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Dhoomawanti Kahani In Hindi धूमावती- भाग 1-4

 धूमावती- भाग 1-4 : हेमा अपने पति को क्यों छोड़ना चाहती थी Dhoomawanti Kahani In Hindi

दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित थे. हेमा की सीधेसादे पति तरुण में अब जरा भी दिलचस्पी नहीं थी. क्या हेमा प्रभास की हो सकी? या प्रभास की डोर उस की पत्नी मेघना के हाथों में आ गई. आखिर क्या थी सच
 
 
 
Dhoomawanti Kahani In Hindi  धूमावती- भाग 1-4

 

दीपान्विता राय बनर्जी |




मुंबई के एक बैंक के अपने केबिन के अटैच बाथरूम से निकलते हुए ब्रांच मैनेजर 45 साल के प्रभास ने अपने फुल स्लीव सी ग्रीन कलर के हलके चेक शर्ट और ब्लैक जींस को थोड़ा एडजस्ट किया, बाथरूम के आईने में घूम कर एक बार और अपने चेहरे का मुआयना किया और बालों को करीना करते हुए अपनी कुरसी पर आ कर बैठे और तुरंत ही टेबल पर रखी घंटी बजाई.

नियमानुसार दरवाजे से पियोन के झांकते ही प्रभास ने उस से कहा, “हेमाजी को बुलाओ.”अभी दोपहर के डेढ़ बजने में एक घंटा बाकी ही था, इस बीच 10 बजे से 3 बार हेमा प्रभास के कमरे में आ चुकी थी. ये चौथी बार, और फिर डेढ़ बजे लंच भी साथ ही होने वाला था.

कुछ महीनों से हेमा अपने लंच बौक्स में प्रभास की पसंद का खाना भी लाती है.प्रभास को अपनी मूंछों की याद आ जाती है, और अपने औफिस टेबल के ड्रायर से छोटा सा आईना निकाल कर मूंछों को देखता है, कुछ दिन पहले किए रंग ठीक है, वह आश्वस्त होता है.

दरवाजे की ओर देखते ही हेमा अंदर आती है. 5 फुट 5 इंच की हेमा गोरी और खूबसूरत है, फिगर तो 36 की उम्र में 25 का है ही, 2 बच्चों की मां भी वह कहीं से नहीं लगती. हो भी क्यों न… जिंदगी में आजादी है, सुकून है, पैसे की खनखन है, जो चाहा सब है उस के पास… और एक पति भी. घर और बाहर का काम संभालने, बच्चों को पालने, हुक्म बजाने, उस की डांटडपट खा कर भी उस की सारी जरूरतों को पूरी करने के लिए एक शांतमिजाज आम सा दिखने वाला खास पति. खास ही हुआ न ऐसा पति, जो भारतीय समाज में अजूबा ही है.

प्रभास की आंखों की चमक देखते ही बनती थी इस वक्त. हेमा ने भी प्रभास की आंखों में छिड़े सुरताल को महसूस किया और आसानी से प्रभास की ओर बढ़ आई. हेमा चतुर और बेहद स्वार्थी स्त्री है. वह प्रभास जैसे शातिर और मतलबी बौस का पूरा उपयोग करना जानती है. “सर, फाइल रेडी कर के ले आई हूं.”

“इधर बताओ. अरे, सिर्फ फाइल दे रही हो?” प्रभास ने द्विअर्थी मुसकान के साथ हेमा की आंखों में देखा. वह मुसकराते हुए आगे बढ़ी, तो बगल में रखी कुरसी के हैंडल में झालर वाली उस की क्रौप टौप अटक गई, और पहले से ही नाभी का दिखता हिस्सा अब और प्रभास की आंखों को तड़पा गया. नीचे के हिस्से में बटम टाइट कैप्री जींस कमाल किए हुए थी ही.

हेमा ने झेंपने का अभिनय किया. वह प्रभास के पास अब तक आ चुकी थी. प्रभास 6 महीने से जिस जुगत में लगा था, आज अचानक ही हिम्मत की बलिहारी से वह कर गुजरा .एक झटके से उस ने हेमा को अपने ऊपर खींच लिया.


