शनों के लिए लाईं, तो कनिका का दारुण क्रंदन सुन कर उपस्थित जनसमुदाय भी अपने आंसू नहीं रोक पाया.

बिंदी तो आंसुओं के साथ पहले ही बह कर जा चुकी थी. राखी ने निर्ममता से भाभी के हाथ की चूड़ियां भाई के सिरहाने फोड़ दीं. माधवी ने पांव की बिछिया निकाल कर फेंक दी. कनिका चाह कर भी विरोध नहीं कर पाई. नहीं कह पाई कि जलज को बहुत शौक था उसे भरभर हाथ चूड़ियां पहने देखने का, कोई जा कर देखे तो सही कि उस की ड्रैसिंग टेबल कैसे अटी पड़ी है रंगबिरंगी चूड़ियों से. लेकिन, शब्द भी निशब्द हो चुके थे.

अंतिमयात्रा के लिए जैसे ही घर के आंगन ने अपने जवान लाडले को विदा दी, हर आंख नम हो आई. कनिका दहाड़ मार कर नीम बेहोशी की हालत में गिर पड़ी.

लगभग 2 घंटे बाद कनिका को होश आया तो उस ने खुद को महिलाओं से घिरा पाया. उस ने घबरा कर अपनी आंखें फिर से बंद कर लीं. वह इस भयावह हकीकत का सामना करने से कतरा रही थी.

“ओके, बाय, अपना खयाल रखना और हमारे बच्चे का भी,” जलज ने हमेशा की तरह मुसकरा कर कहा था.

“हां बाबा. और हां, तुम भी पहुंचते ही फोन कर देना,” जवाब में कनिका भी मुसकराई और जलज ने अपनी बाइक आगे बढ़ा दी. कनिका अपनी सीट पर आ कर बैठ गई.

बरसों से चला आ रहा यह संवाद आज भी दोनों के बीच रिपीट हुआ था. लेकिन तब कनिका कहां जानती थी कि यह उन का आखिरी संवाद होगा. इस से पहले कि रोज की तरह जलज का औफिस पहुंचने का फोन आता, कनिका के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से फोन आया.

“हेलो, जी, मैं मयंक बोल रहा हूं. क्या आप जलज जी को जानती हैं?” उधर से आई आवाज की गंभीरता से कनिका सहम गई.

“जी, वे मेरे पति हैं. आप कौन हैं और क्यों पूछ रहे हैं?” कनिका की छठी इंद्रिय उसे अशुभ संकेत दे रही थी.

“उन का ऐक्सिडैंट हो गया है. मैं उन्हें ले कर संजीवनी हौस्पिटल आया हूं. आप तुरंत यहां आ जाइए. कुछ फौरमैलिटी करनी हैं,” मयंक ने एक सांस में सब कह डाला.

कनिका तुरंत हौस्पिटल की तरफ भागी. औटो में बैठते ही उस ने पंकज को फोन कर दिया और तुरंत आने को कहा. भागतेदौड़ते वह हौस्पिटल पहुंची, पता चला कि सबकुछ ख़त्म हो चुका है. कनिका पथराई सी हौस्पिटल की फौरमैलिटी करती रही.



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हो जाने दो -भाग 2 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?
कनिका अपने घरवालों के व्यवहार से दुखी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें.





अब तक बात सब जगह फ़ैल गई थी. जलज के कुछ स्टाफ मैम्बर्स भी हौस्पिटल पहुंच गए और उन की मदद से जलज की बौडी को एम्बुलैंस से घर लाने की कवायद हुई. कुछ महिलाएं कनिका को घर ले आईं और फिर जो कुछ हुआ वह तो अब तक कनिका की आंखों से रिस ही रहा है.

“वो लोग आ गए, चलो. पहले कनिका नहा ले, फिर एकएक कर बाकी तुम लोग भी नहा लो,” माधवी ने राखी को इशारा कर के कनिका को बाथरूम में ले जाने को कहा.

