'घर' घर पर कहे शायरों के अल्फाज हिंदी में
इस क़दर बढ़ने लगे हैं घर से घर के फ़ासले
दोस्तों से शाम के पैदल सफ़र छीने गए
- इफ़्तिख़ार क़ैसर
रात पड़े घर जाना है
सुब्ह तलक मर जाना है
- मोहम्मद अल्वी
उतरे तो कई बार सहीफ़े मिरे घर में
मिलते हैं मगर सिर्फ़ जरीदे मिरे घर में
- ज़हीर ग़ाज़ीपुरी
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
- अलीम मसरूर
मेरे घर के तमाम दरवाज़े
तुम से करते हैं प्यार आ जाओ
- अनवर शऊर
कुछ रोज़ नसीर आओ चलो घर में रहा जाए
लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता
- नसीर तुराबी
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
धूप ने हिज्र की दीवार उठाई घर में
- तारिक़ नईम
बहुत ख़ूब नक़्शा मिरे घर का है
कोई ख़्वाब फिर भी नए घर का है
- फ़ारूक़ इंजीनियर
वापस घर जा ख़त्म हुआ
खेल-तमाशा ख़त्म हुआ
- सालेह नदीम
मिरा तो वक़्त घर से कूच ही का है
सवाल सारे घर की ज़िंदगी का है
- महशर बदायुनी
आज के टॉप 4 शेर ऐ हिंदूओ मुसलमां आपस में इन दिनों तुम नफ़रत घटाए जाओ उल्फ़त बढ़ाए जाओ - लाल चन्द फ़लक मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा - अल्लामा इक़बाल उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे - जिगर मुरादाबादी हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मा'लूम कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी - अहमद फ़राज़ साहिर लुधियानवी कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया कैफ़ी आज़मी इंसां की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद बशीर बद्र दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों वसीम बरेलवी आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है - वसीम बरेलवी मीर तक़ी मीर बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो ऐसा कुछ कर के चलो यां कि बहुत याद रहो - मीर तक़ी...