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हेमा के अंदर क्या था, वह हेमा ही जानती है. जो दुनिया में सब से ज्यादा खुशी चाहता हो, सब से बढ़िया पाना चाहता हो, जो दूसरों के पाने का खुद के पाने से हर वक्त तुलना करता हो, वही जानता है. तरुण जैसा पति पा कर भी वह कितनी प्यासी है. प्रभास ने उठ कर दरवाजा लगा दिया. और वे दुनियादारी से विमुख हो कर खुद को दुनिया का सब से छला हुआ इनसान मान कर खुद की सुखतृप्ति में बेसुध हो गए.

बाहर की दुनिया अपने हिसाब से आगे बढ़ती है, और कई मामलों में लोग अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, तो दुनिया को और तेजी से आगे बढ़ने में सुविधा होती है. लिहाजा, तेजतर्रार हेमा और शातिर दिमाग बैंक मैनेजर प्रभास की जाति जिंदगी में ताकाझांकी से स्टाफ दूर ही रहते थे, यद्यपि हेमा के पति तरुण को यहां के काफी स्टाफ पहचानते थे, लेकिन सब को अपने हिस्से का सुकून प्यारा है.

शाम को तरुण अपनी एक्टिवा में हेमा को लेने आ गया था. हेमा को टू व्हीलर चलाना आता था, लेकिन यह काम उसे लगता था कि वह क्यों करे, जब तरुण है. तरुण का बैंक हेमा की बैंक के पास की दूसरी गली में ही था. यह एक तरह से कौमर्स एंड बिजनेस इलाका ही था. दोनों की एक समय की छुट्टी थी, तो तरुण ही आ जाता था, और जिस दिन तरुण किसी काम से रुकता था, उसे एक्टिवा और चाबी पहुंचा कर फिर से औफिस चला जाता था, बाद में वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घर आ जाता था.

दुबलापतला मुश्किल से 5′-7” की हाइट का सामान्य सा दिखता तरुण हेमा से एक साल छोटा 35 साल का था. तरुण स्कूल का पढ़ाकू बालक लगता है. बहुत सीधा, सच्चा, विनम्र और वचन का पक्का. इसी वचन की जिम्मेदारी ने ही तो तरुण को हेमा के साथ बांधा और बांध रखा है. कालेज के वे स्नातक के दिन थे दोनों के. हेमा और तरुण दोनों के ही कौमर्स विषय थे.

यद्यपि दोनों के कालेज अलग थे, लेकिन उन में दिनोंदिन पहचान बढ़ रही थी. दरअसल, इस के पीछे वह कोचिंग सेंटर था, जहां तरुण पढ़ने आया करता.

निचली मंजिल पर कोचिंग सेंटर के हेड सर का घर था, जहां उन की 2 बेटी हेमा, रीमा और एक बेटे के साथ उन का परिवार रहता था. बाजू की सीढ़ी होते हुए ऊपर 2 और 3 मंजिलें पर मैथ, बायो और कौमर्स के कोचिंग सेंटर थे.

हेमा और तरुण दूसरी मंजिल पर आसपास के क्लास में होते थे, लेकिन वह यहां के हेड सर की बेटी होने और क्लास में एक साल सीनियर होने के कारण अकसर वैसे क्लास संभाल दिया करती, जहां कौमर्स का कोई फैकल्टी क्लास में उस दिन अनुपस्थित हो.

हेमा खूबसूरत तो थी ही, बोनस में लटकेझटके के साथ खिलखिलाती भी थी. कच्चा दिमाग तरुण यह नहीं समझ पाता कि हेमा जैसी चालाक लड़कियां दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर उन पर अपनी सुप्रीमेसी साबित करने के लिए अकसर ऐसे लटकेझटके लगाती हैं.