कनिका अपनी अलमारी में से कपड़े निकालने लगी.“पक्के रंग की साड़ी पहनना. कोई लेसवेस या गोटाकिनारी न लगी हो, यह जरूर देख लेना,” माधवी का यह स्वर सुन कर कनिका सोच में डूब गई. कच्चापक्का तो कभी सोचा ही नहीं. जलज तो उसे हर रंग के कपड़े ला कर देता था. काले से ले कर सफ़ेद तक. किसी रंग से उसे कोई परहेज नहीं था. माधवी ने आ कर एक बैगनी रंग की प्लेन साड़ी निकाल कर उस के हाथ में थमा दी. कनिका बाथरूम की तरफ चल दी.

शीशे में अपना चेहरा देख कर कनिका डर गई. सूनी मांग-माथे का चेहरा कितना डरावना लग रहा था. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं और शीशे पर तोलिया डाल कर उसे ढक दिया.

किसी तरह रात हुई. आसपड़ोस के लोग जा चुके थे. माधवी और राखी किसी खास मंत्रणा में मशगूल थीं. कनिका किसी मूर्ति सी लौबी में जड़ हुई बैठी थी. वह रोतेरोते थक चुकी थी. उस का शरीर अब आराम करना चाहता था. लेकिन माधवी ने कहा था- “बिना मुझ से पूछे कोई काम न करना. ऐसा न हो कि किसी की नासमझी के कारण दिवंगत आत्मा को कष्ट हो.” इसलिए कनिका सास की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही थी.

“सो जाओ तुम लोग भी.” माधवी की आवाज सुन कर कनिका अपने कमरे की तरफ चली.“बैड पर नहीं, तुम यहीं लौबी में बिछी दरी पर सोना. यही रिवाज है,” माधवी ने कहा.

कनिका की कुछ भी कहनेसुनने या विरोध करने की शक्ति चुक चुकी थी. उस ने सूनीसूनी आंखों से सास की तरफ देखा और बिना तकिया ही दरी पर लुढ़क गई.

सुबह आंख खुलते ही कनिका का जी मिचलाने लगा. ‘मौर्निंग सिकनैस है. कुछ दिन रहेगी, फिर अपनेआप ठीक हो जाएगी. बस, आप सुबह उठते ही 2 बिस्कुट चाय के साथ खा लेना, इस से आप को बेहतर लगेगा,’ लेडी डाक्टर की कही हिदायत याद आते ही कनिका रसोई की तरफ चली.

“अरे, रुको, हाथ मत लगाना किसी भी चीज को. गऊ ग्रास से पहले कोई कुछ नहीं खाएगा,” सास की कड़कती आवाज सुनते ही बिस्कुट का डब्बा उठाती कनिका के हाथ कांप गए.

“क्या ये वही मां जी हैं जो कल तक खुद अपने हाथ से उसे मनुहार कर के चायबिस्कुट खिलाती थीं.” सास का यह रूप देख कर कनिका विस्मित थी. वह चुपचाप रसोई से बाहर आ गई और लौबी में बिछी दरी पर बैठ गई. रसोई धोई गई. फिर खाना बना. पहले गऊ ग्रास, फिर पिंडदान, फिर पंडित जी को भोजन. ये सब करतेकरते दोपहर हो गई.

उलटियां करती कनिका बेहाल हो रही थी. लेकिन अभी तक पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया था. दोपहर बाद राखी उस के लिए एक प्लेट उबली हुई बेस्वाद सी सब्जी और बिना घी लगी 2 रोटी ले कर आई. मन हो न हो, लेकिन शरीर को तो भूख लगती ही है. तब और भी ज्यादा जब शरीर में एक और शरीर पल रहा हो. कनिका ने लपक कर एक निवाला मुंह की तरफ किया. खाते ही उसे उबकाई सी आ गई.

जलज कितना खयाल रखता था उस के खानेपीने का. उस के आंखें फेरते ही सब का नजरिया एक ही दिन में कितना बदल गया. जो मां जी उसे ‘खा ले, खा ले’ कहती नहीं अघाती थीं, वे आज देख भी नहीं रहीं कि वह खा भी रही है या नहीं. दो बूंद आंसुओं और दो घूंट पानी के साथ कनिका ने 2 कौर किसी तरह निगल कर प्लेट एक तरफ सरका दी.

