सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रिया – भाग 1-3 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच Priya - Part 1-3: What was the truth of Priya's happy family - हिंदी शायरी एच

प्रिया – भाग 1-3 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच Priya - Part 1-3: What was the truth of Priya's happy family
Kahani प्रिया


पूनम अहमद

प्रिया – भाग 1 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच? Priya - Part 1-3: What was the truth of Priya's happy family प्रिया गुस्से से बोली, ‘‘शायद आप जानते होंगे कि रिश्ते तो हर लड़की के लिए आते हैं. आप का भेजा हुआ प्रपोजल कोई अनोखा नहीं था फर्क सिर्फ इतना था कि मैं आप को जानती थी.



प्रिया का खुशहाल परिवार देख कर विकास जलभुन गया. पर जब प्रिया ने सचाई बताई तो विकास की सोच बदली या नहीं?


जैसे ही प्लेन के पहियों ने रनवे को छुआ, विकास के दिल की धड़कनें तेज हो गईं. वह 3 साल बाद मां के बेहद जोर देने पर अपनी बहन के विवाह में शामिल होने के लिए इंडिया आया था. इस से पहले भी कितने मौके आए, लेकिन वह काम का बहाना बना कर टालता रहा. लेकिन इस बार वह अपनी बहन नीलू को मना नहीं कर सका. दिल्ली से उसे पानीपत जाना था, वहां फिर उस की याद आएगी. वह सोच रहा था कि यह कैसी मजबूरी है? वह उसे भूल क्यों नहीं जाता? क्यों आखिर क्यों? कोई किसी से इतना प्यार करता है कि अपना वजूद तक भूल जाता है? प्रिया अब किसी और की हो चुकी थी. लेकिन विकास उस की जुदाई सह नहीं पाया था, इसलिए पहले उस ने शहर और फिर एक दिन देश ही छोड़ दिया. भूल जाना चाहता था वह सब कुछ. उस ने खुद को पूरी तरह बिजनैस में लगा दिया था.


पलकों पर नमी सी महसूस हुई तो उस ने इधरउधर देखा. सभी अपनीअपनी सीट पर अपने खयालों में गुम थे. विकास एक गहरी सांस लेते हुए खुद को नौर्मल करने की कोशिश करने लगा.


बाहर आ कर उस ने टैक्सी ली और ड्राइवर को पता समझा कर पिछली सीट पर सिर टिका कर बाहर देखने लगा. दिल्ली की सड़कों पर लगता है जीवन चलता नहीं, बल्कि भागता है. तभी उस का मोबाइल बज उठा. विकास अमर का नाम देख कर मुसकराया और बोला, ‘‘बस, पहुंच ही रहा हूं.’’


विकास जब अपने सभी अरमानों को दफना कर खामोशी से लंदन आया था, तो कुछ ही दिनों बाद उस की मुलाकात अमर से हुई थी, जो अपनी कंपनी की तरफ से ट्रेनिंग के सिलसिले में लंदन आया हुआ था. दोनों के फ्लैट पासपास ही थे. दोनों में दोस्ती हो गई थी. इसी बीच अमर का ऐक्सिडैंट हुआ तो विकास ने दिनरात उस का खयाल रखा, जिस कारण दोनों एकदूसरे के अच्छे दोस्त बन गए.



अमर ट्रेनिंग पूरी कर के भारत लौट आया. फिर कुछ दिनों बाद उस का विवाह भी हो गया. अब दोनों फोन पर बातें करते थे. दोस्ती का रिश्ता कायम था. अमर के बारबार कहने पर विकास ने उस से मिलते हुए पानीपत जाने का प्रोग्राम बनाया था. अमर के बारे में सोचते हुए उस ने टैक्सी ड्राइवर को पैसे दे कर डोरबैल बजा दी.


कुछ ही पलों में अमर का मुसकराता चेहरा गेट पर नजर आया, ‘‘सौरी यार, तुम्हें लेने एअरपोर्ट नहीं आ पाया.’’


‘‘कोई बात नहीं, बस अचानक आने का प्रोग्राम बना. मम्मी की जिद थी कि बहन की शादी में जरूर आऊं. एअरपोर्ट से ही मैं ने तुम्हें फोन किया था. सोचा तुम से मिलता जाऊं. सच पूछो तो घर वालों के साथसाथ मुझे तुम्हारी दोस्ती, तुम्हारा प्यार भी खींच लाया है.’’