धूमावती- भाग 2 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी
2 साल तक यानी जब तक तरुण को उस की कमाई के पैसे उस के गांव अपने पापा के पास भेजने पर हेमा की ओर से खास रोक नहीं लगाई गई, तरुण को लगता था,



हेमा को तरुण में अपना गुलाम नजर आया. एक जीहुजूरी करने वाला उस के शरीर और खूबसूरती पर मोहित वह लड़का, जो खुद ही हेमा का काम कर खुद को धन्य महसूस करे. बदले में हेमा उसे पढ़ाई में कई तरह से मदद कर देती. इस लेनीदेनी में दूसरे छात्र भी तरुण को भाव देने लगे.

गांव से आ कर 2 गज के बायज मेस में रह कर हाथपांव मारने वाले लड़के को अगर इतना मिल जाए, तो उस के सपने जमीन से कोंपल बन कर फूट ही पड़ेंगे. हेमा के घर में लड़कियों का राज था. भाई अभी 9वी जमात में था, और पापामम्मा की लाड़ली हेमा के लिए दुनिया उस की मुट्ठी में थी.

एक बार हेमा के आदेशानुसार तरुण उसे लोकल ट्रेन से उस के मामा की बेटी के जन्मदिन में लेबकर चला. लोकल ट्रेन में आसपास बैठे ठेलतेधकियाते लोगों के बीच समयसंजोग से हेमा और तरुण एकदम एकदूसरे से चिपकने को बाध्य हो गए.

ट्रेन से उतरते वक्त हेमा ने तरुण को कस कर पकड़ रखा था.तरुण ने हेमा के मामा का पता पूछा और हेमा उसे सीधे होटल के कमरे में ले जा कर बिस्तर पर खींच लिया.हेमा के सौंदर्य को देख वह सबकुछ विस्मृत हो गया. गांव, गोबर, भैंस, गाय, खेत, कीचड़ भुखमरी, मजदूरी, पढ़ाई और उम्मीद से भरी गांव में इंतजार करती उस की परिवार की आंखें… सब कुछ… बस दिखती थीं गगनचुंबी पहाड़ें… ढलान को उतरती वेगमती वासना की ज्वारें और शाम की बेला की यह मधुचांदनी.

यहां से निकल कर जैसेतैसे वे मामा के घर रस्म भरपाई को पहुंचे, और वापसी में मामा की गाड़ी में उन के ड्राइवर  की आंख बचा कर और उसे आगे अनदेखा कर पीछे की सीट पर दोनों फिर से एकदूसरे में व्यस्त रहे.2 साल जातेजाते हेमा की बैंक में नौकरी लग चुकी थी, लेकिन तरुण अभी भी कोशिश पर कोशिश किए जा रहा था. वह तनाव में रहता. हेमा कहीं और न शादी कर ले. हेमा के साथ बनाए उस के संबंध उस के लिए अटूट हो गए थे.

हेमा को वैसे तरुण की नौकरी की कोई परवाह नहीं थी. इसलिए नहीं कि वह तरुण को हर हाल में अपना लेती, उसे तो तरुण की ही कोई फिक्र नहीं थी. जो बीत गई सो बात गई. कुछ दिन तरुण के साथ रिश्ता बना, तो इस का मतलब हेमा के लिए यह कतई नहीं था कि वह जन्मभर के लिए उस के साथ बंध जाए, लेकिन तरुण के लिए हेमा के साथ का हर पल सच्चा और स्थाई था. उस के अंदर की सचाई की आग ने उस में इतना जुनून भर दिया कि वह एक सरकारी बैंक में चयनित हो गया.

इस से उसे 2 फायदे हुए. एक तो घर वालों की गरीबी दूर करने को उस के हाथ मजबूत हुए वहीं दूसरे हेमा के पिता से हेमा के बारे में सीधे बात कर लेने की उस में हिम्मत आ गई.हेमा के नानुकुर के बावजूद तरुण जैसे मेहनती सीधेसादे और सर्वदा हाथ बांधे रहने वाले लड़के को हेमा के पिता ने हेमा के वर के रूप में चुन लेने में अपनी और हेमा की भलाई ही समझी.

