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Hindi Kahani Teri Sas To Bahut Modern Hai Story तेरी सास तो बहुत मौडर्न है: मिसेज चंद्रा की चर्चा क्यों हो रही थी - HindiShayariH

Hindi Kahani मौडर्न सास : इन सब के अलावा सभी की जबान पर एक और बात की चर्चा जोरों पर थी और वह थी मिसेज चंद्रा की लेटेस्ट ज्वैलरी, स्टाइलिश साड़ी और हेयरस्टाइल.


मौडर्न सास ki kahani Hindi Kahani Teri Sas To Bahut Modern Hai Story तेरी सास तो बहुत मौडर्न है: मिसेज चंद्रा की चर्चा क्यों हो रही थी
मौडर्न सास ki kahani



लेखिका-प्रेमलता यदु

शादी के समय ही रिश्तेदारों व जानपहचान वालों ने कहना शुरू कर दिया कि तेरी सास तो बड़ी मौडर्न है, पर नियति ही जानती है कि उस की सास उस के लिए कितनी केयरिंग है. सास के कहने पर जब नियति मायके आई तो क्या वह उन के प्रति अपनी मां की सोच बदल पाई? आज सुबहसुबह जैसे ही नियति का फोन श्रीकांतजी के मोबाइल पर आया, उन की पत्नी लीला ने उन्हें फोन स्पीकर पर डालने का इशारा किया और उन्होंने स्पीकर औन कर दिया. नियति हंसती हुई बोली, ‘‘हैलो पापा, आप ने स्पीकर औन कर लिया हो और मम्मी आ गई हों तो मैं अपनी बात शुरू करूं.’’ पिछले 2 महीनों से यही चल रहा है.

नियति का फोन जब भी आता है, श्रीकांतजी स्पीकर औन कर देते हैं क्योंकि नियति और उस की मां लीला की बातचीत तब से बंद है, जब से नियति ने अपना निर्णय सुनाया है कि वह शादी अपने कलीग और स्कूलफ्रैंड विकल्प से करना चाहती है. यह बात जानते ही दोनों मांबेटी के बीच अबोलेपन ने अपना स्थान ले लिया. लेकिन जब भी नियति का फोन आता है, लीला अपने सारे काम छोड़ कर फोन के करीब आ जाती है, यह जानने के लिए कि नियति क्या कह रही है. नियति की बातों को सुन कर लीला के चेहरे के हावभाव बनतेबिगड़ते रहते हैं,

 

क्योंकि लीला किसी हाल में नहीं चाहती कि उन की बेटी किसी विजातीय लड़के से ब्याह करे. वैसे, लीला कई दफा विकल्प की मां मिसेज चंद्रा से नियति के स्कूल फंक्शन और पेरैंट्सटीचर मीटिंग में मिल चुकी है. मिसेज चंद्रा मौडर्न और स्वतंत्र विचारधारा की महिला हैं. लीला को लगता है कि मिसेज चंद्रा जरूरत से ज्यादा ही मौडर्न हैं. मिस्टर चंद्रा इंडियन नेवी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर थे. उन का घर ग्वालियर के पौश एरिया में है और काफी आलीशान भी है. नौकरचाकर सब हैं. किसी चीज की कोई कमी नहीं है. उन के घर का वातावरण, रहनसहन थोड़ा भिन्न है, जो लीला को शुरू से ही अटपटा लगता आया है.


क्योंकि लीला जहां रहती है, वहां की औरतें न तो मिसेज चंद्रा की भांति बिना आस्तीन का ब्लाउज पहनती हैं और न ही बिना सिर पर पल्लू लिए घर से बाहर निकली हैं. ऊपर से इन का पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी और उन के घर पर बिना अंडा, मांस, मछली के काम ही नहीं चलता. श्रीकांतजी एक सुलझे हुए और सरल व्यक्तित्व के धनी हैं. उन्हें इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं, क्योंकि उन के लिए तो नियति की खुशी ही सब से बड़ी है. उन का मानना है कि जातिपांति, धर्म कुछ नहीं होता, मनुष्य की बस एक ही जाति है और एक ही धर्म होता है और वह है मानवता का धर्म. श्रीकांतजी को मिसेज चंद्रा के मौडर्न होने से भी कोई तकलीफ नहीं है. श्रीकांतजी ने भी हंसते हुए कहा, ‘‘हां बोलो, तुम्हारी मम्मी आ गई हैं.’’