“कनिका, 12 दिन घर में सूतक रहेगा. इसी तरह का खाना बनेगा. वैसे भी, अब सादगी की आदत डाल लो. हमारे यहां पति की चिता के साथ ही सब रागरंग भस्म हो जाता है, समझी?” माधवी ने उस की जूठी प्लेट की तरफ नजर डाली और राखी को प्लेट उठाने का इशारा किया.

‘फिर पंडित जी को क्यों छप्पन भोग खिलाए जा रहे हैं?’ कनिका ने अपने मन में उठे सवाल को वहीं का वहीं दफन कर दिया. सोच में सिर्फ एक ही बात थी, ‘कहीं जलज की आत्मा को कोई तकलीफ न हो.’

पहाड़ से दिन काटे नहीं कट रहे थे. कनिका को हिदायत थी कि सुबह सब से पहले उठ कर नहानाधोना कर ले और पक्के रंग के कपड़े पहन कर बैठक के लिए बैठ जाए. उसे ध्यान रखना होता था कि उस के चेहरे को कोई सुहागन स्त्री न देख ले या कोई पुरुष उसे छू न जाए. उस के इस्तेमाल किए गए कंघेतोलिए तक को सब से अलग रखा जाता था.

दिनभर शोक जताने वालों का आनाजाना लगा रहता था. कनिका को हरेक के सामने अपना कलेजा चीर कर दिखाना होता था कि उस पर कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है. आनेजाने वालों की संख्या से कनिका को अंदाजा हो गया था कि समाज में जलज का कद कितना बड़ा था. दूरदूर से उस के फेसबुक फ्रैंड्स भी अपनी संवेदनाएं प्रकट करने आ रहे थे. कुछ कनिका तक पहुंच पाते थे, तो कुछ बाहर पुरुषों की बैठक से ही लौट जाते थे.

“भाभी, ये जलज भैया के फेसबुक फ्रैंड हैं महेश. हरिद्वार से आए हैं,” राखी के यह कहने पर घुटनों में सिर दिए बैठी कनिका ने मुंह उठा कर देखा. जलज के ही हमउम्र 2 युवक नम आंखें लिए हाथ जोड़े खड़े थे. एक युवक विदेशी लग रहा था. कनिका ने भी हाथ जोड़ कर अपना सिर फिर से नीचे कर लिया.

“भाभी जी, जो कुछ हुआ, उस के लिए तो कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जो बचा है उसे सहेजने की जिम्मेदारी अब आप की है. जलज मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. बेशक हमारी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी लेकिन हम एकदूसरे के बहुत करीब थे,” महेश कनिका के पास बैठ गया.

“ये मेरा दोस्त सैम है, यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कौलर है. भारतीय दर्शन पर शोध कर रहा है. असल भारत की परम्पराएं और रीतिरिवाज जानने की जिज्ञासा लिए गांवगांव, शहरशहर भटकता रहता है. इसे भी मैं अपने साथ ले आया,” महेश ने आगे कहा तो कनिका ने सैम की तरफ हाथ जोड़ कर उस का अभिवादन किया.

कनिका ने देखा भूरे बालों वाले सैम ने अपने कान पर पीर्सिंग करवा कर सोने की बाली सी पहन रखी है. दाहिने हाथ की कलाई और बाएं हाथ की भुजा पर विदेशी भाषा में लिखे कुछ शब्दों के टैटू बनवा रखे थे जिन के अर्थ कनिका की समझ से परे थे. होजरी की पतली सी सफ़ेद टीशर्ट और फुल्ली रुग्गड जींस में वह सचमुच सब से अलग दिख रहा था. माधवी की चुभती दृष्टि महसूस कर कनिका ने सैम पर से अपनी निगाहें हटा लीं और फिर से अपना मुंह घुटनों में छिपा लिया.

तभी कनिका को उबकाई सी आई और वह भाग कर वाशबेसिन की तरफ गई. उलटी कर के पलटी, तो देखा कि सैम पानी का गिलास लिए खड़ा था. कनिका को सैम की ये

ह हरकत अजीब लगी, लेकिन उसे सैम के कोमल हृदयी होने का आभास अवश्य हो गया था. उस ने चुपचाप पानी के 2 घूंट लिए और अपनी जगह आ कर बैठ गई.

