Mir Taqi Mir Selected Shayari Collection मीर तक़ी मीर Ki Chuninda शेर पढ़ें
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
क्या कहूँ तुम से मैं कि क्या है इश्क़
जान का रोग है बला है इश्क़
mir taqi mir ki shayari
ज़ख़्म झेले दाग़ भी खाए बहुत
दिल लगा कर हम तो पछताए बहुत
मुझे काम रोने से अक्सर है नासेह
तू कब तक मिरे मुँह को धोता रहेगा
लिखना कहना तर्क हुआ था आपस में तो मुद्दत से
अब जो क़रार किया है दिल से ख़त भी गया पैग़ाम गया
mir taqi mir shayari
जब रोने बैठता हूँ तब क्या कसर रहे है
रूमाल दो दो दिन तक जूँ अब्र तर रहे है
मेंह तो बौछार का देखा है बरसते तुम ने
इसी अंदाज़ से थी अश्क-फ़िशानी उस की
दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है
ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया
mir taqi mir ke sher
यही जाना कि कुछ न जाना हाए
सो भी इक उम्र में हुआ मालूम
'मीर' बंदों से काम कब निकला
माँगना है जो कुछ ख़ुदा से माँग
'मीर' हम मिल के बहुत ख़ुश हुए तुम से प्यारे
इस ख़राबे में मिरी जान तुम आबाद रहो
Two line मीर तक़ी मीर की शायरी