Most Romantic Love Story In Hindi Crackdown: पटाक्षेप – भाग 1
शरद को दिलोजान से चाहा था सुरभि ने. पूरा भरोसा था उसे शरद पर. भविष्य की एक रंगीन दुनिया सजा ली थी दोनों ने. लेकिन नियति को तो कुछ और ही मंजूर था.
‘‘मां, मैं नेहा से विवाह करना चाहता हूं,’’ अनंत ने सिडनी से फोन पर सुरभि को सूचना दी. ‘‘कौन नेहा?’’ सुरभि चौंक उठी, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था. अनंत तो अभी25 वर्ष का ही था. उस ने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया. सुरभि के दिमाग में तो उस का अनंत अभी वही निर्झर हंसी से उस के वात्सल्य को भिगोने वाला, दौड़ कर उस के आंचल में छिपने वाला, नन्हामुन्ना बेटा ही था. अब देखते ही देखते इतना बड़ा हो गया कि विवाह करने का मन ही नहीं बनाया, बल्कि लड़की भी पसंद कर ली.
पति अवलंब की मृत्यु के बाद उस ने कई कठिनाइयों को झेल कर ही उस की परवरिश की और जब अनंत को अपने प्रोजैक्ट के लिए सिडनी की फैलोशिप मिली तब उस ने अपने दिल पर पत्थर रख कर ही अपने जिगर के टुकड़े को खुद से जुदा किया. वह समझती थी कि बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए अपनी ममता का त्याग करना ही होगा. आखिर कब तक वह उसे अपने आंचल से बांध कर रख सकती थी. अब तो उस के पंखों में भी उड़ान भरने की क्षमता आ गई थी. अब वह भी अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण फैसले लेने में समर्थ था. उस ने अपने बेटे की पसंद को वरीयता दी और फौरन हां कर दी.
अनंत को अपनी मां पर पूरा यकीन था कि वे उस की पसंद को नापसंद नहीं करेंगी. नेहा भी सिडनी में उसी के प्रोजैक्ट पर काम कर रही थी. वहीं दोनों की मुलाकात हुई जो बाद में प्यार में बदल गई और दोनों ने विवाह करने का मन बना लिया. नेहा के पेरैंट्स ने इस रिश्ते को स्वीकार कर लिया.
सुरभि ने अनंत से नेहा की फोटो भेजने को कहा जो उसे जल्द ही मिल गई. फोटो देख कर वह निहाल हो गई, कितनी प्यारी बच्ची है, भंवरें सी कालीकाली आंखें, आत्मविश्वास से भरी हुई, कद 5 फुट 5 इंच, होंठों पर किसी को भी जीत लेने वाली हंसी, सभीकुछ तो मनभावन था.
नेहा की हंसी ने सुरभि के बिसरे हुए अतीत को जीवंत कर दिया था, कितनी प्यारी पहचानी हुई हंसी है. यह हंसी तो उस के खयालों से कभी उतरी ही नहीं. इसी हंसी ने तो उस के दिन का चैन, रातों की नींद छीन ली थी. इसी हंसी पर तो वह कुरबान थी. तो क्या नेहा शरद की बेटी है? नहींनहीं, ऐसा कैसे हो सकता है. हो सकता है यह मेरा भ्रम हो. उस ने फोटो पलट कर देखा, नेहा कोठारी लिखा था, उस का शक यकीन में बदल गया.
वह अचंभित थी. नियति ने उसे कहां से कहां ला कर खड़ा कर दिया. किस प्रकार वह प्रतिदिन नेहा के रूप में शरद को देखा करेगी? लेकिन वह अनंत को मना भी तो नहीं कर सकती थी क्योंकि नेहा शरद का प्यार है जिसे छीनने का उसे कोई हक भी नहीं है. सो, इस शादी को मना करने का कोई समुचित आधार भी तो नहीं था. वह बेटे को क्या कारण बताती. धोखा तो शरद ने उसे दिया था. उस का बदला नेहा से लेने का कोई औचित्य भी नहीं बनता था. आखिर उस का अपराध भी क्या है? नहींनहीं. अनंत और नेहा एकदूसरे के लिए तड़पें, यह उसे मंजूर नहीं था.
चिराग नहीं बुझा
शादी के बाद पता ही न चला कि शरद कहां है और उस ने कभी जानने का प्रयास भी नहीं किया. अब उस का मन उस से छलावा कर रहा था. नेहा की फोटो देखते ही लगता मानो शरद ही सामने खड़े मुसकरा रहे हों.
शरद ने न जाने कब चुपके से उस के जीवन में प्रवेश किया था. शरद जिस ने उस की कुंआरी रातों को चाहत के कई रंगीन सपने दिखाए थे. कैसे भूल सकती थी वह दिन जब उस ने विश्वविद्यालय में बीए (प्रथम वर्ष) में ऐडमिशन लिया था.
भीरु प्रवृत्ति की सहमीसहमी सी लड़की जब पहले दिन क्लास अटैंड करने पहुंची तो बड़ी ही घबराई हुई थी. जगहजगह लड़केलड़कियां झुंड बना कर बातें कर रहे थे. वह अचकचाई सी कौरिडोर में इधरउधर देख रही थी. उसे अपने क्लासरूम का भी पता नहीं था. कोई भी ऐसा नहीं दिख रहा था, जिस से वह पूछ सके. तभी एक सौम्य, दर्शनीय व्यक्तित्व वाला युवक आता दिखा.
उस ने तनिक हकलाते हुए पूछा, रूम नंबर 40 किधर पड़ेगा? उस लड़के ने उसे अचंभे से देखा, फिर तनिक मुसकराते हुए बोला, ‘आप रूम नंबर 40 के सामने ही खड़ी हैं.’ ‘ओह,’ वह झेंप गई और क्लास में जा कर बैठ गई.
‘हाय, आई एम नीमा कोठारी.’ उस ने पलट कर देखा. उस की बगल में एक प्यारी सी उसी की समवयस्क लड़की आ कर बैठ गई. उस ने सुरभि की ओर मैत्री का हाथ बढ़ाया. कुछ ही देर में दोनों में गहरी दोस्ती हो गई.
क्लास समाप्त होते ही दोनों एकसाथ बाहर आ गईं. ‘दादा,’ नीमा चिल्ला उठी. सुरभि ने चौंक कर देखा, वही युवक उन की ओर बढ़ा चला आ रहा था. ‘क्यों रे, क्लास ओवर हो गईर् थी या यों ही बंक कर के भाग रही है?’ उस ने नीमा को छेड़ा.
‘नहीं दादा, क्लास ओवर हो गई थी. और आप ने यह कैसे सोच लिया कि हम क्लास बंक कर के भाग रहे हैं?’
उस के स्वर में थोड़ी नाराजगी थी. ‘सौरी बाबा, अब नहीं कहूंगा,’ उस ने अपने कान पकड़ने का नाटक किया. नीमा मुसकरा उठी. फिर उस ने पलट कर सुरभि से उसे मिलवाया, ‘दादा, इन से मिलो, ये हैं सुरभि टंडन, मेरी क्लासमेट. और सुरभि, ये हैं मेरे दादा, शरद कोठारी, सौफ्टवेयर इंजीनियर, बेंगलुरु में पोस्टेड हैं.’ उस ने दोनों का परिचय कराया.
