भूल का एहसास kahani bataiye : भाग 1
‘नीरू’ देवेश के छिछोरेपन के कारण उस की पत्नी उमा परेशान हो गई थी. महल्ले में सब के सामने उसे जिल्लत उठानी पड़ती. अपनी उम्र और जिम्मेदारियां जानतेबू?ाते भी मानो देवेश की अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे…उमा अपने पति देवेश के छिछोरेपन से परेशान थी. ‘छि:, यह भी कोई उम्र है इन की. सारे बाल सफेद होते जा रहे हैं और 5-6 साल में सेवामुक्त भी हो जाएंगे, फिर भी लड़कियों, औरतों को देख कर छेड़छाड़ करने से बाज नहीं आते हैं,’ वह बड़बड़ाए जा रही थी, ‘2 बेटों का ब्याह कर दिया. वे अपनीअपनी नौकरी पर रहते हैं. छुट्टियों में कभीकभी आते हैं, साथ में बहुएं और बच्चे भी होते हैं. उन के सामने ऐसावैसा कुछ भी कर जाते हैं, इन्हें जरा भी शर्म नहीं आती.’
लेखक- डा. नीरजा श्रीवास्तव
भूल का एहसास Kahani In Hindi Part 1
पड़ोसी रामलाल की 27-28 साल की कुंआरी बहन विमला से देवेश की आजकल खूब पट रही है. उन से कुछ कहने पर वे कहते, ‘अपनी तो वह बहनबेटी जैसी है. विजय की जगह कहीं अपनी लड़की होती तो ठीक इसी उम्र की होती. अच्छीभली है पर रामलाल जाने क्यों अभी तक उस की शादी नहीं कर पाया. जब देखो तब, मनहूस कह कर कोसता ही रहता है. भला उस का क्या कुसूर? बेचारी, बिन मांबाप की लड़की, आंसू ही बहाती रहती है. मु?ो अच्छा नहीं लगता. बेहद तरस आता है.’ अकसर ऐसी ही दलीलें उन से सुनने को मिलतीं.
देवेश जबतब उस की सेवा में लगे रहते. घर में खाने की कोई भी चीज आती, उस में से जरूर कुछ दौड़ कर विमला को दे आते और नहीं तो अलग से ही खरीद कर दे आते. यह देख कर उमा का दिल जल जाता. छुट्टियों में चुन्नू, मोना और बंटी के साथ देवेश का ज्यादा समय बीत जाता तो विमला शिकायत करती, रूठ जाती, ‘अब अंकल हमें पहले जैसा प्यार नहीं करते.’
भूल का एहसास kahani batao
उस समय देवेश हाथ पकड़ कर उसे अपने पास बिठा लेते, उस की चुन्नी और बाल संवारते हुए उसे दुलारते, मनाते. बच्चे के सामने भी रूठनेमनाने का यह सिलसिला चलता ही रहता. यह देख कर उमा का खून खौल जाता.अजय, विजय तो नौकरी के बहाने चले गए हैं, उमा का मन करता कि वह भी कहीं दूर भाग जाए या जहर खा ले, पर उस के तीसरे बेटे जय का क्या होगा जो अभी पढ़ रहा है और उस के साथ ही रहता है. ‘मेरे जाने से तो इन्हें और छूट मिल जाएगी. जय के पीएमटी का क्या होगा, कैसे पढ़ पाएगा?’ वह सोचती रहती.
‘हाय, क्या करूं मैं. कुछ तो सद्बुद्धि आए इन में. मैं तो सम?ासम?ा कर थक गई,’ बड़बड़ाते हुए उमा की आंखों में आंसू छलछला आए. वह अपना माथा थामे बैठ गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी.‘कौन हो सकता है? जय को कोचिंग के लिए निकले 10 मिनट हुए हैं, कहीं वह फिर किसी से ?ागड़ा कर के तो नहीं आ गया… मु?ा से भी फिर लड़ेगा,’ सोच कर आशंका से उस का दिल धड़कने लगा.
उस ने दरवाजा खोला तो जय ही था, वह बरस पड़ा, ‘‘घर से निकलना दूभर हो गया है, अम्मा. आप पापा को सम?ाती क्यों नहीं. आज उन्होंने फिर रश्मि के साथ छेड़छाड़ की. बब्बन ने (रश्मि का भाई) फिर पापा के लिए गंदीगंदी बातें बोलीं. उस ने पापा को पीटने की धमकी दी है. मैं ने भी कहा कि जरा हाथ लगा के दिखाना तो उस ने मेरे माथे पर पत्थर दे मारा,’’ तेज सांसों से बोलते हुए जय ने अपने माथे पर दबा रखा हाथ हटा दिया तो खून रिसने लगा था.
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‘‘जब तेरे पापा ऐसे हैं ही तो तू क्यों लड़ता है पापा के लिए. सम?ाने पर भी उन पर कोई असर नहीं होता. चल, वाशबेसिन पर धो ले, मैं दवा ले कर आई…’’ अलमारी से दवा निकालते हुए वह बोले जा रही थी, ‘‘आने दे आज, अच्छी तरह सम?ाऊंगी. तू ?ागड़ा मत किया कर. तु?ो कुछ हो गया तो मैं… अपनी मां के लिए सोचा है… तू लड़ा मत कर. बोलने दे लोगों को, चुपचाप चला जाया कर. पढ़ाई में ध्यान दे, मैं कुछ करूंगी, तू पट्टी कर के जा,’’ कहते हुए उमा ने उस के कंधे पर हाथ रखा.
‘‘कैसे जाऊं, अम्मा. पापा को कोई गंदा बोले तो सहन नहीं होता. मन करता है मुंह तोड़ दूं उस का,’’ जय बोला.‘‘नहीं, तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगा. बब्बन को मैं सम?ा दूंगी, वह तु?ो कुछ नहीं बोलेगा. अब तू जा. अभी भी समय रहते क्लास में पहुंच जाएगा. मैं तेरे पापा से बात करूंगी, सब ठीक हो जाएगा,’’ उमा ने जय को आश्वासन देते हुए कोचिंग भेज दिया, मगर खुद को वह आश्वस्त नहीं कर पाई.
वह बब्बन को सम?ाने गई और बोली, ‘‘तू मेरे बेटे जैसा ही है. जय से क्यों लड़ता है? अंकल के बारे में उस से क्यों कहता है, अंकल से ही कहा कर. मैं भी सम?ाऊंगी उन्हें.’’‘‘क्या करूं आंटी, रश्मि के बारे में कोई और लड़का बोलता तो यकीनन मैं उस की जबान खींच लेता,’’ वह फिल्मी हीरो के अंदाज में बोला, ‘‘रश्मि ने कई बार मु?ा से कहा कि सामने वाले अंकल मु?ो श्रीदेवी कह कर छेड़ते हैं. मैं ने उसे सम?ाया कि तू छोटी सी है, प्यारी सी है, प्यार से कहते होंगे, मगर उस ने बताया कि अंकल उसे आंख भी मारते हैं और कल तो हद ही हो गई…’’ बब्बन कहने में हिचकिचा रहा था, पर उमा सुनने से पहले ही शर्मिंदा हो रही थी. वह कोशिश कर के बोला, ‘‘आंटी, अंकल ने रश्मि का हाथ पकड़ लिया और गंदा सा गाना गाने लगे… वही, माधुरी दीक्षित वाला, ‘एक तो जुल्मी ने… फंसी गोरी, चने के खेत में…’’
‘‘मैं बात करूंगी अंकल से. जाने क्या हो गया है उन्हें. सठिया गए हैं शायद पर तू जय को कुछ मत बोला कर. वह बहुत परेशान हो जाता है. उस का पीएमटी नजदीक आ गया है, वह कैसे पढ़ पाएगा? अंकल की हरकत के लिए मैं तु?ा से माफी मांगती हूं,’’ उमा बोली थी.‘‘माफी…? आप उन्हें सम?ा देना, वरना मेरे सामने किसी दिन ऐसी हरकत की तो मैं लिहाज नहीं कर पाऊंगा,’’ बब्बन ने चेतावनी देते हुए कहा तो अपनी बहुत ही बेइज्जती महसूस करते हुए उमा अपने घर चली आई.
रात करीब 8 बजे देवेश का स्कूटर रुकने की आवाज आई, साथ ही दूसरे लोगों की भी कुछ आवाजें, ‘‘संभाल कर भाई,’’ तभी उमा ने दरवाजा खोला तो… ‘‘भाभीजी, इस मोड़ पर घूमते ही इन का स्कूटर नीम के पेड़ से टकरा गया था. हम लोगों ने देखा तो ले आए. शुक्र है, जो उन्हें चोट नहीं आई,’’ महल्ले का चौकीदार बोला.
‘‘आप इन्हें रोकती क्यों नहीं? इतनी शराब पी कर ऐसी हालत में कोई स्कूटर, गाड़ी चलाता है? मेन रोड पर तो कुछ भी हो सकता था,’’ देवेश को लाने वाले पड़ोसी रमेशजी बोले थे.‘‘अरे, मु?ो कुछ नहीं हुआ, रमेश. कंकड़ पर पहिया स्लिप हो गया था, बस. आप लोग बैठिए. उमा, इन सब के लिए चाय बनाओ,’’ देवेश जोर से बोला, मानो उमा कहीं दूर कमरे में बैठी हो. इस से देवेश पर नशे का असर साफ ?ालक रहा था.
‘‘नहींनहीं, हम चलते हैं. आप आराम कीजिए और अपनी उम्र और बीवीबच्चों का खयाल कीजिए,’’ रमेशजी बोले.‘‘सारा दिन तो पीते ही हैं पर हर महीने की तनख्वाह या बोनस वाला दिन इन के लिए जश्न वाला दिन होता है, भाईसाहब,’’ उमा ने देवेश की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘सुबह ही मैं ने इन से मना किया था कि आज तनख्वाह मिलेगी, स्कूटर से मत जाओ, क्योंकि पीने से तो बाज नहीं आएंगे. कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाए कि हम सारी जिंदगी रोने लिए ही रह जाएं.’’
रमेशजी और चौकीदार चले गए. देवेश बिस्तर पर पसर कर बोला,'
भूल का एहसास : भाग 2
उमा को पहले ही शक था कि फुल डे का तो बहाना है. एक दिन उमा किसी ‘पत्रिका’ के बहाने अल्पना के घर पहुंच गई. उस का शक सही निकला. देवेश वहीं था.
‘‘रोती क्या हो, उमा. कुछ नहीं होगा. अभी जय को डाक्टर बनाना है, उस की शादी करनी है. तुम्हारे लिए भी कुछ करना है. तुम ने मेरे लिए बहुत किया है, मेरी नौकरी नहीं लगी थी, उस समय तुम ने ही मु?ो हौसला दिया, मदद की. अपने सारे गहने मेरी जरूरतों के लिए एकएक कर बेचती चली गईं. वे भी तो बनवाने हैं और मकान का लोन भी तो… यकीन करो, अब बिलकुल नहीं पीऊंगा. मु?ो माफ कर देना इस बार,’’ कहते हुए देवेश ने हाथ जोड़ लिए थे.
देवेश बड़बड़ाता जा रहा था और उमा अपने आंसुओं को रोकने की चेष्टा कर रही थी, ‘कितने दयनीय लग रहे हैं ये इस समय, जैसे हम सब के लिए क्या कुछ नहीं करना चाहते. सुबह की बात क्या कहूं इन से, कुछ कहने का फायदा नहीं. इस समय होश में ही नहीं हैं तो सम?ोंगे क्या. हाथ जोड़ कर मु?ो लज्जित कर रहे हैं,’ सोचते हुए उमा ने हाथ जोड़ते देवेश के दोनों हाथ अलग कर दिए.
उमा से कुछ बोला न गया. फिर उस ने खर्राटे भरते देख, देवेश के जूते उतार कर उस के पैरों पर चादर डाल दी और यह सोचते हुए सो गई कि इन से सुबह ही कुछ बोलूंगी.देवेश रोज की तरह तड़के 5 बजे उठा. रोतेरोते उमा को देररात नींद आई थी, सो वह गहरी नींद सो रही थी.‘‘उमा, उठो मैं दूध लेने जा रहा हूं, दरवाजा बंद कर लो,’’ देवेश बोला, मानो कुछ हुआ ही न हो और दूध लेने चला गया.
नींद खुलते ही वह हड़बड़ा कर उठी. देवेश जब दूध ले कर लौटा तब उमा किचन में थी. जय अभी भी सो रहा था.उमा ने कुछ बोलने के लिए यही समय ठीक सम?ा, सो बोली, ‘‘जानते हैं, कल भी वही हुआ, जय और बब्बन में ?ागड़ा. आप सम?ाते क्यों नहीं हैं? क्या आप को शोभा देता है इस उम्र में ऐसीवैसी हरकतें करना? मैं रश्मि की बात कर रही हूं.’’
‘‘मैं ने तो उस के लिए कुछ भी नहीं कहा,’’ देवेश बोला.‘‘?ाठ मत बोलिए,’’ उमा ?ाल्ला उठी.‘‘तुम तो गंभीरता से ले रही हो,’’ देवेश ने बात को आईगई करते हुए कहा.‘‘कितनी बदनामी हो रही है हमारी, जय की पढ़ाई पर कितना असर पड़ रहा है, इस का अंदाजा भी है आप को? महल्ले में निकलना मुश्किल हो गया है. एक दिन तो मु?ो मालती ने फटकारा भी. रमेशजी की बहन शांति ने भी खूब भलाबुरा कहा. रामलाल को भी भनक लग गई है. परसों उन्होंने विमला को पीटा भी था. उन्होंने भी मु?ा से कहा था कि आप ने उन सब के साथ बदतमीजी की थी, फिर भी मैं उन से आप के लिए लड़ पड़ी.
‘‘रामेश्वरजी ने तो यहां तक कह दिया, ‘आप तो इस उम्र में भी इतनी खूबसूरत हैं कि देवेश बाबू पर तो क्या, किसी पर भी कंट्रोल कर सकती हैं, फिर वे क्यों इधरउधर मंडराते हैं? आप उन का ठीक से खयाल नहीं रखतीं? उन का नहीं तो हमारा ही खयाल रखा कीजिए,’’ कहते हुए उमा देवेश पर बरस पड़ी, ‘‘जानते हैं आप, आप की हरकतों की वजह से कितना कुछ सुनना पड़ता है? खून खौल उठता है मेरा, दिल जलता है. कितने अपमानित होते हैं हम? जय पर क्या बीत रही है, कभी सोचा है आप ने? यही प्यार है आप का हमारे लिए, यही चिंता है हम सब की?’’
‘‘अरे, उमा, वह तो दिल्लगी है. थोड़ी तफरीह के बहाने खुद को जवान महसूस कर लेता हूं, थोड़ी देर को चिंतामुक्त हो जाता हूं, फिर काम करने का नया जोश आ जाता है,’’ देवेश ने बेफिक्र हो कर कहा, ‘‘मु?ो अपनी जिम्मेदारियों का पता है. जिंदगी ऐसे ही बीतेगी, नीरस, सो थोड़ा सा रस घोल लेता हूं.’’‘‘रस… चारों ओर जो बदनामी हो रही है उस का क्या? ऐसे में हम जय को एमबीबीएस क्या पढ़वा पाएंगे, वह पीएमटी में निकल सकेगा तभी न, जिस की उम्मीद इस माहौल में न के बराबर है. वह कितने तनाव में रहता है और आप… खुद को जवान महसूस करने के लिए शराब पी रहे हैं, सब की बहूबेटियों को छेड़ रहे हैं, गाना गा रहे हैं. सीटी बजाना, आंख मारना… छि:, ये सब आप को शोभा देता है? कुछ तो शर्म कीजिए. सस्ते, छिछोरे मजाक, घटिया छींटाकशी… जय के सामने आप क्या आदर्श रख रहे हैं? किसी दिन बब्बन या किसी और ने हाथपैर तोड़ दिए तो बैठे रहना.’’
‘‘बित्ते भर का छोकरा, अरे, उस की इतनी हिम्मत? अब चुप भी करो, बड़ा लैक्चर दे डाला. नाश्ता देना है या नहीं?’’ देवेश ?ां?ाला कर बोला.‘‘क्या नाश्ता बना रही हो, अम्मा? बेसन का हलवा तो नहीं. बहुत खुशबू आ रही है,’’ जय सो कर उठते ही बोला.‘‘जय, उठ गया तू. मैं तो नहीं बना रही हलवा,’’ कहते हुए उमा उस के कमरे में चली आई और और उस ने खिड़की के परदे खींच कर एक ओर खिसका दिए.
‘‘देख जय, बगल में जो घर खाली था उस में चहलकदमी हो रही है. वहीं से ही खुशबू आ रही है. लगता है वे लोग रात में ही आ गए. हमें अपनी ही बातों में पता नहीं चला,’’ उमा ने पड़ोस के घर की तरफ इशारा करते हुए कहा.उमा को अभी पता नहीं था कि इन्हीं पड़ोसियों से तो उस की हर दिन की परेशानी बढ़ने वाली है. सुबह कामवाली बाई ने जब बताया कि तलाकशुदा एक महिला अपनी जवान बेटियों के साथ रहने आई है और उन के साथ महिला के काफी वृद्ध पिता भी हैं तो उमा को कुछ और नई परेशानियां साफ नजर आने लगीं. फिर तो देवेश का रोज एक और घर में आनाजाना शुरू हो गया.
देवेश, उमा के लाख मना करने पर भी किसी न किसी बहाने नए पड़ोसियों के यहां चला जाता. तरहतरह की बातें फैलती ही जा रही हैं. मुंह छिपा कर वह कब तक घर में पड़ी रहेगी, लोगों का सामना किसी न किसी तरह से हो ही जाएगा. अपमान के कितने घूंट पीएगी वह?नई पड़ोसिन, अल्पना चौधरी, किसी दफ्तर में काम करती थी. सो, 8 बजे ही उसे जाना पड़ता. औफिस काफी दूर था, सो लौटने में उसे 7 बज जाते. दोनों लड़कियां रमा व बीना बीए तथा 12वीं की छात्राएं थीं.
देवेश, अल्पना चौधरी के जाने के काफी देर बाद अपने औफिस जाता और जल्दी वापस आ जाता. उसे मटरगश्ती के लिए काफी समय मिल जाता. आतेजाते वह उन दोनों से पूछ लेता, ‘कोई जरूरत तो नहीं, निसंकोच बताइएगा.’शनिवार को देवेश का ‘हाफ डे’ होता, पर वह ‘फुल डे’ बता कर अपना समय रमा और बीना के साथ बिताने लगा.
उमा को पहले ही शक था कि फुल डे का तो बहाना है. एक दिन उमा किसी ‘पत्रिका’ के बहाने अल्पना के घर पहुंच गई. उस का शक सही निकला. देवेश वहीं था. उमा को देखते ही वह रमा और बीना को इतिहास, भूगोल का ज्ञान कराने लगा.‘‘मैं सब सम?ाती हूं,’’ उमा ने चुस्त सलवारसूट में खड़ी अल्पना की बड़ी बेटी रमा और मिनी स्कर्ट पहने छोटी बेटी बीना को तीखी नजरों से देखा. ‘आजकल की लड़कियां भी कम नहीं हैं. उफ, तोबा ऐसे परिधान पर. दूसरे की बेटियों से कहा ही क्या जा सकता है. फिर खोट अपने सिक्के में क्या कम है,’ उमा मन ही मन बड़बड़ा रही थी. उमा को देख कर देवेश और लड़कियां सिटपिटा गईं.
‘‘इन्होंने मु?ा से इतिहास, भूगोल और गणित में मदद मांगी थी. थोड़ी कमजोर हैं,’’ देवेश ने सकपकाते हुए सफाई दी.‘‘कभी मौका मिले तो बता दिया करो, अंकल,’’ दोनों लड़कियां एकसाथ बोलीं.‘‘आज हाफ डे हो गया, सो मैं सीधा इधर ही आ गया. बेचारी बच्चियों का भला हो जाए,’’ देवेश बोला.
देवेश की ?ाठी सफाइयों पर उमा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था और वह बहुतकुछ कह भी सकती थी, मगर खून का सा घूंट पी कर बिना कुछ बोले ही वह वापस चल दी पर वह मकान की आड़ में खड़ी हो गई.‘‘अच्छा, मैं भी चलता हूं, फिर जरूरत हो तो पूछ लेना,’’ कह कर हंसते हुए देवेश भी उमा के जाते ही लौट पड़ा. जैसे ही देवेश उन के घर से थोड़ा आगे पहुंचा, आड़ में खड़ी उमा फुरती से उन के घर में दाखिल हो गई.
