बैठ जाते थे अपने पराये बैल गाड़ी में
जिसमे पूरा परिवार न बैठ पाए
उसे तुम कार कहते हो
मुझको वो मेरा गांव याद दिलाता है
जिसमे पूरा परिवार न बैठ पाए
उसे तुम कार कहते हो
मुझको वो मेरा गांव याद दिलाता है
बैलगाड़ी कविता
सस्ती लोकप्रियता का सुंदर तरीका
हमने भी आख़िर लिख दी कविता
गलत पिच पर बल्ला घुमाओ
देश भर के मीडिया में छाओ
चमचे बनाएंगे डैडी सा हीरो
अंत में तो बनना है ही ज़ीरो
चढ़े हो तुम भी 'बैलगाड़ी'
ज्यादा नहीं दूर जाएगी गाड़ी !
सस्ती लोकप्रियता का सुंदर तरीका
हमने भी आख़िर लिख दी कविता
गलत पिच पर बल्ला घुमाओ
देश भर के मीडिया में छाओ
चमचे बनाएंगे डैडी सा हीरो
अंत में तो बनना है ही ज़ीरो
चढ़े हो तुम भी 'बैलगाड़ी'
ज्यादा नहीं दूर जाएगी गाड़ी !