सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Father's Day Special Story Navjeevan Kahani In Hindi - Hindi Shayari h

 फादर्स डे स्पेशल : नवजीवन -विनय के पिता की क्या इच्छा थी?

आसपास के दूषित वातावरण के कारण विनय के पिता का स्वास्थ्य बिगड़ गया था. फिर कैसे विनय ने अपने घर के आसपास के वातावरण को शुद्ध कर के पिता को नवजीवन प्रदान किया?

Father's Day Special Story Navjeevan Kahani In Hindi
नवजीवन Kahani In Hindi






विनय बहुत होनहार छात्र था. उस के घर में कुल 3 सदस्य थे. उस के मातापिता और वह स्वयं. उस के पिता मुकुटजी बड़े ही सभ्य पुरुष थे. घर में सुखसुविधा के विशेष साधन नहीं थे फिर भी परिवार के सभी लोग अपना कर्तव्य निभाते हुए बड़ी प्रसन्नतापूर्वक जीवनयापन कर रहे थे.



विनय अपने पिता की भांति धीरगंभीर और हंसमुख स्वभाव का तेजस्वी किशोर था. उस में कोई भी अवगुण नहीं था. इसी कारण घर से स्कूल तक सभी उस पर गर्व करते थे. वह मातापिता तथा गुरु का सम्मान करता था. उन की प्रत्येक आज्ञा का पालन बड़ी निष्ठा के साथ करता था. इसी तरह दिन बीतते जा रहे थे.

विनय के पिता ने जहां घर लिया था, वहां बहुत सी मिलें, फैक्टरियां आदि आसपास ही थीं. वे स्वयं भी एक मिल में कार्यरत थे. दिन भर काम करते तथा शाम को थकेहारे घर आते. विनय उस समय पढ़ाई करता रहता. पिताजी को देख कर वह सोचता, ‘पिताजी मेरी पढ़ाई के लिए कितना परिश्रम करते हैं और इस कारण अपनी सेहत की भी चिंता नहीं करते. आखिर मैं तो छात्रवृत्ति पा ही रहा हूं. क्या आवश्यकता है पापा को इतना परेशान होने की?’ विनय सोचता कि वह थोड़ा और पढ़ ले तो आत्मनिर्भर बन कर पिता की सेवा करे.




एक दिन वह स्कूल से घर पहुंचा तो देखा कि पिताजी लेटे हुए हैं और मां उन के पास उदास बैठी हुई हैं. उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां, पिताजी ऐसे क्यों लेटे हुए हैं?’’

पिताजी ने कहा, ‘‘ठीक हूं बेटा, तू परेशान मत हो और अपनी पढ़ाई में ध्यान लगा.’’

किंतु विनय का मन पढ़ाई में न लगा. दूसरे ही दिन वह पिताजी को डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने विनय के पिता का निरीक्षण किया और बोले, ‘‘इन को दवाएं तो दीजिए ही, साथ में शुद्ध वातावरण में रखिए. वातावरण में जो कार्बन और धूल के कण होते हैं, वे सांस के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं. इस से स्वास्थ्य खराब हो जाता है. इन को आराम की तथा शुद्ध व ताजी हवा की आवश्यकता है.’’

डाक्टर की यह चेतावनी सुन कर विनय पिता के साथ घर पहुंचा. उस का मन बहुत उदास था. उस के धनी मित्रों ने पिताजी को किसी पहाड़ी प्रदेश में ले जाने के लिए कहा. विनय का हृदय बैठा जा रहा था, ‘कहीं पिताजी को कुछ हो गया तो…’

उस की खुशी अब गंभीरता में बदल गई. वह शोकग्रस्त रहने लगा. वह चिकित्सक की लिखी दवाएं पिताजी को समय से दे रहा था लेकिन पिताजी को किस जगह ले जाए जो पिताजी के अनुकूल हो? दिनरात वह यही सोचता. ‘पहाड़ी जगहों पर ले जाने के लिए इतने पैसे कहां से आएंगे?’