अमर मुसकराता हुआ विकास के गले लग गया. फिर बातें करतेकरते विकास को ड्राइंगरूम में ले कर आया.


‘‘कैसा लगा घर?’’ अमर ने पूछा.


‘‘बहुत शांति है तुम्हारे घर में, लगता है स्वर्ग में रह रहे हो?’’


‘‘औफकोर्स, लेकिन बस एक ही अप्सरा है इस स्वर्ग में,’’ और फिर दोनों के की हंसी से ड्राइंगरूम गूंज उठा.


थोड़ी देर बाद अमर उठ कर अंदर गया और फिर गोद में एक बच्चे को ले कर आया और बोला, ‘‘विकास, इस से मिलो. सनी है यह.’’


विकास ने उठ कर सनी को गोद में लिया. बच्चा था ही ऐसा कि देख कर उस पर प्यार आ जाए.


‘‘अमर, खाना तैयार है,’’ कहते हुए वह गुलाबी साड़ी में अंदर आई तो विकास को लगा जैसे दिल की धड़कनें अभी बंद हो जाएंगी. और फिर वह अचानक उठ खड़ा हुआ.


‘‘विकास, यह प्रिया है, तुम्हारी भाभी,’’ प्रिया की नजरों में पहचान का कोई भाव नहीं था.


‘‘आप बैठिए न, अमर आप को बहुत याद करते हैं. और आज तो आप के फोन के बाद से आप की ही बातें चल रही हैं.’’



बेवफा, धोखेबाज, विकास मन ही मन उस के अनजान बनने पर कुढ़ कर रह गया.


प्रिया मुसकराते हुए अमर के पास बैठ गई. फिर कहने लगी, ‘‘अमर, खाना मैं ने टेबल पर लगा दिया है, सनी के सोने का टाइम हो रहा है. मैं इसे सुला कर आती हूं,’’ और वह बच्चे को ले कर चली गई.


अमर कहने लगा, ‘‘विकास, इस घर की सारी खूबसूरती और शांति प्रिया से है.’’


उधर विकास सोचने लगा कि इस बेवफा को वह एक पल में गलत साबित कर सकता है. विकास के दिल में प्रिया के खिलाफ नफरत का तूफान उठ रहा था. कुछ जख्म ऐसे होते हैं, जो दिखाई देते हैं, लेकिन दिखाई न देने वाले जख्म ज्यादा तकलीफ देते हैं. बीते दिनों का एहसास एक बार फिर विकास के मन में जाग उठा. यकीनन मेरा डर प्रिया के दिल में उतर चुका होगा, फिर वह बोला, ‘‘अमर, भाभी हमारे साथ खाना नहीं खाएंगी?’’




प्रिया – भाग 1-3 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच Priya - Part 1-3: What was the truth of Priya's happy family
Kahani प्रिया




प्रिया – भाग 2 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच?

फिर विकास ने भी ज्यादा नानुकर नहीं की. वह मन में प्रिया से सारे हिसाब बराबर करने का फैसला कर चुका था. चाय के बाद अमर उसे थोड़ी देर आराम करने के लिए दूसरे रूम में छोड़ गया.







‘‘तुम शुरू करो, मैं बुलाता हूं,’’ लेकिन अमर के बुलाने से पहले ही वह आ गई और आते ही कहने लगी, ‘‘मैं सनी को सुलाने गई थी, वैसे मुझे भी बड़ी जोर की भूख लगी है,’’ और वह कुरसी खींच कर विकास के सामने बैठ गई.


विकास सोच रहा था यह प्यार भी अजीब चीज है. हम हमेशा उसी चीज से प्यार करते हैं, जो हमारे बस में नहीं होती. सब जानते हुए भी मजबूर हो जाते हैं. प्रिया का चेहरा आज भी खिलते गुलाब जैसा था. आज भी उस पर नजरें टिक नहीं रही थीं. जब तक लड़कियों की शादी नहीं हो जाती तब तक उन्हें लगता है वे अपने प्यार के बिना मर जाएंगी, लेकिन फिर वही लड़कियां अपने पति के प्यार में इतना आगे निकल जाती हैं कि उन्हें अपना अतीत किसी बेवकूफी से कम नहीं लगता.


विकास के मन में आया कि वह उस के हंसतेबसते घर को बरबाद कर दे… अगर वह बेचैन है तो प्रिया को भी कोई हक नहीं है चैन से रहने का…


‘‘विकास, तुम खा कम और सोच ज्यादा रहे हो.’’


‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं,’’ अमर के कहने पर वह चौंका.


