'घर' घर पर कहे शायरों के अल्फाज हिंदी में
इस क़दर बढ़ने लगे हैं घर से घर के फ़ासले
दोस्तों से शाम के पैदल सफ़र छीने गए
- इफ़्तिख़ार क़ैसर
रात पड़े घर जाना है
सुब्ह तलक मर जाना है
- मोहम्मद अल्वी
उतरे तो कई बार सहीफ़े मिरे घर में
मिलते हैं मगर सिर्फ़ जरीदे मिरे घर में
- ज़हीर ग़ाज़ीपुरी
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
- अलीम मसरूर
मेरे घर के तमाम दरवाज़े
तुम से करते हैं प्यार आ जाओ
- अनवर शऊर
कुछ रोज़ नसीर आओ चलो घर में रहा जाए
लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता
- नसीर तुराबी
ऐसी तक़्सीम की सूरत निकल आई घर में
धूप ने हिज्र की दीवार उठाई घर में
- तारिक़ नईम
बहुत ख़ूब नक़्शा मिरे घर का है
कोई ख़्वाब फिर भी नए घर का है
- फ़ारूक़ इंजीनियर
वापस घर जा ख़त्म हुआ
खेल-तमाशा ख़त्म हुआ
- सालेह नदीम
मिरा तो वक़्त घर से कूच ही का है
सवाल सारे घर की ज़िंदगी का है
- महशर बदायुनी
एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.