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Top Dar Shayari Collection मैं तेरे दर पर कहानी गई शायरी


Top Dar Shayari Collection मैं तेरे दर पर कहानी गई शायरी
Dar Shayari Collection

 
मैं तेरे 'दर' पर कहानी गई शायरी
 
 
मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर
आदमी इस दौर में ख़ुद्दार हो सकता नहीं
 


दर-ब-दर फिरने ने मेरी क़द्र खोई ऐ फ़लक
उन के दिल में ही जगह मिलती जो ख़ल्वत मांगता
 

लिए फिरा जो मुझे दर-ब-दर ज़माने में
ख़याल तुझ को दिल-ए-बे-क़रार किस का था
 


दीवार ओ दर झुलसते रहे तेज़ धूप में
बादल तमाम शहर से बाहर बरस गया
 

खुला है दर प तिरा इंतिज़ार जाता रहा
ख़ुलूस तो है मगर एतिबार जाता रहा
 


दीवार ख़स्ता-हाल है और दर उदास है
जब से कोई गया है मिरा घर उदास है
 

जबीं पर ख़ाक है ये किस के दर की
बलाएं ले रहा हूं अपने सर की
 


तेरे ख़याल के दीवार-ओ-दर बनाते हैं
हम अपने घर में भी तेरा ही घर बनाते हैं
 

रात गुज़री है दर-ब-दर हो कर
ज़िंदगी तुझ से बे-ख़बर हो कर
 


रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए
हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए
 



आई हो मेरी जिंदगी में तुम नवम्बर बनके।
डर है कहीं चली न जाओ तुम दिसम्बर बनके !!

 

 

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