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‘‘पापा, कल मैं और विकल्प ग्वालियर आ रहे हैं, फिर शाम को विकल्प के मौमडैड आप और मम्मी से हमारी शादी की बात करने आएंगे.’’ श्रीकांतजी नियति को आश्वस्त करते हुए बोले, ‘‘तुम चिंता मत करो, सब ठीक होगा.’’ यह सुनने के बाद नियति ने कहा, ‘‘थैंक्यू पापा, मुझे आप से एक बात और शेयर करनी है. मैं ने और विकल्प ने कंपनी चेंज कर ली है. हमारी नई कंपनी का सबडिविजनल औफिस ग्वालियर में भी है तो शादी के बाद हम दोनों ग्वालियर आ जाएंगे.’’ ‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. हमारी बेटी शादी के बाद भी इसी शहर में रहेगी, हमें और क्या चाहिए. यह खबर सुनते ही तुम्हारी भाभी बहुत खुश हो जाएगी.’’ भाभी का नाम सुनते ही नियति चहकती हुई बोली, ‘‘पापा, भाभी कहां हैं, बात तो कराइए.’’

‘‘इस वक्त तो वह किचन में व्यस्त है.’’ नियति थोड़ा नाराज होती हुई बोली, ‘‘पापा, मैं ने मम्मी से कितनी बार कहा है कि एक फुलटाइम मेड रख लो, सुबह से ले कर रात तक भाभी बेचारी घर के कामों में ही उलझी रहती हैं. यहां तक कि उन के पास अपने खुद के लिए भी समय नहीं होता और मम्मी हैं कि कुछ समझती ही नहीं. उन्हें लगता है कि घर का सारा काम बहू का ही है. ऊपर से भाभी को सारे काम साड़ी पहन कर करने पड़ते हैं. उन्हें काम करने में कितनी असुविधा होती है. ‘‘पापा, आप मम्मी को समझाइए, वक्त तेजी से बदल रहा है. अब मम्मी को भी थोड़ा बदलना होगा.


अच्छा पापा, अब मैं फोन रखती हूं.’’ ऐसा कह कर नियति ने फोन रख दिया. नियति के फोन रखते ही लीला के चेहरे का रंग गुस्से से लाल हो गया और वह बड़बड़ाती हुई कहने लगी, ‘‘लो, अब यह छोरी सिखाएगी मुझे बहू से क्या काम करवाना है और क्या नही. खुद को तो धेलेभर की अक्ल नहीं. एक ऐसी औरत की बहू बनने को उतावली हुए जा रही है, जिसे हमारी संस्कृति का जरा सा भी ज्ञान नहीं. न तो वह अपने सिर पर पल्लू लेती है और न ही उसे छोटेबड़े का लिहाज है. शादी हो जाने दो, फिर पता चलेगा मौडर्न सास कैसी होती है.’’ लीला को अपनी स्वयं की बेटी के लिए इस प्रकार मुंह से आग उगलता देख श्रीकांतजी बोले, ‘‘अब बस भी करो लीला. मिसेज चंद्रा मौडर्न हैं, इस का मतलब यह नहीं कि वे बुरी हैं या फिर बुरी सास ही साबित होंगी. कम से कम अपनी बेटी के लिए तो अच्छा सोचो और अच्छा बोलो.

विकल्प अपने पेरैंट्स के साथ हम से मिलने आ रहा है. कल नए रिश्तों की नींव पड़ने वाली है. मैं नहीं चाहता कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत खटास से हो.’’ श्रीकांतजी के ऐसा कहते ही लीला कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए बगैर वहां से चली गई. दूसरे दिन नियति आ गई. शाम की पूरी तैयारियां जोरों पर थीं. वह वक्त भी आ गया जब विकल्प अपने पेरैंट्स के साथ नियति के घर पहुंचा. मिसेज चंद्रा की खूबसूरती आज भी बरकरार थी. उसे देखते ही लीला मन ही मन कुड़कुड़ाने लगी. जवान बेटे की मां और यह साजोसिंगार, अपनी उम्र तक का लिहाज नहीं. आग लगे ऐसे मौडर्ननैस को.

