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Hindi रोमांटिक स्टोरीज पति, पत्नी और बिंदास वो:Hindi Romantic Stories Pati Patni Aur Bindass Woh - HindiShayariH

 
Hindi Romantic Stories Pati Patni Aur Bindass Woh पति, पत्नी और बिंदास वो
तौलिए से पसीना पोंछा और लेट कर सोचने लगा, कितना भयानक सपना था. गौरव को सब पुरानी बातें याद आने लगीं.
अश्विनी कुमार भटनागर
Hindi रोमांटिक स्टोरीज पति, पत्नी और बिंदास वो:Hindi Romantic Stories Pati Patni Aur Bindass Woh
रोमांटिक स्टोरीज पति, पत्नी और बिंदास वो



गौरव और नगमा के बीच शुरू हुई हंसीठिठोली बढ़ती जा रही थी. गौरव मर्यादा की लाइन लांघना नहीं चाहता था, लेकिन नगमा तो सरेआम उस का हाथ पकड़ लेती, उसे खींच कर शाम के सिनेमा शो में ले जाती.

गौ?रव सर्दी की ठंड के बावजूद पसीने में भीग गया था. पसीना आने के बावजूद वह इस तरह कांप रहा था मानो मलेरिया बुखार चढ़ा हो. उठ कर देखा तो रात के 12 बजे थे. बिस्तर के दूसरे छोर पर शिवानी बेखबर सो रही थी.

तौलिए से पसीना पोंछा और लेट कर सोचने लगा, कितना भयानक सपना था. गौरव को सब पुरानी बातें याद आने लगीं.

Hindi Romantic Stories Pati Patni Aur Bindass Woh

नगमा गौरव की वरिष्ठ अधिकारी थी. जब नई आई थी तो गौरव के अहम ने उसे अपना अधिकारी नहीं माना था. बातबात पर दोनों में बहस होती थी और कभीकभी तो गुस्से में नगमा उसे अपने कमरे से बाहर जाने का आदेश भी दे देती थी. कभी ऐसा भी होता था कि नगमा बुलाती थी और वह नहीं जाता था. जाता था तो फाइल उस के सामने रखता नहीं था, पटक देता था.

अहम के टकराव का एक और खास कारण था. गौरव अपनी मेहनत व लगन से पदोन्नति पाता हुआ इस पद पर पहुंचा था. मगर नगमा स्पर्धा से आई थी. जो परीक्षा पास कर के आते हैं उन में श्रेष्ठ होने की भावना आ जाती है.

लेकिन जब से एक पार्टी में नगमा और गौरव की भेंट हुई, दोनों का एकदूसरे के प्रति नजरिया ही बदल गया था.

कार्यालय की एक लड़की का विवाह था. बहुत से लोग आमंत्रित थे. गौरव अपनी पत्नी के साथ आया था. आते ही सब अपनेअपने परिचितों को या तो ढूंढ़ रहे थे या उन से नजरें बचा कर छिपते फिर रहे थे.

 

‘अरे, शिवानी तू,’ नगमा ने आश्चर्य से कहा, ‘मु?ो तो सपने में भी आशा नहीं थी कि तू अब कभी मिलेगी.’


‘पर मेरे सपने में तो तू बारबार आती है,’ शिवानी ने नगमा का हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘कितनी चिट्ठियां डाली थीं, पर एक का भी जवाब नहीं दिया.’

‘मैं उस समय कोलकाता में प्रशिक्षण के लिए गई हुई थी. तेरी शादी का तो बाद में पता लगा,’ अचानक शिवानी के पीछे गौरव को सकपकाया सा खड़ा देख नगमा आश्चर्य से बोली, ‘तो क्या ये…’

‘हां, मेरे पति हैं,’ शिवानी हंस पड़ी.

‘बहुत खुशी हुई आप से मिल कर,’  नगमा ने हंस कर नाटकीयता से कहा, ‘तो आप हैं हमारे जीजू.’