सुरभि संकोच से दोहरी हुई जा रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने नमस्कार की मुद्रा में हाथ जोड़े. ‘मैं इन से मिल चुका हूं. क्यों, है न?’ उस ने दृष्टता से मुसकराते हुए सुरभि की ओर देखा. ‘अच्छा,’ नीमा ने शोखी से कहा.
घर आ कर सुरभि उस पूरे दिन के घटनाक्रम में उलझी रही. ‘यह क्या हो रहा है, ऐसा तो पहले कभी नहीं हुआ, न जाने कितने लोगों से प्रतिदिन मुलाकात होती रहती थी लेकिन इतनी बेचैनी तो पहले कभी नहीं हुई.’ मन में कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे.
आलू वड़ा
नीमा तो कह रही थी कि शरद बेंगलुरु में है तो फिर यहां क्या कर रहा है, फौरन ही उस का मन जवाब देता, हो सकता है आजकल यहीं हो और अपनी बहन को पहले दिन यूनिवर्सिटी छोड़ने आया हो. रहरह कर शरद का मुसकराता चेहरा उस की आंखों के सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता था, क्यों, झकझोर दिया न मैं ने तुम को, हो रही हो न मुझ से मिलने को बेचैन?
‘हांहां, मैं बेचैन हो रही हूं तुम से मिलने के लिए, क्या तुम भी?’ वह अनायास ही बुदबुदा उठी.
‘क्या हुआ दीदी, तुम नींद में क्या बुदबुदा रही हो?’ बगल में सोई हुई उस की छोटी बहन ऋ तु ने पूछा.
‘क्या हुआ, कुछ भी तो नहीं. तूने कोई सपना देखा होगा,’ सुरभि ने खिसिया कर चादर में अपना मुंह ढांप लिया और सोने की कोशिश करने लगी.
दूसरे दिन हजारों मनौतियां मनाते हुए वह घर से निकली, काश कि आज भी शरद से मुलाकात हो जाए तो कितना अच्छा होगा. पूरे दिन दोनों सहेलियां साथ ही रहीं किंतु वह नहीं आया. चाह कर भी वह नीमा से कुछ भी नहीं पूछ सकी, शर्म ने उसे जकड़ रखा था. उस का मन शरद से मिलने को बेचैन हो रहा था पर संस्कारों के चाबुक की मार से उस ने खुद को साधे रखा था. इन्हीं विचारों में डूबउतर रही थी कि तभी शरद आता दिखा.
‘क्या बात है दादा, आज आप फिर यहां. आज तो मेरा दूसरा दिन है और मैं कोई अकेली भी नहीं हूं,’ नीमा ने शरद को छेड़ा.
‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कल सुबह की फ्लाइट से वापस चला जाऊंगा, सोचा आज तुझे थोड़ा घुमाफिरा दूं, इत्मीनान से बातें करते हैं, तुझे कोई प्रौब्लम तो नहीं. फिर तो अरसे बाद ही मुलाकात होगी,’ शरद ने सुरभि की ओर देखते हुए कहा.
नीमा मन ही मन में मुसकरा रही थी, जबकि सुरभि का चेहरा आरक्त हो रहा था और बड़ी ही सरलता से उस के मन के भावों की चुगली कर रहा था. ‘अच्छा दादा, आप सुरभि से बातें करिए, मैं अभी कौमन हौल से हो कर आती हूं.’ नीमा यह कहने के साथ सुरभि की ओर देख कर मुसकराती हुई चली गई.
सुरभि की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले, तभी शरद बोल उठा, ‘तुम्हें कुछ कहना तो नहीं है, मैं कल सुबह चला जाऊंगा.’
‘नहीं, मुझे क्या कहना है,’ सुरभि नर्वस हो रही थी.
‘ठीक है, फिर यह न कहना कि मैं ने तुम्हें कुछ कहने का मौका नहीं दिया,’ शरद ने तनिक ढिठाई से कहा. तभी नीमा आते हुए दिखी. नीमा ने आ कर बताया, ‘आज क्लासेज सस्पैंड हो गई हैं.’ यह कहने के साथ उस ने आगे कहा, ‘चलो न दादा, कहीं घूमफिर आएं, तू चलेगी न सुरभि?’
सुरभि पसोपेश में पड़ गई, क्या करे, जाने का मन तो है पर यदि घर में यह बात पता चली, तब? मांपापा कुछ गलत न समझ बैठें. वैसे भी जब उस के दाखिले की बात हुई, तभी मामाजी ने टोका था, ‘जीजाजी, लड़की को विश्वविद्यालय भेज कर आप गलती कर रहे हैं, कहीं हाथ से निकल न जाए.’ लेकिन उस का मन चंचल हो रहा था, क्या हुआ यदि थोड़ी देर और शरद का साथ मिल जाए…और वह तैयार हो गई. तीनों ने खूब घुमाईफिराई की. शाम को नीमा और शरद ने अपनी कार से उसे उस के घर छोड़ा. उस के मांपापा भी उन दोनों से मिल कर बहुत प्रभावित हुए.
दूसरे दिन उस का मन बहुत अशांत था. आज शरद चला जाएगा, न जाने अब कब मुलाकात हो. वह बड़े ही अनमने ढंग से क्लासेज के लिए तैयार हो कर यूनिवर्सिटी के लिए निकल गई. सामने से नीमा आते दिखी. सुरभि को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘पता है, दादा आज भी नहीं गए. एक माह के लिए अपनी छुट्टियां बढ़ा ली हैं. असल मे दादा के जाने के नाम से ही मम्मी परेशान होने लगती हैं. बस, दादा को रुकने का बहाना मिल गया. उन्होंने अपना जाना कैंसिल कर दिया.’ लेकिन सुरभि अच्छी तरह समझती थी कि वह क्यों नहीं गया.
अब अकसर ही दोनों की मुलाकातें होने लगीं और उस ने अपना दिल शरद के हवाले कर दिया बिना यह जाने कि शरद भी उस को प्यार करता है या नहीं. लेकिन जब शरद ने बिना किसी लागलपेट के सीधेसादे शब्दों में अपने प्यार का इजहार कर दिया तो वह झूम उठी. ऐसा लग रहा था मानो पूरा सतरंगी आसमान ही उस की मुट्ठी में सिमट आया हो. वह अरमानों के पंखों पर झूला झूलने लगी.
एक रविवार को शरद अपने पेरैंट्स और नीमा को ले कर उस के घर आ धमका. उस ने अपने कमरे की खिड़की से देखा. उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हा रहा था. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. ‘चलो दीदी, मां ने तुम्हें ड्राइंगरूम में बुलाया है,’ ऋ तु ने आ कर उसे चौंका दिया. वह अचकचाई सी मां के बुलाने पर सब के बीच पहुंच गई. शरद के पेरैंट्स उस के पेरैंट्स से बातों में मग्न थे. उसे देखते ही शरद की मां ने उस के दोनों हाथों को पकड़ कर अपनी बगल में बिठा लिया, ‘हमें आप की बेटी बहुत ही पसंद है. हम इसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं अगर आप को एतराज न हो.’
वह शर्म से लाल हो रही थी. मांपापा इसी बात पर निहाल थे कि उन्हें घर बैठे ही इतना अच्छा रिश्ता मिल गया. उन्होंने फौरन हां कर दी. उस की भावी सास ने पर्स से अंगूठी निकाली और शरद से उसे पहनाने के लिए कहा. शरद ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया और उस की अनामिका में अंगूठी पहना कर अपने प्यार की मुहर लगा दी. उस ने भी मां द्वारा दी गई अंगूठी शरद को पहना कर अपनी स्वीकृति दे दी.
