हिंदी कहानी |
यह किस्सा लगभग बीस साल से भी ज्यादा पुराना है । उस दिन वह बहुत खुश था । पहली बार उसका नाम किसी अखबार में छपा था । उसने दूरदर्शन पर कोई कार्यक्रम देखा था , जो उसे बहुत पसंद आया ।
इसी आशय का एक पत्र उसने अखबार के संपादक के नाम लिखा और वह छप गया था । उसी दिन से उसे अखबार में अपना नाम देखने का चस्का लग गया । उसने पोस्ट ऑफिस से बहुत सारे पोस्टकार्ड खरीद लिए । जब भी उसके दिमाग में कोई बात आती , तुरंत ही वह पोस्ट कार्ड पर लिख कर अखबार को भेज दिया करता । पहले पहल उसका लिखा कभी छपता , कभी नहीं भी छपता ।
पर बाद में उसकी पकड़ मजबूत होती गई और छपने का प्रतिशत बढ़ता गया । जिस दिन उसका कोई पत्र छपता , उस दिन वह सुबह से ही बहुत खुश रहता । अब वह एक से ज्यादा अखबारों में पत्र लिखने लगा । उसकी नजर अखबार में छपने वाली अन्य सामग्री जैसे लेख , कहानी , लघुकथा , व्यंग्य आदि पर पड़ी । उसने अब सब कुछ लिखना शुरू कर दिया । निरंतर प्रयास के बाद उसे वर्षों बाद सफलता मिलने लगी । अपनी हर छपी हुई रचना की कटिंग संभाल कर रखने लगा । किसी छुट्टी के दिन वह अपनी कटिंग लेकर बैठता और उसे बार - बार पढ़ता ।
अब उसका झुकाव व्यंग्य की तरफ ज्यादा हो गया । कुछ फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे मंचों का आगमन हुआ । अब उसे अपने लेखन की कटिंग जेब में लेकर घूमने की जरूरत नहीं रह गई । वह अपनी छपी हुई रचनाएं फेसबुक और व्हाट्सएप पर अपलोड करने लगा । उस पर उसे तारीफें भी मिलने लगीं । एक दिन वह व्हाट्सएप के एक बड़े व्यंग्य समूह से जुड़ गया । इस समूह में कई दिग्गज व्यंग्यकार थे ।
उसने सोचा कि वरिष्ठों के साथ रहकर , उन्हें पढ़कर वह भी कुछ सीख सकेगा । वह समूह में डाले जाने वाले हर संदेश को ध्यान से पढ़ता । उसका ज्यादातर समय वहीं गुजरता । उसका लिखना भी कम हो गया । जब भी लिखने बैठता , अपने लेखन में बिंब , उपमा , अलंकार , वर्तनी ही खोजता रहता । मूल विषय से ध्यान भटक जाता और कुछ भी नहीं लिख पाता । पिछले एक साल में उसकी कोई रचना कहीं नहीं छपी । वह एक अ सफल व्यंग्यकार बन गया ।