शिवानी के मौसा और नगमा के मामा में रिश्ता तो दूर का था, पर अकसर शादीब्याह में मिल जाने से दोनों में अच्छीखासी दोस्ती हो गई थी.

‘चलो, अब तो पता लग गया न,’ गौरव ने व्यंग्य से कहा, ‘मैं आप के लिए शीतल पेय ले कर आता हूं.’

गौरव नगमा से दूर होने के लिए ही शीतल पेय का बहाना बना कर खिसक गया. दरअसल, वह दोनों के बीच अपने को काफी असहज सा अनुभव कर रहा था.

‘पता नहीं नगमा, ऐसा क्यों लग रहा है कि तु?ो गौरव अच्छा नहीं लगा. क्या यह मेरा भ्रम है?’ शिवानी ने पूछा.

नगमा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘दरअसल, हम दोनों में रोज तूतू मैंमैं होती है. हम लेखा विभाग में एकसाथ हैं और हमारा आंकड़ा 36 का है.’



‘ओह,’ शिवानी ने हाथ फैला कर कहा, ‘पर मु?ो इस बात का पता नहीं.’

‘क्यों, क्या तेरे ये रोज दफ्तर से आ कर मेरी बुराई नहीं करते?’ नगमा ने टेढ़ी मुसकान से पूछा.

‘नहीं. दरअसल, इन्हें दफ्तर की बातें घर में करने की आदत नहीं है,’ शिवानी ने कहा, ‘पर कभीकभी बड़े खराब मूड में घर आते हैं.’

‘कोई बात नहीं, अब ठीक कर दूंगी,’ नगमा ने मुसकरा कर कहा, ‘ये जीजू कहां गायब हो गए.’

गौरव हाथ में 2 गिलास ले कर आ रहा था.


‘बहुत भीड़ है. बड़ी मुश्किल से 2 गिलास हाथ लगे,’ गौरव ने दोनों को गिलास पकड़ाते हुए कहा.

‘जीजू,’ नगमा ने गिलास पकड़ कर अनूठे व्यंग्य से कहा, ‘मुश्किल तो अब बढ़ गई है आप की. अब करिए तकरार.’

‘कोई बात नहीं,’ गौरव भी नहले पर दहला मारते हुए बोला, ‘प्यार का पहला कदम तकरार से ही शुरू होता है.’

शिवानी और नगमा इस विनोद पर ठठा कर हंस पड़ीं. फिर नगमा ने कहा, ‘इस भ्रम में मत रहना, जीजूजी.’

अब जब भी नगमा गौरव को अपने कक्ष में बुलाती थी तो काफी पहले से ही आ जाती थी. धीरेधीरे जब यह एक नियम सा हो गया तो दफ्तर के लोगों की मुसकराहट काफी चौड़ी हो गई.

वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन चल रहे थे. इन दिनों लेखाकार बहुत व्यस्त हो जाते हैं. इन का काम देररात तक चलता है. यह कार्यालय भी कोई अलग नहीं था.

 

फाइलें इत्यादि लाने, ले जाने में बहुत समय खराब होता था, इसलिए गौरव को अधिकतर नगमा के ही कक्ष में बैठना पड़ता था. इस पर कंप्यूटर भी यहीं था. किसी और से कुछ पूछना या कराना होता था तो उसे भी यहीं बुला लिया जाता था. कुछ सम?ाने या सम?ाने के लिए गौरव को नजदीक आना पड़ जाता था. एक बार जब गौरव फाइल सामने रख कर खोल रहा था तो उस का हाथ नगमा के हाथ पर पड़ गया. गौरव को जैसे ही गलती का एहसास हुआ, हाथ उठाने लगा.

नगमा ने मुसकरा कर हाथ रोक दिया और बोली, ‘रहने दो न, जीजू, अच्छा लगता है.’

नगमा गौरव को जीजू केवल अकेले में ही कहती थी और लोगों को इस रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं था.