“महेश जी, आप लोग खाना खा लीजिए,” राखी महेश और सैम को खाने के लिए ले गई. सैम ने कनिका की तरफ देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न था- “आप ने खाया?” कनिका से उसे कोई प्रत्युतर का भाव नहीं मिला.

महेश की ट्रेन दूसरे दिन सुबह की थी. पूरे 20 घंटे सैम को कनिका के घर ही रहना था. उस की आंखें हर गतिविधि का भरपूर अवलोकन कर रही थीं, लेकिन भाषाई समस्या के कारण वह अधिक कहसुन नहीं पा रहा था. बारबार कनिका की तरफ उठती उस की आंखों में कनिका के प्रति सहज संवेदना झलक रही थी. एहसासों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता भी कहां होती है.






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हो जाने दो -भाग 3 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?
कनिका को सैम का साथ अच्छा लगने लगा था हर रोज दोनों के बीच लंबी बाते होने लगी थी.





रात को खाना खाने के बाद शिष्टाचारवश जब सैम अपनी जूठी प्लेट सिंक में रखने गया तो उसे माधवी और राखी की फुसफुसाहट सुनाई दी. हिंदी की समझ न होने के कारण उसे समझ में तो कुछ नहीं आया लेकिन कुछ शब्द जैसे- “एबौर्शन… कनिका…” आदि से उस ने अनुमान लगाया कि ये बातें या फिर पारिवारिक फैसले शायद कनिका को ले कर हो रहे हैं. कनिका के प्रति उस की सहानुभूति और भी अधिक गहरी हो गई.

“भाभी, हम चलते हैं. आप अपना और हमारे भाई की निशानी का खयाल रखिएगा. कोई भी परेशानी हो, तो छोटा भाई समझ कर बेहिचक याद कर लेना,” महेश अगली सुबह कनिका से विदा लेने आया. उस के पीछे हाथ जोड़े सैम भी खड़ा था. कनिका मुंह से कुछ नहीं बोली, बस, अंगूठे से जमीन कुरेदती रही.

‘भाई की निशानी, पता नहीं बचेगी भी या नहीं,’ सैम मन ही मन सोच रहा था.जलज की तेरहवीं में कनिका के औफिस से भी कुछ लोग आए थे.“औपचारिकता वाली बातें सुनसुन कर आप थक चुकी होंगी. मैं सीधे मुद्दे पर आता हूं. आप कब तक औफिस जौइन करेंगी,” कनिका के बौसस असद ने पूछा.

“इस बारे में हम लोगों ने अभी विचार नहीं किया है. फिलहाल 6 महीने तो भाभी कहीं आनाजाना नहीं करेंगी. उस के बाद तय किया जाएगा कि क्या करना है,” कनिका के मुंह खोलने से पहले ही राखी बोली.

“कनिका जी, जो भी फैसला करना हो, सोचसमझ कर कीजिएगा. आप का एक निर्णय आप की आने वाली पूरी जिंदगी के लिए जवाबदेह हो सकता है,” असद ने उसे सचेत किया.

लेकिन कनिका तो अपने दुख में इतना डूब चुकी थी कि उसे न तो कुछ सुनाई दे रहा था और न ही कुछ दिखाई. बस, मशीन की तरह जो भी आदेश उसे दिया जा रहा था, वह किए जा रही थी. अवचेतन मन में कहीं न कहीं यह बात भी थी कि उस के हठ या नादानी के कारण उस के जलज की आत्मा को कोई कष्ट न पहुंचे.

“कनिका, आज शोक उतारने की रस्म होगी. तुम्हें अपने मायके जा कर वापस आना है. वहां नहाधो कर नए कपड़े पहनने हैं. और हां, याद रखना, तुम्हारा मुंह कोई सुहागन स्त्री न देखे. तुम्हारी मां भी नहीं. वरना, अपशगुन होगा,” माधवी ने एक रोज उसे कहा.

“जिस बेटी को जन्म दिया, पालापोसा, उस का मुंह भला मां के लिए अशुभ कैसे हो सकता है? कनिका विस्मित थी. लेकिन तर्कवितर्क करना तो जैसे वह भूल ही चुकी थी.