उसे यह सब स्वप्न सा महसूस हो रहा था. आखिर इतनी जल्दी उस का प्यार उसे मिलने वाला था. वह इस अप्रत्याशित सगाई के लिए तैयार न थी. क्या सच में जो प्यार उस के दिल के दरवाजे पर अब तक दस्तक दे रहा था, वह उस की झोली में आ गिरा. तभी, ‘भाभी’, कह कर नीमा उस से लिपट गई. लज्जा के मारे उस से वहां बैठा भी नहीं जा रहा था. वह नीमा को ले कर अपने कमरे में आ गई.
सगाई के बाद तो शरद अकसर ही उस के घर आनेजाने लगा था, अब उसे अपनी ससुराल में कभी भी आने का परमिट जो मिल गया था. इस एक महीने में वह सुरभि के साथ एक पूरा जीवन जीना चाहता था. अधिक से अधिक समय वह अपनी मंगेतर के साथ बिताना चाहता था. दोनों कभी मूवी देखने चले जाते, कभी दरिया के किनारे हाथों में हाथ डाले घूमते नजर आते, भविष्य के सुंदर सपने संजोते अपनी स्वप्नों की दुनिया में विचरण करते थे. पहले तो सुरभि को शर्म सी आती थी लेकिन अब घूमनेफिरने का लाइसैंस मिल गया था. सभी लोग बेफ्रिक थे कि ठीक भी है, दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लेंगे तो जिंदगी आसान हो जाएगी.
वह दिन भी आ गया जब शरद को बेंगलुरु वापस जाना था. वह भावविह्वल हो रही थी. शरद उसे अपने से लिपटाए दिलासा दे रहा था. बस, कुछ ही दिनों की तो बात है, फिर हम दोनों एक हो जाएंगे. जहां मैं वहां तुम. हमारे ऊपर कोई बंधन नहीं होगा. और सुरभि ने उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. शरद उस का मुंह ऊपर उठा कर बारबार उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर अंकित कर रहा था. शरद चला गया उसे अकेला छोड़ कर यादों में तड़पने के लिए.
विवाह जाड़े में होना था और अभी तो कई माह बाकी थे. फोन पर बातों में वह अपने विरह का कुछ इस प्रकार बखान करता था कि सुरभि के गाल शर्म से लाल हो उठते थे. वह उस की बातों का उत्तर देना चाहती थी किंतु शर्म उस के होंठों को सी देती थी. नीमा अकसर उसे छेड़ती और वह शरमा जाती.
अक्तूबर का महीना भी आ गया था. घर में जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. मांपापा पूरेपूरे दिन, उसे इस मौल से उस मौल टहलाते थे. उस की पसंद की ज्वैलरी और साडि़यां आदि खरीदने के चलते क्लासेज छूट रही थीं. जब वह कुछ कहती तो मां बोलतीं, ‘अब ससुराल में जा कर ही पढ़ाई करना.’ वह चुप रह जाती थी.
नवंबर का महीना भी आ गया. तैयारियों में और भी तेजी आ गई थी. निमंत्रणपत्र भी सब को जा चुके थे कि तभी उन पर गाज गिरी. शरद ने अपने पापा को सूचना दी कि उस ने अपने साथ ही कार्यरत किसी सोमा रेड्डी से विवाह कर लिया है.
सुरभि टूट गई. उसे शरद पर बेहद यकीन था. शरद उसे इस प्रकार धोखा देगा, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. वह शरद, जो उसे अपनी आंखों से ओझल भी नहीं होने देना चाहता था. उस के बालों से अठखेलियां करता, कभी कहता, तुम्हारी झील सी गहरी आंखों में मैं डूबडूब जाता हूं, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा बदन मुझे अपने में समेटे लिए जा रहा है. ऐसे कैसे धोखा दे सकता है वह उसे? वह खुद से ही सवाल करती.
शरद के पापा बहुत ही लज्जित थे और हाथ जोड़ कर सुरभि के परिवार से अपने बेटे के धोखे की माफी मांग रहे थे. और नीमा…वह तो सुरभि से नजरें मिलाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी. लेकिन अब इन बातों से फायदा भी क्या था? निराशा के अंधकार में वह नई राह तलाशने की कोशिश करती, लेकिन हर राह शरद की ओर ही जाती थी. उस के आगे तो सड़क बंद ही मिलती थी. और वह अंधेरों में भटक कर रह जाती थी.
कहीं से प्रकाश की एक भी किरण नजर नहीं आती थी. अब वह नातेरिश्तेदारों व मित्रों से नजरें चुराने लगी थी. जबकि मां उसे समझाती थी, ‘बेटा, तेरा कोई दोष नहीं है, दोष तो हमारा है जो हम ने उस धोखेबाज को पहचानने में भूल की.’
2 माह बाद ही पापा ने उस का विवाह अवलंब से कर दिया. अवलंब इनकम टैक्स औफिसर थे और बहुत ही सुलझे हुए व्यक्तित्व के थे. पापा ने उन से शरद और सुरभि की कोई भी बात नहीं छिपाई थी और परिवार के सम्मान की खातिर ही उस ने इस विवाह को स्वीकार कर लिया था. अवलंब सही माने में अवलंब थे. उन्होंने कभी भी उसे इस बात का आभास तक न होने दिया कि वे उस के अतीत से परिचित हैं और उन्होंने उसे अपने प्यार से लबरेज कर दिया. अब उसे शरद की याद भी न के बराबर ही आती थी. वह अवलंब का साया बन गई थी.
2 वर्षों बाद ही उस के जीवन की बगिया में अवलंब के प्यार का एक फूल खिला, अनंत, उस का बेटा. वह अपनेआप को दुनिया की सब से खुशनसीब स्त्री समझने लगी थी. अवलंब का बेशुमार प्यार और अनंत की किलकारियों से वह अपने अतीत के काले अध्याय को भूल चुकी थी, लेकिन नियति उस पर हंस रही थी. तभी तो 2 दिनों के दिमागी बुखार से अवलंब उसे अलविदा कह कर उस के जीवन से बहुत दूर चला गया और अब वह अपने बेटे के साथ अकेली रह गई.
अवलंब के औफिस में ही उसे नौकरी मिल गई. वह अकेली ही चल पड़ी उस डगर पर जो नियति ने उस के लिए चुनी थी. उसे अपने पति के हर उस सपने को पूरा करना था जो उन्होंने अनंत के लिए देखे थे. उसे अनंत का भविष्य संवारना था. उसे आकाश की अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचाना था. अनंत था भी बड़ा ही मेधावी, सदा अव्वल रहने वाला. पीछे पलट कर उस ने कभी देखा ही नहीं और लगातार तरक्की की ओर बढ़ता गया.