‘छोड़ो भी, कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा,’ गौरव ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की.


‘कह देना कि मैं साली हूं और इस रिश्ते में तो यह सब चलता है,’ नगमा ने हंसते हुए गौरव को मुक्त कर दिया.

इस के बाद जो यह खेल शुरू हुआ तो चलता ही रहा.

रात में देर हो जाने से गौरव नगमा को अपनी मोटरसाइकिल पर घर छोड़ने भी जाता था. घर में उस की मां मिलती थीं. पिताजी नागपुर में अपनी दूसरी बेटी के साथ रहते थे. वे अपना काम छोड़ कर नहीं आ सकते थे.

एक छुट्टी पर गौरव शिवानी को भी नगमा के घर ले गया था. मां मिल कर बहुत खुश हुई थीं. इस तरह दोनों के और ज्यादा मिलने के रास्ते साफ हो

गए थे.

‘जीजू, आप के साथ एक दिन पिक्चर चलना है,’ नगमा ने कहा.

‘मरवाओगी क्या,’ गौरव ने सिहर कर कहा, ‘शिवानी को भी साथ ले चलेंगे.’

‘बहुत डरपोक हो, जीजू,’ नगमा हंस पड़ी, ‘एकदम चूहे की तरह.’

‘नहींनहीं, किसी के साथ देख

लिया तो गजब हो जाएगा,’ गौरव ने विद्रोह किया.

‘अरे, देखने दो न,’ नगमा ने कहा, ‘जब कोई देखेगा तो देखा जाएगा. अगर किसी ने देख भी लिया तो कितना मजा आएगा,’ नगमा हंस रही थी.

‘तुम्हें हंसी छूट रही है,’ गौरव ने चिढ़ कर कहा.

नगमा ने सिनेमा के टिकट मंगवा लिए और दोनों ने 6 से 9 वाला शो देखा. पूरे शो में दोनों एकदूसरे का हाथ पकड़े बैठे रहे. बहुत अच्छा लग रहा था. साथ ही, डर भी था कि कहीं पकड़े न जाएं, पर ऐसा कुछ हुआ नहीं और हंसते हुए दोनों वापस घर आ गए.

लौटते समय गौरव ने शिवानी के लिए फूलों का गजरा और उस की मनपसंद रसमलाई खरीदी. घर पहुंचा तो अपने मनपसंद सामान को देख कर शिवानी मुसकराई.

‘क्या बात है,’ शिवानी ने मीठा व्यंग्य कसा, ‘लगता है आज कुछ खास

बात है.’

‘है तो,’ गौरव हंसा, ‘थोड़ी देर में बताऊंगा, जरा तरोताजा हो जाऊं. वैसे गजरा बेचने वाली ‘चांद सा बेटा’ वाला आशीर्वाद दे रही थी.’


एक दिन नगमा और गौरव ने एक अच्छे वातानुकूलित रैस्तरां में बैठ कर खाना खाया. लगभग अंधेरे कोने में दोनों बैठे थे. गौरव डर रहा था, कोई पहचान न ले, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. हौसले और बुलंद हो गए.

नगमा कुछ अधिक ही रोमांटिक हो रही थी. बस, गौरव ही सहमासहमा सा था.

‘चलो, जल्दी चलो,’ मोटरसाइकिल पार्किंग से बाहर लाते हुए गौरव ने कहा, ‘ज्यादा देर ठीक नहीं.’

‘क्या जीजू,’ नगमा ने कहा, ‘कहते हैं न कि गुनाह बेलज्जत. सारा मजा किरकिरा कर रहे हो. चलो, आज किसी होटल में एक कमरा ले लेते हैं.’

‘दिमाग खराब हो गया है क्या?’ गौरव ने डांट कर कहा.

नगमा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘जीजू, आप का चेहरा देखने लायक है. मु?ो बहुत हंसी आ रही है.’