हेमा के पिता बेटी की ऊंची नाक और उस के नखरे को जानते थे. आगे गृहस्थी चलाने में तरुण जैसा युवक ही हेमा से निभा लेगा, यह दूरदर्शिता इन की शादी की मुख्य वजह बनी.शादी के बाद तरुण जितना ही खुद को आईने में देखता, हेमा को पा कर वह अपनी दसों उंगलियां घी में डूबा पाता. सारे दोस्त उस से रश्क करते. इतनी खूबसूरत, स्मार्ट बीवी, जिस की आमदनी भी तरुण से ज्यादा है, शादी में बैंक के पास पौश कालोनी में डुप्लेक्स के साथ उस की जिंदगी में आई है.

2 साल तक यानी जब तक तरुण को उस की कमाई के पैसे उस के गांव अपने पापा के पास भेजने पर हेमा की ओर से खास रोक नहीं लगाई गई, तरुण को लगता था, वह अपनी औकात से ज्यादा ही पा गया है. लेकिन धीरेधीरे हेमा का तरुण के पैसे पर हक और शिकंजा कसने लगा, तब तरुण करवट ले कर बैठा.

हालांकि उस ने घर भेजे जाने वाले रुपयों में कोई कटौती की तो नहीं, लेकिन हेमा के तानों पर उस के दिल में विष उतर जाता.सच मुहब्बत इतना आसान नहीं था, यह आग का दरिया था, और तरुण अकेला इस में हाथपांव मार रहा था.समय के साथ तरुण को हेमा का बिंदास स्वभाव, स्वार्थी सोच बहुत खलता, लेकिन अब वह ओज और ओम 2 बेटों का सिर्फ पिता ही नहीं, सेवा और प्यार की छांव देने वाला मां जैसा भी था.

कभीकभी वह महसूस करता, जैसे हेमा का तरुण के प्रति कोई प्रतिबद्धता भी न हो, और यह सिर्फ तरुण के अकेले की ही जवाबदारी हो. लेकिन वह अब बच्चों के लिए अपना मुंह बंद ही रखता.सालभर हो रहे थे, असम की गुवाहाटी से प्रभास नाम के बैंक मैनेजर हेमा के औफिस में आए थे, जिसे ले कर तरुण के विचार संदेह के घेरे में थे. मगर इस मामले में भी वह कुछ कहने लायक स्थिति में नहीं था. मजाल था कि हेमा के बारे में तरुण कोई शिकायत कर ले. सब का फिर तो वह जीना ही मुश्किल कर






धूमावती- भाग 3 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी

प्रभास तनाव और परेशानी में पहले से ही था,अब तो जैसे कुछ ज्यादा ही बीमार रहने लगा. आखिर उस की झल्लाहट और चिड़चिड़ाहट ने मेघना को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि जरूर कोई और बात तो है.






अपने फ्लैट में वापस आने पर प्रभास को कुछ अजीब सा महसूस हुआ, वैसा जैसा उसे अच्छा नहीं लगता था. रात के 9 बज रहे थे. उस ने चौथी मंजिल के अपने फ्लैट के दरवाजे की चाबी घुमाई, और अंदर घुसते ही रोशनी के धमाके से उस का साबका हुआ.

मेघना आई हुई थी. 42 साल की मेघना वैसे तो हंसमुख, मिलनसार, जिम्मेदार और सीधीसादी है, लेकिन है वह गेहुंए रंग की 5″-2′ इंच की एकदम सामान्य चेहरे की स्त्री. प्रभास और मेघना की अरेंज मैरेज थी, और जातिबिरादरी नियमकानून ही इस शादी के पीछे का एकमात्र सच था. इन दोनों की 2 बेटियां थीं, एक बड़ी, जो अभी 12वीं में थी, छोटी 9वीं में. इन की शादी के आज 19 वर्ष हो रहे थे, और बेटियों के साथ गुवाहाटी से मुंबई मेघना का यह सरप्राइज विजिट इसी खुशी में था.

