हादसे उनके करीब आकर पलट जाते रहे
अपनी चादर देखकर जो पांव फैलाते रहे
Anwar jalalpuri ka mushaira | अनवर जलालपुरी शायरी
मेरी बस्ती के लोगो! अब न रोको रास्ता मेरा
मैं सब कुछ छोड़कर जाता हूं देखो हौसला मेरा
ज़ुल्फ़ को अब्र का टुकड़ा नहीं लिक्खा मैंने
आज तक कोई क़सीदा नहीं लिक्खा मैंने
जो बा हिम्मत हैं दुनिया बस उन्हीं का नाम लेती है
छुपा कर ज़ेहन में बरसों मेरा ये तजरूबा रखना
सच बोलते रहने की जो आदत नही होती
इस तरह से ज़ख्मी ये मेरा सर नही होता
अनवर जलालपुरी के शेर
कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िन्दगी क्या है
ज़मीं से एक मुठ्ठी ख़ाक लेकर हम उड़ा देंगे
ख्वाहिश मुझे जीने की ज़ियादा भी नहीं है
वैसे अभी मरने का इरादा भी नहीं है
anwar jalalpuri shayari
खुद ही तन्हाई में करना ख्वाहिशों से गुफ्तगू
और अरमानों की बरबादी को तन्हा देखना
चांदनी में रात भर सारा जहां अच्छा लगा
धूप जब फैली तो अपना ही मकां अच्छा लगा
ख़राब लोगों से भी रस्म व राह रखते थे
पुराने लोग ग़ज़ब की निगाह रखते थे