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नेटफ्लिक्स Haseena Dilruba Movie Review : विनिल और तापसी , हसीन नहीं हो सकी दिलरुबा

 
नेटफ्लिक्स Haseen Dilruba Movie Review :  विनिल और तापसी , हसीन नहीं हो सकी दिलरुबा
हसीन दिलरुबा Review in hindi
 
 
Movie Review: हसीन दिलरुबा 
कलाकार: तापसी पन्नू, विक्रांत मैसी, हर्षवर्धनराणे, आदित्य श्रीवास्तव, दया शंकर पांडे, यामिनी दास आदि।निर्देशक: विनिल मैथ्यू 
ओटीटी: नेटफ्लिक्स 
रेटिंग: **
 
 
 
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फिल्म की रिलीज से ऐन पहले जब कोई निर्देशक कहे कि अगर उसे फिल्म की रिलीज का प्लेटफॉर्म पहले पता होता तो वह उसी हिसाब से फिल्म बनाता, तो वहीं समझ आ जाता है कि फिल्म में लोचा हो गया है। विनिल विज्ञापन फिल्मों के नामी निर्देशक रहे हैं। कुछ मीठा हो जाए जैसी लाइनें उन्हीं के विज्ञापनों से निकली हैं, लेकिन एक पंच लाइन को सही साबित करने के लिए विज्ञापन बनाना और एक ऐसी फिल्म बनाना जिसके लिए कोई कोरोना महामारी से जूझते हुए दो घंटे निकालकर बैठे, बिल्कुल विपरीत दिशा में चलने वाला काम है। फिर, कहानी भी ऐसी जो हर समय लगे कि आपको पहले भी कहीं देखा है। तापसी पन्नू के चेहरे से पहली बार उनकी चिर परिचित ताजगी गायब है। विक्रांत मैसी की मेहनत से की गई अदाकारी फिर एक बार उनके किरदार को असली नहीं लगने देती। और, हर्षवर्धन राणे की मौजूदगी भी फिल्म बचा नहीं पाती।
 

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orignal movie netflix हसीन दिलरुबा




गंगा किनारे बसे छोटे शहर में रहने वाला रिशु बिजली विभाग में इंजीनियर है। दिल्ली की रहने वाली रानी के अरमान बड़े हैं। पर घरवालों के कहने पर वह सरकारी नौकरी वाले खुद से ऊंचाई में कम बंदे से ब्याह रचा लेती है। रिशू होम्योपैथी की दवाओं में मर्दानगी तलाशता रहता हैं और एक दिन रिवर रैफ्टिंग का बिजनेस करने वाला उनका कजिन रानी भाभी के साथ रतिक्रिया करके निकल लेता है। मामला संगीन तब होता है जब मोहल्ले वाले रिशू को ताना मारने लगते हैं और अपनी बीवी के लिए रिशू की मोहब्बत रिश्तों की अदावत बनकर जागने लगती है। पगलैट आशिक सा रिशू हर वो काम करता है जो किताबी है। और, रानी तो खैर है ही सौ फीसदी किताबी। उसका हर कदम उसके फेवरेट उपन्यास लेखक दिनेश पंडित के उपन्यास के हिसाब से जो उठता है।


विनिल और तापसी , हसीन नहीं हो सकी दिलरुबा
 
 
फिल्म ‘हसीन दिलरुबा’ का प्लॉट बहुत सही उठाया था इसकी लेखक कनिका ढिल्लों ने। लेकिन, अगर आप ध्यान से देखेंगे तो यही प्लॉट उनकी पिछली फिल्म ‘मनमर्जियां’ का भी था। एक टूट कर प्यार करने वाला पति। एक बिंदास युवती जिसकी कामेच्छाएं उसकी इच्छाओं से आगे भागती रहती हैं। और, एक गबरू आशिक। कहानी में इस बार ट्विस्ट लोकप्रिय लुगदी साहित्य का भी है, लेकिन कनिका इस बार अपने तीनों मुख्य किरदारों को न तो जीवन का उद्देश्य दे पाईं, न उनका अतीत ठीक से सजा पाईं और न ही उनके वर्तमान की धूसर रंग वाली जिंदगी को ढंग से विस्तार दे पाईं। कहानी रिपीट है। स्क्रिप्ट इनकम्पलीट है और डॉयलॉग इसके ऑब्सलीट हैं। फिल्म के निर्देशक विनिल को फिल्म ‘हंसी तो फंसी’ के बरसों बाद एक अच्छी स्टार कास्ट मिली थी अपनी दूसरी फिल्म बनाने को लेकिन एक गलत स्टोरी ने उनके सारे किए कराए पर पानी फेर दिया।