मेघना घर को साफसुथरा कर, डाइनिंग पर प्रभास की पसंद का डिश सजा कर बेटियों के साथ वह प्रभास को सजीधजी मिली. मेघना को लगा था, उस के इन प्रयासों का प्रभास पर अच्छा असर पड़ेगा, यद्यपि पिछले साल से प्रभास का व्यवहार मेघना के प्रति बहुत उचित नहीं लगता था मेघना को, पर  वह खुद को दिलासा देती कि भारतीय समाज में अमूमन पति का पत्नी के प्रति रूखा और उपेक्षित व्यवहार कोई नई बात तो है नहीं, नानी, दादी, मां, सास सब तो एक ही परंपरा की थाली में जिंदगी घिसती रही हैं. मेघना के लिए बदलाव क्यों होगा. पति भले ही 22वीं सदी के हों, सोच तो 16वीं सदी के भूसे से ही बनी है, जिसे तरहतरह के डिजिटल चमक से सजाया गया है.

“अचानक तुम लोग…?” मेघना मुझे इस तरह का सरप्राइज अच्छा नहीं लगता, बता कर आओ न…”आज इन की शादी की सालगिरह का 19वां वर्ष था. सुबह से उम्मीद लगाए बारबार वह प्रभास के संदेश के लिए फोन चेक कर रही थी. रात गहराने के बावजूद वह नाउम्मीद नहीं थी. लेकिन प्रभास के इस तरह रिएक्ट करने से उस की सारी उम्मीदें टूट कर गिर गईं. मेघना कभी भी रोती नहीं थी, खासकर प्रभास के सामने तो कभी नहीं. कभी भूले से दर्द ने आंसू का चेहरा लिया और प्रभास की नजर पड़ी तो एक जहर बुझा तीर उस के सीने के पार होता – “नाटक चालू.”

मेघना सामने से हट गई. प्रभास ने बड़ा बेजार सा मुंह बना लिया और बच्चों को ‘और पढ़ाई कैसी चल रही है’ के अलावा खास कुछ नहीं पूछा. ये लोग सप्ताहभर के लिए ही आए थे, लेकिन प्रभास के व्यवहार से मेघना और बच्चे बड़े क्षुब्ध हो गए.

मेघना को गुवाहाटी में अकेले गृहस्थी खींचने में हजार मुसीबतें थीं. दोनों बेटियों की जिम्मेदारी अकेले ही निर्वहन करती, प्रभास को कुछ पता नहीं चलता. प्रभास के रिश्तेदार हों या उस की मां की तबीयत हर काम मेघना बिना एक भी सवाल उठाए पूरा करती, बदले में प्रभास से प्रशंसा के मीठे बोल की भी उम्मीद नहीं रखती.

आज जब वे प्रभास के पास चले आए तो प्रभास को इतना बुरा लगा? मेघना से रहा नहीं गया और उस ने प्रभास से एक छोटा सा सवाल आखिर पूछ ही लिया, “दोनों लड़कियां 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं दे चुकी, अब और कितना गुवाहाटी में पड़े रहें. अब तो प्रतियोगी परीक्षाएं ये दोनों यहां से भी दे सकती हैं. 2-2 गृहस्थी का बोझ भी तो कम नहीं.”

प्रभास झल्ला पड़ा, “सालभर ही तो हुए हैं मुंबई आए हुए. तुम तो पीछे ही पड़ गई हो शिफ्ट होने के लिए.” “क्या कहते हैं? उस के पहले भी तो सालोंसाल बच्चों की पढ़ाई की खातिर कईकई जगह अकेले रही, इस के पहले भी 3 साल और अकेले ही रही गुआहाटी में, जब आप का तबादला दिल्ली हुआ था. अब तो बच्चे बाहर चले जाएंगे पढ़ने, फिर मैं वहां अकेली रहूं?”

“तब की तब देखी जाएगी… अभी से क्यों दिमाग खा रही हो?”प्रभास ने पल्ला छुड़ाया. 2 साल बीत गए. बड़ी इंजीनियरिंग पढ़ने बैंगलोर चली गई थी. छोटी 12वीं के बाद फैशन डिजाइन के कोर्स के लिए कंपटीटिव एग्जाम में बैठ रही थी. पहली कोरोना लहर के बाद अब कुछ लोग सांस ले रहे थे.