सिडनी में अनंत को फैलोशिप मिल गई थी और उस के उज्जवल भविष्य के लिए सुरभि ने बिना नानुकुर किए उसे विदेश भेज दिया, वहां उसे नेहा मिली, जिस से वह विवाह करना चाहता था. और जिस की मंजूरी सुरभि ने फौरन ही दे दी. उस का मन उसे भटका रहा था. यदि वास्तव में नेहा शरद की ही बेटी हुई, तो क्या वह शरद का सामना कर सकेगी? क्यों उस ने यह रिश्ता स्वीकार कर लिया, अब क्या वह अनंत को मना कर दे इस शादी के लिए, लेकिन सबकुछ इतना आसान भी तो नहीं था. अब यदि अनंत ने इनकार का कारण पूछा तब क्या वह अपने ही मुंह से अपने अतीत को बयां कर सकेगी जिस ने उस के जीवन के माने ही बदल दिए थे, शरद की बेटी को क्या वह दिल से स्वीकार कर सकेगी, कहीं ऐसा न हो कि शरद के प्रति उस के प्रतिकार का शिकार वह मासूम बच्ची बने. नहींनहीं, शरद का बदला वह नेहा से कैसे ले सकती थी. वह बेटे का दिल भी तो नहीं तोड़ सकती थी. वरना, वह भी नेहा की नजरों में शरद के समान ही गिर जाएगा.
उस ने अनंत को फोन किया. ‘‘हैलो,’’ दूसरी तरफ से अनंत का स्वर उभरा.
‘‘बेटा, तुम नेहा से वहीं शादी कर के इंडिया आ जाओ. मैं यहां एक ग्रैंड रिसैप्शन दे दूंगी ताकि सभी रिश्तेदारों से बहू का परिचय भी हो जाए और हां, नेहा के मांपापा को विशेष निमंत्रण दे देना.’’
अनंत और नेहा का रिसैप्शन सचमुच बड़ा ही शानदार था. सभी नातेरिश्तेदार व सगेसंबंधी इकट्ठे हुए थे. सुरभि गेट पर सभी का स्वागत कर रही थी. तभी शरद अपनी पत्नी के साथ आता दिखा. उस ने हाथ जोड़ कर दोनों का स्वागत किया. उस के होंठों पर मुसकराहट थी, वह ऐसा प्रदर्शित कर रही थी मानो वह शरद को पहचानती ही नहीं है. लेकिन शरद उसे देख कर अचकचा गया, धीरे से बोला, ‘‘सुरभि, तुम?’’ वह शरद की बात को अनसुना कर के दूसरे मेहमानों की ओर बढ़ चली. खिसियाया हुआ शरद उसे बराबर आतेजाते देख रहा था. लेकिन वह उस से किनारा कर रही थी. शरद को बात करने का वह कोई मौका ही नहीं दे रही थी.
अनंत नेहा के साथ घूमफिर कर सभी मेहमानों से मिल रहा था. सुरभि भी सब से अपनी बहू का परिचय करा रही थी, साथ ही, उस की तारीफों के पुल भी बांधती जा रही थी. सभी मेहमान विदा हो गए. रह गए बस शरद और उस की पत्नी सोमा. अब वह उन की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कहिए, कैसा लगा सारा इंतजाम आप लोगों को? अपनी ओर से तो मैं ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी.’’
अम्मां
‘‘बहुत ही अच्छा प्रबंध था. आप को देख कर ऐसा लगता है कि मेरी बेटी को बहुत ही समझदार सास मिली है. आइए हम लोग गले तो मिल लें,’’ कह कर सोमा उस के गले लग गई.
सुरभि ने कनखियों से शरद को देखा, उस का चेहरा सियाह हो रहा था. शायद उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि सुरभि उसे न पहचानने का बहाना कर रही है, उसे इस बात का तो अंदाजा था कि वह नाराज है किंतु उसे कुछ कहने का मौका तो दे, कहीं ऐसा न हो कि उस की बेवफाई का बदला नेहा से ले, वह इन्हीं विचारों में डूबउतरा रहा था. उन लोगों के रुकने की व्यवस्था सुरभि ने अपने घर के गैस्टरूम में ही की थी.
रात्रि के 2 बज रहे थे. सुरभि की आंखों में नींद नहीं थी. वह अतीत के सागर में गोते लगा रही थी, क्यों किया शरद ने मेरे साथ ऐसा और इन 25 वर्षों में उस ने एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की, कि मेरा हश्र क्या हुआ, मैं जीवित भी हूं या नहीं. जिस प्रकार समाज में मेरा अपमान हुआ था उस से तो मर जाना ही उचित था. वह तो पापा की सूझबूझ से अवलंब जैसे पति मिले, तो जीवन में फिर एक बार आशा का संचार हुआ. लेकिन शरद की यादें हमेशा ही तो मन में उथलपुथल मचाती रहीं. अपने अतीत को अपने सामने पा कर वह विह्लल हो रही थी. इतना गहरा रिश्ता बन गया है, कैसे निभेगा, अब तो बारबार ही शरद से आमनासामना होगा. तब?
वह बेचैन हो कर अपने घर के लौन में टहल रही थी. तभी, ‘‘सुरभि,’’ शरद ने पीछे से आ कर उसे चौंका दिया. ‘‘आप यहां, इस समय, क्यों आए हैं?’’ वह पलटी, उस का स्वर कठोर था.
‘‘सुरभि, एक बार, बस एक बार मुझे अपना पक्ष साफ करने दो, फिर मैं कभी भी तुम से कुछ भी नहीं कहूंगा. मैं तुम से क्षमा भी नहीं मांगूगा क्योंकि जो मेरी मजबूरी थी उसे मैं अपना अपराध नहीं मानता हूं.’’
‘‘कैसी मजबूरी? कौन सी मजबूरी? मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहती हूं. जो हुआ, अच्छा ही हुआ. आप के इनकार ने मुझे अवलंब जैसा पति दिया जो वास्तव में अवलंब ही थे और इस के लिए मैं आप की आभारी हूं,’’ सुरभि ने अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाए.
‘‘रुको सुरभि, एक बार मेरी बात तो सुन लो, मेरे सीने पर जो ग्लानि का बोझ है वह उतर जाएगा. हमारे रास्ते तो अलग हो ही चुके हैं, एक मौका, बस, एक मौका दे दो,’’ शरद ने सुरभि की राह रोकते हुए कहा.
सुरभि ठिठक कर खड़ी हो गई, ‘‘कहिए, क्या कहना है?’’
‘‘कहां से शुरू करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है,’’ शरद झिझक रहा था.
‘‘देखिए, आप को जो भी कहना हो, जल्दी से कह दीजिए, कोई आ जाएगा तो आप की किरकिरी हो जाएगी,’’ सुरभि ने कदम आगे बढ़ाने का उपक्रम किया.
‘‘हूं, तो सुनो, यहां से जाने के बाद मैं बहुत ही उल्लसित था. स्वप्न में मैं हर रोज तुम्हारे साथ अपना जीवन बिता रहा था. हर ओर मुझे तुम ही तुम नजर आती थीं. मेरे सभी सहयोगी बहुत ही खुश थे. मेरे एमडी मिस्टर अनिल रेड्डी ने भी ढेरों मुबारकबाद दीं. जब विवाह के 15 दिन ही बचे थे, मेरे साथियों ने एक फाइवस्टार होटल में बड़ी ही शानदार पार्टी का आयोजन किया. मिस्टर रेड्डी भी अपनी पत्नी व बेटी सोमा, जो मेरी सहयोगी भी थी, के साथ मेरी पार्टी में शामिल हुए. डिं्रक्स के दौर चल रहे थे. किसी को कुछ भी होश नहीं था.