‘‘लगता है खाना पसंद नहीं आया आप को,’’ प्रिया कहते हुए मुसकराई.


‘‘नहीं, खाना तो बहुत टेस्टी है.’’


‘‘प्रिया खाना बहुत अच्छा बनाती है,’’ अमर ने कहा तो वह हंस दी, फिर उठते हुए बोली, ‘‘आप लोग बातें करो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’


कुछ ही देर में प्रिया ट्रे उठाए आ गई. और बोली, ‘‘आप बता रहे थे आप के दोस्त शाम को चले जाएंगे… कम से कम 1 दिन तो आप को इन्हें रोकना चाहिए…’’


विकास उस की बातों से हैरान रह गया. उस के हिसाब से तो प्रिया उस से पीछा छुड़ाने की कोशिश करती.


‘‘अरे, मैं कहां जाने दूंगा इसे… कम से कम 1 दिन तो इसे यहां ठहरना ही पड़ेगा.’’



फिर विकास ने भी ज्यादा नानुकर नहीं की. वह मन में प्रिया से सारे हिसाब बराबर करने का फैसला कर चुका था. चाय के बाद अमर उसे थोड़ी देर आराम करने के लिए दूसरे रूम में छोड़ गया.


नर्म बैड, ठंडा कमरा, अभी लेट कर आंखें बंद की ही थीं कि प्रिया एक बार फिर सामने आ गई जिसे वर्षों बाद भी मन भुला नहीं पाया था…


उन के पड़ोस में जो नया परिवार आया था वह प्रिया का ही था. जल्द ही विकास की बहन नीलू की प्रिया से दोस्ती हो गई. अकसर उस की प्रिया से मुलाकात हो जाती थी. कभीकभी विकास भी उन दोनों की बातों में शामिल हो जाता था. गपशप के दौरान विकास को लगता कि प्रिया भी उसे पसंद करती है. उस की आंखों के पैगाम प्रिया के दिल तक पहुंच जाते. पता नहीं किस पल, किस वक्त वह इस तिलिस्म में कैद हुआ था, जिसे प्यार कहते हैं. लेकिन उस के दिल की बात कभी जबान तक नहीं आई थी.


घर में बड़ा बेटा होने के कारण विकास मांबाप का दुलारा था. उस ने एमबीए करने के बाद जब बिजनैस शुरू किया तो उस की इच्छा देखते हुए उस की मम्मी ने प्रिया की जन्मपत्री मंगा ली थी. लेकिन जब वह नहीं मिली तो दोनों के परिवार वाले इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हुए. विकास के तनबदन में आग लग गई. वह इस अंधविश्वास के कारण प्रिया से दूर नहीं रह सकता था. अत: उस ने मन की तसल्ली के लिए नीलू को प्रिया के मन का हाल जानने के लिए भेजा. हालांकि अब तक प्रिया से उस की कोई ऐसी गंभीर बात नहीं हुई थी फिर भी अगर वह विकास का साथ दे तो वे कोर्ट मैरिज कर सकते हैं.


लेकिन प्रिया के जवाब से विकास के दिल को बहुत ठेस पहुंची थी. उस का कहना था कि वह विकास की भावनाओं की कद्र करती है. वह उसे पसंद करती है, लेकिन वह विवाह मातापिता की सहमति से ही करेगी. विकास का बुरा हाल था. वह सोचता, वह सब कुछ क्या था? वह उसे देख कर मुसकराना, उस से बातें करना, क्या प्रिया उस की भावनाओं से खेलती रही? विकास को एक पल चैन नहीं आ रहा था. उसे लगा प्रिया ने उस के साथ धोखा किया है. उस के बाद प्रिया से बात नहीं हुई.



धीरेधीरे प्रिया ने घर आना भी छोड़ दिया. अब विकास का यहां दम घुटने लगा था. कुछ दिनों बाद वह लंदन आ गया. कभीकभी उसे लगता कि शायद यह एक दिमागी कमी है, जिसे इश्क कहते हैं. अतीत में खोए विकास को कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.


जागने पर नहाने के बाद विकास ने स्वयं को फ्रैश महसूस किया. सारी थकान खत्म हो चुकी थी. दरवाजा खोल कर वह बाहर आया, प्रिया चाय की ट्रे मेज पर रख ही रही थी. हलके मेकअप ने उस के चेहरे को और भी निखार दिया था. विकास की नजर प्रिया के चेहरे पर जम कर रह गई. फिर उस ने पूछा, ‘‘अमर कहां है?’’