इस वक्त कुछ ऐसी हवा चली कि मेघना को खास न चाहते हुए भी मुंबई जाना पड़ा. दरअसल, प्रभास की आएदिन तबियत खराब रहने लगी थी, और एक समय ऐसा आया कि उस के लिए बिस्तर से उठना मुश्किल हो गया. मेघना और छोटी बेटी मुंबई पहुंचे, टेस्ट में उसे हेपेटाइटिस डिटेक्ट हुआ था. ऊंट पहाड़ के नीचे आने से कब तक बचता.

मेघना पूरे दिल से प्रभास की देखभाल कर रही थी. और तब अचानक देखते ही देखते कोरोना की दूसरी लहर ने अपना विकराल रूप दिखाया. औफिस बंद, रोज की जिंदगी ठप और साथ ही प्रभास और हेमा का मिलनाजुलना भी बंद. इस वक्त कोरोना से होने वाली मौतों की खबर दिनोंदिन तेज हो रही थी. और एक दिन अचानक प्रभास को खबर मिली कि हेमा और तरुण भी कोरोना की चपेट में आ गए हैं.

प्रभास तनाव और परेशानी में पहले से ही था,अब तो जैसे कुछ ज्यादा ही बीमार रहने लगा. आखिर उस की झल्लाहट और चिड़चिड़ाहट ने मेघना को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि जरूर कोई और बात तो है. मेघना के पूछने पर  प्रभास ने कहा, “हमारे बैंक कर्मचारी तरुण और उस की पत्नी हेमा को कोरोना हो गया है, उन्हें आईसीयू में भरती किया गया है. उन के 10 और 7 साल के 2 बेटे हैं और डेढ़ साल की एक बेटी तमन्ना है.

“पता नहीं, दोनों छोटे बच्चे डेढ़ साल की बच्ची का क्या खयाल रखेंगे. मेघना, क्या तुम छोटी बच्ची को यहां ले आओगी?” मेघना यह जान कर निश्चित हुई कि उस का पति एक परिवार और बच्चों के बारे में चिंतित था. मेघना ने प्रभास को आश्वस्त किया और तरुण के घर का रुख किया. कोरोना का डर ऐसा था कि पास वाले फ्लैट से भी कोई झांकने नहीं आ रहा था. मेघना को पा कर बच्चों की जान में जान आई.







धूमावती- भाग 4 : हेमा अपने पति को क्यूं छोड़ना चाहती थी
तरुण भौंचक रह गया. वह कितना बड़ा मूर्ख है. उसे हेमा के धोखे का कुछ पता ही नहीं. मेघना तरुण को देख रही थी, लेकिन उस की खुद की हालत भी नाजुक थी.




प्रभास को संभालने के लिए मेघना की छोटी बेटी ही काफी थी. अभी 2 दिन उसे यहां बच्चों को संभालते हुए बीते ही थे कि अस्पताल से अचानक कुछ लोग आए. वे हेमा की मौत की खबर देने आए थे. यह सुन कर मेघना बुरी तरह चौंक गई. बच्चों को खबर से दूर रखना तो चाहती थी, लेकिन यह कब तक संभव था.

ओज वाकई बड़ा हो गया था. उस ने खबर सुनी और गजब का धीरज दिखाते हुए अपने दोनों भाईबहनों को पास ले कर चुप से बैठ गया. मेघना ने पुकारा, “ओज…” उस ने कहा, “आंटी, पापा तो ठीक हैं न… वे तो घर आ जाएंगे न.” मेघना को जाने क्यों ऐसा लगा, जैसे इन के लिए इन के पापा ही सबकुछ हैं.

कुछ दिन तक मेघना और रुक कर अभी घर से आनाजाना कर ही रही थी कि तरुण ठीक हो कर वापस आ गया. मेघना को प्रभास की चुप्पी अजीब लगती, लेकिन वह यह सोच कर अपने मन को समझा लेती कि बैंक के कई स्टाफ चल बसे, प्रभास का मन उदास होगा.