‘‘डांसफ्लोर पर सभी थिरक रहे थे कि अचानक मैं लड़खड़ा कर गिरने लगा. सोमा, जो उस समय मेरी ही डांस पार्टनर थी, ने मुझे संभाल लिया. नशा गहरा रहा था और उस पर उस के शरीर की मादक सुगंध में मैं खोने लगा. एक पल को मुझे ऐसा लगा जैसे तुम ही मुझे अपनी ओर आमंत्रण दे रही हो. मैं ने सोमा को अपनी बांहों में भर लिया और सामने वाले कमरे में ले कर चला गया.
‘‘सोमा ने भी कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उन्हीं नाजुक पलों में संयम के सारे बांध टूट गए और वो हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम दोनों एकदूसरे की आगोश में लिपटे पड़े थे कि अचानक, ‘‘व्हाट हैव यू डन रास्कल? यू हैव स्पौएल्ड माई डौटर्स लाइफ, नाऊ यू आर सैक्ड फ्रौम योर जौब,’’ चीखते हुए मिस्टर रेड्डी अपनी पुत्री सोमा को एक तरह से घसीटते हुए ले कर चले गए. मैं परेशान भी था और शर्मिंदा भी. यह मैं ने क्या कर दिया. तुम्हें पाने को मैं इतना आतुर था कि सोमा को तुम समझ बैठा और पतन के गर्त में जा गिरा.
दूसरे दिन मिस्टर रेड्डी ने मुझे दोबारा जौब, इस शर्त पर वापस की कि मैं सोमा से शादी कर लूं क्योंकि इस घटना का सभी को पता चल चुका था. सोमा के सम्मान का भी सवाल था. बस, मैं मजबूर हो गया और इस प्रकार उस से मुझे विवाह करना ही पड़ा. मैं तुम लोगों को क्या मुंह दिखाता. बस, एक इनकार की सूचना अपने पापा को दे दी. बाद में मिस्टर रेड्डी ने मुझे अपना पार्टनर बना लिया. अब तुम जो भी चाहो, समझो. मैं ने तुम्हें सबकुछ हूबहू बता दिया. हो सके तो क्षमा कर देना.
‘‘नेहा मेरी एकलौती बेटी है, उसे अपनी बेटी ही समझना. मेरा बदला उस से न लेना.’’ इतना कह कर शरद चुप हो गया.
‘‘ठीक है शरद, जो हुआ सो हुआ. नेहा आप की बेटी ही नहीं, मेरी बहू भी है. मेरी कोई बेटी नहीं है, उस ने मेरी यह साध पूरी की है. अब आप अपने कमरे में सोने जाइए. सोमाजी जाग जाएंगी, आप को न पा कर परेशान हो जाएंगी. मैं भूल चुकी हूं कि कभी आप से मिली भी थी और आप भी भूल जाइए,’’ कह कर सुरभि अपने कमरे की ओर मुड़ गई. शरद भी चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया.
इस प्रकार एक बिसरी हुई कहानी का पटाक्षेप हो गया. पर शरद के मन में आज भी अपराधबोध था. सुरभि 25 वर्षों से जिस हलकी आंच पर सुलग रही थी, वह आज बुझ गई. शरद नहीं तो क्या, उस की बेटी तो अब उस ने बहू के रूप में पा ही ली न.
Most Romantic Love Story In Hindi: पटाक्षेप – भाग 2
नीमा मन ही मन में मुसकरा रही थी, जबकि सुरभि का चेहरा आरक्त हो रहा था और बड़ी ही सरलता से उस के मन के भावों की चुगली कर रहा था.
नीमा तो कह रही थी कि शरद बेंगलुरु में है तो फिर यहां क्या कर रहा है, फौरन ही उस का मन जवाब देता, हो सकता है आजकल यहीं हो और अपनी बहन को पहले दिन यूनिवर्सिटी छोड़ने आया हो. रहरह कर शरद का मुसकराता चेहरा उस की आंखों के सामने आ कर मुंह चिढ़ाने लगता था, क्यों, झकझोर दिया न मैं ने तुम को, हो रही हो न मुझ से मिलने को बेचैन?
‘हांहां, मैं बेचैन हो रही हूं तुम से मिलने के लिए, क्या तुम भी?’ वह अनायास ही बुदबुदा उठी.
‘क्या हुआ दीदी, तुम नींद में क्या बुदबुदा रही हो?’ बगल में सोई हुई उस की छोटी बहन ऋ तु ने पूछा.
‘क्या हुआ, कुछ भी तो नहीं. तूने कोई सपना देखा होगा,’ सुरभि ने खिसिया कर चादर में अपना मुंह ढांप लिया और सोने की कोशिश करने लगी.
दूसरे दिन हजारों मनौतियां मनाते हुए वह घर से निकली, काश कि आज भी शरद से मुलाकात हो जाए तो कितना अच्छा होगा. पूरे दिन दोनों सहेलियां साथ ही रहीं किंतु वह नहीं आया. चाह कर भी वह नीमा से कुछ भी नहीं पूछ सकी, शर्म ने उसे जकड़ रखा था. उस का मन शरद से मिलने को बेचैन हो रहा था पर संस्कारों के चाबुक की मार से उस ने खुद को साधे रखा था. इन्हीं विचारों में डूबउतर रही थी कि तभी शरद आता दिखा.
‘क्या बात है दादा, आज आप फिर यहां. आज तो मेरा दूसरा दिन है और मैं कोई अकेली भी नहीं हूं,’ नीमा ने शरद को छेड़ा.
‘नहींनहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं कल सुबह की फ्लाइट से वापस चला जाऊंगा, सोचा आज तुझे थोड़ा घुमाफिरा दूं, इत्मीनान से बातें करते हैं, तुझे कोई प्रौब्लम तो नहीं. फिर तो अरसे बाद ही मुलाकात होगी,’ शरद ने सुरभि की ओर देखते हुए कहा.
नीमा मन ही मन में मुसकरा रही थी, जबकि सुरभि का चेहरा आरक्त हो रहा था और बड़ी ही सरलता से उस के मन के भावों की चुगली कर रहा था. ‘अच्छा दादा, आप सुरभि से बातें करिए, मैं अभी कौमन हौल से हो कर आती हूं.’ नीमा यह कहने के साथ सुरभि की ओर देख कर मुसकराती हुई चली गई.
सुरभि की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बोले, तभी शरद बोल उठा, ‘तुम्हें कुछ कहना तो नहीं है, मैं कल सुबह चला जाऊंगा.’
‘नहीं, मुझे क्या कहना है,’ सुरभि नर्वस हो रही थी.
‘ठीक है, फिर यह न कहना कि मैं ने तुम्हें कुछ कहने का मौका नहीं दिया,’ शरद ने तनिक ढिठाई से कहा. तभी नीमा आते हुए दिखी. नीमा ने आ कर बताया, ‘आज क्लासेज सस्पैंड हो गई हैं.’ यह कहने के साथ उस ने आगे कहा, ‘चलो न दादा, कहीं घूमफिर आएं, तू चलेगी न सुरभि?’