विनिल और तापसी , हसीन नहीं हो सकी दिलरुबा


विनिल मैथ्यू तकनीकी रूप से दक्ष निर्देशक हैं। लेकिन, हिंदुस्तान की बोलियों और मुहावरों की समझ उन्हें उतनी नहीं है। कनिका ढिल्लों जैसे राइटर इसी का फायदा उठाते हैं। वे मुंबइया फिल्म निर्देशकों को हिंदी हार्टलैंड की कहानी का ख्वाब दिखाते हैं। प्रोड्यूसर, एक्टर सब इस हिंदी हृदयप्रदेश पर मोहित हैं। लेकिन, हिंदी हृदयप्रदेश देखना क्या चाहता है, ये बताने वाला टेबल की दूसरी तरफ का शख्स इनके पास नहीं है। हॉलीवुड में ऐसे लोगों को स्क्रिप्ट डॉक्टर कहा जाता है। मुंबई की कुछेक फिल्म निर्माण कंपनियों में हिंदी पट्टी के अखबारों में काम करने वालों ने ये काम शुरू किया है और इसका उन्हें फायदा भी मिला है, लेकिन ओटीटी में ऐसा कुछ शुरू होना अभी बाकी है।


विनिल और तापसी , हसीन नहीं हो सकी दिलरुबा



जैसा कि नाम से जाहिर है फिल्म ‘हसीन दिलरुबा’ एक हसीना थी टाइप की फिल्म हो सकती थी। लेकिन, कहानी में सरप्राइज रखने के चक्कर में बस हसीना के पास ही फिल्म में करने को कुछ नहीं होता। वह या तो अपनी मां और मौसी से फोन पर पति की बुराई करती रहती है या फिर थाने में कोतवाल को दिनेश पंडित से सीखा उधार का ज्ञान पिलाती रहती है। जूते में कील फंसाकर लाई डिटेक्टर टेस्ट से बचने वाले सीन से तो यूं लगा था कि हसीना वाकई कुछ धमाका करेगी। लेकिन, फिल्म में जो धमाका हुआ वही क्लाइमेक्स में फुस्स निकला। हाथ कटाकर हवन करने वाले आशिक इस जमाने में तो सच्चे लगने से रहे।



विनिल और तापसी , हसीन नहीं हो सकी दिलरुबा


कलाकारों में तापसी पन्नू के लिए ये फिल्म बड़ा झटका है। उन्हें लगता है कि वह कैमरे के सामने अतरंगी सी अदाएं दिखाकर बहुत आकर्षक दिख सकती हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। ये तो सच है कि वह कंगना रणौत की ‘सस्ती कॉपी’ नहीं है। उनके भीतर बतौर अभिनेत्री कुछ ओरीजनल कर दिखाने का माद्दा भी बहुत है लेकिन इसके लिए उन्हें मुंबइया फिल्ममेकिंग के फॉर्मूलों से बाहर आना होगा। विक्रांत मैसी ने फिर एक बार चूल्हे पर चढ़ी धीमी आंच में पकती दाल सी गर्मी वाला किरदार किया है। नामचीन हीरोइन के बगल में आम कैंडी बनकर सेट होने का मोह उन्हें छोड़ना होगा। वह अभिनेता अच्छे हैं लेकिन पैकेज डील में निर्देशक उन्हें सस्ते के भाव में निकाल दे रहे हैं। हर्षवर्धन राणे ने अपना जलवा फिर दिखाया है। वह आने वाले दिनों के सुपरस्टार हैं। बस, कदम वह फिल्म दर फिल्म जमाकर रखते रहें।

विनिल और तापसी , हसीन नहीं हो सकी दिलरुबा


औसत सी सिनेमैटोग्राफी और कमजोर एडीटिंग ने फिल्म ‘हसीन दिलरूबा’ का ग्राफ और बिगाड़ा है। अमित त्रिवेदी ने कुछ अच्छे गाने बनाने की कोशिश बहुत की है लेकिन उन्हें ऐसी फिल्मों के लिए मिट्टी की महक ला सकने वाले ओरीजनल गीतकार चुनने होंगे। नहीं तो फिल्म देखने के दौरान अच्छे लगने वाले गाने अगर फिल्म खत्म होने के बाद गुनगुनाने भर को भी याद न रहें तो फिर मामला मेलोडियस लगता नहीं है।

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