जलज को गए महीना हो चला था. कनिका के भीतर इतना कुछ उमड़ताघुमड़ता रहता था कि जबतब आंखों के रास्ते बरस पड़ता था. कनिका किस से अपने दिल का हाल कहे, किस से जलज की यादों को साझा करे, उसे कुछ भी समझ में नहीं आता था. आसपास की दुनिया के लोग भी उस से कटेकटे जैसे रहते थे. माधवी तो सुबह-सुबह उस का चेहरा तक देखना पसंद नहीं करती थी. लोगों की आंखों में दिखाई देने वाली दया, बेचारगी, सहानुभूति उसे असहज कर देती थी. वह सारा दिन अकेली अपने कमरे में बैठी मोबाइल हाथ में लिए, बस, सर्फिंग करती रहती.

एक दिन फेसबुक पर सैम की फ्रैंड रिक्वैस्ट देख कर कनिका को बहुत आश्चर्य हुआ. कुछ सोच कर उस ने उसे स्वीकार कर लिया.“थैंक्स फौर ऐक्सेप्टिंग मी ऐज फ्रैंड.” तुरंत ही मैसेंजर पर सैम का मैसेज उभरा. कनिका बिना कोई रिप्लाई दिए औफलाइन हो गई.

“हेलो.”“हाउ आर यू?”“हैव यू स्टार्टेड औफिस?”“कैन वी चैट औन फोन?”“प्लीज, गिव योर मोबाइल नंबर.”दूसरे दिन सुबह सैम के इतने सारे मैसेज देख कर कनिका मुसकराए बिना न रह सकी. उस ने अपना मोबाइल नंबर उसे मैसेज कर दिया.

रात 11 बजे जब सब सो गए, तब कनिका औनलाइन थी.“मे आई कौल यू?” सैम का मैसेज दिखाई दिया.

“ओके,” कनिका ने रिप्लाई करने से पहले मोबाइल को साइलैंट मोड पर कर दिया. मोबाइल घरघराया. अनजान नंबर था. कनिका ने कौल रिसीव की. यह सैम ही था. थोड़ी देर औपचारिक बातें हुई. कनिका को सैम से बात कर के अच्छा लगा. आगे भी टच में रहने की अनुमति लेने के बाद सैम ने फोन रख दिया.

अब हर रोज देररात सैम के फोन आने लगे. कनिका को भी उस के कौल्स का इंतज़ार रहने लगा था. सैम टूटीफूटी हिंदी में उस से पूरे दिन का ब्योरा पूछता और कनिका टूटीफूटी इंग्लिश में उसे बताती. हो सकता है यह बातचीत सैम के लिए उस के शोध का एक हिस्सा मात्र हो, लेकिन कनिका उस से बात कर के बेहद तनावमुक्त महसूस करती थी. अनजान व्यक्ति के सामने खुलना वैसे भी काफी राहत भरा होता है क्योंकि यहां राज के जगजाहिर होने का भय नहीं होता.

“जलज तो अब रहे नहीं. कनिका का यहां अकेले दम घुटता होगा. आप कहें तो हम इसे अपने साथ ले जाएं,” एक दिन बेटी से मिलने आए कनिका के मांपापा ने माधवी से इजाजत मांगी. कनिका भी इस बोझिल माहौल से निकलना चाहती थी.

“अभी तो सबकुछ बिखरा पड़ा है. कुछ दिनों बाद पंकज इसे आप के पास छोड़ आएगा,” माधवी ने कुछ सोचते हुए कहा. कनिका के मांपापा खाली हाथ लौट गए.

“क्यों न कनिका को जलज के नाम की चुनरी ओढ़ा दी जाए… बात घर की घर में ही रह जाएगी,” एक रात माधवी ने पति रमेश से जिक्र किया. रमेश को भी पत्नी की बात में दम लगा.

“लेकिन क्या पंकज और भाईसाहब इस बात के लिए राजी हो जाएंगे? उन के भी तो अपने बेटे की शादी को ले कर कुछ अरमान होंगे. कौन जाने पंकज ने किसी को पसंद ही कर रखा हो,” रमेश ने आशंका जताई.

“मैं कल पंकज से बात कर के देखती हीन,” माधवी ने पति को आश्वस्त किया.“चाची, मैं भाभी को अपनाने के लिए सोच तो सकता हूं लेकिन यह बच्चा? मुझे लगता है कि बच्चे को ले कर आज भावनात्मक आवेश में लिया गया फैसला मेरी आने वाली पूरी जिंदगी के लिए नासूर बन सकता है. यह किसी के भी हित में नहीं होगा, न मेरे न कनिका और ना ही बच्चे के,” पंकज ने व्यावहारिकता भरा अपना मत स्पष्ट किया.

“तो ठीक है न, अभी तो ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, मैं किसी डाक्टर से बात कर के इसे अबौर्ट करवाने की व्यवस्था करती हूं,.” माधवी ने कहा. सुनते ही कनिका के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई. अनजाने ही फैमिली मीटिंग में उठे इस मुद्दे पर हो रही बहस उस के कानों में पड़ गई थी.

“सैम, आय एम इन ट्रबल. माय फैमिली हैज डिसाइडेड टू अबौर्ट माय बेबी,” रात में कनिका ने सिसकते हुए सैम को फोन पर बताया.

“ओ माय गौड़, हाउ कैन दे डू दिस? कनिका, माय डियर, आय एम फीलिंग सो हैल्पलैस. बट लिसन, यू शुड गो टू योर मौम. शी मस्ट हैल्प यू,” सैम ने कनिका को अपनी मजबूरी तो बताई लेकिन साथ ही उसे रास्ता भी सुझा दिया. दूसरे दिन कनिका ने अपनी मां को फोन कर के मायके जाने की इच्छा जताई और 2 दिनों बाद ही उस के पापा उसे ससुराल से ले गए.

“वैसे कनिका, तुम्हारी सास और पंकज का फैसला मुझे व्यावहारिक लगता है. अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है. तुम्हें अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए. बच्चे तो और हो जाएंगे. तुम्हें पंकज के फैसले में सहयोग करना चाहिए,” मां ने भी जब कनिका को दुनियादारी समझाने की कोशिश की, तो वह टूट गई.

“प्लीज सैम, जस्ट गाइड मी. व्हाट शुड आई डू नाऊ? आय वांट टू कीप माय चाइल्ड,” रात को कनिका सैम से बातें करते हुए फफक पड़ी.

“वुड यू लाइक टू मैरी मी. आय विल ऐक्सेप्ट दिस बेबी,” सैम ने बिना किसी लागलपेट के कहा तो कनिका चौंक गई.

“आर यू ओके? यू नो व्हाट यू से?” कनिका ने पूछा.“येस, आय नो व्हाट आय सेड,” सैम ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा.“ओके, दैन कम टू मीट माय फैमिली,” कनिका ने उस का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए उसे आमंत्रित किया. अगले ही सप्ताह सैम और महेश कनिका के घर आए.

“तुम पागल हुई हो कनिका, तुम जानती भी हो कि इस फैसले के दूरगामी परिणाम क्या हो सकते हैं. सैम तो आज यहां है, कल अपने देश चला जाएगा. क्या तुम हम से दूर पराए देश में रह पाओगी? कहीं तुम्हारे प्रति सैम का मन बदल गया तो हम तुम्हारी मदद करने की स्थिति में भी नहीं होंगे,” पापा ने उसे समझाया.

“कल किस ने देखा है पापा. क्या हम ने जलज को ले कर कभी यह कल्पना की थी कि हमें यह दिन देखना पड़ेगा. नहीं ना. तो फिर जो हो रहा है उसे हो जाने दीजिए. मुझे अपना बच्चा चाहिए पापा. यह जलज की आखिरी निशानी है,’ कनिका लगभग रो ही पड़ी थी.

पापा निशब्द थे. कमरे में सिर्फ कनिका की सिसकियां गूंज रही थीं. “हम तुम्हारी बेवकूफी में साथ नहीं दे सकते कनिका. जान न पहचान, ऐसे ही कैसे किसी परदेसी के साथ शादी के तुम्हारे फैसले को मान लें? तुम खुद भी सैम को कितना जानती हो? एक बार तो उजड़ चुकी हो, तुम्हें दोबारा उजड़ता हुआ नहीं देख पाएंगे. बेहतर है, तुम पंकज के बारे में ही सोचो. बच्चों का क्या है, और हो जाएंगे,” मां ने भी शब्दों को कठोर करते हुए पापा की हां में हां मिलाई.