उस की चुप्पी उस के गुरुजी से छिपी न रह सकी. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या कारण है कि आजकल तुम बहुत गंभीर रहते हो? क्या मैं तुम्हारी इस परेशानी का कारण जान सकता हूं. विनय भी गुरुजी को अपने पिताजी से कम न समझता था, अत: उस ने उन से कहा कि पिताजी अस्वस्थ हैं तथा डाक्टर ने उन्हें ऐसी जगह रहने के लिए कहा है जहां शुद्ध प्राकृतिक वातावरण हो. धूल और धुएं का नामोनिशान न हो तथा स्वच्छ ताजी हवा मिले. लेकिन मैं आर्थिक परेशानी के कारण उन्हें कहीं बाहर नहीं ले जा सकता. क्या करूं, क्या न करूं? गुरुजी, आप ही कुछ बताइए?’’

गुरुजी बोले, ‘‘बस, जरा सी बात के लिए इतना परेशान हो. तुम्हारे घर से थोड़ी दूरी पर जो पार्क है न, वहां बहुत सारे पेड़ हैं. अपने पिताजी को सुबहशाम वहां ले जाया करो. वायुमंडल को साफ रखने के लिए तुम अपने घर के चारों ओर पौधे ला कर लगा दो इस से न सिर्फ तुम्हारे पिता को बल्कि तुम्हें भी स्वच्छ वातावरण मिलेगा. पेड़ कार्बन डाईऔक्साइड खींच लेते हैं और बदले में हमें औक्सीजन देते हैं. साथ ही हमें ताजा फल भी देते हैं. इतने अच्छे साथी बदले में तुम से क्या लेते हैं, केवल जल. विनय, पौधे लगाओ और उन को जल से सींचना न भूलो.’’

विनय बोला, ‘‘ठीक है गुरुजी. अब मैं पेड़ लगाऊंगा और अपने सभी मित्रों से भी लगवाऊंगा, साथ ही उन की देखभाल भी करूंगा.’’

गुरुजी विनय की बात सुन कर बड़े प्रसन्न हुए.

अब विनय की उदासी गायब हो गई थी. सायंकाल से ही विनय ने पिताजी को पार्क ले जाना आरंभ कर दिया. वहां घंटों बैठ कर पिताजी से बातें करता, फिर दोनों वापस घर आ जाते. विनय की मां भी बड़ी प्रसन्न थीं. विनय की बुद्धिमानी से पिताजी की हालत में सुधार हो रहा था.

ये भी पढ़ें-ऐ मच्छर, तू महान है: अदने से मच्छर की महिमा अपरंपार

एक दिन विनय के पिताजी ने प्रसन्न मन से कहा, ‘‘बेटा विनय, अब मैं बिलकुल स्वस्थ हो गया हूं. अब मुझे अपने काम पर जाना चाहिए.’’

विनय बोला, ‘‘नहीं पिताजी, पहले डाक्टर की सलाह लेनी जरूरी है.’’

पिताजी ने कहा, ‘‘चलो, तुम्हारी यह भी बात मान लेते हैं.’’

अगले दिन दोनों डाक्टर के पास पहुंचे. डाक्टर ने देखते ही कहा, ‘‘मुकुट बाबू, विश्वास कीजिए आप के स्वस्थ होने में मुझ से अधिक विनय का हाथ है, क्योंकि दवा से ज्यादा आप को स्वच्छ और ताजी हवा की आवश्यकता थी, जिस के बिना आप का ठीक हो पाना असंभव था. अब आप पूर्ण स्वस्थ हैं.’’

विनय यह जान कर कि पेड़पौधे हमारे जीवन का आधार हैं, दोगुने उत्साह से पेड़ों की देखभाल करने लगा ताकि घर में औक्सीजन प्रविष्ट हो. वातावरण प्रदूषण रहित हो और सभी स्वस्थ जीवन जी सकें.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे