Campus Diaries Review In Hindi: रंजन राज बने पहले एपिसोड के हीरो, टीवीएफ के तकनीशियनों की अच्छी रीयूनियन Campus Diaries WebSeries-Hindishayarih
नए साल में एमएक्स प्लेयर का चेहरा मोहरा भी बदला बदला सा है। कभी सेमी पोर्न वेब सीरीज के लिए बदनाम रहे इस ओटीटी की ब्रांडिंग ठीक करने का जिम्मा प्रेम मिस्त्री ने टीवीएफ के अपने साथी अभिषेक यादव के साथ उठाया है। साल की पहली वेब सीरीज है भी काफी खुशनुमा एहसास लिए। एक चटख रंगों वाली यूनीवर्सिटी है, जिसके अटकते, भटकते और मटकते छात्र छात्राओं के बीच लिखी जा रही हैं, ‘कैंपस डायरीज’।
Movie Review : कैंपस डायरीज
कलाकार : हर्ष बेनीवाल , ऋत्विक सहोरे , सलोनी पटेल , अभिनव शर्मा और रंजन राज
लेखक : अभिषेक यादव , देवांशी शाह , तालाह सिद्दीकी और गगनजीत सिंह
निर्देशक : प्रेम मिस्त्री
निर्माता :
रेटिंग : 3/5
कैम्पस डायरीज
कैम्पस डायरीज - फोटो : सोशल मीडिया
वेब सीरीज ‘कैंपस डायरीज’ की कहानी भले काल्पनिक हो लेकिन प्रेम मिस्त्री और अभिषेक यादव ने इसे लिखते समय उन वास्तविक एहसासों के करीब रखने की पूरी कोशिश की है जो इन दिनों के कॉलेज कैंपस में छात्र भी अनुभव करते हैं और छात्राएं भी। यहां भी एक गैंग टाइप का मामला है। सीनियर्स का ये गैंग कैंप में नए आने वाले चूजों की रैगिंग करता है ये जानते हुए भी कि ये गैरकानूनी है। कैंपस में मामला तब गड़बड़ाता है जब विदेश में कॉलेज का पहला साल पढ़ने वाला एक छात्र दूसरे साल में इस यूनीवर्सिटी आता है और इस गैंग के हत्थे चढ जाता है। मामला संगीन है। सजा होनी तय है। लेकिन, ऐन मौके पर मुद्दई पाला बदल लेता है।
कैम्पस डायरीज
कहानी का ये रोचक मोड़ है। पहले एपीसोड में प्रेम और अभिषेक मिलकर सही कहानी सेंकने में सफल रहे। अभिनय भी इसके कलाकारों का ठीक ठाक ही है। कलाकार बहुत मंजे हुए तो नहीं दिखते लेकिन हर्ष बेनीवाल और ऋत्विक ने मामला जमाने की पूरी कोशिश की है। अभिनव शर्मा का अभिनय ध्यान खींचता है। लेकिन, पहले एपीसोड के सुपरस्टार रहे रंजन राज अपने किरदार इंकलाब की वजह से। वेब सीरीज ‘कैंपस डायरीज’ अपने कथ्य और अपनी कहानी के हिसाब से रंग जमाने लायक सारे तत्व लिए दिखती है लेकिन अगर इसकी कास्टिंग सींग कटाकर बछड़े बने कलाकारों की बजाय वाकई कैंपस वाली उम्र के ही कलाकारों से की जाती तो इसका आनंद ‘कोटा फैक्ट्री’ के पहले सीजन जैसा ही आ सकता था।
कैम्पस डायरीज
वेब सीरीज ‘कैंपस डायरीज’ की राह का रोड़ा हैं इसके संवाद में प्रयोग की गईं थोक के भाव की गालियां। मुंबई में बसे अधिकतर वेब सीरीज लेखकों को पता नहीं ये भ्रम कैसे हो गया है कि देश का हर दूसरा बच्चा, बूढ़ा और जवान बिना गालियां दिए बात नहीं कर सकता। अब या तो इसमें उनकी संगत का असर है या फिर उन्होंने शराफत से पैसे देकर ओटीटी पर वेब सीरीज देखने वालों से कभी मुलाकात ही नहीं की। सीरीज की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है और इसे बनाने वालों ने कैंपस भी अच्छा ही चुना है। बस थोड़ा कॉस्ट्यूम और इसके म्यूजिक पर काम बेहतर होता तो सीरीज साल का और बढ़िया आगाज हो सकती थी।