मिसेज चंद्रा इन सब से बेखबर, घर के सभी सदस्यों के साथ बड़ी आत्मीयता से मिल रही थीं. बातों ही बातों में मिसेज चंद्रा ने कहा, ‘‘मैं बड़ी खुश हूं, जो मुझे नियति जैसी खूबसूरत और समझदार बहू मिल रही है. मैं ढूंढ़ने भी निकलती तो नियति जैसी बहू मुझे न मिलती.’’ मिसेज चंद्रा के ऐसा कहने पर लीला व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, ‘‘खूबसूरत, समझदार के साथसाथ कमाऊ बहू भी मिल रही है मिसेज चंद्रा, यह कहना भूल गईं आप.’’ लीला का ऐसा कहना श्रीकांतजी, नियति और उस के भैयाभाभी को बड़ा अटपटा और बुरा लगा, लेकिन मिसेज चंद्रा बड़े सहज भाव से लीला की बातों को हंसी में उड़ा गईं. उस के कुछ सप्ताह बाद नियति और विकल्प की शादी बड़ी धूमधाम से हो गई. शादी में आए सभी मेहमानों द्वारा शादी में किए गए शानदार इंतजाम को ले कर खूब तारीफ हुई,


साथ ही साथ, नियति व विकल्प की भी काफी प्रशंसा हुई. इन सब के अलावा सभी की जबान पर एक और बात की चर्चा जोरों पर थी और वह थी मिसेज चंद्रा की लेटेस्ट ज्वैलरी, स्टाइलिश साड़ी और हेयरस्टाइल. लीला के सभी सगेसंबंधी और सहेलियां उस से यह कहने से नहीं चूकीं कि लीला बहन, तुम ने तो दामाद के संग समधन भी बड़ी जोरदार पाई है. नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है. इस उम्र में इतना स्टाइल… कमाल है, तुम्हारी समधन तो काफी स्टाइलिश है. सभी के मुंह से बस एक ही बात सुन कर कि ‘नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है,’ लीला के कान पक गए और जब नियति शादी के बाद पहली बार घर आई तो लीला नियति की खैरखबर लेने के बजाय उस से कहने लगी, ‘‘कैसी है तेरी मौडर्न सास? सजनेसंवरने के अलावा भी कुछ करती है या बस सारा दिन केवल आईने के सामने ही बैठी रहती है?’’ अपनी मां का इस तरह बातबेबात नियति को उस की सास के मौडर्न होने का ताना देना उसे अच्छा नहीं लगता था,

इसलिए धीरेधीरे अब नियति अपने मायके आने से कतराने लगी. बस, फोन पर ही अपने पापा और भाभी से बात कर लेती. औफिस का भी यही हाल था. नियति के हर फैं्रड और कलीग को बस यही जानना होता है कि उस की सास का उस के साथ व्यवहार कैसा है? उसे परेशान तो नहीं करती है? नियति अपनी सास के होते हुए इतना फ्री कैसे रहती है? क्योंकि सभी को लगता है कि नियति की सास बड़ी तेजतर्रार, स्टाइलिश और मौडर्न है. नियति को यह बात समझ ही नहीं आ रही थी कि लोग सभी को एक ही तराजू पर क्यों तौलते हैं. ऐसा जरूरी तो नहीं कि जो महिला स्टाइलिश हो, मौडर्न हो, वह तेजतर्रार और बुरी सास ही होगी और जो देखने में सिंपल हो, सीधीसादी लगती हो, वह अच्छी सास ही होगी. एक शनिवार नियति अपने मायके में फोन कर अपनी मम्मी से बोली, ‘‘मम्मी, इस वीकैंड पर हम पिकनिक पर जा रहे हैं. मौम कह रही थीं कि आप सब भी हमारे साथ चलते तो एक अच्छी फैमिली पिकनिक हो जाएगी. आप भैयाभाभी से भी चलने को कह देना.’’ नियति का इतना कहना था कि लीला भड़क उठी और कहने लगी,