जब अल्पना चौधरी वापस आईं तो किसी अपरिचित महिला को उस ने अपना इंतजार करते पाया.‘‘मैं पड़ोस में रहती हूं, मेरा नाम उमा है,’’ उमा ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘आप से कुछ जरूरी बातें करनी थीं.’
भूल का एहसास : भाग 3
उमा माफी मांग कर वापस आ गई. 2-3 दिनों बाद ही वह घर फिर से खाली हो गया. देवेश परेशान था कि वे लोग इतनी जल्दी कैसे चले गए. उसे मालूम नहीं चल पाया कि यह सब उमा की कारस्तानी है.
उमा ने जब सारी स्थिति उसे बताई तो अल्पना का चेहरा तमतमा गया. उस ने अपनी लड़कियों को बुलाया और जीभर कर डांटा. ‘‘मम्मी, हम क्या करें, अंकल ही हमारे पीछे पड़े रहते हैं,’’ बड़ी लड़की रमा बोली. ‘‘खबरदार, जो मेरे पीछे किसी अनजाने व्यक्ति के लिए दरवाजा खोला. जब तक हमें दूसरा घर नहीं मिल जाता, तुम दोनों अकेले बाहर नहीं निकलोगी,’’ अल्पना चौधरी ने उन्हें अपना निर्णय सुनाया और ‘‘धन्यवाद, उमा बहन, आप ने हमें आगाह कर दिया, मगर देवेशजी को भी अच्छी तरह सम?ा दीजिए. ऐसा ही करेंगे तो पुलिस, थाने के चक्कर में आ जाएंगे,’’ कहते हुए उस ने उमा को नसीहत दी.
उमा माफी मांग कर वापस आ गई. 2-3 दिनों बाद ही वह घर फिर से खाली हो गया. देवेश परेशान था कि वे लोग इतनी जल्दी कैसे चले गए. उसे मालूम नहीं चल पाया कि यह सब उमा की कारस्तानी है.पर वे लोग ज्यादा दूर नहीं गए हैं, देवेश ने जल्दी ही पता कर लिया और फिर वही चक्कर चलने लगा. न तो वे लड़कियां मानतीं और न ही देवेश बाज आता. उमा ने बहुत सम?ाया, ?ागड़ा किया पर देवेश की बुद्धि पर तो जैसे पत्थर पड़ गए थे. उसे अपनी भूल का तनिक भी एहसास न होता.
इसी बीच जय पीएमटी में पास हो गया और उस का मैडिकल कालेज में दाखिला भी हो गया. वह छात्रावास चला गया.उमा इस बात से खुश थी कि चलो, एक चिंता तो दूर हुई, मगर देवेश अपनी मनमानी करता रहता. अब तो उन्हें जय की मौजदूगी का भी डर नहीं था, सो दोनों में खूब ?ागड़ा होता.उमा तंग हो कर कहती कि ऐसा ही चलता रहा तो वह घर छोड़ कर विजय के पास मुंबई या अजय के पास कश्मीर चली जाएगी, फिर रहें अकेले, खूब पिएं और मस्ती करें.
यही सोच कर उमा ने पहले अपने बड़े बेटे विजय को चिट्ठी लिखी. विजय ने जवाब में लिखा, ‘अम्मा, तुम्हें पता है कि मुंबई का घर कितना छोटा है. उसी में खाना, उसी में सोना, उसी में आएगए को बैठाना. ऐसे में किसी को हमेशा के लिए कैसे रखा जा सकता है?’ पत्र में लिखा ‘किसी’ शब्द पढ़ कर उमा की आंखों में आंसू आ गए. विजय ने आगे लिखा था, ‘पापा को सम?ाओ, ?ागड़ा मत करो, वहीं रहो. हम छुट्टियों में आ रहे हैं, तब हम भी पापा को सम?ाएंगे.’
‘मु?ो मालूम है, तू बहू का गुलाम है. उस की मरजी नहीं होगी तो कैसे रखेगा? कोई बात नहीं. अजय तो मु?ो बड़े प्यार से ले जाएगा, बहुत प्यार करता है मु?ो,’ उमा बड़बड़ाती जा रही थी.दूसरे दिन अजय का भी जवाब आ गया. उस ने तो साफ ही मना कर दिया, ‘अम्मा, यहां मिलिटरी एरिया में भी हम लोग डरेडरे से रहते हैं तो तुम्हें कहां रखूंगा?’