‘‘कुछ सामान लेने गए हैं, आते ही होंगे.’’


‘‘तुम चाय में साथ नहीं दोगी?’’ विकास का बेचैन दिल एक बार फिर उस की कंपनी के लिए मचलने लगा.


‘‘आप लीजिए, मैं किचन में बिजी हूं,’’ कह कर वह किचन की तरफ बढ़ गई.


विकास सोचने लगा, आखिर थी न बेवफा औरत, कैसे टिक सकती थी मेरे सामने. मगर मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं प्रिया, यह तुम्हें जल्द ही पता चल जाएगा. और फिर अंदर की ईर्ष्या ने उसे ज्यादा देर बैठने नहीं दिया.


प्रिया किचन में थी और वह किचन के दरवाजे पर खड़ा उसे देख रहा था. समय ने उस के सौंदर्य में कमी के बजाय वृद्धि ही की थी.


‘‘क्या देख रहे हैं आप?’’ प्रिया लगी तो काम में थी, लेकिन ध्यान विकास पर ही था.


विकास बोला, ‘‘तुम जैसी लड़कियां प्यार किसी से करती हैं और शादी किसी और से, कैसे बिताती हैं ऐसा दोहरा जीवन?’’


प्रिया काम करते हुए ही बोली, ‘‘आप मुझ से क्यों पूछ रहे हैं?’’


‘‘तुम इतनी अनजान क्यों बन रही हो? तुम मुझे क्यों बेवकूफ बनाती रहीं? क्या मैं इतना पागल नजर आता था?’’




प्रिया – भाग 1-3 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच Priya - Part 1-3: What was the truth of Priya's happy family
Kahani प्रिया



प्रिया – भाग 3 : क्या था प्रिया के खुशहाल परिवार का सच?

प्रिया की आवाज में अमर के लिए प्यार भरा हुआ था और विकास सोच रहा था, वह कितना बेवकूफ था अपने एकतरफा प्यार में... अपने जीवन का इतना लंबा समय बरबाद करता रहा.







विकास की तेज आवाज पर प्रिया ने हैरान हो कर उस की तरफ देखा, फिर आंच धीमी की और विकास की आंखों में देखती हुई बोली, ‘‘विकास, आप की पहली गलतफहमी यह है कि मैं ने आप को बेवकूफ बनाया. मैं ने आप से कभी थोड़ीबहुत जो बातें कीं वह मेरी गलती थी, लेकिन वे बातें प्यारमुहब्बत की तो थीं नहीं, आप ने अपनेआप को किसी भ्रम में डाल लिया शायद… जब मेरे मम्मीपापा ने आप के रिश्ते को मना किया तो मुझे दुख हुआ था, लेकिन ऐसा नहीं कि मैं खुद को संभाल न सकूं. मैं ने फिर आप के बारे में नहीं सोचा.’’


‘‘तुम झूठ बोल रही हो. तुम ने नीलू से क्यों कहा था कि मैं तुम्हें अच्छा लगता हूं, लेकिन तुम ने मेरा साथ नहीं दिया… जब मैं पूरी तरह तुम्हारे प्यार में डूब गया तो तुम ने मेरा दिल तोड़ दिया… अमर के जीवन में आने से पहले तुम ने यह खेल न जाने कितनों के साथ खेला होगा.’’


‘‘विकास,’’ प्रिया गुस्से से बोली, ‘‘शायद आप जानते होंगे कि रिश्ते तो हर लड़की के लिए आते हैं. आप का भेजा हुआ प्रपोजल कोई अनोखा नहीं था फर्क सिर्फ इतना था कि मैं आप को जानती थी.


‘‘मैं ने नीलू को बताया था कि आप मुझे बुरे नहीं लगते. आप बुरे थे भी नहीं. एक अच्छे इंसान में जो खूबियां होनी चाहिए वे सब आप में थीं. लेकिन जब मेरे मम्मीपापा की मरजी नहीं थी तो मैं आप का साथ देने की सोच भी नहीं सकती थी. अगर मैं मांबाप की मरजी के खिलाफ आप का साथ देती तो एक भागी हुई लड़की कहलाती और ऐसे प्यार का क्या फायदा जो इज्जत न दे सके? मैं ने आप के बारे में सोचा जरूर था, लेकिन आप से प्यार कभी नहीं किया. आप शायद एकतरफा मेरे लिए अपने दिल में जगह बना चुके थे, इसलिए मेरी शादी को आप ने बेवफाई माना. कुछ समय बाद मेरी अमर के साथ शादी हो गई, यकीन करें मैं ने आप के साथ कोई मजाक नहीं किया था. उस के बाद मैं ने कभी आप के बारे में सोचा भी नहीं. अमर का प्यार मुझे उन के अलावा कुछ और सोचने भी नहीं देता.’’