सुरभि पसोपेश में पड़ गई, क्या करे, जाने का मन तो है पर यदि घर में यह बात पता चली, तब? मांपापा कुछ गलत न समझ बैठें. वैसे भी जब उस के दाखिले की बात हुई, तभी मामाजी ने टोका था, ‘जीजाजी, लड़की को विश्वविद्यालय भेज कर आप गलती कर रहे हैं, कहीं हाथ से निकल न जाए.’ लेकिन उस का मन चंचल हो रहा था, क्या हुआ यदि थोड़ी देर और शरद का साथ मिल जाए…और वह तैयार हो गई. तीनों ने खूब घुमाईफिराई की. शाम को नीमा और शरद ने अपनी कार से उसे उस के घर छोड़ा. उस के मांपापा भी उन दोनों से मिल कर बहुत प्रभावित हुए.
दूसरे दिन उस का मन बहुत अशांत था. आज शरद चला जाएगा, न जाने अब कब मुलाकात हो. वह बड़े ही अनमने ढंग से क्लासेज के लिए तैयार हो कर यूनिवर्सिटी के लिए निकल गई. सामने से नीमा आते दिखी. सुरभि को देखते ही वह चहक कर बोली, ‘पता है, दादा आज भी नहीं गए. एक माह के लिए अपनी छुट्टियां बढ़ा ली हैं. असल मे दादा के जाने के नाम से ही मम्मी परेशान होने लगती हैं. बस, दादा को रुकने का बहाना मिल गया. उन्होंने अपना जाना कैंसिल कर दिया.’ लेकिन सुरभि अच्छी तरह समझती थी कि वह क्यों नहीं गया.
अब अकसर ही दोनों की मुलाकातें होने लगीं और उस ने अपना दिल शरद के हवाले कर दिया बिना यह जाने कि शरद भी उस को प्यार करता है या नहीं. लेकिन जब शरद ने बिना किसी लागलपेट के सीधेसादे शब्दों में अपने प्यार का इजहार कर दिया तो वह झूम उठी. ऐसा लग रहा था मानो पूरा सतरंगी आसमान ही उस की मुट्ठी में सिमट आया हो. वह अरमानों के पंखों पर झूला झूलने लगी.
एक रविवार को शरद अपने पेरैंट्स और नीमा को ले कर उस के घर आ धमका. उस ने अपने कमरे की खिड़की से देखा. उसे अपनी आंखों पर यकीन ही नहीं हा रहा था. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. ‘चलो दीदी, मां ने तुम्हें ड्राइंगरूम में बुलाया है,’ ऋ तु ने आ कर उसे चौंका दिया. वह अचकचाई सी मां के बुलाने पर सब के बीच पहुंच गई. शरद के पेरैंट्स उस के पेरैंट्स से बातों में मग्न थे. उसे देखते ही शरद की मां ने उस के दोनों हाथों को पकड़ कर अपनी बगल में बिठा लिया, ‘हमें आप की बेटी बहुत ही पसंद है. हम इसे अपने घर की बहू बनाना चाहते हैं अगर आप को एतराज न हो.’
वह शर्म से लाल हो रही थी. मांपापा इसी बात पर निहाल थे कि उन्हें घर बैठे ही इतना अच्छा रिश्ता मिल गया. उन्होंने फौरन हां कर दी. उस की भावी सास ने पर्स से अंगूठी निकाली और शरद से उसे पहनाने के लिए कहा. शरद ने लपक कर उस का हाथ पकड़ लिया और उस की अनामिका में अंगूठी पहना कर अपने प्यार की मुहर लगा दी. उस ने भी मां द्वारा दी गई अंगूठी शरद को पहना कर अपनी स्वीकृति दे दी.
उसे यह सब स्वप्न सा महसूस हो रहा था. आखिर इतनी जल्दी उस का प्यार उसे मिलने वाला था. वह इस अप्रत्याशित सगाई के लिए तैयार न थी. क्या सच में जो प्यार उस के दिल के दरवाजे पर अब तक दस्तक दे रहा था, वह उस की झोली में आ गिरा. तभी, ‘भाभी’, कह कर नीमा उस से लिपट गई. लज्जा के मारे उस से वहां बैठा भी नहीं जा रहा था. वह नीमा को ले कर अपने कमरे में आ गई.
Most Romantic Love Story In Hindi : पटाक्षेप – भाग 3
सुरभि टूट गई. उसे शरद पर बेहद यकीन था. शरद उसे इस प्रकार धोखा देगा, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. वह शरद, जो उसे अपनी आंखों से ओझल भी नहीं होने देना चाहता था.
सगाई के बाद तो शरद अकसर ही उस के घर आनेजाने लगा था, अब उसे अपनी ससुराल में कभी भी आने का परमिट जो मिल गया था. इस एक महीने में वह सुरभि के साथ एक पूरा जीवन जीना चाहता था. अधिक से अधिक समय वह अपनी मंगेतर के साथ बिताना चाहता था. दोनों कभी मूवी देखने चले जाते, कभी दरिया के किनारे हाथों में हाथ डाले घूमते नजर आते, भविष्य के सुंदर सपने संजोते अपनी स्वप्नों की दुनिया में विचरण करते थे. पहले तो सुरभि को शर्म सी आती थी लेकिन अब घूमनेफिरने का लाइसैंस मिल गया था. सभी लोग बेफ्रिक थे कि ठीक भी है, दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह समझ लेंगे तो जिंदगी आसान हो जाएगी.
वह दिन भी आ गया जब शरद को बेंगलुरु वापस जाना था. वह भावविह्वल हो रही थी. शरद उसे अपने से लिपटाए दिलासा दे रहा था. बस, कुछ ही दिनों की तो बात है, फिर हम दोनों एक हो जाएंगे. जहां मैं वहां तुम. हमारे ऊपर कोई बंधन नहीं होगा. और सुरभि ने उस के सीने में अपना मुंह छिपा लिया. शरद उस का मुंह ऊपर उठा कर बारबार उस के होंठों पर अपने प्यार की मुहर अंकित कर रहा था. शरद चला गया उसे अकेला छोड़ कर यादों में तड़पने के लिए.
विवाह जाड़े में होना था और अभी तो कई माह बाकी थे. फोन पर बातों में वह अपने विरह का कुछ इस प्रकार बखान करता था कि सुरभि के गाल शर्म से लाल हो उठते थे. वह उस की बातों का उत्तर देना चाहती थी किंतु शर्म उस के होंठों को सी देती थी. नीमा अकसर उसे छेड़ती और वह शरमा जाती.
अक्तूबर का महीना भी आ गया था. घर में जोरशोर से शादी की तैयारियां चल रही थीं. मांपापा पूरेपूरे दिन, उसे इस मौल से उस मौल टहलाते थे. उस की पसंद की ज्वैलरी और साडि़यां आदि खरीदने के चलते क्लासेज छूट रही थीं. जब वह कुछ कहती तो मां बोलतीं, ‘अब ससुराल में जा कर ही पढ़ाई करना.’ वह चुप रह जाती थी.
नवंबर का महीना भी आ गया. तैयारियों में और भी तेजी आ गई थी. निमंत्रणपत्र भी सब को जा चुके थे कि तभी उन पर गाज गिरी. शरद ने अपने पापा को सूचना दी कि उस ने अपने साथ ही कार्यरत किसी सोमा रेड्डी से विवाह कर लिया है.
सुरभि टूट गई. उसे शरद पर बेहद यकीन था. शरद उसे इस प्रकार धोखा देगा, यह तो उस ने सपने में भी नहीं सोचा था. वह शरद, जो उसे अपनी आंखों से ओझल भी नहीं होने देना चाहता था. उस के बालों से अठखेलियां करता, कभी कहता, तुम्हारी झील सी गहरी आंखों में मैं डूबडूब जाता हूं, सागर की लहरों सा लहराता तुम्हारा बदन मुझे अपने में समेटे लिए जा रहा है. ऐसे कैसे धोखा दे सकता है वह उसे? वह खुद से ही सवाल करती.