‘‘हमें कहीं नहीं जाना तेरी मौडर्न सास के साथ और न ही हमारी बहू जाएगी तुम लोगों के साथ. तुम सासबहू दोनों घूमो जींसपैंट पहन कर पूरे शहर में. तुम्हें न सही, पर हमें तो है लोकलाज का खयाल. ‘‘वैसे भी तुम्हारी भाभी अपने मायके इंदौर गई है और तुम्हारा पत्नीभक्त भाई उस के साथ ही गया है. दोनों यहां होते भी तो हम में से कोई न जाता तुम्हारे मौडर्न परिवार के साथ कहीं, क्योंकि उस दिन मेरे गुरुजी का जन्मदिन है, इसलिए हमारी समिति की ओर से इस अवसर पर भव्य सत्संग आयोजित किया जाएगा. उस दिन गुरुजी सभी को दर्शन और आशीर्वाद देंगे, जो जीवन की सद्गति के लिए बहुत जरूरी है. यह सब तेरी मौडर्न सास क्या समझेगी.’’ लीला का इतना कहना था कि नियति ने गुस्से में फोन काट दिया. निर्धारित दिन पर नियति अपने पूरे परिवार के साथ इधर पिकनिक के लिए निकल पड़ी, उधर लीला और श्रीकांतजी गुरुजी से आशीष लेने सत्संग के लिए निकल पड़े. आज पूरा दिन परिवार के संग इतना अच्छा समय बिता कर नियति काफी खुश थी. उसे बस इस बात का अफसोस था कि आज की इस खुशी का हिस्सा उस के अपने मम्मीपापा नहीं बन पाए थे. पिकनिक से लौटते वक्त नियति इन्हीं सब बातों में गुम थी कि अचानक उस का मोबाइल बजा. फोन किसी अनजान नंबर से था.

फोन रिसीव करते ही नियति की आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी. यह देख नियति की सास ने उस से कारण जानना चाहा तो नियति रोती हुई बोली, ‘‘मम्मी का फोन था. सत्संग से लौटते हुए मम्मीपापा का ऐक्सिडैंट हो गया है. पापा गंभीररूप से घायल हो गए हैं. मम्मी को ज्यादा चोटें नहीं आई हैं. मोबाइल भी टूट गया है, इसलिए उन्होंने किसी दूसरे के मोबाइल से फोन किया था. भैयाभाभी शहर से बाहर हैं और वहां सिटी अस्पताल में पुलिस प्रक्रिया में देर होने की वजह से पापा का इलाज शुरू नहीं हो पा रहा है. मम्मी बहुत घबराई हुई हैं और परेशान हैं.’’ इतना सुनते ही मिसेज चंद्रा बोलीं, ‘‘तुम्हें रोने या परेशान होने की जरूरत नहीं बेटा, शहर के डीएसपी से मेरा बहुत अच्छा परिचय है. मैं अभी उन्हें फोन कर देती हूं और अस्पताल में भी फोन कर देती हूं. वहां भी मेरी पहचान के काफी सीनियर डाक्टर हैं, वे सब संभाल लेंगे. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं और कुछ घंटों में तो हम भी शहर पहुंच ही जाएंगे.’’ ऐसा कहती हुई मिसेज चंद्रा ने अपने कई मित्रों और पहचान की नामीगिरामी हस्तियों को फोन कर नियति के मम्मीपापा को हर संभव मदद करने को कह दिया.


जब नियति अपने पूरे परिवार के साथ अस्पताल पहुंची तो उस के मम्मीपापा का इलाज शुरू हो गया था. पुलिस और अस्पताल के डाक्टर व स्टाफ अपना पूरा सहयोग दे रहे थे. यह देख एक बार फिर नियति की आंखें नम हो गईं और उस के चेहरे पर अपनी सास के प्रति आदर और कृतज्ञता के भाव उभर आए. नियति की मम्मी 3 दिनों तक अस्पताल में एडमिट रहीं और उस के पापा 15 दिनों तक. मिसेज चंद्रा पूरी आत्मीयता से हर रोज अस्पताल में उन से मिलने जातीं. उन की वजह से नियति के मम्मीपापा को अस्पताल में कोई परेशानी नहीं हुई. वहां उन का विशेष ध्यान रखा गया और अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ से भरपूर सहयोग मिला. उस के बावजूद मिसेज चंद्रा के प्रति लीला के विचार और बरताव में कोई फर्क न आया. लीला अब भी अपने स्वस्थ होने और सही समय पर इलाज मिलने का श्रेय अपने गुरुजी की कृपा और आशीर्वाद को ही दे रही थी. मिसेज चंद्रा को लीला अपने गुरुजी के द्वारा भेजा गया केवल एक माध्यम समझ रही थी, जबकि गुरुजी का इस बात से कोई वास्ता ही न था.