प्रिया की आवाज में अमर के लिए प्यार भरा हुआ था और विकास सोच रहा था, वह कितना बेवकूफ था अपने एकतरफा प्यार में… अपने जीवन का इतना लंबा समय बरबाद करता रहा.


‘‘क्या सोचने लगे, विकास?’’ किचन की तपिश ने उस के चेहरे को और खूबसूरत बना दिया था.


‘काश, तुकास को घेर लियाम मेरी प्रिया होतीं. तुम्हारी यह खूबसूरती मेरे जीवन में होती, मेरा प्यार एकतरफा न होता,’ फिर अचानक शर्मिंदगी के एहसास ने वि कि यह सब वह अपने दोस्त की पत्नी के बारे में सोच रहा है.


प्रिया ध्यान से उस के चेहरे के उतारचढ़ाव को देख रही थी. वह उसे चुप देख कर बोली, ‘‘आप ड्राइंगरूम में बैठिए, यहां गरमी है, मैं अभी आती हूं.’’


विकास चुपचाप हारे कदमों से ड्राइंगरूम में आ गया, जहां सनी अभी तक खेल रहा था. कुछ देर में प्रिया भी आ गई और वहीं बैठ गई. दोनों काफी देर चुप रहे.


दिल ने एक बार फिर उकसाया तो विकास बोल उठा, ‘‘अगर मैं अमर को बता दूं कि मैं तुम्हें जानता हूं, बल्कि प्रपोज भी कर चुका हूं तो?’’ कह कर विकास ने उस के चेहरे पर नजरें जमा दीं.


प्रिया की गहरी आंखों में पल भर के लिए उलझन छाई, फिर धीरे से बोली, ‘‘यह जो पुरुष होता है न बड़ा अजीब होता है. अच्छाई पर आए तो फरिश्तों को भी मात कर दे और बुराई पर आए तो शैतान भी पनाह मांगे. आप का दिल जो चाहे, वह करो. आप अपने अधूरे प्यार का गुस्सा मेरे शांत जीवन को खत्म कर के उतारना चाहते हैं, अमर के सामने मेरा अपमान करना चाहते हैं जबकि आप का और मेरा ऐसा कोई रिश्ता था ही नहीं. क्या मेरा अपराध यही है कि मैं ने अपने मम्मीपापा की इच्छा के बिना आप का साथ नहीं दिया,’’ कहतेकहते प्रिया की आंखें भर आईं.



वह ठीक कह रही थी. विकास के दिमाग को उस की बातें स्वीकार्य थीं, लेकिन उस का दिल अब भी नहीं मान रहा था. और फिर दिमाग दिल पर हावी हो गया. विकास ने महसूस किया कि दिल और दिमाग में रस्साकशी चले तो दिमाग की बात मान लेनी चाहिए. इसीलिए शायद कुदरत ने बुद्धि को हृदय के ऊपर बैठाया है.


प्रिया की बातों ने विकास को शर्मिंदा सा कर दिया था. उस का मन ग्लानि से भर उठा. उस ने प्रिया को देखा तो उस के उदास चेहरे के घेरे में कैद सा हो गया. अपनी छोटी सोच पर उसे कुछ बोला ही नहीं गया, फिर हिम्मत कर के बोला, ‘‘आई एम सौरी, प्रिया, मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए. मैं गलत सोच रहा था,’’ फिर दोनों थोड़ी देर चुपचाप बैठे रहे.


कुछ ही देर में अमर आ गया. फिर सब ने खाना खाया, दोनों दोस्त बीते दिनों की बातें दोहराते रहे. प्रिया काम समेटती रही.


विकास के चलने का समय आया तो अमर गाड़ी निकालने लगा. प्रिया बोली, ‘‘आप फिर कब आएंगे?’’


‘‘शायद अब कभी नहीं.’’


‘‘क्यों?’’


‘‘तुम्हें मुझे अपने घर बुलाते हुए डर नहीं लग रहा है?’’


‘‘वह क्यों?’’ प्रिया ने हैरानी से पूछा.


‘‘मैं तुम्हारा कोई नुकसान कर दूं तो?’’


