मोहम्मद अल्वी के शेर |
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यार आज मैं ने भी इक कमाल करना है
जिस्म से निकलना है जी बहाल करना है
ज़मीं छोड़ने का अनोखा मज़ा
कबूतर की ऊँची उड़ानों में था
Mohammad alvi sher
किसी से कोई तअल्लुक़ रहा न हो जैसे
कुछ इस तरह से गुज़रते हुए ज़माने थे
गली में कोई घर अच्छा नहीं था
मगर कुछ खिड़कियाँ अच्छी लगी हैं
mohammad alvi shayari
मुतमइन है वो बना कर दुनिया
कौन होता हूँ मैं ढाने वाला
तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तू ख़ुश न हो
उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख
mohammad alvi ke sher | मोहम्मद अल्वी की शायरी
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूंद बारिश की
घर ने अपना होश संभाला दिन निकला
खिड़की में भर गया उजाला दिन निकला
लम्बी सड़क पे दूर तलक कोई भी न था
पलकें झपक रहा था दरीचा खुला हुआ
उस से भी मिल कर हमें मरने की हसरत रही
उस ने भी जाने दिया वो भी सितमगर न था