रास्तेभर नगमा गौरव को पकड़ कर बैठी रही. घर के सामने नगमा को

उतार कर बिना हायहैलो किए वह

चल दिया.

घर पहुंचने से पहले गौरव ने एक पिज्जा पैक करवाया. शिवानी को पिज्जा बहुत अच्छा लगता था. एक सुंदर, मोटा, सुगंधित गजरा भी लिया.

न जाने क्यों आज गौरव के दिल में डर बैठ गया था. धीरेधीरे लगता है नगमा उस पर हावी हो रही है.

‘लो, मैं बहुत दिनों से पिज्जा की याद कर रही थी,’ शिवानी ने पैकेट पकड़ते हुए कहा, ‘अच्छा हुआ आप ले आए. और यह गजरा, हाय राम, बहुत भारी है, मेरा जूड़ा ही गिर जाएगा. वैसे खुशबू अच्छी है.’

‘बस, तुम इसी तरह खुश रहो तो मैं लाता रहूंगा,’ गौरव ने कहा, ‘जल्दी से खा लो, ठंडा हो जाएगा.’

‘क्यों, तुम नहीं खाओगे?’

‘मैं खा कर आया हूं,’ गौरव ने तौलिए से मुंह पोंछते हुए कहा, ‘दरअसल, एक आदमी का काम कर दिया तो वह 2 पिज्जा दे गया. नगमा और मैं ने एक वहीं खा लिया.’

‘ओह, यह नगमा भी बड़ी खाऊ है,’ शिवानी हंस पड़ी, ‘पर है मजेदार


और चुलबुली.’

गौरव इस से सहमत था. गौरव पलंग पर करवटें बदल रहा था. बारबार नगमा की होटल वाली बात सता रही थी. वह सचमुच ही डर गया था. शिवानी को अधिक धोखा नहीं दे सकता. कुछ न कुछ करना पड़ेगा.

‘सोते क्यों नहीं,’ शिवानी ने कुहनी मार कर कहा, ‘न सोते हो, न सोने देते हो.’

गौरव को कुछ समय बाद ?ापकी आ गई. नींद में टटोल कर देखा तो बैड पर शिवानी का सा इकहरा, जानापहचाना बदन नहीं था, नगमा का गुदाज, मांसल शरीर था, कमरा भी नगमा का था.

‘मैं यहां कैसे आ गया?’ गौरव ने आश्चर्य से पूछा.

‘सो जाओ यार,’ नगमा ने कहा, ‘मैं ने तुम्हें शिवानी से खरीद लिया है. वह कुछ नहीं बोलेगी.’

गौरव का सपना टूट गया. सर्दी की ठंडक के बावजूद वह पसीने से भीग गया था. घड़ी में देखा तो रात के 12 बजे थे. शिवानी को बिस्तर के दूसरे छोर पर बेखबर सोता देख आश्वस्त हुआ. यह नगमा का नहीं, उस का अपना कमरा व अपना बिस्तर था.

कितना भयानक सपना था. अब वह पुरानी यादों से बाहर आ गया था.

आज वह अवश्य अपने तबादले के लिए प्रबंध निदेशक से बात करेगा. इस तरह नहीं चलेगा.

दफ्तर पहुंचा तो नगमा से आंखें मिलाने में डर रहा था.

संध्या को उसे मजबूरन नगमा को घर छोड़ने जाना पड़ा. दिनभर गंभीर था और उस समय भी. नगमा अपनी आदत के अनुसार उसे छेड़े जा रही थी.

आज दरवाजे पर मां को प्रतीक्षा में खड़े पाया. देखते ही वह खुश हो गई.

‘‘मैं तुम्हें एक खुशखबरी सुनाने के लिए खड़ी थी,’’ मां ने कहा, ‘‘नगमा की शादी तय हो गई है. अगले महीने तुम्हें और शिवानी को आना है.’’

सुनते ही गौरव के मुंह से गहरी व लंबी राहत की सांस निकली.

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