‘हांहां, 100-50 साल जिंदा रहूंगी, बिना पढ़ीलिखी मां का बो?ा जाने कब तक उठाना पड़े, बैठा कर कब तक खिलाएगा. मैं ही मूर्ख थी जो तुम सब को बैठा कर खिलाया और बाद में नौकरानी की तरह बचा हुआ खाया. क्या मैं तेरे पास आ कर तेरा हाथ न बंटाती? कभी देखा है अम्मा को खाली पड़ेपड़े सोते…’ उमा मन ही मन बड़बड़ाते हुए रोए जा रही थी.देवेश ने उमा को रोते देख उस के हाथ से खत लिया और पढ़ कर बोला, ‘‘जा रही हो न, अपने लाड़लों के पास?’’ वह व्यंग्य से हंसा था.
उमा कुछ न बोली. उस ने मन ही मन तय किया कि वह अपने छोटे भाई रवि के पास चली जाएगी. वहां बाबूजी का घर भी है और खेतीबाड़ी भी. वहीं वकालत भी उस की अच्छी चल रही है. उसे वहां कोई परेशानी न होगी, यही सोच कर उमा एक दिन देवेश को बिना बताए, सूटकेस ले कर रवि के घर पहुंच गई.
‘‘अरे, दीदी, तुम अचानक, अकेले, जीजाजी कहां हैं?’’ कहते हुए रवि ने नौकर रामू को आवाज दी. रवि, उमा को गेट पर ही मिल गया था. वह पैसे वाली किसी पार्टी को छोड़ने बाहर तक आया था. उन की गाड़ी उमा के रुकते रिकशे की बगल से गुजरी थी.अंदर पहुंच कर रवि ने धीरे से कमरे का दरवाजा बंद कर लिया था, जिस से कोई बाहर न सुने.
उस का रवैया देख उमा कुछ सम?ा न पाई थी, पर इस तरह उमा को अचानक, अकेला आए देख रवि सब सम?ा गया था, इसीलिए वह बोला, ‘‘दीदी, ध्यान तो रखना ही पड़ता है. छाया के मातापिता भी कुछ दिनों के लिए यहां आए हुए हैं. बोलो, दीदी, क्या हुआ?’’उमा ने रोतेरोते सारी बातें बताईं.
‘‘दीदी, अब बहुत हो गया. इस उम्र में यह सब अच्छा नहीं लगता. जीजाजी को सम?ाओ न, कलह मत किया करो. अलग होने की यह कोई उम्र है भला? मैं यहां लोगों से क्या कहूंगा? यहां मेरा नाम है, इज्जत है. लोग पूछेंगे कि क्यों चली आई तो मैं क्या जवाब दूंगा? अब जो भी है, अपनी जिंदगी सम?ा. ठीक है, यहां अपना बड़ा घर है, पैसे की कोई कमी नहीं और तुम भी रह लोगी, पर सोचो, क्या तुम खुश रह पाओगी? जय का भी तो सोचो. 2 बच्चे तुम्हारे सैटल हो गए हैं, जय को भी सैटल कर दो. क्या उस के प्रति तुम्हारा दायित्व खत्म हो गया? जिंदगी तो सम?ाते का नाम है, कुछ न कुछ अच्छाबुरा तो सब के साथ लगा ही रहता है,’’ रवि ने उमा को सम?ाते हुए कहा.
उधर देवेश के रंगीनमिजाज का भूत उतर चुका था. बब्बन ने महल्ले के 8-10 लड़कों के साथ मिल कर उस को अच्छी तरह पीट दिया था. उस के बाएं हाथ की हड्डी उतर गई थी, पैर टूट गया था, चेहरा भी सूज गया था. जगहजगह नीले निशान पड़ गए थे. उन सब ने देवेश को हौकी, डंडों से खूब मारा था जिस से उसे अंदरूनी चोटें भी आई थीं. दर्द इतना था कि वह बिलबिला उठता, पर उस की मदद को आता कौन? उस की बदनामी जो चारों ओर फैली हुई थी. नेक बीवी और होशियार बच्चों से ही तो उस की थोड़ीबहुत इज्जत थी.