लीला की इस प्रकार अंधभक्ति देख और बारबार अपनी ही मां से अपनी सास के लिए अपमानभरे शब्द सुनसुन कर नियति ने यह तय कर लिया कि वह अब न तो अपने मायके जाएगी और न ही अपनी मम्मी को फोन करेगी. काफी दिनों तक जब नियति अपने मायके नहीं गई तो एक दिन नियति की सास ने उस से कहा, ‘‘नियति बेटा, तुम बहुत दिनों से अपने मायके नहीं गई हो, इस संडे समय निकाल कर उन से मिल आओ. उन्हें तुम्हारी चिंता होती होगी.’’ नियति अपनी सास की बात टालना नहीं चाहती थी और न ही उन्हें सच बता कर उन का दिल दुखाना चाहती थी, इसलिए वह बोली, ‘‘जी, इस संडे चली जाऊंगी.’’ संडे को जब नियति अपने मायके पहुंची तो पापा उसे बरामदे में आरामकुरसी पर बैठे किताब पढ़ते मिल गए. काफी देर पापा के पास बैठने के बाद जब नियति अंदर गई तो उस ने देखा कि उस की मम्मी अपनी सहेलियों के साथ बैठी हंसीठिठोली कर रही हैं और उस की भाभी भागभाग कर सब के लिए चायनाश्ता और पानी की व्यवस्था कर रही है. यह देख नियति अपनी भाभी का हाथ बंटाने किचन की ओर बढ़ी ही थी कि वहां बैठी उस की मम्मी की सहेलियों में से एक ने कहा,


‘‘अरे नियति, तुम कब आईं? इधर आ, हमारे पास बैठ. मैं ने तो सुना है कि तेरी सास बड़ी मौडर्न हैं, तुम अपनी सास के साथ ससुराल में कैसे निभा रही हो?’’ नियति चुप रही, फिर क्या था एक के बाद एक सभी ने नियति की सास का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. कोई उन की लिपस्टिक पर फिकरे कसने लगा, तो कोई हेयरस्टाइल पर, किसी को उन का इस उम्र में जींस पहनना गलत लग रहा था, तो किसी को उन के लहराते हुए आंचल से आपत्ति थी. सभी की अनर्गल बातें सुन कर नियति से रहा नहीं गया और वह सब पर बरस पड़ी, ‘‘हां, मेरी सास बड़ी मौडर्न हैं. वे केवल मौडर्न ड्रैस ही नहीं पहनतीं, उन की सोच भी मौडर्न है. वे अपनी बहू को चारदीवारी में घूंघट के पीछे घुटनभरी जिंदगी नहीं, खुली हवा में आजादी की सांस लेने देती हैं. ‘‘यहां आप में से कितनी सास अपनी बहू को उन की मरजी से जीने देती हैं, अपनी बहू का बेटी की तरह मां बन कर ध्यान रखती हैं? लेकिन, मेरी मौडर्न सास मेरा खयाल अपनी बेटी की तरह रखती हैं और मुझे उन के मौडर्न होने पर गर्व है क्योंकि वे मुझे केवल बेटी बुलाती ही नहीं, अपनी बेटी समझती भी हैं. और सब से बड़ी बात यह कि, बुरे वक्त में साथ खड़ी रहती हैं. ऊपर वाले की इच्छा कह कर अपना पल्ला नहीं झाड़ लेती हैं.’’ नियति की बातें सुन कर सब की आंखें शर्म से झुक गईं और नियति के पापा बरामदे में बैठे मंदमंद मुसकरा रहे थे.



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