इधर तरुण के मन में एक उथलपुथल थी. वह समझ नहीं पा रहा था कि हेमा के जाने से वह दुखी था या दुखी नहीं था. वह खुद को बताना चाहता था कि हेमा के चले जाने से उसे बहुत दुखी होना चाहिए, क्योंकि वह उस की प्रेमिका और पत्नी दोनों थी. लेकिन उस के समझाए का उस के दिल पर असर ही नहीं हो रहा था.

वह पता नही क्यों हलका सा महसूस कर रहा था, क्योंकि आएदिन प्रभास के साथ हेमा की नाकाबिल ए बरदाश्त की हद तक अंतरंगता अब नहीं थी. घर की साफसफाई के बाद  सोफे पर तरुण के पसरने पर अब कोई चिकचिक नहीं थी. औफिस से आने के बाद किसी और के लिए चाय बना कर देने की जल्दी नहीं थी. बच्चों को मन के मुताबिक प्यार करते वक्त हेमा की छींटाकशी नहीं थी. यहां तक कि रात को सोने से पहले इच्छा के विरुद्ध हेमा के शरीर की सेवा, मसलन कभी पीठ दबाना, कभी पैर तो कभी सिर या फिर उस के शरीर की क्षुधा शांत करना, अब नहीं थी.

हेमा से न कभी उसे प्यार मिला, न सम्मान. एक गुलाम को इस के बाद आजादी की खुशी तो महसूस होनी ही चाहिए और इस प्राकृतिक संवेग को तरुण भी महसूस कर रहा था. बच्चे पापा के साथ पहले से ही इतने घुलेमिले थे कि उन्हें हेमा की कमी खास खली भी नहीं. इस बीच मेघना आती रही और बच्चों की परवरिश में तरुण की मदद करती रही. तरुण मेघना से बहुत प्रभावित था. यह वह स्त्री थी, जिसे तरुण सम्मान की नजर से देखने लगा था. मेघना उसे अपने छोटे भाई सी समझती और तरुण मेघना को दीदी कहने में अब एक अलग ही अपनापन महसूस करता.

इधर, प्रभास अब पहले से बेहतर था और उस की चिड़चिड़ाहट फिर से शुरू हो गई थी. हर बात में मेघना को कम आंकना, उपेक्षा करना और उस के प्रयासों को शक की नजर से तौलना. मेघना और तरुण को ले कर जब उस की छींटाकशी ज्यादा शुरू हो गई, तो मेघना ने कहा, “यह तो तुम्हारी बात पर ही मैं तरुण के घर जाने लगी हूं. छोटी बच्ची को इस से सहारा भी तो हुआ. अब जाती नहीं हूं तो फोन पर कभी कुछ बताया भी न करूं.”

“नहीं. अब उन से रिश्ता रखने की कोई जरूरत नहीं. खुद जिंदा बच गया तो बहुत खुश हो गया? अब मजे करे. और बच्चे भी खुद ही संभाले. मै छोटी बच्ची को अपने पास ला कर पालूंगा.” “अरे, यह क्या बोल रहे हैं आप? हेमा के चले जाने में तरुण का क्या दोष? और वह अपनी बच्ची भला क्यों देगा?” “तुम्हें बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है.”

अभी आज इन बातों के बीच उस का मन खिन्न हो गया, तो वह बालकनी में जा कर बैठी. तुरंत तरुण का फोन आ गया, “दीदी, छोटी बेटी तमन्ना की  तबियत खराब है, बुखार बढ़ा हुआ है. आज रहने दो, क्या कल सुबह आप आ जाओगी?” रात बीतते और प्रभास के बैंक जाते ही वह तुरंत तरुण के घर पहुंची.