शरद के पापा बहुत ही लज्जित थे और हाथ जोड़ कर सुरभि के परिवार से अपने बेटे के धोखे की माफी मांग रहे थे. और नीमा…वह तो सुरभि से नजरें मिलाने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही थी. लेकिन अब इन बातों से फायदा भी क्या था? निराशा के अंधकार में वह नई राह तलाशने की कोशिश करती, लेकिन हर राह शरद की ओर ही जाती थी. उस के आगे तो सड़क बंद ही मिलती थी. और वह अंधेरों में भटक कर रह जाती थी.
कहीं से प्रकाश की एक भी किरण नजर नहीं आती थी. अब वह नातेरिश्तेदारों व मित्रों से नजरें चुराने लगी थी. जबकि मां उसे समझाती थी, ‘बेटा, तेरा कोई दोष नहीं है, दोष तो हमारा है जो हम ने उस धोखेबाज को पहचानने में भूल की.’
2 माह बाद ही पापा ने उस का विवाह अवलंब से कर दिया. अवलंब इनकम टैक्स औफिसर थे और बहुत ही सुलझे हुए व्यक्तित्व के थे. पापा ने उन से शरद और सुरभि की कोई भी बात नहीं छिपाई थी और परिवार के सम्मान की खातिर ही उस ने इस विवाह को स्वीकार कर लिया था. अवलंब सही माने में अवलंब थे. उन्होंने कभी भी उसे इस बात का आभास तक न होने दिया कि वे उस के अतीत से परिचित हैं और उन्होंने उसे अपने प्यार से लबरेज कर दिया. अब उसे शरद की याद भी न के बराबर ही आती थी. वह अवलंब का साया बन गई थी.
2 वर्षों बाद ही उस के जीवन की बगिया में अवलंब के प्यार का एक फूल खिला, अनंत, उस का बेटा. वह अपनेआप को दुनिया की सब से खुशनसीब स्त्री समझने लगी थी. अवलंब का बेशुमार प्यार और अनंत की किलकारियों से वह अपने अतीत के काले अध्याय को भूल चुकी थी, लेकिन नियति उस पर हंस रही थी. तभी तो 2 दिनों के दिमागी बुखार से अवलंब उसे अलविदा कह कर उस के जीवन से बहुत दूर चला गया और अब वह अपने बेटे के साथ अकेली रह गई.
अवलंब के औफिस में ही उसे नौकरी मिल गई. वह अकेली ही चल पड़ी उस डगर पर जो नियति ने उस के लिए चुनी थी. उसे अपने पति के हर उस सपने को पूरा करना था जो उन्होंने अनंत के लिए देखे थे. उसे अनंत का भविष्य संवारना था. उसे आकाश की अनंत ऊंचाइयों तक पहुंचाना था. अनंत था भी बड़ा ही मेधावी, सदा अव्वल रहने वाला. पीछे पलट कर उस ने कभी देखा ही नहीं और लगातार तरक्की की ओर बढ़ता गया.
सिडनी में अनंत को फैलोशिप मिल गई थी और उस के उज्जवल भविष्य के लिए सुरभि ने बिना नानुकुर किए उसे विदेश भेज दिया, वहां उसे नेहा मिली, जिस से वह विवाह करना चाहता था. और जिस की मंजूरी सुरभि ने फौरन ही दे दी. उस का मन उसे भटका रहा था. यदि वास्तव में नेहा शरद की ही बेटी हुई, तो क्या वह शरद का सामना कर सकेगी? क्यों उस ने यह रिश्ता स्वीकार कर लिया, अब क्या वह अनंत को मना कर दे इस शादी के लिए, लेकिन सबकुछ इतना आसान भी तो नहीं था. अब यदि अनंत ने इनकार का कारण पूछा तब क्या वह अपने ही मुंह से अपने अतीत को बयां कर सकेगी जिस ने उस के जीवन के माने ही बदल दिए थे, शरद की बेटी को क्या वह दिल से स्वीकार कर सकेगी, कहीं ऐसा न हो कि शरद के प्रति उस के प्रतिकार का शिकार वह मासूम बच्ची बने. नहींनहीं, शरद का बदला वह नेहा से कैसे ले सकती थी. वह बेटे का दिल भी तो नहीं तोड़ सकती थी. वरना, वह भी नेहा की नजरों में शरद के समान ही गिर जाएगा.
उस ने अनंत को फोन किया. ‘‘हैलो,’’ दूसरी तरफ से अनंत का स्वर उभरा.
‘‘बेटा, तुम नेहा से वहीं शादी कर के इंडिया आ जाओ. मैं यहां एक ग्रैंड रिसैप्शन दे दूंगी ताकि सभी रिश्तेदारों से बहू का परिचय भी हो जाए और हां, नेहा के मांपापा को विशेष निमंत्रण दे देना.’’
Most Romantic Love Story In Hindi : पटाक्षेप – भाग 4
सुरभि ने कनखियों से शरद को देखा, उस का चेहरा सियाह हो रहा था. शायद उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि सुरभि उसे न पहचानने का बहाना कर रही है,
अनंत और नेहा का रिसैप्शन सचमुच बड़ा ही शानदार था. सभी नातेरिश्तेदार व सगेसंबंधी इकट्ठे हुए थे. सुरभि गेट पर सभी का स्वागत कर रही थी. तभी शरद अपनी पत्नी के साथ आता दिखा. उस ने हाथ जोड़ कर दोनों का स्वागत किया. उस के होंठों पर मुसकराहट थी, वह ऐसा प्रदर्शित कर रही थी मानो वह शरद को पहचानती ही नहीं है. लेकिन शरद उसे देख कर अचकचा गया, धीरे से बोला, ‘‘सुरभि, तुम?’’ वह शरद की बात को अनसुना कर के दूसरे मेहमानों की ओर बढ़ चली. खिसियाया हुआ शरद उसे बराबर आतेजाते देख रहा था. लेकिन वह उस से किनारा कर रही थी. शरद को बात करने का वह कोई मौका ही नहीं दे रही थी.
अनंत नेहा के साथ घूमफिर कर सभी मेहमानों से मिल रहा था. सुरभि भी सब से अपनी बहू का परिचय करा रही थी, साथ ही, उस की तारीफों के पुल भी बांधती जा रही थी. सभी मेहमान विदा हो गए. रह गए बस शरद और उस की पत्नी सोमा. अब वह उन की ओर मुखातिब हुई, ‘‘कहिए, कैसा लगा सारा इंतजाम आप लोगों को? अपनी ओर से तो मैं ने कोई भी कसर नहीं छोड़ी.’’
अम्मां
‘‘बहुत ही अच्छा प्रबंध था. आप को देख कर ऐसा लगता है कि मेरी बेटी को बहुत ही समझदार सास मिली है. आइए हम लोग गले तो मिल लें,’’ कह कर सोमा उस के गले लग गई.