‘‘मुझे पता है आप ऐसा कभी नहीं कर सकते.’’


‘‘वह क्यों?’’ अब हैरान होने की बारी विकास की थी.


‘‘इसलिए कि आप बहुत अच्छे इंसान हैं. आप अमर के दोस्त हैं, जब चाहें आ सकते हैं.’’


‘‘प्रिया बहुत शांति है तुम्हारे घर में, तुम्हारे जीवन में, मेरी कामना है कि यह हमेशा रहे,’’ विकास मुसकराया.


‘‘आप घर बसा लें ऐसी शांति आप को भी मिल जाएगी,’’ प्रिया की आंखों में खुशी दिखाई दे रही थी.


विरोधी भावों के तूफान से जूझने के बाद विकास का मन पंख सा हलका हो गया था. मन का बोझ उतरने पर बड़ी शांति मिल रही थी, यही विकल्प था दीवाने मन का. विकास को लगा इतने वर्षों की थकान जैसे खत्म हो गई है.





इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

एक दिन अचानक हिंदी कहानी, Hindi Kahani Ek Din Achanak

एक दिन अचानक दीदी के पत्र ने सारे राज खोल दिए थे. अब समझ में आया क्यों दीदी ने लिखा था कि जिंदगी में कभी किसी को अपनी कठपुतली मत बनाना और न ही कभी खुद किसी की कठपुतली बनना. Hindi Kahani Ek Din Achanak लता दीदी की आत्महत्या की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. फिर मुझे एक दिन दीदी का वह पत्र मिला जिस ने सारे राज खोल दिए और मुझे परेशानी व असमंजस में डाल दिया कि क्या दीदी की आत्महत्या को मैं यों ही व्यर्थ जाने दूं? मैं बालकनी में पड़ी कुरसी पर चुपचाप बैठा था. जाने क्यों मन उदास था, जबकि लता दीदी को गुजरे अब 1 माह से अधिक हो गया है. दीदी की याद आती है तो जैसे यादों की बरात मन के लंबे रास्ते पर निकल पड़ती है. जिस दिन यह खबर मिली कि ‘लता ने आत्महत्या कर ली,’ सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि यह बात सच भी हो सकती है. क्योंकि दीदी कायर कदापि नहीं थीं. शादी के बाद, उन के पहले 3-4 साल अच्छे बीते. शरद जीजाजी और दीदी दोनों भोपाल में कार्यरत थे. जीजाजी बैंक में सहायक प्रबंधक हैं. दीदी शादी के पहले से ही सूचना एवं प्रसार कार्यालय में स्टैनोग्राफर थीं.

Maa Ki Shaadi मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था?

मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे

Hindi Family Story Big Brother Part 1 to 3

  Hindi kahani big brother बड़े भैया-भाग 1: स्मिता अपने भाई से कौन सी बात कहने से डर रही थी जब एक दिन अचानक स्मिता ससुराल को छोड़ कर बड़े भैया के घर आ गई, तब भैया की अनुभवी आंखें सबकुछ समझ गईं. अश्विनी कुमार भटनागर बड़े भैया ने घूर कर देखा तो स्मिता सिकुड़ गई. कितनी कठिनाई से इतने दिनों तक रटा हुआ संवाद बोल पाई थी. अब बोल कर भी लग रहा था कि कुछ नहीं बोली थी. बड़े भैया से आंख मिला कर कोई बोले, ऐसा साहस घर में किसी का न था. ‘‘क्या बोला तू ने? जरा फिर से कहना,’’ बड़े भैया ने गंभीरता से कहा. ‘‘कह तो दिया एक बार,’’ स्मिता का स्वर लड़खड़ा गया. ‘‘कोई बात नहीं,’’ बड़े भैया ने संतुलित स्वर में कहा, ‘‘एक बार फिर से कह. अकसर दूसरी बार कहने से अर्थ बदल जाता है.’’ स्मिता ने नीचे देखते हुए कहा, ‘‘मुझे अनिमेष से शादी करनी है.’’ ‘‘यह अनिमेष वही है न, जो कुछ दिनों पहले यहां आया था?’’ बड़े भैया ने पूछा. ‘‘जी.’’ ‘‘और वह बंगाली है?’’ बड़े भैया ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. ‘‘जी,’’ स्मिता ने धीमे स्वर में उत्तर दिया. ‘‘और हम लोग, जिस में तू भी शामिल है, शुद्ध शाकाहारी हैं. वह बंगाली तो अवश्य ही