“प्रभास ने कुछ कहा तो नहीं?” तरुण ने पूछा. “मैनेजर है न और बहुत दिन छुट्टी में भी था, इसलिए अभी कोरोना में भी उसे औफिस जाना पड़ रहा है.” तरुण ने कहा, ” दीदी, बाहर तो पूरा बंद है, बच्ची को डाक्टर से दिखाएं भी तो कैसे? एक काम करते हैं, तमन्ना के डाक्टरी फाइल में पुराना प्रिस्क्रिप्शन ढूंढ़ते हैं.”

मेघना को यह बात सही लगी. हेमा की अलमारी में तमन्ना की फाइल मिल गई. मेघना ने फाइल देखना शुरू किया और… यह एक चिट्ठी थी, जिसे पढ़ कर मेघना के पैरों तले जमीन खिसक गई. तरुण ने वह चिट्ठी ले ली. जब तक तरुण चिट्ठी पढ़ रहा था, मेघना ने फाइल के आगे के कागज पलटे. तुरंत ही उसे एक डाक्टरी कागज मिला, जो हेमा के अबार्शन का कागज था, और यह तमन्ना के जन्म के पहले का था.

तरुण भौंचक रह गया. वह कितना बड़ा मूर्ख है. उसे हेमा के धोखे का कुछ पता ही नहीं. मेघना तरुण को देख रही थी, लेकिन उस की खुद की हालत भी नाजुक थी. तरुण ने चिट्ठी को इस बार थोड़ा जोर से पढ़ा – ‘मेरी हेमा, मैं अपने दिल की बात कागज पर लिख रहा हूं, ताकि तुम पढ़ कर तुरंत फाड़ सको. मोबाइल का भरोसा नहीं, मोबाइल फार्मेट करने के बाद भी चैट रह जाते हैं.

‘मैं चाहता हूं, तुम से एक बच्चा. तुम्हारी खूबसूरती को मैं अपने अंश में देखना चाहता हूं, लेकिन तुम ने अबार्शन करवा लिया. तुम तरुण से डर गई? वह तो तुम्हारे लिए पागल है, पता चलने लायक उस के पास दिमाग भी है?

‘अब इस बार इस बच्चे को आने दो. ये मेरी तमन्ना है.’ नीचे हेमा ने लिखा था, “ये चिट्ठी तुम्हारे प्यार का प्रमाण है… और प्रभास, मैं तुम्हें अच्छी तरह जानती हूं. तुम ने आसानी से अपनी पत्नी को धोखा दिया, आज बच्चे के लिए जिस मुंह से बोल रहे हो, कल उस के लिए खर्चे देने पड़े तो मुकर जाओ तो मेरा क्या होगा.

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मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? मां की शादी- भाग 1: समीर अपनी बेटी को क्या बनाना चाहता था? समीर की मृत्यु के बाद मीरा के जीवन का एकमात्र मकसद था समीरा को सुखद भविष्य देना. लेकिन मीरा नहीं जानती थी कि समीरा भी अपनी मां की खुशियों को नए पंख देना चाहती थी. संध्या समीर और मैं ने, परिवारों के विरोध के बावजूद प्रेमविवाह किया था. एकदूसरे को पा कर हम बेहद खुश थे. समीर बैंक मैनेजर थे. बेहद हंसमुख एवं मिलनसार स्वभाव के थे. मेरे हर काम में दिलचस्पी तो लेते ही थे, हर संभव मदद भी करते थे, यहां तक कि मेरे कालेज संबंधी कामों में भी पूरी मदद करते थे. कई बार तो उन के उपयोगी टिप्स से मेरे लेक्चर में नई जान आ जाती थी. शादी के 4 वर्षों बाद मैं ने प्यारी सी बिटिया को जन्म दिया. उस के नामकरण के लिए मैं ने समीरा नाम सुझाया. समीर और मीरा की समीरा. समीर प्रफुल्लित होते हुए बोले, ‘‘यार, तुम ने तो बहुत बढि़या नामकरण कर दिया. जैसे यह हम दोनों का रूप है उसी तरह इस के नाम में हम दोनों का नाम भी समाहित है.’’ समीरा को प्यार से हम सोमू पुकारते, उस के जन्म के बाद मैं ने दोनों परिवारों मे