सुरभि ने कनखियों से शरद को देखा, उस का चेहरा सियाह हो रहा था. शायद उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि सुरभि उसे न पहचानने का बहाना कर रही है, उसे इस बात का तो अंदाजा था कि वह नाराज है किंतु उसे कुछ कहने का मौका तो दे, कहीं ऐसा न हो कि उस की बेवफाई का बदला नेहा से ले, वह इन्हीं विचारों में डूबउतरा रहा था. उन लोगों के रुकने की व्यवस्था सुरभि ने अपने घर के गैस्टरूम में ही की थी.
रात्रि के 2 बज रहे थे. सुरभि की आंखों में नींद नहीं थी. वह अतीत के सागर में गोते लगा रही थी, क्यों किया शरद ने मेरे साथ ऐसा और इन 25 वर्षों में उस ने एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की, कि मेरा हश्र क्या हुआ, मैं जीवित भी हूं या नहीं. जिस प्रकार समाज में मेरा अपमान हुआ था उस से तो मर जाना ही उचित था. वह तो पापा की सूझबूझ से अवलंब जैसे पति मिले, तो जीवन में फिर एक बार आशा का संचार हुआ. लेकिन शरद की यादें हमेशा ही तो मन में उथलपुथल मचाती रहीं. अपने अतीत को अपने सामने पा कर वह विह्लल हो रही थी. इतना गहरा रिश्ता बन गया है, कैसे निभेगा, अब तो बारबार ही शरद से आमनासामना होगा. तब?
वह बेचैन हो कर अपने घर के लौन में टहल रही थी. तभी, ‘‘सुरभि,’’ शरद ने पीछे से आ कर उसे चौंका दिया. ‘‘आप यहां, इस समय, क्यों आए हैं?’’ वह पलटी, उस का स्वर कठोर था.
‘‘सुरभि, एक बार, बस एक बार मुझे अपना पक्ष साफ करने दो, फिर मैं कभी भी तुम से कुछ भी नहीं कहूंगा. मैं तुम से क्षमा भी नहीं मांगूगा क्योंकि जो मेरी मजबूरी थी उसे मैं अपना अपराध नहीं मानता हूं.’’
‘‘कैसी मजबूरी? कौन सी मजबूरी? मैं कुछ भी सुनना नहीं चाहती हूं. जो हुआ, अच्छा ही हुआ. आप के इनकार ने मुझे अवलंब जैसा पति दिया जो वास्तव में अवलंब ही थे और इस के लिए मैं आप की आभारी हूं,’’ सुरभि ने अपने कमरे की ओर कदम बढ़ाए.
‘‘रुको सुरभि, एक बार मेरी बात तो सुन लो, मेरे सीने पर जो ग्लानि का बोझ है वह उतर जाएगा. हमारे रास्ते तो अलग हो ही चुके हैं, एक मौका, बस, एक मौका दे दो,’’ शरद ने सुरभि की राह रोकते हुए कहा.
सुरभि ठिठक कर खड़ी हो गई, ‘‘कहिए, क्या कहना है?’’
‘‘कहां से शुरू करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है,’’ शरद झिझक रहा था.
‘‘देखिए, आप को जो भी कहना हो, जल्दी से कह दीजिए, कोई आ जाएगा तो आप की किरकिरी हो जाएगी,’’ सुरभि ने कदम आगे बढ़ाने का उपक्रम किया.
‘‘हूं, तो सुनो, यहां से जाने के बाद मैं बहुत ही उल्लसित था. स्वप्न में मैं हर रोज तुम्हारे साथ अपना जीवन बिता रहा था. हर ओर मुझे तुम ही तुम नजर आती थीं. मेरे सभी सहयोगी बहुत ही खुश थे. मेरे एमडी मिस्टर अनिल रेड्डी ने भी ढेरों मुबारकबाद दीं. जब विवाह के 15 दिन ही बचे थे, मेरे साथियों ने एक फाइवस्टार होटल में बड़ी ही शानदार पार्टी का आयोजन किया. मिस्टर रेड्डी भी अपनी पत्नी व बेटी सोमा, जो मेरी सहयोगी भी थी, के साथ मेरी पार्टी में शामिल हुए. डिं्रक्स के दौर चल रहे थे. किसी को कुछ भी होश नहीं था.
‘‘डांसफ्लोर पर सभी थिरक रहे थे कि अचानक मैं लड़खड़ा कर गिरने लगा. सोमा, जो उस समय मेरी ही डांस पार्टनर थी, ने मुझे संभाल लिया. नशा गहरा रहा था और उस पर उस के शरीर की मादक सुगंध में मैं खोने लगा. एक पल को मुझे ऐसा लगा जैसे तुम ही मुझे अपनी ओर आमंत्रण दे रही हो. मैं ने सोमा को अपनी बांहों में भर लिया और सामने वाले कमरे में ले कर चला गया.
‘‘सोमा ने भी कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उन्हीं नाजुक पलों में संयम के सारे बांध टूट गए और वो हो गया जो नहीं होना चाहिए था. हम दोनों एकदूसरे की आगोश में लिपटे पड़े थे कि अचानक, ‘‘व्हाट हैव यू डन रास्कल? यू हैव स्पौएल्ड माई डौटर्स लाइफ, नाऊ यू आर सैक्ड फ्रौम योर जौब,’’ चीखते हुए मिस्टर रेड्डी अपनी पुत्री सोमा को एक तरह से घसीटते हुए ले कर चले गए. मैं परेशान भी था और शर्मिंदा भी. यह मैं ने क्या कर दिया. तुम्हें पाने को मैं इतना आतुर था कि सोमा को तुम समझ बैठा और पतन के गर्त में जा गिरा.
दूसरे दिन मिस्टर रेड्डी ने मुझे दोबारा जौब, इस शर्त पर वापस की कि मैं सोमा से शादी कर लूं क्योंकि इस घटना का सभी को पता चल चुका था. सोमा के सम्मान का भी सवाल था. बस, मैं मजबूर हो गया और इस प्रकार उस से मुझे विवाह करना ही पड़ा. मैं तुम लोगों को क्या मुंह दिखाता. बस, एक इनकार की सूचना अपने पापा को दे दी. बाद में मिस्टर रेड्डी ने मुझे अपना पार्टनर बना लिया. अब तुम जो भी चाहो, समझो. मैं ने तुम्हें सबकुछ हूबहू बता दिया. हो सके तो क्षमा कर देना.
‘‘नेहा मेरी एकलौती बेटी है, उसे अपनी बेटी ही समझना. मेरा बदला उस से न लेना.’’ इतना कह कर शरद चुप हो गया.
‘‘ठीक है शरद, जो हुआ सो हुआ. नेहा आप की बेटी ही नहीं, मेरी बहू भी है. मेरी कोई बेटी नहीं है, उस ने मेरी यह साध पूरी की है. अब आप अपने कमरे में सोने जाइए. सोमाजी जाग जाएंगी, आप को न पा कर परेशान हो जाएंगी. मैं भूल चुकी हूं कि कभी आप से मिली भी थी और आप भी भूल जाइए,’’ कह कर सुरभि अपने कमरे की ओर मुड़ गई. शरद भी चुपचाप अपने कमरे की ओर चला गया.
इस प्रकार एक बिसरी हुई कहानी का पटाक्षेप हो गया. पर शरद के मन में आज भी अपराधबोध था. सुरभि 25 वर्षों से जिस हलकी आंच पर सुलग रही थी, वह आज बुझ गई. शरद नहीं तो क्या, उस की बेटी तो अब उस ने बहू के रूप में पा ही ली न.