बात नहीं बनी. न तो कनिका मम्मीपापा के सामने अपना पक्ष ठीक से रख पाई और न ही भाषा की समस्या के कारण सैम उन का भरोसा जीत सका. महेश की मध्यस्थता भी काम न आई. दोष किसी का भी नहीं कहा जा सकता. बेटी के मांबाप थे, फिक्रमंद होना लाजिमी था. सभी मांबाप शायद ऐसे ही होते होंगे. सैम को निराश ही वापस लौटना पड़ा.

बातें के पांव भले ही न हों लेकिन उन की गति बहुत तीव्र होती है. कनिका और सैम के बारे में जब उस की ससुराल वालों को पता चला तो बहुत बवाल मचा. सास ने तो कुलच्छनी कहते हुए उस के लिए घर के दरवाजे ही बंद कर दिए. कनिका अकेली जरूर हो गई थी लेकिन कमजोर नहीं. उस ने अपनी नौकरी वापस जौइन कर ली. हालांकि, मां अब भी चाहती थीं कि कनिका पंकज से शादी कर के उसी घर में वापस चली जाए. आखिर देखाभाला परिवार है. अनहोनी तो किसी के भी साथ हो सकती है.

इधर कनिका के गर्भ का आकार बढ़ता जा रहा था और उधर उस पर मां का दबाव भी. दबाव था पंकज से शादी करने और बच्चा गिराने का, लेकिन कनिका किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकी. तनाव अधिक बढ़ने लगा, तो उस ने घर छोड़ दिया और वर्किंग वीमेन होस्टल में रहने लगी. सैम का शोधकार्य लगभग पूरा होने को ही था. इस के बाद यदि वह चाहे तो उसे स्थायी तो फिलहाल नहीं पर गेस्ट फैकल्टी के रूप में वहीं यूनिवर्सिटी में ही जौब मिल जाएगी. किसी और को भरोसा हो न हो, कनिका को उस पर पूरा भरोसा था.

प्रसव का समय नजदीक आ रहा था. बच्चे की दादी ने तो उस से नाता तोड़ ही लिया था, नानी भी कनिका के पास नहीं थीं. सैम और महेश ने ही आ कर सारा काम संभाला. कनिका ने बेटी को जन्म दिया. उस नर्म सी बच्ची को गोद में ले कर सैम आश्चर्य से अपनी भूरी आंखें चौड़ी कर रहा था.

‘इज दिस रियली माइन?” सैम ने बच्ची को चूमते हुए कहा.“किस के साथ किस का रिश्ता कब और कैसे बंध जाता है, कोई नहीं जानता. बीज किस ने डाला और फल किस के हाथ लगा. सब संयोग की बातें हैं,” यह सोच कर कनिका मुसकरा दी.

“सैम, कनिका और यह बच्चा, मेरे दोस्त की निशानी हैं. इन्हें हिफाजत से रखना मेरे दोस्त,” महेश ने सैम को गले लगा कर नई जिंदगी की शुभकामनाएं दीं.सैम कुछ समझा, कुछ नहीं समझा लेकिन इतना तो समझ ही गया था कि अब कनिका उस की हो चुकी है. उस ने कनिका को बांहों के घेरे में ले लिया. कनिका ने मुसकरा कर अपना हाथ एक तरफ सैम और दूसरी तरफ बच्ची के इर्दगिर्द लिपटा लिया.

बंद आंखों से खुशी की बूंदें छलकने लगीं.



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एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं. ...

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आज के टॉप 4 शेर ऐ हिंदूओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ - लाल चन्द फ़लक मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा - अल्लामा इक़बाल उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे - जिगर मुरादाबादी हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मा'लूम कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी - अहमद फ़राज़ साहिर लुधियानवी कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया कैफ़ी आज़मी इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद बशीर बद्र दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों वसीम बरेलवी आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है - वसीम बरेलवी मीर तक़ी मीर बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो ऐसा कुछ कर के चलो यां कि बहुत याद रहो - मीर तक़ी...

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे...