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Hindi Short Story Narayana Ban Gaya Gentlemen by Naresh Kumar Pushkarna: नारायण बन गया जैंटलमैन


Hindi Short Story Narayana Ban Gaya Gentlemen: नारायण बन गया जैंटलमैन

Hindi Short Story Narayana Ban Gaya Gentlemen by Naresh Kumar Pushkarna: नारायण बन गया जैंटलमैन
हिंदी कहानी नारायण बन गया जैंटलमैन



नारायण, जो बिना नहाए, बिना कंघी किए, बिना प्रैस किए ड्रैस पहन कर ही स्कूल आ जाता था, जिस के मुंह से गुटका खाने के कारण हर समय बदबू आती रहती थी, आज जैंटलमैन बन गया था.

नरेश कुमार पुष्करना की कहानी

कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी  ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की.





‘‘पहला नाम है जैंटलमैन नारायण का. नारायण स्टेज पर आएं और कंपनी में सेवाएं देने के लिए अपना फौर्म भरें. अगला नाम है…’’ कहते हुए उन्होंने कई नाम लिए. नारायण अपना नाम सुनते ही फूला न समाया. जब उस का नाम पुकारा गया तो हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. कारण था नारायण को जैंटलमैन कह कर पुकारा जाना. दरअसल, नारायण सभी छात्रों का प्यारा और टीचर्स का पसंदीदा टौप करने वाला छात्र था. साथ ही इंटरव्यू के दौरान उस ने कंपनी वालों को बता दिया था कि वह जैंटलमैन बनने के लिए आईटी कंपनी जौइन करना चाहता है, सो उन्होंने भी उसे जैंटलमैन कह कर पुकारा.









नारायण स्टेज पर गया और फौर्म ले कर एक कोने में लगे डैस्क पर बैठ कर उसे भरने लगा. उस का तो जैसे सपना साकार हो गया था. उसे लाखों का सालाना पैकेज मिला था. फौर्म भरते हुए वह वर्तमान से अतीत में खो गया. उस की नजरों के सामने अचानक वह दिन घूमने लगा जब उस ने पापा से स्मार्टफोन लेने की जिद की थी. उस दिन पापा ने सरसरी तौर पर पूछा, ‘‘परसों तुम्हारा जन्मदिन है. क्या गिफ्ट चाहिए?’’





बस, पापा का पूछना था और नारायण का कहना, ‘‘मुझे आप के जैसा स्मार्टफोन चाहिए. क्लास में सब के पास स्मार्टफोन है, मेरे पास नहीं.’’




‘‘पर बेटा, स्कूल में तो मोबाइल अलाउड ही नहीं होता. हम तुम्हें कालेज जाने पर ले देंगे,’’ पापा ने कहा तो वह नाराज हो गया और बोला, ‘‘कालेज जाने पर तो मैं बाइक लूंगा, अभी मुझे फोन चाहिए, वह भी बिलकुल आप के फोन जैसा.’’




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मम्मी ने भी समझाया, ‘‘बेटा, अभी तो तेरे स्कूल की फीस गई है. फिर घर के खर्च भी काफी हैं. अगर थोड़ा रुक जाता तो…’’ इस पर नारायण भड़क गया, तो मम्मीपापा ने अपने खर्च में कटौती कर उसे बिलकुल वैसा फोन ले दिया जैसा पापा के पास था. स्मार्टफोन पा कर नारायण फूला न समाया. वह अगले दिन जल्दी तैयार हुआ और स्कूल चल दिया. स्कूल जा कर वह सभी दोस्तों को अपना फोन दिखा रहा था कि तभी उसे दूर से गायत्री आती दिखी तो वह उस की तरफ भागा और उसे स्मार्टफोन दिखाता हुआ बोला, ‘‘देखो, अब तो मेरे पास भी स्मार्टफोन है. मिलाओ हाथ, लगो गले.’’





‘‘हूं,’’ गायत्री ने नाकमुंह सिकोड़ा, ‘‘सिर्फ स्मार्टफोन रख कर कोई स्मार्ट नहीं बन जाता. पहले अपना हुलिया तो ठीक करो. स्मार्टफोन तो मम्मीपापा ने ले दिया, लेकिन यह नहीं सिखाया कि स्कूल कैसे बन कर जाते हैं. न तुम ने कंघी की, न ड्रैस प्रैस कर के पहनी. तिस पर हमेशा गुटका खाते रहते हो. जैसे उठे वैसे ही आ जाते हो. मुझे तो लगता है तुम नहाते भी नहीं होगे. पता है तुम जब बात करते हो तो मुंह से गुटके के टुकड़े गिरते हैं.





‘‘क्लास मौनिटर नीता भी कई बार तुम्हें यह बात समझा चुकी हैं कि जैंटलमैन बन कर रहा करो. हमेशा साफसुथरे बन कर स्कूल आया करो पर तुम्हारे कानों तो जूं नहीं रेंगती. हाथ भी मिलाऊंगी और गले भी लगा लूंगी, पहले जैंटलमैन बन कर दिखाओ.’’ गायत्री की बातें नारायण को गहरा आघात कर गईं. कहां तो वह सोच रहा था गायत्री उसे मिल कर खुश होगी. उस का फोन देखेगी पर उस ने तो उलटा डांट दिया. वह भी क्या करे, कई बार गुटका छोड़ने की कोशिश की पर नहीं छूटा. पापा भी कई बार समझाते हैं साफसुथरे जैंटलमैन बन कर रहो, पढ़ाई करो. अब तुम्हारी दाढ़ी आ गई है तो शेव कर के रहा करो पर मैं तो निखद ही रहा. कई बार पापा यह भी कहते कि पढ़ाई के साथ कोई काम करो, चार पैसे जेब में आएंगे तो आत्मविश्वास भी बढ़ेगा व तरक्की भी करोगे. लेकिन नारायण तो बस खाली समय भी घर पर सो कर बिताता, इसी कारण कक्षा के अन्य छात्रछात्राएं भी उस से कतराते हैं. गायत्री की बातों से रुष्ट नारायण स्कूल से घर आया तो औंधेमुंह लेट गया. उस ने खाने को भी मना कर दिया. अगले दिन संडे था. पापा को आज भी औफिस जाना था. उन का फोन चार्जिंग पर लगा हुआ था. नारायण ने उन का फोन चार्जिंग से हटाया और अपना फोन चार्जिंग पर लगा दिया.










नारायण 12वीं कक्षा का छात्र था. स्कूल में हमेशा लेट जाना, पान, गुटका आदि खाना और बिना कंघी, बिना साफ कपड़े पहने जाने के कारण छात्र उस से कटते थे. वह मन ही मन गायत्री को प्यार करता था, लेकिन उस की गंदी आदतों के कारण गायत्री भी उसे भाव न देती. नारायण के पापा एक प्राइवेट कंपनी में जौब करते थे. आज संडे के दिन भी उन्हें जाना पड़ रहा था. उन का वेतन भी बहुत कम था. किसी तरह घर चला रहे थे व जुगाड़ कर नारायण को पढ़ा रहे थे. उन की मनशा थी कि नारायण कंप्यूटर, सौफ्टवेयर इंजीनियर बने, लेकिन नारायण को इस से कोईर् लेनादेना न था. वह देर तक सोता रहता. फिर उठ कर स्कूल भागता. घर की आर्थिक मंदी से भी उसे कोई लेनादेना न था. बिस्तर पर पड़े नारायण को बाय कह उस के पापा ने फोन चार्जिंग से हटाया और जेब में डाल कर चल पड़े औफिस. थोड़ी देर बाद मम्मी भी बाजार सामान लेने चल दीं. तभी फोन बजा तो नारायण ने फोन स्क्रीन पर देखा किसी अभिनव का फोन था.






यह क्या नारायण चकराया, ‘ओह, उस ने चार्जिंग से पापा का फोन हटा कर अपना फोन लगा दिया था. लेकिन एकसा फोन होने के कारण पापा मेरा फोन ले गए.’ उस ने सोचा, फिर सोचा, ‘फोन अटैंड कर बता देता हूं कि पापा फोन घर भूल गए हैं. सो जैसे ही उस ने फोन उठाया, उधर से आवाज आई, ‘‘प्रदीपजी, आप अपने बेटे नारायण की चिंता छोडि़ए, आप के बेटे नारायण की पढ़ाई के लिए लोन मिल जाएगा. मैं आप को पर्सनल लोन आप के कहे मुताबिक दिलवा दूंगा. ब्याज की डिटेल मैं ने आप के व्हाट्सऐप पर डाल दी हैं, देख लीजिएगा,’’ जब तक नारायण अभिनव को बताता कि पापा फोन भूल गए हैं, उधर से फोन कट गया. नारायण को उत्सुकता हुई कि जाने क्या डिटेल हैं लोन की, सो उस ने उत्सुकतावश पापा व अभिनव के बीच हुई चैटिंग पढ़ी. उसे पढ़ कर नारायण को बड़ी हैरानी हुई, पापा ने लिखा था, ‘मैं नारायण की इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए लोन लेना चाहता हूं.’






अभिनव का जवाब था, ‘आजकल ऐजुकेशन लोन मिल जाता है, जिस का भुगतान बच्चे की पढ़ाई के बाद नौकरी लगने पर बच्चे द्वारा ही किया जाता है.’





पापा ने कहा था, ‘नहींनहीं, मैं नारायण पर कोई बोझ नहीं डालना चाहता, फिर जब नारायण की नौकरी लगेगी और उसे अपनी पढ़ाई के खर्च का लोन चुकाना पड़ेगा तो वह क्या सोचेगा कि मांबाप ने पढ़ाई भी करवाईर् तो मेरे ही कंधे पर बंदूक रख कर. मुझे पर्सनल लोन दिलवा दो. किसी तरह नारायण की बीटैक हो जाए. बस, फिर तो नारायण ही संभालेगा घर को.’



अभिनव का जवाब था, ‘ठीक है, कोशिश करता हूं.’




फिर आज के मैसेज में अभिनव ने पर्सनल लोन की डिटेल भेजी थीं जो काफी महंगा था. ‘ऐसा लोन लेना शायद पापा की तनख्वाह के हिसाब से संभव भी न होगा. फिर उसे चुकाएंगे कहां से,’ नारायण ने सोचा. मैसेज पढ़ कर नारायण की आंखें भर आईं. ‘पापा मेरे लिए कितना सोचते हैं. मेरे सैटल होने के बाद भी वे नहीं चाहते कि मैं लोन चुकाऊं या मुझ पर भार पड़े,’ नारायण सोच में पड़ा था. ‘ठीक कहती है गायत्री भी, मुझे घर के लिए, मातापिता के लिए सोचना चाहिए और एक मैं हूं इतनी महंगी डिमांड कर फोन लिया और अभी बाइक की इच्छा भी रखता हूं.’ वह खुद को धिक्कारने लगा, फिर कुछ सोच कर वह उठा और नहाने चल दिया. जब तक नारायण नहा कर आया मम्मी बाजार से आ चुकी थीं. मम्मी ने नारायण का बदला रूप देखा तो हैरान रह गईं. कहां तो वह 12 बजे तक उठता ही न था और कहां नहाधो कर तैयार था. उन्होंने नारायण से पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’ नारायण ने इतना ही कहा, ‘‘जैंटलमैन बनने,’’ और घर से निकल गया.






वह सीधा अपने दोस्त लक्ष्मण के घर गया जिस के बड़े भैया अखबार का काम करते थे. उस ने उन से अखबार बांटने का काम मांगा तो वे बोले, ‘‘हां, हमें तो एक लड़के की जरूरत है ही. हम तुम्हें 1,100 रुपए महीना देंगे. कल साइकिल ले कर सैंटर पहुंच जाओ.’’ लक्ष्मण के भैया को ‘थैंक्स’ कह कर नारायण खुशीखुशी घर लौटा और अपनी पुरानी साइकिल निकाल कर उस में तेल डालने व साफसफाई करने लगा. उस में यह परिवर्तन देख कर मां भी हैरान थीं. कहां बाइक की डिमांड करने वाला नारायण आज साइकिल साफ कर रहा था. अगले दिन सुबह से उस ने 4 बजे उठ कर अखबार डालने का काम शुरू कर दिया. वह सुबह 7 बजे तक अखबार बांटता और वापस आ कर नहाधो कर प्रैस किए कपड़े पहन स्कूल जाता.







मम्मीपापा हैरान थे, 5 मिनट… 5 मिनट… कह कर स्कूल के लिए लेट उठने वाला नारायण अब सुबह न केवल जल्दी उठता बल्कि काम भी करता. साथ ही वह साइकिल से ही स्कूल जाता, जिस से वैन का किराया भी बचने लगा था. अखबार के काम से मिलने वाले पैसे उस ने अपने पास इकट्ठे करने शुरू कर दिए. साथ ही वह स्कूल से आ कर इंजीनियरिंग के ऐंट्रैंस टैस्ट की तैयारी करता व शाम को 10वीं के 5 बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता. अपनी मेहनत के बल पर 12वीं में नारायण ने 80त्न अंक ले कर क्लास में टौप किया. आगे की पढ़ाई के लिए जहां नीता उस की क्लास मौनिटर विमन कालेज चली गईं, वहीं गायत्री ने वोकेशनल कालेज में कंपनी सैक्रेटरी के कोर्स के लिए ऐडमिशन लिया. नारायण ने इंजीनियरिंग के ऐंट्रैंस टैस्ट में अच्छी रैंक ला कर टौप आईटी कालेज में इंजीनियरिंग में ऐडमिशन लिया. आईटी में ऐडमिशन की फौरमैलिटीज पूरी होने पर फीस भरने के लिए हफ्ते का समय मिला. नारायण के पापा अपने दोस्त अभिनव को फोन कर बोले, ‘‘अभिनवजी, लोन की कार्यवाही जल्दी पूरी करवा दो ताकि नारायण की फीस भरी जा सके.’’







‘‘हां, करता हूं,’’ अभिनव से जवाब मिला तो नारायण के पापा प्रदीपजी ने फोन रखा. तभी नारायण आया और पापा के हाथ में नोट रखते हुए बोला, ‘‘पापा, आप को लोन लेने की आवश्यकता नहीं है, यह लीजिए पैसे. बस, बैंक से ड्राफ्ट बनवाइए ताकि फीस भरी जा सके. यह पैसे मैं ने अखबार का काम करने व ट्यूशन पढ़ाने से कमाए हैं. हां, कुछ कम हों तो अवश्य आप की सहायता की जरूरत होगी.’’ पापा ने नोट पकड़े तो उन की आंखों से आंसू छलक आए, उन्होंने नारायण को गले लगा लिया. सभी नारायण में अचानक आए इस बदलाव से अचंभित थे. अब उस ने गुटका खाना भी छोड़ दिया था और सदा टिपटौप हो कर रहता. रोज शेव बनाता, अपने कपड़े खुद प्रैस कर पहनता. वह सचमुच जैंटलमैन बन गया था. लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह हृदय परिवर्तन पापा के फोन पर पढ़े मैसेज का नतीजा है. धीरेधीरे 4 साल बीत गए. गायत्री तब तक बीए कर एक कंपनी में कंपनी सैक्रेटरी बन गई थी. नीता की शादी हो गई और वह अपने पति के बिजनैस में उन की सहायता करने लगी. इधर नारायण ने मेहनत से पढ़ाई की व साथसाथ 10वीं व 12वीं के बच्चों की ट्यूशन ले कर न केवल अपनी पढ़ाई का खर्च निकाला बल्कि घर में भी आर्थिक सहायता करने लगा.





नारायण की सहपाठी पारुल, रविंद्र, हरीश व विकास तो उसे अभी से जैंटलमैन कह कर पुकारने लगे थे. घरबाहर सभी उसे प्यार करते. कालेज में टीचर्स का तो वह चहेता था, क्योंकि पढ़ाई के साथ वह शिष्टता में भी आगे बढ़ गया था. आज टिपटौप नारायण जब कालेज आया तो पारुल ने उसे स्पष्ट कह दिया, ‘‘पढ़ाई के कारण तुम्हें कंपनी वाले प्लेसमैंट दें न दें, लेकिन तुम्हारी पर्सनैलिटी को देख यानी इस जैंटलमैन को अवश्य देंगे प्लेसमैंट.’’ और फिर हुआ भी यही, रविंद्र व हरीश का नाम बाद में लिया गया जबकि नारायण का नाम पहले, वह भी जैंटलमैन संबोधित करते हुए. ‘‘अगर फौर्म भर गए हों तो दे दें,’’ कंपनी मैनेजर की आवाज से नारायण की तंद्रा भंग हुई और वह वर्तमान में आया. उस ने जल्दी से फौर्म भर कर मैनेजर को दिया और वह हौल से बाहर निकलने को था कि तभी विकास ने आ कर बताया, ‘‘इंटरनैट पर रिजल्ट घोषित हो गया है. मैं ने सब का रिजल्ट देख लिया है और हमारे जैंटलमैन ने तो टौप किया है टौप.’’





नारायण सुनते ही खुशी से झूम उठा. पारुल, हरीश व रविंद्र के साथ वह कंप्यूटर रूम की ओर भागा रिजल्ट देख कर नारायण बहुत उत्साहित था अब वह अपने घर के, मातापिता के आर्थिक उन्मूलन में सहायक बन सकता है. पढ़ाई भी पूरी हुई और बेहतर प्लेसमैंट भी मिली. नारायण ज्यों ही कंप्यूटर रूम से बाहर निकल गेट की ओर बढ़ा सामने गायत्री बांहें फैलाए खड़ी थी. वह अचानक उसे यहां देख अचंभित हुआ.





‘‘आओ, जैंटलमैन. यह हुई न बात. मातापिता का सपना भी पूरा और साथ ही मेरा इंतजार भी खत्म,’’ और उस ने नारायण को सीने से लगा लिया. तभी नीता का फोन आया. उस ने भी नारायण को उस की कामयाबी पर बधाई दी. नारायण ने सब की बधाई ली और चल पड़ा घर की ओर मातापिता को अपनी इंजीनियरिंग पूरी होने व टौप करने के साथसाथ टौप आईटी कंपनी में प्लेसमैंट की खुशखबरी देने. अब वह न केवल जैंटलमैन बन गया था बल्कि घर के आर्थिक उन्मूलन में भी सहायक बन सकता था.





घर पहुंच मातापिता को उस ने खुशखबरी दी तो उन्होंने उसे अश्रुपूरित नेत्रों से सीने से लगा लिया. अब नारायण वास्तव में जैंटलमैन बन गया था

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