कोशिश तो है कि ज़ब्त को रुस्वा करूँ नहीं
हँस कर मिलूँ सभी से किसी पर खुलूँ नहीं
कितनी आसानी से दुनिया की गिरह खोलता है
मुझ में इक बच्चा बुज़ुर्गों की तरह बोलता है
सुख-चैन मिरा लूटने वाले आ किसी दिन
मुझ को भी चुरा ले मिरी नींदों की तरह तू
दरवाज़े के अंदर इक दरवाज़ा और
छुपा हुआ है मुझ में जाने क्या क्या और
दिन को दिन रात को मैं रात न लिखने पाऊँ
उन की कोशिश है कि हालत न लिखने पाऊँ
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
मैं ज़रा भी नहीं उस में लेकिन
मुझ में वो सारा का सारा मौजूद
कहीं खो दिया कहीं पा लिया कहीं रो लिया कहीं गा लिया
कहीं छीन लेती है हर ख़ुशी कहीं मेहरबाँ बे-हिसाब है
ये कब चाहा कि मैं मशहूर हो जाऊँ
बस अपने आप को मंज़ूर हो जाऊँ
किसी दिन ज़िंदगानी में करिश्मा क्यूँ नहीं होता
मैं हर दिन जाग तो जाता हूँ ज़िंदा क्यूँ नहीं होता
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