जनता लोकतंत्र की रोटी को पलटती रहती है , ताकि वह जले नहीं ।( Hindi Short Kahani Aage Aage Dekhiye) लेकिन दुर्भाग्य उसका कि रोटी पकती नहीं , बुरी तरह जल आगे - आगे देखिए ...
गिरीश पंकज
महंगाई ऐसी सदाबहार सुंदरी है , जिसके म प्रेमी कभी कम नहीं होते । हर दौर में उसके चाहने वाले बने रहते हैं । उनके सहारे यह चिरकालिक बाला अपनी जीवन नैया खेती रहती है । महंगाई के बारे में यह अनोखी बात है कि इसका सत्ता से कोई लगाव नहीं होता । यह हमेशा विपक्ष की बेस्ट फ्रेंड बनी रहती है ।
विपक्ष ही इसे हमेशा अपने साथ चिपकाए रखता है । और इसी के सहारे वह अंततः कुर्सी पाने में सफल भी हो जाता है । मगर जैसे ही उसे कुर्सी मिलती है , वह महंगाई को ठीक उसी तरह भूल जाता है , जैसे कभी राजा दुष्यंत अपनी प्रेयसी शकुंतला को भूल गए थे । सत्ता के लिए महंगाई डायन है , लेकिन विपक्ष के लिए परम सुंदरी है । इसलिए विपक्ष की जुबान पर हर वक्त महंगाई - महंगाई बनी रहती है ।
देश की जनता चाहती है कि महंगाई कम जाए , मगर विपक्ष भगवान से प्रार्थना करता है कि प्रभु , पेट्रोल की कीमतें इसी तरह बढ़ती रहें । खाने - पीने के दाम बिल्कुल ही कम न हों । क्योंकि अगर महंगाई कम हो जाएगी , तो विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं बचेगा । इसलिए वह महंगाई को हवा देता रहता है । जैसे ही यह विपक्ष सत्ता की मलाई पाता है , उसके प्रवक्ता मीडिया को सफाई देते हुए कहते हैं कि यह सब तो पिछली सरकार की करतूत है , लेकिन हम महंगाई डायन को जरूर भगा देंगे । अभी तो हमारी शुरुआत है ।
आगे - आगे देखिए होता है क्या ! और मजे की बात , यह शुरुआत देखते ही - देखते कब पांच साल में बदल जाती है , उसे डॉ . हरीशकुमार सिंह पता ही नहीं चलता । महंगाई दूर नहीं होती और इसी चक्कर में सत्ता के रथ पर सवार पार्टी का ' द एंड ' हो जाता है । विपक्ष को सत्ता की कमान मिल जाती है । वह अकेले में महंगाई सुंदरी का आभार ज्ञापन करता है । उसके बाद फिर वही चक्र चलता है । उस दिन सत्ताधारी दल के नेता से हमने पूछा , " कल तक तो महंगाई का रोना रोते थे , छाती पीटते थे कि हाय महंगाई - हाय महंगाई , लेकिन अब तो आप सरकार चला रहे हैं । अब तो इसे कम करो ! " मेरी बात सुनकर वह मुस्कुराए और बोले , “ कम कर देंगे तो हमारा कमीशन कैसे आएगा ? ” मैं चकराया , " कमीशन ... कैसा कमीशन ? ” नेता जी बोले , " अरे भाई , बाजार को सरकार नियंत्रित करती है । उसके इशारे पर पूरे खेल होते हैं
हम चाहे तो महंगाई को रोक सकते हैं , लेकिन अगर महंगाई को रोक देंगे तो फिर हमारी जो ' घर पहुंच सेवा ' होती है , वह बंद हो जाएगी ! हमारे ऐशो - आराम पर ताला लग जाएगा । इसलिए हम गांधी जी के तीन बंदरों की तरह हो जाते हैं , जो न बुरा देखते हैं , न बुरा सुनते हैं और न बुरा कहते हैं । समझ गए कि नहीं समझे ? " हमने हंसते हुए कहा , " समझ गए । अच्छे से समझ गए । आप के महान चरित्र को पता नहीं जनता क्यों नहीं समझती । ” नेताजी हंसकर बोले , " उसके सामने कोई चारा भी तो नहीं है ।
उसे तो बस चित - पट ही करते रहना है । चित आ जाए तो हमारा दल राज करेगा । पांच साल बाद पट आ जाए तो दूसरा दल आ जाएगा । जनता लोकतंत्र की रोटी को पलटती रहती है , ताकि वह जले नहीं । सोचती है कि अब रोटी पक जाएगी , लेकिन दुर्भाग्य उसका कि रोटी पकती नहीं , बुरी तरह जल जाती है । " सच्ची बात बोलकर नेताजी कारस्थ हो गए । हम कार के गुबार को देखते हुए महंगाई के बारे में सोचने लगे कि अब पुराने सत्ताखोर जो विपक्ष में आ गए हैं , महंगाई के साथ इश्क लड़ाएंगे ।