कामवाली बाई ने भी उस रंगीले को अकेला देख, आना छोड़ दिया था. घर की उस की हालत देखने लायक थी. ऐसे में उमा उसे बहुत याद आई. ‘क्यों मैं ने ?ागड़ा किया, क्यों उसे जाने का ताना दिया?
भूल का एहसास : भाग 4
देवेश की हालत देख कर वह कांप गई. ‘कब हुआ यह सब,’ सोचती हुई वह दौड़ कर किचन में गई. फ्रिज खोला तो उस में एक भी बोतल नहीं मिली, घड़ा भी खाली था.
आज ऐसी हालत में मैं एक गिलास पानी को तरस रहा हूं, जबकि उमा ने मु?ो सही हालत में भी कभी खुद पानी लेने नहीं दिया. एक पैर पर खड़ी, वही तो सेवा करती थी. मैं ने उस की कद्र नहीं की, उसी का यह फल है,’ सोच कर वह रो दिया. बु?ो मन से उमा अपने भाई रवि के
साथ वापस लौट आई. रवि ने सूटकेस नीचे रखा तो उमा घर की दूसरी चाबियां टटोल रही थी, लेकिन दरवाजा खुला देख कर वह बुरी तरह चौंक गई. दरवाजा तो खुला हुआ है, आज तो छुट्टी भी नहीं, दफ्तर नहीं गए शायद. स्कूटर भी खड़ा है. लगता है ‘वह सब’ घर पर भी शुरू हो गया है. कितना मजाक बनाएगा देवेश, बड़ा गई थी भाई के यहां… मु?ो मालूम था और कहां जाएगी, तभी मैं ने कोई खबर नहीं ली,’ सोचती हुई उमा, रवि के साथ अंदर हो ली. कमरे के अंदर से कराहने और पानीपानी कहने की आवाजें आ रही थीं.
अंदर पहुंची तो देवेश की हालत देख कर वह कांप गई. ‘कब हुआ यह सब,’ सोचती हुई वह दौड़ कर किचन में गई. फ्रिज खोला तो उस में एक भी बोतल नहीं मिली, घड़ा भी खाली था. उस ने नल खोला कि शायद पानी आ रहा हो. ‘‘शुक्र है, नल में पानी है,’’ कहते हुए वह दौड़ कर पानी ले आई. रवि की मदद से उस ने देवेश को उठा कर पानी पिलाया.
‘‘यह सब क्या हुआ, जीजाजी,’’ रवि आश्चर्य में था.‘‘स्कूटर… फिसल गया… था,’’ देवेश ने एकएक शब्द रुकरुक कर बड़ी मुश्किल से कहा. उमा जानती थी, फिसला कौन था, पर भाई के सामने वह कुछ न बोली. ‘‘मु?ो माफ कर दो, उमा. मैं ने तुम्हें…’’ देवेश अपनी बात पूरी करता तभी उमा बोल पड़ी, ‘‘कुछ बोलने की जरूरत नहीं…’’ मानो बोलने का दर्द उमा स्वयं महसूस कर रही थी.
रवि चला गया. उस के जाते ही उमा ने पूछा, ‘‘वही बब्बन ने…’’ देवेश ने ‘हां’ में सिर हिलाया, ‘‘मैं ने तुम्हें नाहक जाने दिया. तुम्हारा मजाक बनाया. मु?ो कितनी तकलीफ हुई, यह मैं ही जानता हूं,’’ देवेश ने इशारे से ही सारी बातें सम?ाने की कोशिश की थी.
‘‘मैं ने भी महसूस किया, मु?ो भी यों छोड़ कर नहीं जाना चाहिए था. असली हक तो तुम्हीं पर है, तुम्हारे घर पर. संघर्ष से मैं ही घबरा गई थी. संघर्ष ही तो जीवन है, कभी तो सफलता मिलेगी ही…’’ सबकुछ कहना चाहते हुए भी उमा कुछ न बोल सकी थी. केवल देवेश के बहते आंसुओं को उ?स ने अपने हाथों से पोंछ दिया था.